डॉ. विनम्रता जैन, सह-प्राध्यापक (सस्य विज्ञान)
पं. शिवकुमार शास्त्री कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केन्द्र, राजनांदगांव (छ.ग.)

गेहूँ विश्व की प्रमुख खाद्यान्न फसल हैं। भारत विश्व में दूसरा सबसे बड़ा गेहूँ उत्पादक देश हैं। गेहूं की बुवाई अधिकतर धान के बाद की जाती हैं। गेहूं की अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए धान की समय से बुवाई जरूरी हैं जिससे गेहूं के लिए अक्टूबर माह में खेत खाली हो जायें। गेहूं की उत्पादन बढ़ाने के लिए नवीनतम तकनीकों का प्रयोग जैसे नई प्रजातियाँ, संसाधन प्रबन्धन, फसल सुरक्षा के उपाय एवं कटाई उपरान्त प्रौद्योगिकी का भरपूर इस्तेमाल किसान भाइयों को करना होगा।

भूमि का चयन
गेहूँ की खेती के लिए उसर एवं दलदली भूमि को छोड़कर सभी प्रकार की भूमि उपयोग होती हैं। मटियार दोमट एवं गहरी हल्की मिट्टी, जिसकी जल धारण क्षमता अच्छी हो उपयुक्त मानी जाती हैं।

गेहूँ की उन्नत किस्मों की जानकारी

फसल व किस्म

औसत अवधि (दिन)

औसत उपज (क्विं./हे.)

प्रमुख विशेषताएं

गेहूँ पूर्ण सिंचित समय से बुवाई (मध्य नवम्बर तक)

लोक-1

105-110

40-45

दाना मोटा व चमकदार

डब्ल्यु.एच.-147

120-125

40-45

मध्यम बौनी, दाना मोटा

कंचन

120-125

40-42

मध्यम बौनी, दाना मध्यम गेरूआ प्रतिरोधी

राज

125-130

40-45

दाना मोटा बड़ा मूरा मध्यम गेरूआ प्रतिरोधी

एच.आई.-8381

120-125

42-47

मध्यम बौनी, कठिया, दाने बड़े चमकदार

जी.डब्ल्यु.-273

115-120

42-48

मध्यम बौनी, गेरूआ प्रतिरोधी

गेहूँ पूर्ण सिंचित देर से बुवाई (धान के बाद मध्य दिसंबर तक)

लोक-1

100-105

30-35

दाना मोटा व चमकदार

आरपा

110-115

25-30

शरबती, चमकीला दाना, तनाछेदक एवं गेरूआ निरोधक

जी.डब्ल्यु.-173

105-110

35-40

बौनी, पिछैती बौनी के लिए उपयुक्त

डी.एल. 788-2

105-110

35-40

बौनी, देरी से बोने हेतु उपयुक्त

गेहूँ अर्द्धसिंचित

सी-306

130-135

15-20

शरबती, चमकदार मध्यम दाना

सुजाता

125-130

20-22

शरबती, दाना चमकदार, गेरूआ सहनशील

एच.डब्ल्यु.-2004

130-135

15-20

शरबती, चमकदार गेरूआ प्रतिरोधी

जे.डब्ल्यु.एस.-17

130-135

16-20

शरबती, दाना चमकदार, गेरूआ निरोधक

रतन

110-115

20-22

शरबती, चमकदार मध्यम दाना

एच.आई.-8627

110-115

20-23

अधिक उपज

एच.आई.-1531

115-120

21-22

अधिक उपज



खेत की तैयारी
गेहूँ के लिए अच्छी जल निकास वाली क्षार रहित भूमि उपयुक्त रहती हैं। जुताई का मुख्य उद्देश्य मिट्टी को भुरभुरी बनाना हैं। खेत में कल्टीवेटर एवं डिस्क हैरो से 2-3 जुताई करके खेत को अच्छी तरह से तैयार कर लें। खेत की तैयारी करते समय यह ध्यान रखें कि बुवाई के समय नमी की मात्रा उपयुक्त हो अन्यथा जमाव पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता हैं। अगर नमी उचित मात्रा में नहीं हैं तो बुवाई से पूर्व पलेवा अवश्य कर लें।

बुवाई का समय
गेहूँ के अच्छे अंकुरण के लिए एवं प्राम्भिक बढ़वार के लिये 23 से 25 सेल्सियस औसत तापमान उपयुक्त होता हैं। बारानी गेहूँ का उपयुक्त समय 15 अक्टूबर से 30 नवम्बर तथा सिंचित क्षेत्र में बुवाई 15 से 25 नवंबर तक की जा सकती हैं।

बीजोपचार
बीज जनित रोगों से बचाव हेतु दो ग्राम थाइरम या 2.5 ग्राम मैन्कोजेब प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करें। ईयर कॉकल व कंडुआ रोग से बचाव हेतु रोगग्रस्त बीज को 20 प्रतिशत नमक के घोल में डुबोकर नीचे बचे स्वस्थ बीज को अलग छांटकर साफ पानी से धोयें। इसके बाद सुखाकर बोने के काम में लेवें। दीमक नियंत्रण हेतु 600 मिली क्लोरपायरीपफास 20 ई.सी. को आवश्यकतानुसार पानी में घोल कर 100 किलो बीजों पर समान रूप से छिड़क कर उपचारित करें।

