दीपिका व्यास, चन्द्रपाल चौकसे एवं नरोत्तम दास काठले

जैविक खेती फसल उत्पादन की एक तकनीक है, जिसमें कीट नाशकों तथा रासायनिक उर्वरकों का उपयोग किये बिना तथा हरी खाद, गोबर खाद तथा केचुआ खाद का उपयोग करके खेती की जाती है। इसका मुख्य उद्देश्य मृदा की उर्वरा शक्ति को बनाये रखना तथा फसलों की उत्पादन क्षमता को बढ़ाना है।

छत्तीसगढ में खेतों में रासायनिक खाद के अत्याधिक प्रयोग से होने वाले नुकसान को रोकने के उद्धेश्य से राज्य सरकार ने जैविक खेती मिशन योजना शुरू की हैं। इस योजना के तहत जैविक खेती करने वाळे किसानो को प्रति एकड 1000 रूपए दिया जाएगा तथा फसळ तैयार होने पर मंडी में खरीदने की भी व्यवस्था भी करेगी।

छत्तीसगढ सरकार ने जैविक खेती को बढावा देने के लिए 22 जिलो में एक - एक ब्लाक का चयन किया हैं तथा यह योजना 3 साल के लिए लागू की गई हैं। इसके अंतर्गत कोटा जिळे का चयन किया गया हैं जहां 400 एकड में जैविक खेती की जा रही है। योजना के अंतर्गत कोटा को जैविक विकास खंड द्योषित किया गया हैं और 25 फीसदी खेतो में जैविक खेती करने की गुजारिश की हैं।

जैविक खेती के उद्देश्यः-

1. मृदा को हानिकारक रासायनिक खाद के प्रभाव से होने वाले नुकसान से बचाना, जिससे मृदा की उर्वरा शक्ति नष्ट न हो।

2. फसलों में पोषक तत्वों की उपलब्धता को बढ़ाना, जिससे मानव जीवन पर कोई दुष्प्रभाव न पड़े।

3. फसलों पर होने वाले रोग, कीट तथा खरपतवारों के रोकथाम के लिए उपयोग किये जाने वाले रासायनों को छिड़काव को रोका जा सके, जिसे मानव के स्वास्थ्य पर नुकसान न हो।

4. जैविक खेती में फसलों के साथ पशुओं की देखभाल, जिसमें उनका आवास, रख रखाव तथा खान-पान आदि का भी ध्यान रखा जाता है।

5. जैविक खेती का सबसे मुख्य उद्देश्य इसके वातावरण पर प्रभाव को सुरक्षित करना, जानवरों की सुरक्षा तथा प्राकृतिक जीवन को सुरक्षित करना है।

जैविक खाद:- 
फार्म पर उगाई जाने वाली फसलों के अवशेष, पशुओं के मल-मूत्र के विघटन के पश्चात् बने पदार्थ को जैविक खाद कहते हैं। इसे कार्बनिक खाद या जीवांश खाद भी कहा जाता है। इस खाद के द्वारा भूमि की अवस्था में सुधार होता है और मृदा में वायु का संचार बढ़ाता है।

जैविक खाद के प्रकार

1. गोबर खाद:- गोबर की खाद पशुओं के मल-मूत्र, बिछावन तथा व्यर्थ चारे के मिश्रण से बनाई जाती है। इन सभी अवशेषो को एकत्रित करके गड्ढों में भर देते हैं कुछ समय पश्चात् उनका विघटन हो जाता है, तथा गोबर खाद बनकर तैयार हो जाता है।

2. कम्पोस्ट खाद:- यह खाद विभिन्न प्रकार के फसलों के अवशेष, सूखे डंठल, गन्ने की सूखी पत्तियों व फसलों के अवशेषों को गड्ढो में दबा दिया जाता है, तथा उनके सड़ने के बाद कम्पोस्ट खाद बनकर तैयार हो जाता है। यह खाद सूक्ष्म जीवाणुओं द्वारा अपघटन की प्रक्रिया द्वारा तैयार होता है। इस प्रकार तैयार खाद में 0.4-0.8 प्रतिशत नाइट्रोजन, 0.3-0.6 प्रतिशत फास्फोरस तथा 0.7-1.0 प्रतिशत पोटाश पाई जाती है।

3. वर्मी कम्पोस्ट:- वर्मी कम्पोस्ट केचुओं की सहायता से बनाई जाती है, इस प्रक्रिया में केचुए मिट्टी को खाकर उसको मल के रूप में पाचन के उपरांत बाहर निकालते हैं। 2000 केचुए 1 वर्गमीटर जगह की मिट्टी को खाकर एक वर्ग में 100 मिट्रिक टन ह्यूमस का निर्माण करते हैं।

4. हरी खाद:- जैविक खेती में हरी खाद वाली फसलों को उगाकर कोमल अवस्था में बुवाई के 30-35 दिन बाद जुताई करके भूमि में दबा दी जाती है, जिसके सड़ने और गलने के पश्चात् इन फसलों से भूमि के भौतिक, रासायनिक एवं जैविक गुणों में सुधार होता है। तथा भूमि में वायु संचार व पोषक तत्वों की उपलब्धता बढ़ती है।
  • हरी फसलों के रूप में मुख्य रूप से सनई तथा ढेंचा का उपयोग किया जाता है। इसके अलावा हरी ग्वार, मूंग, लोबिया भी हरी खाद के रूप उपयोग की जाती है।
  • हरी खाद के उपयोग से नाइट्रोजन की वृद्धि होती है। हरी खाद की फसलों के द्वारा 75-100 कि.ग्रा. नाइट्रोजन प्रति हेक्टेअर की दर से भूमि को प्राप्त होती है।

जैविक खेती के लाभ

1. जैविक खेती से मृदा की उर्वरता एवं गुणवत्ता में सुधार संभव है।

2. जैविक खेती से जीवांश एवं मृदा सूक्ष्म तत्वों में वृद्धि संभव है।

3. जैविक खेती जैव विविधता, प्रकृति खेती, स्वास्थ्य संरक्षण तथा पर्यावरण की दृष्टि से लाभदायक है।

4. दलहनी फसलों के उपयोग से नत्रजन स्थरीकरण क्रिया में वृद्धि होती है।

5. जैविक उत्पाद का उपयोग करने से मनुष्यों में बीमारियों के प्रति रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होती हेेेैें

6. मनुष्य एवं पशुओं को विष मुक्त एवं स्वस्थ्य भोजन एवं चारा उपलब्ध होगा।

7. जैविक खेती अपनाकर कृषक स्वालंबी बन सकेंगे, तभी खेती से लाभ ले सकेंगे।

8. जैविक खेती से ही मृदा की जलधारण क्षमता में वृद्धि की जा सकती है।

9. जैविक खेती से मृदा में उपस्थित लाभदायक जीवों का संरक्षण किया जा सकता है।

10. जैविक खेती अपनाकर किसान खेती को टिकाऊ एवं स्थाई बना सकते हैं।

11. जैविक खेती में उपयोग होने वाले जैविक खाद एवं जैविक कीटनाशी को कृषक स्वयं तैयार कर सकता है।

12. जैविक खेती में प्रयोग होने वाले जैविक कीटनाशक या जैविक खाद कम या अधिक प्रयोग होने पर फसल एवं खेतों पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं डालते हैं।

13. जैविक खेती के द्वारा, मनुष्यो में हो रहे हामोनल असंतुलन को संतुलन में लाया जा सकता हैं। जिससे प्रजनन क्षमता में वृद्धि होगी।