सुरभि जैन, विषय वस्तु विशेषज्ञ
कृषि मौसम विज्ञान विभाग
 कृषि विज्ञान केंद्र राजनांदगांव (छ.ग.)

कृषि कार्ययोजना
  • गेहूँ की किरीट जड़ अवस्था में सिंचाई आवश्यक हैं, जो बुवाई के 20-25 दिन बाद आती हैं।
  • गेहूँ में यदि चैड़ी पत्ती वाले खरपतवार अधिक हों तो 2,4 डी सोडियम साल्ट 500-800 ग्राम सक्रिय तत्व (दवा की मात्रा 625 ग्राम से 1 किलो) प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई के 30-35 दिन बाद छिड़काव करें। यदि चैड़ी तथा सँकरी दोनों प्रकार के नींदा हों तो बुवाई के 25-30 दिन बाद आइसोप्रोट्यूरान दवा 750 मि.ली. से 1 लीटर सक्रिय तत्व (दवा की मात्रा 1-1.25 लीटर 75 डब्ल्यू.पी.) प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।
  • गेहूँ की फसल जहां उम्र 40-50 दिन की हो सिंचाई कर यूरिया की दूसरी मात्रा डालें।
  • गेहूँ की पर्ण अंगमारी या धब्बा रोग की रोकथाम हेतु क्लोरोथेरोनिल (2 ग्राम) /मेन्कोजेब/ताम्रयुक्त दवा (3 ग्राम) में से किसी एक दवा का प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करें।
  • चने की फसल में 35-40 दिन बाद खुटाई अवश्य करें।
  • चने की फसल में सिंचाई की सुविधा होने पर हल्की सिंचाई बुवाई के 60-65 दिन बाद करें।
  • चने में इल्ली नियंत्रण हेतु इल्ली को हाथ से चुनकर नष्ट करें। कीटहारी पक्षियों की खेतों से सक्रियता बढ़ाने हेतु टी या वाय आकार की लकडि़यां 20-25 नग प्रति हेक्टेयर की दर से अलग-अलग स्थानों में लगाएं।
  • चना में फलीछेदक के प्रकोप की अवस्था में एन.पी.व्ही. 250 एल.ई. का छिड़काव करें अथवा प्रोफेनफास + साइपरमेथ्रिन 44 ई.सी. का 1 लीटर छिड़काव करें।
  • एक सिंचाई उपलब्ध होने की दशा में दलहनी फसलों में फूल आने के पूर्व सिंचाई करें।
  • दलहनी फसलों में पीला मोजेक रोग दिखाई देने पर रोगग्रस्त पौधों को उखाड़ कर नष्ट कर दें तथा मेटासिस्टाक्स या रोगर कीटनाशक दवा का 1 मि.ली./ली. पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।
  • मटर, मसूर, सरसों, अलसी आदि में माहों का प्रकोप होने पर मिथाइल डिमेटान 25 ई.सी. अथवा डायमिथोएट 30 ई.सी. का 1 ली. प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।
  • सरसों में सफेद फफोला तथा डाउनी मिल्ड्यू रोग आने पर मेटालेक्जिल (2 ग्राम/ली. पानी) का छिड़काव करें। आवश्यकतानुसार 10-15 दिन के बाद दोहराया जा सकता हैं।
  • सूरजमुखी के बीजों को साफ-सुपर/कार्बन्डाजिम कवकनाशी (2 ग्राम/किलो बीज) द्वारा उपचारित कर बोना चाहिए।
  • विभिन्न फसलों के भभूतिया या चूर्णी फफूँदी रोग की रोकथाम हेतु डिनोकेप (1 मि.ली.) या कार्बेन्डाजिम/पेन्टाकोनाजोल (1.5 ग्राम) में से किसी एक दवा का छिड़काव दोपहर बाद करें तथा 10-15 दिन के बाद दूसरा छिड़काव करें।
  • वयस्क कीटों की निगरानी हेतु फेरोमोन ट्रेप 2 नग प्रति एकड़ की दर से लगाएं। फेरोमोन ट्रेप में वयस्क कीटों की उपस्थिति के आधार पर एनपीवी नामक जैविक कीटनाशक 100 एल.ई. प्रति एकड़ की दर से 200 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करें।
  • कद्दूवर्गीय सब्जियों की अगेती फसल के लिए पालीथीन में पौध तैयार करें।
  • आम में बौर आना प्रारंभ हो रहा हैं अतः 50 प्रतिशत बौर आने पर आम में 15 दिन के अंतराल में सिंचाई करें।
  • आम के उद्यान में जमीन से लगी शाखाओं एवं रोग बाधित शाखाओं की कटाई-छटाई का सही समय हैं।
  • आम, अमरूद, आँवला, कटहल आदि के तनों में तनाछेदक/छाल खाने वाले कीटों का प्रकोप होने पर प्रभावित तनों के छिद्रों में रूई के फाहों को डायक्लोरवास 76 ई.सी. या मोनोक्रोटोफास से भिगोकर डालकर गीली मिट्टी से बन्द कर दें। इस हेतु मिट्टी के तेल का भी उपयोग किया जा सकता हैं।
  • केला एवं पपीता के पौध में सप्ताह में एक बार पानी अवश्य दें एवं फूल आने की स्थिति में केला पौध में सहारा देवें।

पशुपालन कार्ययोजना
  • हरे चारे जैसे बरसीम, लूसर्न इत्यादि की कटाई पर पशुओं को खिलायें।
  • हरे चारे की अधिकता से पतला गोबर होने की शिकायत होती हैं। अतः हरे चारे को सूखे चारे जैसे गेहूँ भूसा एवं पैरा कुट्टी के साथ 3ः1 के अनुपात में मिलाकर खिलावें।
  • पशुओं के नवजात बच्चों विशेष रूप से सूकर शावकों एवं बकरी के बच्चों को ठंड से बचाने के लिये सूखे बिछावन की व्यवस्था करें। अधिक ठंड पड़ने पर कृत्रिम गर्मी प्रदान करने हेतु बल्ब अथवा सिगड़ी की व्यवस्था करें। जन्म के आधे घंटे के भीतर पेऊस दुग्ध अवश्य पिलायें।
  • पक्षियों के चूजे के ब्रूडिंग तापक्रम का विशेष ध्यान रखें। यदि चूजे एक स्थान पर एकत्र हों तो अतिरिक्त गर्मी प्रदान करने की व्यवस्था करें।
  • भेड़-बकरियों में सी.सी.पी.पी. टीकाकरण करें।