तोशिमा कुशराम
इं. गां. कृ. वि.वि., रायपुर (छ.ग.)

एकीकृत कीट प्रबंधन के अत्तर्गत कीट नियंत्रण के सरल और प्राभावी तरीकों को इस प्रकार समावेश करते हैं कि कीट नियंत्रण प्रभावी हो, किसान और सब्जी उपभोक्ता दोनों लाभान्वित हों और वातावरण भी सुरक्षित रहे। इसमें जैविक, रासायनिक, भौतिक, यांत्रिक नियंत्रण एवं सस्य क्रियाओं के समुचित चुनाव एवं उनके समावेष द्वारा एकीकृत कीट प्रबंधन किया जाता है, जिससे मित्र कीटों की संख्या एवं वातावरण की स्वच्छता पर बुरा प्रभाव नहीं पड़ता । तुड़ाई के बाद सब्जियों में रासायनिक दवाओं के अवशेष अधिक मात्रा में पाये जाने से मनुष्य के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है, जिससे सब्जियों में एकीकृत कीट प्रबंधन का महत्व और बढ़ गया है।

एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन के तरीकों की सफलता मुख्यता हानिकारक कीट एवं मित्र कीटों की निगरानी के आधार पर कीट प्रबंधन के विभिन्न घटकों के एकीकरण कर सही निर्णय को लागू करने के ऊपर निर्भर है।

सस्य क्रियाओं का एकीकृत नाशीकीट प्रबंधन में महत्व
कीट प्रबंधन में इस घटक के ऊपर कोई अतिरिक्त व्यय नहीं होता है, एवं यह पर्यावरण को सुरक्षित व अधिक टिकाऊ बनाता है, परन्तु इसकी योजना बना लेनी चाहिये। सस्य क्रियाओं का चयन ऐसा होना चाहिये जिससे नाशीकीटों के ऊपर एकीकृत एवं मित्र कीटों के ऊपर अुनकूल प्रभाव पड़े। इसके अन्तर्गत सही किस्मों का चुनाव, बुवाई एवं रोपाई के समय में परिवर्तन, कीट-प्रपंच, फसल-चक्र व अन्तः फसलों का सही चुनाव आदि शामिल है।

अवरोधी एवं सहनशील किस्मों का चयन
किसी क्षेत्र के नाशीकीट एवं मित्र कीटों की विविधता एवं सघनता के आधार पर अवरोधी अथवा सहनशील किस्मों का चुनाव एकीकृत कीट प्रबंधन की महत्वपूर्ण कड़ी है। इस आधार पर चयनित किस्मों में अपेक्षाकृत कम कीट लगते हैं एवं रासायनिक दवाओं की खपत में भी कमी आ जाती है। यह विधि सबसे सरल, सस्ती और दुष्प्रभाव रहित है।

फसल-चक्र
किसी भी प्रक्षेत्र में सब्जियों को लगाते समय उचित फसल-चक्र अपनाना चाहिये ताकि एक ही कुल की सब्जी को दोबारान लगायें। इस विधि से निरन्तर जीवन चक्र, अपेक्षाकृत संख्या एवं क्षति स्तर कम किया जा सकता है।

बुवाई व पौध रोपण का समय
कीड़ों के प्रति फसल की नाजुक अवस्था को ध्यान में रखकर फसल की बुवाई तथा रोपाई के समय में परिवर्तन करके अत्यधिक नुकसान से बचाया जा सकता है। यह देखने में आता है कि सब्जियों की बुवाई/रोपाई के समय में परिवर्तन कर लाल भृंग कीट, फल मक्खी, तना एवं फल छेदक कीट के प्रकोप को कम किया जा सकता है। कद्दूवर्गीय सब्जियों की बुवाई नवम्बर में करने में लाल भृंग कीट के आक्रमण से बचा जा सकता है, जबकि करेला में अक्टूबर में पहले फूलने वाली प्रजातियों का चयन कर फल मक्खी से बचाया जा सकता है। जून के दूसरे सप्ताह में भिण्डी की बुवाई करने में फलबेधक कीट से क्षति को कम किया जा सकता है। अतः पौधों की बुवाई/रोपाई ऐसे समय में करें, जब पौधों की नाजुक अवस्थायें एवं नाशीकीट की निष्क्रिय अवस्था समानान्तर हो।

गर्मी की जुताई
ग्रीष्मकाल में गहरी जुताई करके सुषुप्ता अवस्था में पड़े कीड़ों को नष्ट करना एक प्रभावी नियंत्रण विधि है। कटाई के उपरान्त खेत की गहरी जुताई करके फल मक्खी, कद्दू का लाल भृंग और कटुआ कीट के जीवन-चक्र को नष्ट कर उनकी सक्रियता को समाप्त किया जा सकता है।

