सुरभि जैन, विषय वस्तु विशेषज्ञ
(कृषि मौसम विज्ञान विभाग) 
कृषि विज्ञान केंद्र राजनांदगांव (छ.ग.)

कृषि कार्ययोजना
  • इस माह में गेहूँ की बुवाई पूर्ण करें तथा बुवाई के 20-25 दिन बाद किरीट जड़ अवस्था में सिंचाई करें।
  • गेहूँ की फसल विलम्ब/देरी से बुवाई की दशा में बीज की मात्रा अनुसंसित मात्रा से 20-25 दिन बढ़ा देवें।
  • इस माह में बुवाई की जी.डब्ल्यू-173, लेक-1, अरपा आदि किस्मों का चयन करें।
  • धान व अन्य खरीफ फसलों की कटाई व गहाई का कार्य शीघ्रता से पूरा कर लें।
  • गेहूँ में नत्रजन उर्वरक की शेष मात्रा कूड़ में दे तथा सिंचाई करें।
  • लूर्सन व बरसीम चारे की कटाई जमीन से 10 से.मी. छोड़कर 30-35 दिन के अंतराल पर करें तथा सिंचाई करें।
  • चने में बीजोपचार अवश्य करें। इसके लिए बीजों को कार्बेन्डाजिम दवा 1.5 ग्राम प्रति किलो बीज एवं राइजोबियम कल्चर 6-10 ग्राम तथा ट्राईकोडर्मा पाउडर 6-10 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करें।
  • चने के जिन खेतों में उकठा एवं कॉलर राट बीमारी का प्रकोप प्रति वर्ष होता हैं, वहां चने के स्थान पर गेहूँ, तिवड़ा, कुसुम एवं अलसी की बुवाई करें अर्थात् फसल चक्र अपनायें।
  • चना, मटर एवं मसूर में फूल आने व दाने भरने की अवस्था पर सिंचाई करें तथा कीट-व्याधि से बचाने हेतु पौध संरक्षण के उपाय करें।
  • गेहूँ में नींदानाशक दवा का छिड़काव करें।
  • अरहर में फूल आने की अवस्था में पोटाश की शेष आधी मात्रा का प्रयोग करें तथा सिंचाई करें।
  • तरबूज, खरबूज, लौकी, करेला, ककड़ी एवं कद्दू लगाने हेतु खेत की तैयारी करें तथा पॉलीथीन की थैली में बीज की बुवाई करें।
  • धनिया, मेथी की फसल को भभूतिया रोग से बचाव हेतु सल्फेक्स 2 ग्राम दवा प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव आवश्यकतानुसार करें।
  • प्याज, लहसून में सिंचाई तथा निंदाई करें। परपल बलॉच नामक रोग के नियंत्रण हेतु ताम्रयुक्त फफूंदीनाशक दवा जैसे ब्लाइटॉक्स 3 ग्राम दवा प्रति लीटर पानी की दर से या मेंकोजेब नामक दवा 2 ग्राम दवा प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव 15 दिन के अंतर पर आवश्यकतानुसार करें।
  • गुलाब में कंटाई-छंटाई का कार्य करें तथा खाद और उर्वरक डालें, डाईबैक बीमारी हेतु बैनलेट या कार्बेंडाजिम नामक फफूंदीनाशक दवा को 1 ग्राम दवा प्रति लीटर पानी की दर से दवा का छिड़काव करें। आवश्यकता पड़ने पर 10 दिन बाद पुनः दूसरा छिड़काव करें।
  • आम में श्यामव्रण रोग आने पर साफसुपर (2 ग्राम/ली. पानी) का दो बार छिड़काव 10-12 दिन के अंतराल पर करें।
  • मिर्च के चूर्ड़ा-मुर्ड़ा रोगों की रोकथाम के लिये मिथाइल डेमेटान कीटनाशी (1 मि.ली./ली. पानी) का छिड़काव 10-15 दिन के अन्तराल पर करें।
  • आलू में कंद भूमि से बाहर आने से हरापन आ जाता हैं अतः शीघ्र ही मिट्टी चढ़ा कर ढ़ंक दें।
  • आलू में विषाणुजनित रोगों की रोकथाम हेतु मिथाइल डेमेटान 91 (1 मि.ग्रा./ली. पानी) का छिड़काव करें।
  • नवीन रोपित उद्यान पौधों को अधिक ठण्ड से बचाने के उपाय करें।
  • आलू में मिट्टी चढ़ाएँ एवं उर्वरक प्रबंधन करें।
  • डहेलिया में स्टेकींग करें।
  • शीतकालीन मौसमी पुष्पों में सिंचाई एवं उर्वरक प्रबंधन करें।
  • इस माह अमरूद, नींबू, संतरा, अंजीर, पपीता, केला, सेब, अंगूर, सीताफल आदि से विभिन्न परिरक्षित पदार्थ बनाएँ।
  • अमरूद, पपीता, नींबू की तुड़ाई करें।
  • अनानास में एक समान फूल लाने हेतु वृद्धि नियामक का छिड़काव करें।
  • मिर्च, अदरक, गाजर, मटर, टमाटर, पालक, रखिया आदि से बने परिरक्षित पदार्थों को सुरक्षित करें।
  • रबी फसल व सब्जी की फसलों में प्रथम सिंचाई प्रक्षेत्र जलाशय (डबरी) में उपलब्ध पानी से करें।
  • शीतकालीन सब्जियों एवं फलों के बीज की व्यवस्था करें तथा सब्जियों हेतु नर्सरी तैयार कर बीज की बुवाई करें।
  • पुराने आंवले के पेड़ में पुनः उद्धारण हेतु 1 मीटर की ऊंचाई से कटाई एवं छंटाई करें।
  • फलदार उद्यान में सिंचाई की टपक पद्धति का उपयोग कर जल की उपयोगिता बढ़ा सकते हैं।

पशुपालन कार्ययोजना
  • गाय-भैंसों में गर्भाधान हेतु उत्तम नस्ल के साँड भैंसा का प्रयोग करें या कृत्रिम गर्भाधान की सुविधा का लाभ उठायें।
  • नवजात बछड़ों को 2-3 दिन तक खीस अवश्य पिलायें।
  • अंडा देने वाली मुर्गियों को संतुलित आहार खिलावें।
  • भेड़-बकरियों को नमीयुक्त फर्श पर न रखें व उन्हें ऐसे स्थान पर रखें जहां सीधी तेज ठंडी हवा न आती हों।
  • भेड़-बकरियों को शीप पॉक्स-गोट पॉक्स का टीका लगवायें।
  • बचे हुए निकृष्ट सांडों एवं बैल हेतु बछड़ों का बधियाकरण करें।
  • भैंसों में गर्मी के लक्षणों पर विशेष ध्यान देवें।