बीज की मात्रा
सामान्यतः यह छोटे दाने वाले किस्मों के लिये 100 किलोग्राम/हेक्टेयर एवं बड़े दानों वाली किस्मों का 125 किलोग्राम/हेक्टेयर बीज उपयोग में लाना चाहिए।

बुवाई की विधि
खेत को अच्छी तरह से तैयार करने के उपरान्त बुवाई करते समय कतार से कतार की दूरी 20-22 से.मी. एवं गहराई 5 से.मी. रखें, क्योंकि गेहूँ के अंकुरण और अच्छी प्रकार किल्ले निकलने के लिये यह आवश्यक हैं कि गेहूँ को उथला बोया जायें।

पोषक तत्व प्रबंधन
जिंक की कमी वाले खेतों में जिंक सल्फेट 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से साल में एक बार डाल देनी चाहिए। यदि फसल में जिंक की कमी के लक्षण दिखाई दे तो 0.5 जिंक का छिड़काव करना चाहिए। इसके लिए 2.5 किलोग्राम जिंक सल्फेट के साथ 1.25 कि.ग्रा. बिना बुझे चुने (स्लेक्उ लाइम) या 12.5 कि.ग्रा. 500 लीटर पानी में घोलकर एक हेक्टेयर में 15 दिन के अन्तराल पर 2-3 बार छिड़काव करें।
    मैंग्नीज की कमी को दूर करने के लिए 0.5 मैंग्नीज सल्फेट का छिड़काव करें। इसके लिए 2.5 कि.ग्रा. मैंग्नीज सल्फेट को 500 लीटर पानी में घोलें। पहला छिड़काव पहली सिंचाई के 2-4 दिन पहले एवं अन्य दो-तीन एक सप्ताह के अन्तराल पर करना चाहिए। लोहा की कमी वाले क्षेत्रों में 0.5 आयरन सल्फेट का छिड़काव करना चाहिए। छिड़काव उस समय करें जब दिन साफ हो और धूप खिली हो।

गेहूँ की अच्छी पैदावार के लिए निम्नलिखित तालिका के आधार पर किसान भाइयों को पोषक तत्वों का प्रबंधन करना चाहिए-

क्र.

अवस्था

उर्वरक की मात्रा

किलोग्राम प्रति हेक्टेयर

विधि

N

P

K

 

1

असिंचित अवस्था

40

20

10

असिंचित स्थिति में पोषक तत्वों की पूरी मात्रा बोनी के पूर्व खेत में मिला दें। सिंचित स्थिति में स्फुर व पोटाश की पूरी तथा यूरिया की आधी मात्रा बोनी के पूर्व खेत में मिला दें शेष यूरिया को दो भागों में करके पहले एवं दूसरी सिंचाई के समय देना चाहिए।

2

अद्धसिंचित अवस्था

60

30

15

3

पूर्ण सिंचित (समय पर बोनी)

120

60

40

4

पूर्ण सिंचित (देर से बोनी)

80

40

30




सिंचाई
आमतौर पर गेहूं की फसल के लिए 3-6 सिंचाइयों की आवश्यकता होती हैं। पानी को उपलब्धता एवं पौधों की आवश्यकतानुसार सिंचाई करनी चाहिए। चंदेरी जड़ें निकलना (क्राउन रूट इनिशियेशन) एवं बाली आना (हेडिंग) ऐसी अवस्थाएं हैं जहां नमी की कमी होने का ज्यादा कुप्रभाव पड़ता। जीरो टिलेज से बुवाई करने पर पहली सिंचाई पारम्परिक तरीके की तरह ही देनी चाहिए। मेड़ पर बुवाई की पद्धति में यदि नमी कम हो तो अच्छे जमाव के लिए हल्की सिंचाई बुवाई के तुरन्त बाद दे देनी चाहिए। अगर मार्च के शुरूआत में तापमान सामान्य से बढ़ने लगे तो हल्की सिंचाई देनी चाहिए।

सिंचाई

सिंचाई का समय (दिनों में)

एक

21

दो

21,85

तीन

21,65

चार

21,45,85,105

पांच

21,45,65,85,105

छः

21,45,65,85,105,120



खरपतवार नियंत्रण

क्र.

खरपतवारनाशक

प्रति एकड़ सक्रिय तत्व (ग्राम)

डालने की मात्रा व्यावसायिक उत्पाद (मि.ली./ग्रा.)

डालने का समय

नियंत्रित होने वाले खरपतवार

1.

कारफेन्ट्रा जोन 40 डी.एफ.

8

20

बोनी के 25 दिनों के बाद किन्तु 30 दिन के अन्दर

चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार जैसे- हिरणखुरी, कृष्णनील आदि खरपतवारों को नियंत्रित करता हैं।

2.

मेटसल्फुरोन मिथाइल

1.6

8-12

बोनी के 25 दिनों के बाद किन्तु 30 दिन के अन्दर

ये चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों पर नियंत्रण करता हैं।

3.

क्लोडिनाफोप

24

160

बोनी के 25 दिनों के बाद किन्तु 30 दिन के अन्दर

ये सकरी पत्ती वाले खरपतवार पर नियंत्रण करता हैं।

4.