अन्तः फसलीकरण
अन्तः फसलीकरण से सब्जियों में कीडांे के प्रकोप को कम किया जा सकता है। अन्तः फसलीकरण में लगाये गये भिन्न-भिन्न प्रकृति के पौधे द्वारा छोड़े जाने वाले जैव रसायन से कीड़ों के प्रौढ़ दूर भागते हैं एवं उनके द्वारा अण्डा देने की क्रिया भी कम हो जाती है। इस तरह के मिश्रित पौध रोपण प्रक्रिया, परभक्षी एवं परजीवी कीटों की क्रियाशीलता को बढ़ती है। टमाटर एवं गोभी की अन्तः फसलीकरण से इन दोनों सब्जियों में कीट अपेक्षाकृत कम लगते हैं।

कीड़ों को आकर्षित करने वाली दूसरी फसलें
कुछ फसल को कीट मुख्य फसल की अपेक्षा अधिक पसन्द करते है। इन फसलों को मुख्य फसल के साथ फसल-जाल के तौर पर लगाया जाता है, जिसमें कीड़े अपेक्षाकृत ज्यादा लगते हैं और उन्हीं पर उनका नियंत्रण कर दिया जाता है, ताकि मुख्य फसल हानिकारक कीटों से बच जाये। आकर्षित करने वाली फसलों को मुख्य में लगाकर बिना किसी रसायन का छिड़काव किये प्रमुख फसल को आसनी से कम लागत से उगाया जा सकता है। पत्तागोभी और फूलगोभी में हरी सूॅडी (हीरक पृष्ठ कीट) एवं पर्ण जालक कीट के नियंत्रण हेतु सरसों को आकर्षित करने वाले फसल के रूप में पगयोग करके, गोभीवर्गीय फसल उपरोक्त कीटों से सुरक्षित रखी जा सकती है। इसी प्रकार से टमाटर मे लगने वाली फसल छेदक की की रोकथाम हेतु टमाटर की फसल के किनारे-किनारे या प्रत्येक 14 लाइन टमाटर के बाद दो लाइन गेंदा को लगाने से फल छेदक कीट तथा पर्ण सुरंगक कीट द्वारा फसल को होने वाले नुकसान से बचाया जा सकता है।

सब्जी मे जैविक नियंत्रण
एकीकृत कीट प्रबंधन के समस्त घटकों में जैविक नियंत्रण सबसे महत्वपूर्ण है। किसी भी परिस्थिति में मित्र कीट एवं अन्य सूक्ष्मजीव मुख्य रूप से हानिकारक कीट की संख्या को प्राकृतिक रूप से सीमित रखते है। जैविक नियंत्रण से इन्ही कारकों का प्रभावी ढंग से एकीकृत कीट प्रबंधन में प्रयोग होता है एवं मित्र कीटों को सुरक्षित रखने का प्रयास किया जाता है।

एकीकृत कीट नियंत्रण मे मित्र कीटों का महत्व
बहुत सारे मित्र कीट जैसे- परभक्षी एवं परजीवी कीट प्राकृतिक दशा में पाये जाते हैं, जो नाशीकीट की विभिन्न आवस्थाओं को क्षति पहुॅचाते हैं। अण्डा परजीवी, ट्राइकोग्रामा, टमाटर के फसल छेदक कीट की रोकथाम हेतु प्रयोग में लाया जाता है। एक हेक्टेयर टमाटर की फसल को फलछेदक कीट से रोकथाम हेतु 2,50,000 ट्राइकोग्रामा परजीवी कीट का प्रयोग किया जाता है। इस प्रकार क्राइसोपरत्ना कारनिया नामक परभक्षी कीट, को 50,000/हे. की दर से 10 दिन के अन्तराल पर तीन बार छोड़ने पर उपरोक्त कीटों से फसल को सुरक्षित रखा जा सकता है। कीट के प्राकृतिक शत्रु को प्रयोगशालाओं में अधिक से अधिक करके उसे सफलतापूर्वक, आवश्यकतानुसार फसलों पर छोड़कर विषैल रसायन उपयोग मे कमी लाई जा सकती है।

सूक्ष्म जीव कीटनाशियों द्वारा फसलों की सुरक्षा
सूक्ष्म जीव कीटनाषियों के अन्तर्गत जीवाणु कवक और विषाणु का प्रयोग करके हानिकारक कीड़ों में रोग उत्पन्न कर दिया जाता है। यह रोग हानिकारक कीड़ों मे महामारी की तरह फैलता है और कीडे़ मर जाते है। यह कारक रासायनिक दवाओं से सस्ता होता है। इनके प्रयोग करने की विधि आसान है। इस विधि द्वारा कुछ कीटों की रोकथाम की जा सकती है।

