धर्म प्रकाश श्रीवास्तव, शोध छात्र पशु विकृति विज्ञान विभाग
डी. नियोगी,  प्राध्यापक एवं विभागाध्यक्ष पशु विकृति विज्ञान विभाग
दिनेश कुमार यादव, शोध छात्र पशु औषधि विज्ञान विभाग 
पशुचिकित्सा एवं पशुपालन महाविद्यालय कुमारगंज अयोध्या

ब्यांत के समय गाय एवं भैंस की देखभाल अति महत्वपूर्ण पहलू है। यदि ब्यांत के समय या बाद में गाय की देख-भाल में लापरवाही बरती जाती है तों विभिन्न बीमारियों एवं रोगों की आने की सम्भावना रहती है नवजात को चोट लगने की सम्भावना रहती है। रोगों, बीमारियों एवं चोटो से बचाव हेतु एवं अधिक दुग्ध उत्पादन हेतु ब्यांत के समय देखभाल अति आवश्यक है।

गाय एवं भैंस के ब्यांत (प्रसव प्रक्रिया) के लक्षण-

1. अयन का आकार बढ़ जाता है, लटका हुआ, फैला रहता है।

2. अयन में खीस भरा रहने के कारण सख्त हो जाता है।

3. पशु परेशान व बेचैन रहता है।

4. पूँछ के दोनो ओर माँसपेशिया ढीली पड़ जाती है और पुट्ठों पर गढ़ढे पड़ जाते हैं।

5. पशु एकान्तवास में रहना पसन्द करता है।

6. योनि से सफेद पदार्थ (म्यूकस) आता दिखाई पड़ता है।

7. प्रसव पीड़ा शुरु हो जाती है।

8. पशु बार-बार बैठती, उठती, लेटती एवं पेशाब करती है।

पशु को समूह से अलग करना
जब पशु की प्रसव क्रिया में कुछ दिन ही बाकी हो तो पशु के साथ रहने से चोट लगने या लड़ने का डर रहता है तथा संक्रमित गर्भपात हो तो अन्य पशुओं में फैलने का डर रहता है। अतः पशु को अलग कमरे या बाडे़ (प्रसव कक्ष) में रखे क्योंकि ऐसे समय पशु अकेले रहना पसन्द करता है।

प्रसव कक्ष का प्रबन्धन
प्रसव कक्ष में गदंगी नहीं होनी चाहिए इसके लिए प्रसव कक्ष की निचली सतह को समतल रखें, साफ रखें एवं पशु एवं नवजात पशु को बीमारियों से रोकथाम हेतु कक्ष को 10 प्रतिशत फिनायल के घोल अथवा बुझे हुए चूने से जीवाणु रहित कर लें।
    कभी-कभी पशु खड़ी अवस्था में भी बच्चा दे-देता हैं अतः नवजात को ऊपर से गिरने पर चोट भी लग सकती है इसके लिए विछावन के रुप में गेंहू का भूसा धन का पुआल एवं अन्य सूखा, मुलायम एवं साफ बिछावन की 10 से 15 से0 मी0 तह बिछा देनी चाहिए इससे सर्दीयों में कक्ष में गर्मी भी रहती है तथा बिछावन आरामदायक भी रहता है।

प्रसव कराना
प्रसव एक प्राकृतिक क्रीड़ा है। यदि प्रसव सामान्य है तो प्रसव काल 3-4 घंटे का होता है जिसमें पशु बच्चा दे देता हैैं पशु को बच्चा देने के तुरन्त बाद नवजात की नाक, मुँह और कान साफ कर दें फिर साफ एवं स्वच्छ कपडे़ से नवजात के पूरे शरीर को पोंछकर सुखा दें और नवजात को पशु को चाटने दें ताकि इससे न केवल सुखाने में मदद मिलेगी बल्कि बच्चे में संचार बढ़ता है और बच्चे में स्फूर्ति आती है। तदोपरान्त नाभि नाल को 5 सेमी0 शरीर से छोड़ कर साफ केंची से काट दें तथा उस पर टिन्चर आयोजित लगा दें। सर्दी के मौसम में नवजात एवं पशु को सर्दी से बचाव का पूरा इन्तजाम करें।

प्रसव उपरान्त जेर का डालना
प्रसव के बाद लगभग 5-6 घंटे के अन्दर पशु जेर डाल देता है। यह पशु की सामान्य प्रसव क्रिया और दशा पर निर्भर करता है अन्यथा यह समय 8 घंटे भी हो सकता है।

यदि पशु 8 घंटे तक जेर न डाले तो यह स्थिति जेर के रुकने की हो सकती है इसके लिए निम्न उपाय करें।