मैट्रीब्युजिन

70-84

100-120

बोनी के 30 दिनों के बाद किन्तु 35 दिन के अन्दर

ये सकरी पत्ती वाले खरपतवार जैसे- गेहूं का मामा व चुनिंदा चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों को नियंत्रित करता हैं।

5.

फिनोक्साप्रोप- पी- ईथाइल

40-48

430-516

बोनी के 25 दिनों के बाद किन्तु 30 दिन के अन्दर

ये सकरी पत्ती वाले खरपतवार जैसे- गेहूं का मामा, जंगली जई, सांवा आदि पर नियंत्रण नहीं करता हैं। इसे सुबह के समय (जब ओस होती हैं) प्रयोग ना करें/ ये गेहूं और राई के अंतरवर्तीय खेती के लिए उपयुक्त हैं।

6.

आइसोप्रोट्यूरोन

300-400

400-500 (75 डब्ल्यू.पी.) 600-800 (50 डब्ल्यू.पी.)

बोनी के 4 सप्ताह के बाद किन्तु 5 सप्ताह के अन्दर

ये सकरी पत्ती वाले खरपतवार पर नियंत्रित करता हैं। इसे पहले पानी देने के बाद उपयोग करें।

7.

सल्फोसल्फुरोन बीटो

10

13.2

बोनी के 25 दिनों के बाद किन्तु 30 दिन के अन्दर

ये सकरी पत्ती वाले (गेहूंसा) एवं कुछ चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों पर नियंत्रण करता हैं।

8.

पिनोक्साडेन 5 ई.सी.

16-20

320-400

बोनी के 25 दिनों के बाद किन्तु 30 दिन के अन्दर

ये सकरी पत्ती वाले खरपतवारों पर नियंत्रण करता हैं।

9.            

सल्फोसल्फुरोन 75%  + मेटासल्फुरोन 5% डब्ल्यू.जी

12.8

16

बोनी के 25 दिनों के बाद किन्तु 30 दिन के अन्दर

ये चुनिन्दा चौड़ी पत्ती वाले व सकरी पत्ती वाले खरपतवारों पर नियंत्रण करता हैं।

10.

मीसासल्फुरोन % + आइडोसल्फुरोन मिथाइल सोडियम

(4.8 + 0.96)

160

बोनी के 25 दिनों के बाद किन्तु 30 दिन के अन्दर

ये सकरी पत्ती वाले व चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार पर नियंत्रण करता हैं।

11.

सल्फोसल्फुरोन +मेट्रीब्युजीन एवं क्लोडीनोफॉप + मेट्रीब्युजीन

(10 + 42)

(24 + 42)

(13.2 + 60)

(24 + 42)

बोनी के 25 दिनों के बाद किन्तु 30 दिन के अन्दर

ये सकरी पत्ती वाले व चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार पर नियंत्रण करता हैं।

12.

पिनोक्साडेन + कारफेन्ट्राजोन

(20 + 8)

(400 + 20)

बोनी के 25 दिनों के बाद किन्तु 30 दिन के अन्दर

ये सकरी पत्ती वाले व चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार पर नियंत्रण करता हैं।

13.

पिनोक्साडेन + मेटसल्फुरान

(20 + 1.6)

(400 + 8)

बोनी के 25 दिनों के बाद किन्तु 30 दिन के अन्दर

ये सकरी पत्ती वाले व चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार पर नियंत्रण करता हैं।

14.

क्लोडीनोफॉप + मेट्रीब्युजीन

(24 + 42)

(160 + 60)

बोनी के 25 दिनों के बाद किन्तु 30 दिन के अन्दर

ये सकरी पत्ती वाले व चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार पर नियंत्रण करता हैं।




गेहूँ की फसलों के रोग और प्रबंधन

कंगियारी
बहुत से किसान अपना ही बीज उगाते हैं या साथी किसानों से लेते हैं। अतः बीज का उपचार अवश्य करना चाहिए। इसके लिए बीज को कार्बोक्सिन (विटावेक्स 75 डब्ल्यू.पी. 2.5 ग्रा/कि. बीज) या टेबुकोनेजाल (रैक्सिल 2 डी.एस. 1.0 ग्राम/कि. बीज) या कार्बेन्डाजीम (बाविस्टीन 50 डब्ल्यू.पी. 2.5 ग्रा/कि. बीज) या विटावेक्स (75 डब्ल्यू.पी. 1.25 ग्रा/कि. बीज) और बायोएजेन्ट कवक (ट्राइकोडरमा विरीडी 4 ग्रा./कि. बीज) मिलाकर उपयोग करें। कंगियारी के समन्वित प्रबंधन हेतु रासायनिक कवकनाशक की कमतर मात्रा एवं बायोएजेन्ट प्रभावी हैं। अतः इसको रासायनिक नियंत्रण विधि से ज्यादा प्राथमिकता दी जानी चाहिए। फफूंदीनाशकों द्वारा बुवाई से एक या दो दिन पहले बीजोपचार करना चाहिए। समन्वित प्रबंधन के अंतर्गत बीज का उपचार ट्राइकोडरमा विरीडी द्वारा बुवाई के 72 घंटे पहले करने के साथ ही उसी बीज को फफूंदनाशक से बुवाई के 24 घण्टे पहले उपचारित करें। ट्राइकोडरमा विरीडी से बीजोपचार करने से अंकुरण भी अच्छा होता हैं तथा बाद की अवस्थाओं में रोगों से बचने की क्षमता भी बढ़ जाती हैं।

