वंदना यादव, निशा जांगड़े  एवं मुक्ति लता तिर्की
सब्जी विज्ञान विभाग, कृषि महाविद्यालय 
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर (छ.ग.)

जैविक खेती पुरानी विधि से की जाने वाली खेती है, जो जमीन की प्राकृतिक उर्वरता को बनाए रखती है। इसके अंतर्गत फसलों के उत्पादन में रासायनिक खाद एवं कीटनाशकों के उपयोग के स्थान पर गोबर की खाद, कम्पोस्ट, जीवाणु खाद, फसल अवशेष, फसल चक्र और प्रकृति में उपलब्ध खनिज पदार्थों का उपयोग किया जाता है। फसलों को विभिन्न प्रकार की बीमारियों से बचानें के लिए प्रकृति में उपलब्ध मित्र कीटों, जीवाणुओं और जैविक कीटनाशकों का उपयोग किया जाता है।

आज के समय में फसल उत्पादन में किसानों द्वारा विभिन्न प्रकार के रासायनिक खाद का अत्याधिक उपयोग किया जाता है जिसके फलस्वरुप उत्पादन क्षमता तो बढ़ जाती है, परन्तु इससे भूमि की उपजाऊ शक्ति लगातार कम हो जाती है। पर्यावरण संतुलन भी बिगड़ता जा रहा है और लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी घटती जा रही है।

मुख्य उद्देश्य
  • जैविक खेती से पर्याप्त मात्रा में उच्च पोषण गुणवत्ता वाली फसल का उत्पादन करना।
  • जैविक खेती में स्थानीय रूप से संगठित उत्पादन प्रणालियों में नवीकरण संसाधनों का उपयोग करना।
  • मिटटी और जैव विविधता की दीर्घकालिक उर्वरता को बनाये रखना।
  • कृषि तकनीकों के परिणाम स्वरूप होने वाले सभी प्रकार के प्रदूषण से बचने के लिए।
  • जैविक खेती से सूक्ष्म जीवो ,मृदा वनस्पतियो और जीवो,पौधों और जानवरो के उपयोग को शामिल करके कृषि प्रणालियों के भीतर जैविक चक्रो को प्रोत्साहित करना।

जैविक खेती के प्रमुख घटक 

1. खेती की पद्धति  में बदलाव
  • एक विविध और संतुलित कृषि प्रणाली स्थापित करने में आमतौर पर कई साल लग जाते हैं। प्राकृतिक मिट्टी की उर्वरता को बनाए रखने के लिए मिट्टी में पर्याप्त मात्रा में कार्बनिक पदार्थ देना चाहिए। इससे मिट्टी की उर्वरता फिर से स्थापित होने में कुछ समय लगता है। शुरू के वर्ष में पैदावार तो कम होती है लेकिन बाद में फिर से पैदावार में वृध्दि होने लगती है। रासायनिक खाद के उपयोग से पहले तो उपज में वृध्दि होती है लेकिन बाद में उपज कम होने के साथ ही मिट्टी की उर्वरता भी घट जाती है।
  • कृषि प्रणाली में विविधता लाने के लिए उपयुक्त वार्षिक फसल का चयन करें और उन्हें एक नियोजित क्रम में लगाएं। फसलों को नाइट्रोजन प्रदान करने के लिए फलीदार फसलों जैसे सेम या फलीदार चारा फसलों को बारी-बारी से शामिल करें। प्राकृतिक शत्रुओं को प्रोत्साहित करने और कीटों को नियंत्रित करने के लिए हेजेज और फूलों की पट्टियां लगाएं। फसल के अवशेषों और खाद के आधार पर खेत में ही कम्पोस्ट का उत्पादन करें, यदि संभंव हो तो खाद को ऊपरी मिट्टी के साथ में मिलाएं। हरी खाद मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाने में सहायक है। जानवरों को प्रणाली में शामिल करें। कृषि पशु मूल्यवान खाद तो प्रदान करते ही हैं और अतिरिक्त पशु उत्पादों के माध्यम से कृषि आय में बढ़ोत्तरी होती हैं। कटाई के बाद फसल अवशेषों को जलाने से बचें क्योंकि यह मूल्यवान कार्बनिक पदार्थों को नष्ट कर देता है और मिट्टी के जीवों को नुकसान पहुंचाता है।

2. मिश्रित खेती
मिश्रित खेती में फसलों और जानवरों को एकीकृत किया जाता है। इसमें पशुओं से प्राप्त गोबर को कुछ हफ्तों तक बगीचों में सड़ने के लिए रखा जाता है। कुछ मृदा संरक्षण उपायों को भी लागू किया जा सकता है। जैसे बारहमासी फसलों और खाइयों में कटाव को कम करने के लिए मल्चिंग का उपयोग किया जाता है। फलों और सब्जियों के उत्पादन में खरपतवारों को नियंत्रित करने के लिए कभी-कभी शाकनाशी, कीटनाशकों और उपचारित बीजों का उपयोग किया जा सकता है।