सूक्ष्मजीव कीटनाशियों में बी.टी. का प्रयोग व्यावहारिक स्तर पर किया जा रहा है। इसके प्रयोग से गोभी का हीरक पृष्ठ कीट, भिण्डी का तना एवं फल छेदक कीट, टमाटर का फलबेधक कीट का नियंत्रण सम्भव है। टमाटर के फलबेधक कीट व तम्बाकू की सूॅडी के नियंत्रण के लिये एच.एन.पी.वी. और एस.एन.पी.वी. का 350 सूॅडी समतुल्य घोल का दोपहर के बाद छिड़काव करना विशेष लाभप्रद होता है।

यांत्रिक नियंत्रण
कुछ कीट, जो साफ दिखाई दें और आसनी से पकड़े जा सकते हों, उनको पकड़कर खत्म कर देना चाहिये। हड्डा बीटल, तम्बाखू की सूॅडी के अण्डे एवं प्ररोह और फल को भेदकर खाने वाली सूॅंडी (बैगन व भिण्डी के फल छेदक कीट) बहुत आसानी से देखकर कीट की विभिन्न अवस्थाओं को नष्ट कर देने से इनसे होने वाले प्रकोप एवं क्षति को बचाया जा सकता है। इस विधि में बहुत ज्यादा लागत नहीं लगती हैं एवं यह सुरक्षित भी है।

व्यावहारिक नियंत्रण
इस विधि द्वारा प्रौढ़ कीट को भ्रमित किया जाता है। सब्जियों में मुख्य रूप से बैगन का तना एवं फल बेधक, तम्बाखू की सूॅंडी, टमाटर का फलबेधक एवं फल मक्खी को फेरोमोन द्वारा आकृष्ट कर प्रपंचों को बड़ी संख्या में फॅंसाया जाता है।

रसायनों का सुरक्षित चयन
रसायनों का अनियमित और अत्यधिक प्रयोग करने से कीटों में प्रतिरोधी क्षमता का अत्यधिक विकास होता है और हानिकारक रासायनिक अवशेषों की वातावरण में वृद्धि होती है। एकीकृत कीट प्रबंधन में अगर दूसरे कारकों के साथ सही सन्तुलन बनाकर सुरक्षित रसायनों की सही मात्रा एवं अन्तराल में छिड़काव हो तो कीटनाषी रसायन बहुत प्रभावी होते है। विभिन्न कीटनाषियों का अलग-अलग प्रतीक्षाकाल होता है। दवा छिड़कने के बाद तुड़ाई करने से रासायनिक अवयवों के अवषेष नहीं रहते है।

सब्जियों में कीटनाशकों का उपयोग
सब्जियों में कीट नियंत्रण के लिये जहरीले कीटनाशकों का उपयोग सावधानीपूर्वक करना चाहिये तथा कीटनाशकों का कम से कम उपयोग करें। अधिकतर कृषिगत उपायों को अपनाना चाहिये। जैसे-कीटों को हाथ/जाल से पकड़ कर नष्ट करना, कीटग्रसित पौधों के भागों तथा फलों को तोड़कर नष्ट करना, पौधों के अवषेषों को जलाना, सब्जियों की बाने की तिथी मे बदलाव, फसल-चक्र का उपयोग, कीट प्रतिरोधी जातियों का चुनाव आदि। सबसे अन्त में जरूरत पड़ने पर कीटनाषकों का उपयोग करें। सब्जियों में कीटनाषकोंका उपयोग करते समय सावधानियॉ रखना अति आवश्यक है।

1. सब्जियों की तुड़ाई करने के बाद ही कीटनाशकों का छिड़काव/भुरकाव करें तथा खेतों में बोर्ड लगा दें -सावधान कीटनाशक का उपयोग किया गया है।

2. कीटनाषकोंको छिड़काव एवं भुरकाव के बाद लगभग एक सप्ताह तक सब्जियों का उपयोग खाने के लियें न करें।

3. सिर्फ पैकबन्द अच्छे निर्माताओं के कीटनाषक ही खरीदें।

4. कद्दूवर्गीय सब्जियों में बी.एच.सी. तथा डी.डी.टी. नामक कीटनाशकों का उपयोग न करें।

5. कीटनाशक के पैकेट/बोतल में लिखे हुये निर्देषों का पालन करें।

6. सब्जियों को हमेषाा अच्छी तरह धोकर, छीलकर तथा उबालकर खाना चाहिये।

7. हमेषा सिफारिषा किये गये कीटनाषकों की अनुषंसित मात्रा का ही उपयोग करें।

8. सब्जियों में कीट नियंत्रण के लिये ऐसे कीटनाशकों का चुनाव करना चाहियें, जिनका प्रभाव कम समय तक रहता है। जैसे - कार्बेरिल, क्लोरपायरीफास, डायक्लोरवास, मेलाथियान, डायमिथोएट आदि।एक हेक्टेयर फसल में कीटनाशक के छिड़काव के लिये कम से कम 500 लीटर पानी का उपयोग करें।