पीला रतुआ
उत्तर भारत में पीला रतुआ एक मुख्य रोग हैं। पीला रतुआ से बहुत अधिक हानि हो सकती हैं। अतः इस रोग के प्रबंधन के लिये रोग रोधी प्रजातियाँ लगाएं।

लक्षण
इस रोग में पत्तियों के ऊपरी सतह पर पीले रंग की धारियाँ देखने को मिलती हैं जो कि धीरे-धीरे पूरी पत्तियों को पीला कर देती हैं तथा पीला पाउडर जमीन पर भी गिरा देखा जा सकता हैं। ऐसे खेत में जाने पर कपड़े भी पीले हो जाते हैं। यदि यह रोग कल्ले निकलने की अवस्था में या इससे पहले आ जाये तो फसल में अधिक हानि होती हैं।
    तापमान बढ़ने पर (मार्च के उतरार्ध) में पत्तियों पर पीली धारियाँ काले रंग में बदल जाती हैं। प्रारम्भिक अवस्था में यह रोग खेत में 10-15 पौधों पर एक गोल दायरे के रूप में शुरू होता हैं और बढ़ता जाता हैं। इस रोग का “फोकस” कहा जाता हैं। शुरू में ऐसे फोसाई/केन्द्र कम होते हैं परन्तु बाद में इस प्रकार के कई फोसाई/केन्द्र बन जाते हैं और खेत पूरी तरह से इस रोग से भर जाता हैं।

रोकथाम
  • क्षेत्र में अनुमोदित किस्में ही उगायें तथा इनकी बुवाई समय पर करें। दूसरे क्षेत्रों के लिए अनुमोदित किस्में न उगायें।
  • खेतों का निरीक्षण शुरू से ही बड़े ध्यान से करें, विशेषकर वृक्षों के आस-पास या पापलर वृक्षों के बीज उगाई फसल पर अधिक ध्यान दें। फसल का निरीक्षण दिसंबर के मध्य से ही शुरू कर दें।
  • फसल पर इस रोग के लक्षण दिखने पर दवाई का छिड़काव करें। यह स्थिति प्रायः जनवरी के अन्त में या फरवरी के आरंभ में आती हैं, परन्तु रोग इससे पहले दिखाई दे तो एक छिड़काव कर दें। छिड़काव के लिये प्रोपीकोजोनोल 25 ई.सी. या टैबूकोनेजोल 250 ई.सी. का 0.1 घोल बनाकर छिड़काव करें। एक एकड़ खेत के लिये 200 मि.ली. दवा 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। फसल की छोटी अवस्था में पानी की मात्रा 100-200 लीटर प्रति एकड़ रखी जा सकती हैं।
  • रोग के प्रकोप तथा फैलाव को देखते हुए दूसरा छिड़काव 15-20 दिन के अन्तराल पर करें।

पर्णीय झुलसा एवं भूरा रतुआ
पर्णीय झुलसा एवं भूरा रतुआ मैदानी क्षेत्र की प्रमुख समस्याएं हैं। इनके प्रबंधन के लिए रोगरोधी प्रजातियाँ जैसे डी.बी.डब्ल्यू.-14, एन.डब्ल्यू. -1014, एन.डब्ल्यू. -1012, के-8962, के-9017 एवं एच.यू.डब्ल्यू.- 468 को उगाना चाहिए।

करनाल बंट
यह गेहूँ का एक मुख्य रोग हैं। गेहूँ की पी.बी.डब्ल्यू. 502 प्रजाति करनाल बंट के प्रति काफी हद तक रोधक हैं। अतः करनाल बंट से प्रभावित होने वाले क्षेत्रों में इसी प्रजाति को जीरो टिलेज विधि से उगाएं। करनाल बंट के प्रबंधन हेतु प्रोपीकोनाजोल (टिल्ट 25 ई.सी.) 0.1 का छिड़काव बाली निकलते समय करना चाहिए। टिल्ट 25 ई.सी. का एक छिड़काव के बजाय ट्राइकोडरमा विरिडी का एक छिड़काव बूट अवस्था (फुटाव) पर एवं दूसरा छिड़काव बाली निकलने वाली अवस्था पर करने से इस रोग का जैव नियंत्रण संभव हैं। ट्राइकोडरमा विरिडी के साथ-साथ टिल्ट 25 ई.सी. के एक छिड़काव से इस बीमारी पर पूर्ण नियंत्रण हो सकता हैं।

निमेटोड
इयर कॉकल निमेटोड मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ के कुछ हिस्सों में पाया जाता हैं। यह रोग सीड गॉल, गेगला, ममनी, सेहूँ, धानक और ईलायचीदाना इत्यादि नामों से भी जाना जाता हैं। इन क्षेत्रों में गॉल मुक्त बीजों का प्रयोग किये जाने पर जोर दिया जाना चाहिए। किसानों को फ्लोटेशन तकनीक (प्रभावित बीजों को 2-5 नमक के घोल में डुबोना) द्वारा गॉल अलग कर लेने चाहिए। बुवाई करने से पहले बीज को अच्छी तरह से पानी से धो लें ताकि नमक की मात्रा बीज पर न रह जाए।

