डॉ. राजेश कुमार एक्का, कीट विज्ञान विभाग,
डॉ. जी. पी. भास्कर, सस्य विज्ञान,
कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र, कटघोरा, कोरबा (छ.ग.)
मटर का वैज्ञानिक नाम पाइसम सैटिवम है तथा यह लेग्यूमिनेसी कुल के अंतरगत आता है। भारत में सर्दियों के मौसम में उगायी जाने वाली फसलों में मटर का महत्वपूर्ण स्थान है। इसमें न केवल प्रोटीन तत्व प्रचुर मात्रा में होते हैं वरन इसमें विटामिन, फ़ॉस्फ़रस तथा लौह तत्व भी काफ़ी मात्रा में उपलब्ध होते हैं। देश भर में इसकी खेती व्यापारिक स्तर पर की जाती है। इसके दो कारण है, पहला यह की मटर की खेती करने के लिए किसान भाईयों को बहुत की कम लागत लगानी होती है और दूसरा यह की मटर की खेती अन्य सब्जी के खेती के मुकाबले कम समय में तैयार होने वाली फसल है। ऐसे में किसानों को मटर की खेती से अच्छा मुनाफा मिल सकता है। हमारे यहाँ इसकी खेती हरी फली (सब्जी), साबुत मटर एवं दाल के लिए की जाती है। आजकल मटर की डिब्बा बंदी भी काफी लोकप्रिय है। इनमे कीटो का प्रकोप प्रमुख है। किट ने केवल उत्पादन में कमी लाते है, बल्कि उनकी गुणवत्ता पर भी प्रतिकूल असर डालते है। प्रस्तुत लेख में मटर के इन्ही प्रमुख कीटों के विषय में जानकारी दी जा रही है, जो मटर उत्पादन किसानो के लिए उपयोगी सिद्ध होगा।
मटर का तना मक्खी
व्यस्क कीट काली चमकदार मक्खी होती है। मक्खी पत्ती या तना में छेद करती है तथा उसमे अपने अंडे देती है एवं वयस्क मक्खी द्वारा किए गए कुल छिद्रों में से 15% छिद्रों में अंडे होते है। प्रारंभ में शिशु (मैगट) पत्ती में सुरंग बनाकर आहार प्राप्त करते है और फिर मोटी शिराओं से होते हुए तना में ऊपर और निचे (भूमि की ओर) सुरंग बनाते है। कुछ मैगट जड़ में भी प्रवेश कर जाते है। अधिक प्रकोप होने पर पौधों की पत्तियों पीली हो जाती है। मैगट सुरंग में ही प्यूपा में परिवर्तित हो जाते है, जिसमे से वयस्क मक्खी 9 से 10 दिन में निकलती है।
नियंत्रण के उपाय
1. अगेती बुआई से सदैव बचना चाहिए।
2. कीट प्रकोप की दशा में 5.0 मिली. क्लोरपारीफोस 20 ई. सी. को 15 मिली. पानी में घोल बनाकर एक किग्रा बीज को उपचारित कर लगाना चाहिए।
3. बोने वाले कतार में दानेदार कीटनाशी जैसे करटेप हाइड्रोक्लोराइड 4 जी (25 किलोग्राम/हैक्टेयर) को जमीन में मिलना चाहिए।
पूर्ण सुरंगक कीट
मादा कीट पत्तियों में छेद करके अंडे देती है। नवजात शिशु (भृंगक) इन्ही सुरंगो में रहकर 5 से 12 दिनों में पूर्ण विकसित हो जाता है। पत्तियों पर बन्ने वाले सुरंगे उजली धारियोंयुक्त दिखाई देती है। इस कीट का अधिक प्रकोप होने पर ये धारियां आपस में मिलकर एक हो जाती है, जिसके कारण पत्तिया झुलसी हुई दिखाई पड़ती है। इस कीट का प्रकोप फरवरी से अप्रैल माह तक अधिक होता है तथा इसी समय अवधि के दौरान ये सर्वाधिक नुकसान भी पहुँचता है।
नियंत्रण के उपाय
आक्रमण प्रारंभ होते ही फसल पर मिथाइल डिमटोंन का छिड़काव (1 लीटर/हैक्टयर) की दर से करना चाहिए। आवशयक होने पर 15 दिनों बाद डायमेथोयन दवा का छिड़काव (50 मिलि./हैक्टयर) की दर से करना भी लाभदायक होता है।
मटर का फली भेदक
यह हरी मटर का मुख्य शत्रु है। मादा कीट फलों, कोमल फलियों पर अलग-अलग या समूह में अंडे देती है। नवजात सुंडिया फूलों को भी खाती है एवं बाद में फलियों में छेदकर दोनों को खाती है। पूर्ण विकसित सुंडिया मिटटी में 2 से 4 सेमी. निचे जाकर प्यूपा में बदल जाती है। कीट के शरीर के पृष्ट भाग गुलाबी रंग का होता है।
नियंत्रण के उपाय
पौधों में 50% फूल आने पर क्यूनलफोस का छिड़काव (8500 से 900 मिलि./हैक्टेयर) की दर से करना चाहिए। आवश्यकतानुसार 12 से 15 दिनों के उपरांत नीम आधारित कीटनाशी दवाओं का भी छिड़काव करना लाभदायक हो सकता है।
चना के फली भेदक
इस कीट का आक्रमण भी मटर की फलियों पर होता है। अतः फली भेदक के नियंत्रण के लिए उपयोग में लिए गए कीटनाशी रसायनो से इस कीट का भी नियंत्रण हो जाता है।
मटर की नीली तितली
इस कीट का आक्रमण भी मटर के अलावा अरहर, मूंग, उड़द, लोबिया इत्यादि फसलों पर भी होता है। नवजात सुंडियां प्रारम्भ में पत्तियों को खाती है किंतु बाद में कलियाँ, फूलों एवं कोमल फलियों को क्षति पहुँचाती है। सुंडियां फलियों में छेद बनाकर कोमल दानों को खा जाती है।
नियंत्रण के उपाय
इस कीट के प्राकृतिक शत्रु जैसे लेडी बर्ड बीटल, क्रायसोपर्ला आदि की पहचान करके उनका संरक्षण करना चाहिए। अधिक कीट प्रकोप की स्थिति में फसल पर दायमेथोयट अथवा मिथाइल डिमटोन दवा का छिड़काव (850 मिली /हैक्टेयर की दर से) करना पर माहु का प्रभावशाली नियंत्रण किया जा सकता है।
मटर का माहु (एफिड)
इस कीट (माहु) का रंग हरा होता है। इसका आक्रमण मटर के अलावा कई प्रकार की फसलों पर भी होता है। माहु का आक्रमण पौधे की पत्तियों, कोमल भागों, प्ररोहों, फूलो एवं फलियों पर होता है। सबसे अधिक क्षति पौधों के बढ़वार वाले भागों पर इस कीट के प्रकोप के कारण होती है। अधिक प्रकोप होने पर पौधों पीले हो जाते है एवं पौधों की वृद्धि रुक जाती है।
नियंत्रण के उपाय
इस कीट के प्राकृतिक शत्रु जैसे लेडी बर्ड बीटल, क्रायसोपर्ला आदि की पहचान करके उनका संरक्षण करना चाहिए। अधिक कीट प्रकोप की स्थिति में फसल पर दायमेथोयट अथवा मिथाइल डिमटोन दवा का छिड़काव (850 मिली /हैक्टेयर की दर से) करना पर माहु का प्रभावशाली नियंत्रण किया जा सकता है।
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