जिस तरह से जलवायु परिवर्तन से देश की कृषि प्रभावित हो रही है, ऐसे समय जरूरत है कृषि में नई तकनीक के इस्तेमाल करना, जिससे फसल उत्पादन पर कोई असर न पड़े और अच्छा उत्पादन मिलता रहे। ऐसी ही एक तकनीक है संरक्षित खेती। भारत भौगोलिक विभिन्नताओं से परिपूर्ण एक कृषि आधारित अर्थव्यवस्था वाला देश है। हमारे देश के लगभग 58 प्रतिशत से ज्यादा लोग अपनी आजीविका के लिए मुख्य रूप से कृषि पर निर्भर हैं। इस प्रकार कृषि, रोजगार और जीविकोपार्जन का सबसे बड़ा स्रोत है। कृषि वैज्ञानिकों ने पारम्परिक कृषि में विविधीकरण का व्यापक रुप से प्रयोग करके आधुनिक कृषि में बदल दिया है। हमारे देश के किसान अधिक लाभ अर्जित करने के लिए उचित मूल्य वाली सभी प्रकार की फसलों जैसे- फल, फूल और सब्जियों आदि की खेती को विविधता प्रदान करते हैं।
संरक्षित खेती नए युग की ऐसी नवीनतम् कृषि प्रणाली है, जिसके माध्यम से किसान फसलों की मांग के अनुसार वातावरण को नियंत्रित करते हुए मंहगी फसलों के लिए ऐसा वातावरण तैयार करते हैं, जहां पर धूप, छांव, गर्मी व ठंडक का अधिक प्रभाव न हो साथ ही तेज बारिश का असर और तीव्र हवाओं का प्रकोप भी न हो, और फसलों का प्राकृतिक प्रकोपों व अन्य कारकों से बचाव किया जाता है।इस तकनीक के तहत फसलों के लिए एक ऐसा वातावरण तैयार करते हैं, जहां जलवायु परिवर्तन के चलते फसलों पर कोई विपरीत प्रभाव न पड़े। संरक्षित खेती के द्वारा किसान प्रतिकूल परिस्थितियों में अच्छा उत्पादन ले सकते हैं। आधुनिक कृषि में, संरक्षित संरचनाओं ने उच्च उत्पादकता के साथ अधिक उत्पादन के लिए अपनी अधिकतम् क्षमता का प्रदर्शन किया है। इन नवीनतम् तकनीकों के अंगीकरण से फल, फूल और सब्जियों की उत्पादकता को वातावरण की तुलना में 4-5 गुना बढ़ाया जा सकता है। इन तकनीकों के अंर्तगत फसलों की अच्छी उत्पादकता के साथ बेहतर गुणवत्ता भी प्राप्त होती है। प्रति इकाई क्षेत्रफल से अधिक आमदनी लेने के लिए ग्रामीण युवाओं द्वारा इन तकनीकों को अपनाया जा सकता है।

भारत में, संरक्षित खेती प्रौद्योगिकी वाणिज्यिक उत्पादन के लिए लगभग तीन दशक ही पुरानी है, जबकि विकसित देशों जैसे जापान, रुस, ब्रिटेन, चीन, हॉलैंड और अन्य देशों में दो सदी पुरानी है। इजराइल एक ऐसा देश है जहां किसानों ने अच्छी गुणवत्ता वाले फल, फूल और सब्जियों को कम पानी वाले रेगिस्तानी क्षेत्रों में उगाकर इस तकनीक से अच्छे उत्पादन के साथ बढ़िया मुनाफा भी कमा रहे हैं। हॉलैंड ने पॉलीहाउस की उन्नत तकनीक विकसित करके दुनिया के फूल निर्यात जगत में 70 प्रतिशत का योगदान दिया है। संरक्षित खेती नवीनतम् तकनीक की वह संरचना है, जिसमें एक नियंत्रित वातावरण के अंर्तगत मूल्यवान फसलों की खेती की जाती है। ये संरक्षित संरचनाएं कीट अवरोधी नेट हाउस, ग्रीन हाउस, नवीनतम् तकनीक से लैस पॉलीहाउस, प्लास्टिक लो-टनल, प्लास्टिक हाई-टनल, प्लास्टिक मल्चिंग और ड्रिप सिंचाई तकनीक आदि प्रकार की होती हैं।

विश्व में सब्जियों के कुल उत्पादन में भारत का चीन के बाद दूसरा स्थान है। वर्ष 2020-21 के लिए भारत में सब्जियों की मांग लगभग 214.82 मिलियन टन का अनुमान है, जबकि आपूर्ति 211.29 मिलियन टन होने की उम्मीद है। सब्जियों की प्रति व्यक्ति उपलब्धता आवश्यकता से कम है। हरित क्रांति के बाद बढ़ती खाद्य और पोषण सम्बन्धी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए उत्पादन की मात्रा के साथ-साथ कृषि उत्पाद की गुणवत्ता पर अधिक ध्यान दिया जा रहा है। भारत में बढ़ती हुई जनसंख्या की मांग को पूरा करने के लिए सब्जियों की फसल के उत्पादन में वृद्धि करने की अत्यन्त आवश्यकता है। ग्रामीण क्षेत्रों का विकास, छोटी जोत, शहरीकरण एवं औद्यीकरण के कारण कृषि योग्य भूमि का घटता क्षेत्रफल आदि सब्जियों की मांग को पूरा करने में बाधक हैं। इसलिए, गहन खेती, ग्रीनहाउस, पॉलीहाउस, हाइड्रोपोनिक्स (बिना मिट्टी के खेती), ऐरोपोनिक्स और पोषक तत्व फिल्म तकनीक को अपनाकर फल, फूल व सब्जियों की उत्पादकता में सुधार करना अत्यन्त आवश्यक है।

संरक्षित संरचनाओं की प्रारम्भिक लागत अधिक होती है, लेकिन फसलों के अच्छे उत्पादन के साथ 3-5 वर्षों में इसकी भरपाई की जाती है। ऑफ-सीजन सब्जी, फल व फूलों की खेती और नर्सरी को इससे अधिक लाभ प्राप्त करने के लिए संरक्षित संरचनाओं के अन्तर्गत उगाया जाता है। वित्तीय सहायता या सब्सिडी भी सरकार द्वारा प्रदान की जाती है। इन संरचनाओं का संचालन कुशलता से किया जाता है, क्योंकि संरक्षित संरचनाओं में आधुनिक विधियों/तकनीकों का उपयोग किया गया था। कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा चलाए जा रहे विभिन्न उपक्रमों के अंर्तगत संरक्षित खेती की संरचनाओं पर लगभग 50 प्रतिशत तक की सरकारी छूट हर प्रदेश में दी जाती है। इसके साथ-साथ किसी-किसी प्रदेश द्वारा 25-30 प्रतिशत की अतिरिक्त सरकारी छूट भी दी जाती है। इन दोनों सरकारी अनुदानों को मिलाकर लगभग 75-80 प्रतिशत तक की छूट किसानों को प्राप्त हो जाती है। अधिक जानकारी के लिए प्रत्येक प्रदेश के निदेशक, उद्यान और जिला उद्यान अधिकारी से सम्पर्क किया जा सकता है।