चूर्णिल आसिता
चूर्णिल आसिता यानि पाउडर मिल्डयू के नियंत्रण हेतु प्रोपीकोनाजोल (टिल्ट 25 ई.सी.0.1) का एक छिड़काव बाली निकलते समय बीमारी से प्रभावित क्षेत्रों में करना चाहिए। मेड़ पर लगाए गये गेहूँ में पाउडरी मिल्डयू की ज्यादा संभावना होती हैं अतः समय पर रोग नियंत्रण के उपाय किये जाने चाहिए।

गेहूँ की फसलों के कीट और प्रबंधन
कीट और रोग फसलों को प्रभावित कर सकते हैं और खेत के आर्थिक उत्पादन पर गंभीर प्रभाव डाल सकते हैं। किसानों को उनकी रोकथाम और उपचार विधियों में फसल के बढ़ने और कीटों या बीमारियों के आधार पर भिन्न होना चाहिए, क्योंकि वे फसलों को अलग तरीके से प्रभावित करते हैं। किसानों को यह भी सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि वे पर्यावरण के नुकसान के विरुद्ध कीट और बीमारी की रोकथाम और उपचार के तरीके को संतुलित कर सकें। गेहूं के बारे में 600 लाख से अधिक वार्षिक वैश्विक उत्पादन के साथ प्रमुख अनाज फसलों में से एक है 200 एम हेक्टेयर गेहूं की खेती लगभग 10,000 साल पहले शुरू हुई थी निओलिथिक क्रांति जो कि शिकार करने और भोजन को इकट्ठा करने के लिए व्यवस्थित करने के लिए संक्रमण का वर्णन करती है गेहूं जो वर्तमान में विश्व के लगभग 95% क्षेत्र में गेहूं में व्यापक रूप से अनुकूल है। औसत कीटों पर 20-37% उपज हानि का कारण बनता है जो लगभग 70 डॉलर में अनुवादित होता है।

चेपा
फसल में चेपा या माहू नामक कीट का भी प्रकोप होता हैं। इस कीट का प्रकोप शुरू होते ही खेत के किनारों पर (5-5 मी. पट्टी में) चारों ओर इमीडाक्लोप्रीड 200 एस.एल. (कॉनफीडोर 200 एस.एल.) का 100 मि.ली. प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें। ऐसा करने से इस कीट के पनपने पर रोक लग जाती हैं तथा खेत के अन्दर मित्रकीट जैसे कि कोक्सीनीलीड बीटल, क्राइसोपा, सिरफिड मक्खी इत्यादि पनपते हैं जो चेपा का भक्षण करके कीट के नियंत्रण में सहायक सिद्ध होते हैं।

दीमक
अंडे: 30-90 दिनों में सुस्त, गुर्दा का आकार और घृणा। अप्सरा: मौलट 8-9 गुना और 6-12 महीनों में उगाए जाते हैं। वयस्क: काले रंग के सिर वाले चींटियों की तरह चिकनी रंग की छोटी कीड़े।

क्षति के लक्षण
बुवाई के तुरंत बाद फसल को नुकसान पहुंचाएं और कभी-कभी परिपक्वता के पास। वे जड़ें, बढ़ती पौधों के स्टेम, सेलूलोज़ पर पौधों के खिलाने के मरे हुए ऊतकों पर भी फ़ीड करते हैं। क्षतिग्रस्त पौधों को पूरी तरह से सूख जाता है और आसानी से बाहर खींच लिया जाता है। बाद के चरणों में क्षतिग्रस्त पौधे सफेद कानों को जन्म देते हैं। अपरिभाषित शर्तों के तहत अधीरता भारी होती है और उन खेतों में जहां बुवाई से पहले खेत यार्ड खाद को बिना विघटित किया जाता है।

प्रबंधन
प्रभावी प्रबंधन के लिए, क्लोरोपीरीफॉस और कार्बोसल्फान जैसी रसायनों का उपयोग बीज उपचार के लिए और स्थायी रूप से उगाई हुई फसल में इलाज की मिट्टी के प्रसार के लिए किया जा सकता है।

पॉड बोरर
अंडे: गोलाकार, पीले अंडे पौधे के निविदा भागों और कलियों पर अकेले रखे जाते हैं। अंडे की अवधि 2-4 दिन तक रहता है। लार्वा: कैटरपिलर अलग-अलग रंग के होते हैं, प्रारंभ में भूरे रंग के होते हैं और बाद में शरीर के किनारे के साथ गहरा टूटा लाइनों के साथ हरे रंग की बारी होती है। लार्वा अवधि 18-25 दिनों के लिए रहता है बाल विकिरण बाल के साथ कवर किया। जब पूरा हो जाए, तो वे लंबाई में 3.7 से 5 सेंटीमीटर मापते हैं। मिट्टी के सेल में मिट्टी में पूरा कैटरपिलर पिटेट और 16-21 दिनों में उभर आता है। पिटाई : मिट्टी के अंदर पिपाट लेता है, पिल्टल चरण 7-15 दिनों तक रहता है। वयस्क: मस्त तेज, भूरे / भूरे रंग के साथ मध्यम आकार के होते हैं जिसमें बाहरी मार्जिन के निकट एक अंधेरे क्रॉस बैंड होता है और 3.7 सेमी की एक विंग विस्तार के साथ कांटेबल मार्जिन के निकट काले धब्बे होते हैं।

