योगेश साहू एवं रेवेंद्र कुमार साहू
इंदिरा गाँधी कृषि विश्वविद्यालय (छ.ग.)

जीवामृत एक अत्यधिक प्रभावशाली जैविक खाद है जिसे गोबर के साथ पानी मे कई और पदार्थ जैसे गौमूत्र, बरगद या पीपल के नीचे की मिटटी, गुड़ और दाल का आटा मिलाकर तैयार किया जाता है जीवामृत पौधों की वृद्धि और विकास के साथ साथ मिट्टी की संरचना सुधारने में काफी मदद करता है

जीवामृत की आवश्यकता क्यों है ?
दिनोंदिन खेती की लागत में वृधि हो रही है परन्तु किसानों की आय में नहीं किसान भाइयो के खेती में मुनाफा कमाने के दो ही तरीके है, एक तो यह की लागत कम कर दे तथा दूसरा यह की अपनी फसल को बेचने पर भाव अधिक मिल सके।भाव तो किसान के हाथ में नहीं है परन्तु उसकी लागत कम करना किसान के बस में है, इसके लिए किसान को जैविक खेती की तरफ बढ़ना होगा। जीवामृत किसानों द्वारा कम लागत और घर में ही उपयोग में लायी जाने वाली सामग्री से बनाया जा सकता है। इससे किसानों की फसल के लिए खाद की लागत में कमी पैदावार में बढ़ोतरी के साथ मिट्टी की भी उर्वरता बढ़ती है।

जीवामृत बनाने की विधि-

जीवामृत हेतु सामग्री
  • गोबर- देशी गाय का 10 किलोग्राम
  • देशी गाय का गोमूत्र- 5 से 10 लीटर
  • गुड़- 500 ग्राम या 4 लीटर गन्ने का रस
  • दलहन का आटा/ बेसन- 500 ग्राम
  • उर्वर मिट्टी- 1 किलोग्राम (जिसमें किसी भी प्रकार के रसायन का उपयोग न किया गया हो)
  • पानी- 180-200 लीटर
  • पात्र- प्लास्टिक ड्रम या सीमेन्ट का टंकी|

बनाने की विधि
सर्वप्रथम उपलब्ध प्लास्टिक ड्रम या मिट्टी, सीमेन्ट की टंकी में 50 से 60 लीटर पानी लेकर 10 किलोग्राम देशी गाय के गोबर को लकड़ी से अच्छी तरह मिलाइए। इसके बाद उपलब्धतानुसार 5 से 10 लीटर देशी गाय का गोमूत्र मिलाइए। मिश्रण में एक किलोग्राम उर्वर मिट्टी जिसमें रसायन खादों का प्रयोग न किया गया हो, मिलाइए। पात्र में उपलब्ध जीवाणुओं के भोजन हेतु 500 ग्राम बेसन, 500 ग्राम गुड़ या 4 लीटर गन्ने के रस के घोल में और अतिरिक्त पानी मिलाकर 200 लीटर का घोल तैयार कर लीजिए। पात्र को नाइलान जाली या सूती के कपड़े से मुह को ढक दें| मिश्रण को प्रत्येक दिन जीवाणुओं के वातन (श्वसन) के लिए दिन में तीन-चार बार लकड़ी से मिलाइए, तैयार जीवामृत को 5 से 6 दिन के अन्दर प्रयोग करें।

प्रयोग करने की विधि
  • पलेवा और प्रत्येक सिंचाई के साथ 200 लीटर जीवामृत का प्रयोग एक एकड़ में सामान्य रूप से जा सकता है।
  • अच्छी प्रकार छानकर टपक या छिड़काव (ड्रिप या स्प्रिंकलर) सिंचाई के माध्यम से प्रयोग जा सकता है, जो कि 1 हेक्टेयर क्षेत्र के लिए पर्याप्त है।
  • फलवृक्षों में वृक्ष के फैलाव अनुसार चारों तरफ 25 से 50 सेंटीमीटर नाली खोदकर जैविक अवशेष भरकर जीवामृत से तर कर सकते हैं। एक ड्रम (200 lit) 1 हेक्टेयर क्षेत्रफल हेतु पर्याप्त है।
  • इसे तैयार होने के 5-7 दिन के अंदर फसलो पर छिड़काव करना चाहिए।

जीवामृत के लाभ
  • यह सस्ती और आसानी से घर मे ही तैयार की जा सकती है।
  • यह पूर्ण रूप से आर्गेनिक खाद है, इससे भूमि तथा फसलो को हानिकारक रसायन से होने वाले दुष्प्रभाव से बचाया जा सकता है।
  • यह पौधों की विभिन्न रोगाणुओं से सुरक्षा करता है तथा पौधों की प्रतिरक्षा क्षमता को भी बढ़ाने का कार्य करता है, जिससे पौधे स्वस्थ बने रहते हैं तथा फसल से बहुत ही अच्छी पैदावार मिलती है।
  • पौधों का आहार भूमि जीवांश (हूयूमस) जो जैव एवं पशुजनित अवशेष के विघटन से बनता है। जीवांश भूमि में विद्यमान पोषक तत्वों और जल, पौधों के आवश्यकतानुसार उपलब्ध कराने में सहायक होते हैं। साथ ही साथ इनके प्रयोग से उगाई गयी फसलों पर बीमारियों तथा कीटों का प्रकोप बहुत कम होता है।
  • फसलों से प्राप्त खाद्यान्न, फल और सब्जी आदि हानिकारक रसायनों से पूर्णतः मुक्त होते हैं और इसके प्रयोग से उत्पादित खाद्य पदार्थ अधिक स्वादिष्ट तथा पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं।
  • यह एक लाभदायक सूक्ष्म जीवों का भण्डार है, इसमें लाभदायक सूक्ष्मजीव (एजोस्पाइरिंलम, पी एस एम स्यूडोमोनास, ट्रसइकोडमर्गा, यीस्ट और मोल्ड) बहुतायत में पाये जाते हैं। इसके उपयोग से भूमि में विद्यमान लाभदायक जीवाणु एवं केंचुए भी आकर्षित होते हैं। ये कार्बनिक अवशेषों के सड़ाव में सहायता करते हैं परिणाम स्वरूप मुख्य सूक्ष्म पोषक तत्वों, एन्जाइम्स और हारमोन को संतुलित मात्रा में पौधों को उपलब्ध कराते हैं।