भारतीय कृषि में दलहनी फसलों की खेती को प्रमुख स्थान दिया गया है। कई लोग केवल शाकाहारी भोजन करते हैं, जिनके लिए दलहन प्रोटीन का मुख्य ज़रिया होता है। इसी वजह से दलहनी फसलों का महत्व भी काफी बढ़ गया है। दलहनी फसलों में चना, मूंग, मोठ, उड़द, अरहर और सोयाबीन समेत कई खास फसलें शामिल हैं। किसानों के लिए दलहनी फसलों की खेती बहुत लाभकारी है। इन फसलों में प्रोटीन की प्रचुर मात्रा पाई जाती है, इसलिए सभी लोग निश्चित रूप से इसका सेवन करते हैं। किसानों के लिए दलहनी फसलों की बुवाई से कई लाभ होंगे। एक तरफ इसकी खेती से किसान अपनी आमदनी बढ़ा सकते हैं, तो वहीं दूसरी तरफ अपने खेत की मिट्टी की उर्वरा शक्ति भी बढ़ा सकते हैं। आजकल किसान खेतों में फसलों की खेती करते समय रासायनिक उर्वरकों का उपयोग ज़्यादा करने लगे हैं, जिसकी वजह से खेतों में मिट्टी की उर्वरकता घटती जा रही है, जबकि फसलों की बुवाई से लेकर अच्छी पैदावार मिलने तक मिट्टी का उपयुक्त होना बहुत ज़रूरी है।किसानों को अपने खेतों में दलहनी फसलों की खेती भी करनी चाहिए। इससे खेत में मिट्टी की उर्वरकता बनी रहती है, साथ ही उनको अच्छा उत्पादन भी मिलता रहता है। दलहनी फसलों की जड़ों में बने राइजोबियम गांठ में नाइट्रोजन फिक्स रहता है, जो खेती की मिट्टी की उर्वरता शक्ति को बढ़ाता है, जो किसानों के खेतों की अगली फसल के लिए भी लाभकारी होता है। बता दें कि कृषि विभाग भी दहलन की खेती पर पूरा जोर दे रहा है, तो वहीं सरकारें भी दलहनी फसलों की कई योजनाएं और सब्सिडी की योजना चलाती रहती हैं, ताकि दलहन फसलों की अधिक पैदावार से किसान आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनें। दलहनी फसलों की बुवाई से लाभ- मिट्टी की भौतिक शारीरिक स्थिति में सुधार होता है। खेत की मिट्टी की उर्वरकता बढ़ती है। सूक्ष्म जीवाणुओं की गतिविधियों को बढ़ाता है। ।मिट्टी में उर्वरा शक्ति होने पर फसल की जड़ों का फैलाव अच्छा होता है। भूमि की नाइट्रोजन शक्ति बढ़ती है। मिट्टी में जल धारण की क्षमता में बढ़ती है।