धर्म प्रकाश श्रीवास्तव, शोध छात्र पशु विकृति विज्ञान विभाग 
डी. नियोगी,  प्राध्यापक एवं विभागाध्यक्ष पशु विकृति विज्ञान विभाग
दिनेश कुमार यादव,  शोध छात्र पशु औषधि विज्ञान विभाग
पशुचिकित्सा एवं पशुपालन महाविद्यालय कुमारगंज अयोध्या

नर पशु वीर्य कृत्रिम ढंग से एकत्रित कर मादा के जननेन्द्रियों (गर्भाशय ग्रीवा) में यंत्र की सहायता से कृत्रिम रुप से पहुँचाना ही कृत्रिम गर्भाधान कहलाता है।

कृत्रिम गर्भाधान के लाभ

1. उन्नत गुणवत्ता के साँड़ो का वीर्य दूरस्थ स्थानों के पशुओं को गर्भित करने हेतु प्रयोग किया जा सकता है।

2. एक गरीब पशुपालक जो साँड नहीं पाल सकता, कृत्रिम गर्भाधान विधि से अपने मादा पशु को उत्तम साँड के वीर्य से गर्भित करा सकता है।

3. इस ढंग से बडे़ और भारी साँड़ के वीर्य से छोटी मादा को भी गर्भित करा सकता है।

4. विदेश या दूरस्थ स्थानों पर स्थित साँड़ों के वीर्य को, परिवहन द्वारा दूसरे स्थानों पर भेजकर, पशु गर्भित कराये जा सकते है।

5. प्राकृति गर्भाधान द्वारा जहाँ एक साँड़ वर्ष भर में 100-150 पशु गर्भित करता है, वहीं कृत्रिम गर्भाधान के माध्यम से वीर्य संग्रह कर आवश्यकतानुसार एक बार के वीर्य से कम से कम 40-50 पशु गर्भित किये जा सकते हैं। इस प्रकार एक साँड़ से एक वर्ष में कई हजार पशु गर्भित होंगे। उन्नत साँड़ों की कमी का समाधान भी होगा।

6. रोग रहित साँड़ों के वीर्य प्रयोग से मादा को नर द्वारा जननेन्द्रिय रोग नहीं फैलते।

7. क्योंकि गर्भाधान, कृत्रिम रुप से कराया जाता है अर्थात् सहवास नैसर्गिक नहीं होता अतः मादा के जननेन्द्रिय रोग से नर प्रभावित नहीं होता है।

8. नर या मादा में बाँझपन समस्या का परीक्षण से पता लग जाता है।

9. उन्नत साँड़ जो चोट खाने या लँगडेपन के कारण मादा को गर्भित नहीं कर सकता, कृत्रिम गर्भाधान द्वारा उस साँड़ के पूर्व में प्राप्त वीर्य से मादा को गर्भित कर सकते है।

10. कृत्रिम गर्भाधान की सुविधा अतिहिमीकृत वीर्य प्रणाली में 24 घण्टे उपलब्ध रहती है।

11. इसी विधि के द्वारा प्रजनन व संतति परीक्षण का अभिलेख कर शोध कार्य किये जा सकते हैं।

12. गर्मी में आई मादा को गर्भाधान से हेतु साँड़ की तलाश नहीं करनी पड़ती है।

13. चोट खाई, लूली-लगड़ी तादा जो नैसर्गिक अभिजनन से गर्भित नहीं हो सकती कृृत्रिम र्गभाधान से गर्भधारण कर सकती है।

14. इच्छित प्रजाति, गुणों वाले साँड़ जैसे कि अधिक दुग्ध उत्पादक अथवा कृषि कार्य हेतु शक्तिशाली अथवा द्विप्रयोजनीय प्रजाति से गर्भित करा कर इच्छित संतति प्राप्त कर सकते है।

15. यह नैसर्गिक अभिजनन, से अधिक सस्ता है, तथा स्ंवय का श्रम व्यय अलग होता, है वहीं कृत्रिम गर्भाधान पद्धति में प्रति 40 रु0 धनराशि व्यय के मध्य द्वार पर ही सेवा उपलब्ध हो जाती है।

16. पशुपालक के द्वार कृत्रिम गर्भाधान से उसके पशु को गर्भित करने की सुविधा प्रदान की जा सकी है।

17. दुग्ध उत्पादन हेतु सर्वत्र सर्वोत्तम साधन है।

कृत्रिम गर्भाधान की सफलता का आधार

1. पूर्ण प्रशिक्षित व योग्य कृत्रिम गर्भाधान कार्यकर्ता।

2. कृत्रिम गर्भाधान उपकरण, वांछित उत्तम अतिहिमीकृत वीर्य आदि की उपलब्धता

3. मादा के ऋतुकाल का पूर्ण ज्ञान और सूचना जो इन्सेमिनेटर को दी जानी है व समय से दी गयी हो।