क्षति के लक्षण
युवा लार्वा पत्तियों पर कुछ समय के लिए फ़ीड करता है और फिर कानहेड्स पर हमला करता है। आंतरिक ऊतक गंभीर रूप से खाए जाते हैं और पूरी तरह से खोखले होते हैं। कैटरपिलर को खिलाने के दौरान शरीर के बाकी हिस्सों को बाहर छोड़ने के अंदर उसका सिर जोर देता है।

प्रबंधन
फॉस्फोमोइडन 85 एस @ 250ml/ हेक्टेयर या मिथाइल डिमैटोन 25 सीसी @ 600ml/ हेक्टेयर या मोनोक्रोटोफ़ोस 36 एसएल @ 600ml / हे. ऊपर 600 से 700 लीटर पानी में मिलाकर छिड़का जाना चाहिए ।

एफिड्स
अंडे: अंडा सफेद रंग में गंदा और पत्तियों की नसों के साथ रखी जाती हैं। Nymphs: चार निमांत चरणों (instars) हैं प्रत्येक चरण की सामान्य उपस्थिति इसी तरह के संस्करणों के दौरान आकार में वृद्धि के अलावा समान होती है। पहले 1-2, 2, 2 और 3 दिन पहले, दूसरे, तीसरे और चौथे निम्फाल चरण सम्मानपूर्वक। निम्फ्स और मादाएं एक जैसे दिखती हैं, सिवाय इसके कि बाद के बड़े होते हैं। यह ठंड के मौसम के दौरान तेज दर से पैदा होती है और फरवरी-मार्च में इसकी आबादी की ऊंचाई तक पहुंच जाती है जब कान पकने होते हैं। वयस्क: एफिड्स छोटे, मुलायम, मोती के आकार की कीड़े होते हैं जिनके पास एक पांचवें या छठे पेट के सेगमेंट से निकलने वाले (मोम-स्राइक्रिंग ट्यूब) होते हैं। एफिड्स हरा रंग हैं दोनों उत्परिवर्तनीय (विंगलेस) और अल्टा (विंग) रूप उनके विकास में 4-5 नाइमॉल इंस्टर्स के माध्यम से गुजरते हैं और 5-6 दिनों से निम्फल अवधि होती है. अंतिम स्वरूप के बाद एक या दो दिन के भीतर दोनों प्रकार के दोस्त और युवाओं को पुनरुत्पादन करना शुरू करते हैं। बेगुनाह रूप अल्टा की तुलना में काफी अधिक संख्या में युवाओं का उत्पादन करते हैं, लेकिन उनकी जीवनकाल अल्टा की तुलना में कम है। आम तौर पर इस क्षेत्र में बड़ी संख्या में विकिपारस अपूर्ण रूप दिखाई देते हैं।

क्षति के लक्षण
अन्य एफिड्स की तरह, nymphs और वयस्कों पौधों से विशेष रूप से उनके कानों से चूसना। वे ठंड और बादल मौसम के दौरान बड़ी संख्या में युवा पत्तियों या कानों पर दिखाई देते हैं। बादल मौसम के वर्षों में क्षति विशेष रूप से गंभीर है एक भारी खड़ी, अच्छी तरह से सिंचित और रसीला फसल लंबी अवधि के लिए कीट को बंद कर देगी और अधिक नुकसान पहुंचाएगी।

प्रबंधन
पर्याप्त मात्रा में खिलाते समय, वे काफी नुकसान पहुंचा सकते हैं, लेकिन सामान्य परिस्थितियों में, नुकसान ज्यादा नहीं है गेहूं में इस कीट के लिए रासायनिक कीटनाशकों की सिफारिश की जाती है अगर वनस्पति चरण में एफ़ाइड का स्तर 10 और प्रजनन चरण के दौरान 5 होता है। हालांकि, इस कीट पर ध्यान रखने की आवश्यकता है। शुरूआती सीमा पंक्तियों पर इमिडाक्लोप्रइड @ 20 ग्राम प्रति हेक्टर का स्प्रे और यदि उपद्रव गंभीर हो तो पूरे क्षेत्र में इस कीट के खिलाफ अच्छे संरक्षण मिलेगा। आम तौर पर, क्षेत्र में मौजूद प्राकृतिक दुश्मन इस कीट की आबादी को नियंत्रित करने में मदद करते हैं।

ब्राउन कीचड़
अंडे: हाइलाइन, गोलाकार जन द्रव्यमान में रखा गया आम तौर पर अंडे को clods के नीचे रखे जाते हैं और या तो या तो सक्रिय होते हैं लाल रंग में होते हैं और नग्न आंखों या निष्क्रिय यानी सफेद अंडे को दिखाई नहीं देते हैं। स्पष्ट रूप से clods के नीचे दिखाई देता है Nymphs: रंग में पीले रंग वयस्क: कण पीले रंग की पीली पैर के साथ काले भूरे रंग के लिए लंबाई के बारे में 0.5 मिमी, छोटे भूरे रंग के होते हैं और उनके अग्रगमन अन्य तीन जोड़ी पैरों से अलग होते हैं।