अ) गुड़ 750 ग्राम, अजवाइन 60 ग्राम सोंठ 15 ग्राम, मेथी 15 ग्राम को 1 लीटर पानी में मिलाकर दें यदि 1 बार देने पर पशु जेर न डाले तो दोबारा दें।

ब) बाँस की हरी पत्ती को उबाल कर उसका काढ़ा भी दिया जाता यदि उपरोक्त उपचार भी कारगर न हो तो पशु चिकित्सक की सहायता से हाथ द्वारा जेर को गर्भाशय से बाहर निकाला जा सकता है। ध्यान दें कि जेर को पशु से तुरन्त दूर कर दें पशु जेर को चाटने या खाने न पाये एवं जेर को दूर गढ़डे में दबा देना चाहिए।

प्रसव काल में पशु का दुग्ध ज्वर से बचाव
दुग्ध ज्वर अधिकांशतः ज्यादा दूध देने वाले पशुओं में होता है। पहली बार बच्चा देने से पहले पशु को दूध नहीं निकालना चाहिए चूकि अयन, नाडी तन्तुओं में तथा जनन अंगो में घनिष्ठ सम्बन्ध रहता है जिससे बच्चा देने की प्रक्रिया में कई घंटे की देरी हो सकती है इसके लिए पशु आहार में शूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी या खनिज तत्वों की कमी में पूरा करना चाहिए जिसके लिए आहार में हड़ी का चूर्ण या खनिज लवण सामिल करना चाहिए इसके साथ विटामिन ’डी’ की मात्रा को आहार में बढ़ा देना चाहिए

बच्चा देते समय एवं बाद में अन्य देख-भाल

1. पशु को पीने के लिए थोड़ा गुनगुना व स्वच्छ जल दें।

2. पशु को पाचक शक्ति वर्धक आहार जैसे गुड़ को चोकर के साथ मिलाकर गर्म करके दें।

3. पशु को प्रतिकूल वातावरण या गर्म एवं ठण्डी हवाओं से बचायें।

4. जेर डालने के पश्चात उसे दूर दबा दें और कदापि पशु को खाने न दें।

5. पशु के शरीर को गुनगुने पानी से साफ कर दें।

6. ब्याने के पश्चात पशु का जब दुध दोहन शुरु करें तो ग्वाले को यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि थनों में सूजन न हो प्रवाह में सभी रुकावटें दूर हो दूध सामान्य रुप से प्राप्त हो यदि थन में सूजन है तो पशु का धीरे-धीरे दिन में 3 बार दोन करें जब तक सूजन रहें।

7. नवजात के पेटभर कर खीस या दूध पिलायें।

8. पशु के आहार में पाचक, पौष्टिक व संतुलित आहार का समावेश हो जिसमें गेहू का चोकर-जई, खली के साथ-साथ खनिज लवण भी हो ब्याने के कुछ दिन तक गुड़ का शरीर के साथ चोकर दें।

9. चारे में रसीले, हरे, पाचक और द्विदालीप चारे के साथ भूसा ऊचित रहता है।

बच्चेदानी का बाहर निकाल या गर्भाशय एवं योनि का भ्रंश
यह अक्सर कमजोर पशुओं में होता है। इसमें गर्भाकाल के समय में जैसे ज्यादातर अन्त में गर्भाशय बाहर निकल आता है। पशु को कम पौष्टिक तथा ज्यादा स्थूल आहार देने से भी बार-बार कब्ज की स्थिति बनती है उससे भी यह रोग बन जाता हैं। बच्चा देते समय अधिक जोर लगाने से या हाथ डालकर अनियमित जोर लगाकर बच्चे को खींचने से यह स्थिति पैदा हो जाती है। गर्भाशय के बाहर आने के परिणाम स्वरुप गर्भाशय को आयोडीन के (व्यूगल घोल) से धोकर और जीवाणु नाशंक घोल जैसे 0.5 प्रतिशत लाइसोल अथवा पोटेशियम परमैगनेट घोल (1ः10000) से हाथों को साफ करके उसे उसकी सामान्य दशा में अन्दर वापिस बैठा दिया जाता है। पशु को खड़ी होने वाली जगह पर अगले पैरों की ओर फर्श को नीचा तथा पिछले पैरों वाले फर्श को ऊँचा कर दिया जाता है ताकि शरीर का ढलान भी आगे की ओर रहें। पशु के बाड़े को साफ स्वच्छ एवं शोधित रखा जाता है। कुत्ता बिल्ली या अन्य पशु पक्षी का बाडे़ में प्रवेश न होने दें। पशु के आहार में कैल्शियम की मात्रा बढ़ा दें और संतुलित आहार दें। पशु को ब्याने के उपरान्त यूटरोटोन या एक्सापार की 50 से 100 मिमी0 मात्रा/दिन देना ठीक रहता है।