3. निम्नीकृत भूमि
स्थानांतरित खेती, अधिक चराई, वनों की कटाई, भूजल के साथ गहन सिंचाई के वर्षों के बाद लवणता, या जलभराव और बाढ़ के कारण भूमि का क्षरण हो सकता है। मिट्टी के क्षरण को रोकने और मिट्टी की उर्वरता को फिर से स्थापित करने के लिए विशिष्ट नवीन तकनीकों की आवश्यकता होती है। लवणीय मिट्टी में बड़ी मात्रा में पानी में घुलनशील लवण होते हैं जो बीज के अंकुरण और पौधों की वृद्धि को रोकते हैं। उचित सिंचाई सुनिश्चित करके और अतिरिक्त लवण के प्राकृतिक जल निकासी से मिट्टी की संरचना में सुधार करके इन लवणों को धीरे-धीरे कम किया जा सकता है। नमक सहिष्णु फसलें भी उगाई जा सकती हैं। चूना और अच्छी तरह से बनी खाद डालकर अम्लीय मिट्टी को पुनः प्राप्त किया जा सकता है। अतिरिक्त पानी को निकालने के लिए जल निकासी चैनल बनाकर बाढ़ वाली मिट्टी में सुधार किया जा सकता है।

4. इंटरक्रॉपिंग
इसमें दो वार्षिक फसलों को एक साथ उगाते है। आम तौर पर फलीदार फसल जैसे फलियाँ या हरी खाद की फसल को बारी-बारी से पंक्तियों में मक्का या अन्य अनाज फसल या सब्जी के साथ उगाना जैविक खेती में उत्पादन में विविधता लाने और भूमि से अधिकतम लाभ प्राप्त का ही एक तरीका है। अंतरफसल में प्रकाश, पोषक तत्वों और पानी के लिए फसलों के बीच प्रतिस्पर्धा से बचने के लिए विशेष ध्यान देना चाहिए।

5. कम्पोस्टिंग
खेतों में कम्पोस्ट के प्रयोग से फसल की वृद्धि और पैदावार पर बड़ा प्रभाव पड़ता है। खाद उत्पादन शुरू करने के लिए, किसानों को पशु चारा और पशु खाद की आवश्यकता होगी, इसके लिए तेजी से बढ़ने वाले फलीदार पौधों की बुवाई करना चाहिए जो अधिक बायोमास का निर्माण करते हैं और खाद उत्पादन के लिए खेत में कुछ पशुओं को रखते है।

6. हरी खाद
बायोमास उत्पादन के लिए एक फलीदार पौधों और हरी खाद को लगाना चाहिए, यह मिट्टी की उर्वरता में सुधार के लिए उपयागी होता है। हरी खाद को अन्य फसलों के साथ बारी-बारी से या फसलों के बीच की पट्टियों में उगाया जा सकता है।

7. जैविक कीट प्रबंधन
कीट और बीमारी के प्रकोप को रोकने के लिए पौधों और जानवरों का सावधानीपूर्वक प्रबंधन करना चाहिए। फसलों की रोग एवं कीट प्रतिरोधी किस्म का चुनाव करना चाहिए। बुवाई के समय का चयन जो कीटों के प्रकोप को रोकता है मिट्टी के रोगजनकों का विरोध करने के लिए मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार रोग, कीड़ों और खरपतवारों के नियंत्रण के लिए प्राकृतिक जैविक एजेंटों को प्रोत्साहित करना, कीड़ों, पक्षियों और जानवरों से सुरक्षा के लिए भौतिक बाधाओं का उपयोग करना चाहिए। परागणकों और प्राकृतिक शत्रुओं को प्रोत्साहित करने के लिए आवास को संशोधित करना और फेरोमोन से आकर्षित करके कीटों को फँसाना।


8. उपयुक्त बीज और रोपण सामग्री
स्वस्थ बीज, रोपण सामग्री और उन्नत किस्मों के उपयोग से फसल उत्पादन में बड़ा बदलाव आ सकता है। इस पद्धति में उन्नत किस्मों की उपलब्धता और बीज उपचार सहित बीजों और रोपण सामग्री के चयन पर नवीन तकनीकी जानकारी की आवश्यकता होती है।

9. फलीदार वृक्षों का रोपण
केला, कॉफी या कोको जैसे बारहमासी फसल बागानों में, ग्लिरिसिडिया, कॉलिएन्ड्रा, और सेसबानिया जैसे फलदार वृक्षों के रोपण से नाइट्रोजन निर्धारण के माध्यम से छाया, मल्चिंग सामग्री और नाइट्रोजन प्रदान करके फलों की फसल की बढ़ती परिस्थितियों में सुधार हो सकता है। इसके अलावा कुछ फलीदार पेड़ पशुओं के लिए अच्छा चारा प्रदान करते हैं।