4. पशु का प्रजनन स्वास्थ उत्तम होना अर्थात पशु प्रजनन रोग मुक्त होना चाहिए।

मुख्य सुझाव

1. पशु को ऋतु में आने पर कृत्रिम गर्भाधान करना चाहिए।

2. मादा अक्सर सायंकाल 6 बजे से प्रातः 6 बजे के मध्य गर्म होती है।

3. कृत्रिम गर्भाधान के समय शांत वातावरण हो तथा पशु को तनाव मुक्त रखें।

4. बच्चा देने के बाद से तीन माह के अन्दर पुनः गर्भित करायें।

5. कृत्रिम गर्भाधान के तुरन्त बाद पशु को न दौड़ायें।

6. कृत्रिम गर्भाधान करने के पहले व बाद में पशु को छाया में रखें।

कृत्रिम गर्भाधान से सम्बन्धित समस्यायें व निदान-
यदि निम्न बातों पर समुचित ध्यान दिया जाय तो कृत्रिम गर्भाधान से उत्पन्न होने वाली समस्याओं का सामाधान किया जा सकताप है-

1. जिन क्षेत्रों में कृत्रिम गर्भाधान का कार्यक्रम क्रियान्वित किया जा रहा है वहाँ प्रायः यह देखा गया है कि उन्न क्षेत्रों के देशी एवं कमजोर साँड़ों का बधियाकरण नहीं किया गया है। ऐसा न होने से गर्म पशु का गर्भाधान उन साँड़ों द्वारा प्राकृतिक रुप से हो जाता है। कभी-कभी कृत्रिम गर्भाधान द्वारा गर्भित पशु को भी साँड़ के पास जाते समय प्राकृतिक रुप से गर्भित कर देते है। ऐसी स्थिति पर नियंत्रण पाने के लिए यह सुझाव दिया गया है कि जिन क्षेत्रों में कृत्रिम गर्भाधान का कार्य चलाया जा रहा हो उस क्षेत्र के सभी बछड़ों को बधिया कर दिया जाये तथा साँड़ों को उस क्षेत्र से बाहर निकाल दिया जायें।

2. कृत्रिम गर्भाधान करते समय किसी भी पशु के प्रजनन अंगों की जांच करने से पूर्व पशु चिकित्सा की बहुत सी बातों की जानकारी प्राप्त करनी पड़ती है, जैसे पशु की उम्र पशु की ब्यांतों की संख्या, पूर्व ब्यांत की तिथि, पूर्व ब्यांत का प्रकार (सामान्य/असामान्य जैसे जेर रुक जाना या बच्चा फंस जाना बच्चे दानी बाहर आ जाना इत्यादि।), पूर्व में कराये गये कृत्रिम गर्भाधन/प्राकृतिक गर्भाधान की तिथि तथा सकी संख्या जनन अंगों पहले हुई बीमारी, गर्मी में स्राव का प्रकार तथा उसकी मात्रा इत्यादि। प्रायः यह देखा गया है कि पशुपालक उपरोक्त की जानकारी पशुचिकित्सक को नहीं दे पाते या कभी-कभी जानबूक्ष कर बहुत सी जानकारी छिपाते है। कभी-कभी पशुपालक अपने पशु को स्वंय न लाकर किसी आदमी (बच्चा, औरत, नौकर या पड़ोसी) के साथ कृत्रिम गर्भाधान केन्द्र भेज देते है। ऐसी स्थिति में उपरोक्त जानकारी पाना और भी कठिन हो जाता है।

3. प्रायः यह भी देखा गया है कि गर्भ न ठहरने की दशा में जब वही पशु दूसरी बार कृत्रिम गर्भाधान के लिए लाया जाता है तो पहले दी गयी सूचनायें गलत भी हेाती है। यह भी देखा गया है कि दूसरी बार गर्भाधान के लिए लाते समय कभी-कभी तो उसका पशुपालक ही बदल जाता है, इसी कारण वह अनेक सही बातों की जानकारी नहीं दे पाता है। इस संबन्ध मे एक बात यह भी है कि किसी भी पशु को एक ही व्यक्ति लाये तथा पूर्व में पशुचिकित्सक द्वारा दिया गया पर्चा अवश्य साथ लायें।

4. अधिकांश पशुपालक अपने दुधारु पशुओं को इस विचार से गर्भित नहीं करते की ऐसा करवाने से इसका दूध कम हो जायेगा। यह एक गलत अवधारणा है। पशुपालक अपने पशुओं पर तभी ध्यान देते है जब वह दूध देना बन्द कर देता है। एसा करने से उनकों अपने पशुओं पर सूखे समय से अधिक व्यय करना पड़ता है तथा अर्थिक नुकसान होता है। अतः दूध देने वाले पशुओं की समय पर ही गर्भित करवा लेना चाहिए। 

5. अनेक पशुपालक अपने पशुओं के गर्मी के लक्षणों की ठीक से जाँच भी नहीं करते तथा अनेक बार तो कृत्रिम गर्भाधान तक पशु को ले जाने की परेशानी से बचने के लिए भी गर्म पशुओं को केन्द्र पर नहीं लाते है। कृत्रिम गर्भाधान को करने वाले कारकों को गर्मी के सही लक्षण एवं उसकी अवस्था की सही जानकारी न होना होता है।

6. पशु पालक अपने पशु को गर्भाधान के लिए या तो गर्मी को बिल्कुल शुरु वाली अवस्था (12 घण्टे के अन्दर) या फिर बाद की अवस्था (24 से 36 घण्टे बाद) में केन्द्र पर लाते है। ग्रामीण क्षेत्र में केवल 50 प्रतिशत पशु ही समय पर कृत्रिम गर्भाधान के लिए लाये जाते है।