क्षति के लक्षण
वे पौधों से पोषक तत्वों को वापस लेने के द्वारा पत्तियों में शैली की तरह दो सुई डालने से चूसने से पत्तियों पर फ़ीड। प्रभावित पत्तियां सफेद बन जाती हैं और गंभीर परिस्थितियों में लाल भूरा और ब्रोन्जी बन जाता है पत्तियां सूख और सूखना।

प्रबंधन
ज्यादातर समय, कण गेहूं में किसी भी उत्पादन बाधा का कारण नहीं है, इसलिए कोई प्रबंधन प्रक्रिया आवश्यक नहीं है। हालांकि, इस कीट पर सतर्क रहने की आवश्यकता है ताकि भविष्य के फसल अनुक्रम को बदलने में यह महत्वपूर्ण न हो।

आर्मी वर्म, (सेना कीड़ा/कट कीड़ा)
अंडे: अंडे क्लस्टर में रखे जाते हैं, जिसमें लगभग 500 अंडे होते हैं। लार्वा: हेनगे कैटरपिलर अंडर से 4-5 दिनों में मछली पकड़ते हैं। कैटरपिलर से बचने के बाद, पौधों के पत्तों पर दूध पिलाना शुरू होता है। कैटरपिलार पूरी तरह से 15 दिनों में उगाए जाते हैं और लंबाई में 3-5 सेंटीमीटर लगते हैं। लार्वा में आम तौर पर 6 instars (बहुत कम 7 instars) हैं, जो बड़ी आयु में 40 मिमी की लंबाई तक पहुंचती हैं। लार्वा के साथ 2 चौड़े काले भूरे रंग और एक मध्यवर्ती प्रकाश पृष्ठीय पट्टी, काले और भूरे रंग के पार्श्व पट्टी के साथ चमचमाती रेखा; काले रिम के साथ भूरे रंग की चमक Pupae: 2 सेमी गहराई में मिट्टी में लार्वा pupate, भूमि के ढेर के नीचे या tussocks के तहत। पिलाचा चरण 13-21 दिनों तक रहता है पोपी पीली-भूरे, चमकदार हैं। शारीरिक लंबाई लगभग 15-20 मिमी है यह पिछले खंड वाले क्रमालिस्ट है जिसमें दो झुकाव और पार की कताई और 4 पतले हुक सेट हैं। वयस्क: वयस्क भूरा सफेद रंग में है। Foreveings भूरे-पीले हैं, काले-ग्रे या लाल-पिघला रंग के साथ गोल और मूत्राशय के धब्बे अस्पष्ट किनारों के साथ हल्के या पीले होते हैं; निचले मार्जिन पर सफेद बिंदु के साथ शिलालेख स्थान। बाहरी पंख मार्जिन तिरछे से शीर्ष पिछड़े से, काले स्ट्रोक के साथ और गहरा अंक की एक पंक्ति के साथ काला हो गया। हिंद पंख ग्रे हैं, अंधेरे बाहरी मार्जिन के साथ एंटीना धागे की तरह हैं।

क्षति के लक्षण
प्राथमिक लक्षण पौधे का पतलापन है। पत्तियों पर लार्वा फ़ीड, किनारों से मिड्रिब तक चबाने, या अनाज के पौधों के सिर पर भारी infestations बहुत विनाशकारी हो सकता है; लार्वा पौधे चढ़ सकता है और सिर के ठीक नीचे गर्दन को तोड़ सकता है। कुछ प्रजातियों को मिट्टी की सतह पर भोजन पाया जा सकता है, अन्य जड़ों पर भूमिगत भोजन कर रहे हैं, और अभी भी अन्य स्टेम के अंदर खिला रहे हैं. सेनावर्म सुबह और शाम के समय के दौरान फ़ीड करता है क्योंकि यह सूरज की रोशनी का शर्मीली है।

प्रबंधन
सेंचुरी के लिए ईटीएल 4-5 लार्वा प्रति मीटर की पंक्ति है। सेनावर्म के प्रभावी नियंत्रण के लिए विशेष रूप से शाम को निम्नलिखित कीटनाशकों में से किसी एक को स्प्रे करें। 750-1000 ग्राम/हेक्टेयर की दर से कार्बारील 500 ग्राम / हेक्टेयर की दर से 750 ग्राम / हेक्टेयर / डिकोलोरोवोस की दर पर फ़ेंट्रीथिऑन। 400 ग्राम/हेक्टेयर की दर से क्वालिल्फोस/750 ग्राम/हेक्टेयर की दर से त्रिचीलोफोन ऊपर छिड़काव 600-700 लीटर पानी में इसे भंग करके किया जाना चाहिए।

शूट फ्लाई
अंडे: अंडे 1-3 दिनों में पकाए जाते हैं और मालगोटी जो रंग में पीले होते हैं, पत्तियों की पृष्ठीय सतह पर पलायन करते हैं, पत्ता शीथ और धुरी के बीच की जगह दर्ज करते हैं और पत्ती के आधार पर साफ कट करते हैं। पौधे का बढ़ता हुआ बिंदु मर जाता है और जिस पर मैगॉट्स फ़ीड होता है। लार्वा: लार्वा अवधि 6 से 10 दिनों तक रहता है। Pupae: छात्रवृत्ति ही स्टेम के अंदर होती है और वयस्कों के बारे में एक सप्ताह में उभर आती है व्यसक: वयस्क एक छोटा सा गहरा मक्खी है यह पत्तियों की केंद्रीय सतह पर अकेले सफेद आकृतियां जमा करता है प्रत्येक महिला मक्खी अपने जीवन काल के दौरान 30 अंडे बिछाने में सक्षम है। जीवन चक्र में 17 से 20 दिन का समय रहता है।