10. मल्चिंग
मल्चिंग पौधों की सामग्री जैसे पत्ते, घास, टहनियाँ, फसल अवशेष, पुआल आदि के साथ ऊपरी मिट्टी को कवर करने की प्रक्रिया है। गीली घास का आवरण मिट्टी के जीवों जैसे केंचुओं की गतिविधि को बढ़ाता है। वे बहुत सारे छोटे और बड़े छिद्रों के साथ मिट्टी की संरचना को सुधार करने में सहायक होते हैं। जैसे-जैसे गीली घास सड़ती है, यह मिट्टी में कार्बनिक पदार्थों की मात्रा को बढ़ाती है। अतः मल्चिंग मृदा अपरदन को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

11. हवा और पानी के कटाव से मिट्टी की रक्षा करना
मिट्टी की संरचना में सुधार करना, वाष्पीकरण को कम करके मिट्टी को नम रखना खरपतवार वृद्धि को कम करना, फसलों को पोषक तत्व प्रदान करना जो फसल के विघटित होने पर जैविक मल्च सामग्री लगातार अपने पोषक तत्वों को छोड़ती है, इससे मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है। मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ की मात्रा बढ़ाना।

12. जल प्रबंधन
कृषि के लिए पानी की कमी कई देशों में एक आम बात है। कुछ क्षेत्रों में बिना सिंचाई के फसल उगाना लगभग असंभव है। बरसात के मौसम में बड़ी मात्रा में वर्षा वाले क्षेत्रों में भी, शुष्क अवधि के दौरान फसलों को पानी की कमी हो सकती है। जैविक खेती का उद्देश्य ऑन-फार्म संसाधनों के उपयोग और प्राकृतिक संसाधनों के सतत उपयोग में वृध्दि करना हेै। सक्रिय जल प्रतिधारण, जल संचयन और पानी का भंडारण महत्वपूर्ण विधि हैं। मिट्टी में जल धारण क्षमता में सुधार करना अधिक महत्वपूर्ण है।

13. मिट्टी की नमी बनाए रखें
पानी को अवशोषित करने और संग्रहीत करने के लिए मिट्टी की क्षमता काफी हद तक मिट्टी की संरचना और कार्बनिक पदार्थों पर निर्भर करती है। मृदा कार्बनिक पदार्थ स्पंज की तरह ही पानी के भंडारण के रूप में कार्य करता है। जड़ें, केंचुए और अन्य मृदा जीवन मिट्टी में दरारें और छिद्र बनाए रखते हैं।

14. वाष्पीकरण कम करें
गीली घास की एक पतली परत मिट्टी से पानी के वाष्पीकरण को काफी कम कर सकती है। यह मिट्टी को सीधी धूप से बचाती है और मिट्टी को ज्यादा गर्म होने से बचाती है। सूखी ऊपरी मिट्टी की उथली खुदाई नीचे की मिट्टी की परतों के सूखने को कम करने में मदद कर सकती है। वर्षा जल का बेहतर उपयोग किसानों को बारिश की शुरुआत में ही रोपण करने की अनुमति देती है।

15. फसल योजना और प्रबंधन
कृषि प्रणालियों में समय या स्थान में फसलों की विविधता पाई जा सकती है। विभिन्न पौधों की पोषक तत्वों के लिए अलग-अलग आवश्यकताएं होती हैं, मिट्टी में पोषक तत्वों के अधिकतम उपयोग करने के लिए एक अच्छी फसल योजना और प्रबंधन की आवश्यकता होती है। फसल चक्र, अंतरफसल, कवर फसलें और हरी खाद किसानों के लिए मिट्टी के स्वास्थ्य और उर्वरता को बढ़ाते हैं। फसल चक्रण जैविक फसल प्रणाली की एक महत्वपूर्ण विशेषता है जिसमें हर मौसम में या हर साल खेत में उगाई जाने वाली फसलों के प्रकार में बदलाव किया जाता हैं। यह स्वस्थ मिट्टी के लिए अत्यन्त आवश्यक है। कीटों , खरपतवारों को नियंत्रत करने और मिट्टी कार्ब्रनिक पदाथों को बनाये रखने का यह एक महत्वपूर्ण विधि है। इससे मिटी कि संरचना में सुधार होता है। कुछ फसलों के जड़े मजबूत एवं गहरी होती है ये मिट्टी की उपरी कड़ी परत को तोड सकती है एवं मिट्टी में गहराई से नमी और पोषक तत्वों को अवशोषित कर सकती है। यह खरपतवार, कीट और रोगों के नियंत्रण में भी सहायक है। एक ही फसल हर साल लगाने से कुछ फसल विशेष खरपतवार, कीड़े और रोगों को बढ़ावा मिलता है। फसलों अदल-बदल के लगाने से उनका जीवन चक्र खत्म हो जाता है।