क्षति के लक्षण
मेगगॉट्स युवा पौधों की गोली में उछाया, एक हफ्ता अंकुरण के एक महीने के बाद और एक परिणाम के रूप में केंद्रीय शूटिंग सूख जाती है जिसके परिणामस्वरूप "मरे हुए दिल" होते हैं। यदि यह थोड़ी देर बाद है तो माँ पौधे पक्ष टिलर पैदा कर सकता है। लेकिन टिलर भी हमला किया जा सकता है। उपद्रव अक्सर 60% के बराबर होता है।

प्रबंधन
निम्नलिखित कीटनाशक में से किसी एक को स्प्रे करें स्प्रे साइपरमिथेरिन 50 ग्राम एआई / हेक्टेयर स्प्रे को 15 दिनों के बाद दोहराएं। 330 मिलीग्राम / हेक्टेयर या मिथाइल डिमेटन 25 ईसी की दर से 650 मिलीग्राम / हेक्टेयर की दर से कोर डायमिथोएट (रॉजर 30 ईसी) ऊपर छिड़काव 600- 700 लीटर पानी में इसे भंग करके किया जाना चाहिए।

गेहूं थ्रिप्स
अंडे: भ्रूण का विकास 9-10 दिनों तक रहता है। Nymphs: 2 instars हैं; निम्फाल विकास 23-27 दिनों तक रहता है। युवा अप्सरा लेम्मा पर भोजन करता है और फिर फूल को प्रवेश करता है जो अप्सरा के भोजन की क्षति के कारण बाँझ हो सकता है। जब अनाज दूध-पका हुआ चरण तक पहुंच गया, तो अप्सरा अनाज के गुच्छे में घुसा और पेरिकार्प पर हमला करता है एक बार जब यह अपने विकास को पूरा कर लेता है, तो अप्सरा नींबू को खाली कर देता है और जमीन पर गिर जाता है। 'पोपेशन': इसमें 3 चरणों, 1 'प्री-पिल्टल' और 2 'पिल्टल' हैं, जो केवल कुछ दिनों तक टिकाए हैं। वयस्क: प्रौढ़ बहुत छोटे, भूरे रंग या काले कीड़े हैं जो टूमरिंग, खंडग्रस्त पेट के साथ, लम्बी और तेज गति से 2 मिमी लंबाई को चार संकीर्ण पंखों वाले पंखों से मापते हैं और लगभग 10-12days के लिए रहते हैं।

क्षति के लक्षण
वे आम तौर पर ध्वज पट्टी के म्यान को संक्रमित करते हैं, स्टेम पर भोजन करते हैं। हालांकि, पत्तियों, उपजी, और सिर पर हमला किया जा सकता है। वयस्क और नक्सीफ दोनों का नुकसान हो सकता है और अगर बड़ी संख्या में मौजूद हो, तो उन ऊतकों का कारण हो सकता है जिन पर वे चांदी के रंग लेने के लिए भोजन कर रहे हैं।

चूहा
चूहों के नियंत्रण के लिए 3-4 ग्राम जिंक फॉस्फाईड को एक कि.ग्रा. आटा, थोड़ा सा व तेल मिलाकर छोटी-छोटी गोली बना लें तथा उनको चूहों के बिलों के पास रखें।

कटाई, मढ़ाई एवं भण्डारण
जब दानों में लगभग 20 नमी रह जाए तब फसल कटाई के लिए उपयुक्त मानी जाती हैं। वैसे तो हाथ से कटाई की जाती हैं पर शीघ्र कटाई के लिए कम्बाईन हार्वेस्टर का प्रयोग किया जाता हैं। फसल को पूरी तरह से पकने पर ही काटें तथा गेहूँ का बंडल सावधानीपूर्वक बनाएं। अधिक सूखने पर दाने बिखरने का अन्देशा रहता हैं। फसल पकते ही सुबह में कटाई करें। अनाज को भण्डारण से पहले अच्छी तरह सूखा लें। इसके लिए अनाज को तारपोलीन अथवा प्लास्टिक की चादरों पर फैला कर तेज धूप में अच्छी तरह सूखा लें ताकि दानों की नमी की मात्रा 12 से कम हो जाए भण्डारण के के लिए जी.आई.शीट की बनी बिन्स (कोठिला एवं साइलो) का प्रयोग करना चाहिए। अनाज की कीड़ों से रक्षा के लिए एल्यूमीनियम फॉस्फाईड की एक टिकिया 10 क्विंटल अनाज में रखनी चाहिए।

उपज
गेहूं की बौनी किस्मों की वैज्ञानिक ढ़ंग से खेती करने पर 50-60 क्विंटल दाना तथा 70-80 क्विंटल भूसा पैदा होता हैं। असिंचित फसल से 25-45 क्विंटल दाना तथा लगभग 40-50 क्विंटल प्रति हेक्टेयर भूसे की उपज प्राप्त होती हैं।