डाॅ. नितिन कुमार तुर्रे, सहायक प्राध्यापक
कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र, मर्रा (दुर्ग)

आयस्टर शब्द का अर्थ है, जीभ के खाने योग्य भाग की आकृति जीभ के समान होने के कारण ही इस मशरूम को आयस्टर मशरूम कहा जाता है। आयस्टर मशरूम के हमारे क्षेत्र में ढिंगरी के नाम से जानते हैं। वास्तव में मशरूम उस पौध कुल का सदस्य है जो फफूंद का फलित भाग है। छत्तीसगढ़ भाषा में इसे पुटु, पिटरी छाती व बोड़ा आदि कहते हैं। वैसे प्रकृति में मशरूम की 2000 से अधिक किस्में पाई जाती हैं परंतु खेती योग्य 6-8 किस्मों की पहचान हो सकी है। इन खेती योग्य किस्मों में सर्वाधिक प्रचलित एवं विभिन्न जलवायु में उगाई जाने वाले आयस्टर मशरूम की किस्म है। इस मशरूम की खेती लगभग वर्ष भर की जा सकती है। इसके लिये अनुकूलतमा तापक्रम 20-30 डिग्री सेन्टीग्रेट तथा आपेक्षित आर्द्रता 70-90 प्रतिशत होती है। छत्तीसगढ़ में तापक्रम 20 से 30 डिग्री सेन्टीग्रेट के बीच लगभग वर्ष के 8 से 10 महीने (जून से अप्रैल को छोड़कर) तक रहता है। भारत देश में अधिकांश जनसंख्या शाकाहारी होने के कारण इसके अलावा इसके पौष्टिक एवं औषधीय गुणों की वजह से मशरूम उत्पादन एवं उपयोग के लिए प्रचुर क्षमताएं विद्यमान है। आज के आधुनिक युग में विदेशों में मशरूम का प्रयोग दवाइयों को बनाने में भी किया जा रहा है।
  • मशरूम में स्टार्च न होने के कारण यह मधुमेह रोगियों का आदर्श भोज्य पदार्थ है।
  • वसा की मात्रा नगण्य होने तथा कोलेस्ट्राल रोधी पदार्थ की उपस्थिति की वजह से मशरूम उच्च रक्तचाप एवं मोटापे से पीड़ित लोगों का आदर्श भोजन है।
  • मशरूम में पाये जाने वाले प्यूरीन या पाइरीमिडीन, क्यूनोनस व टर्पिनाइड पदार्थ हानिकारक जीवाणु रोधी क्षमता रखते है।
  • शरीर में कुछ विषैले पदार्थ एकत्रित होकर शाररिक कोशिकाओं को नष्ट करके कैंसर जैसे रोगों को जन्म देते है। मशरूम में अनेक ऐसे तत्व मौजूद होते हैं जो इन विषैले पदार्थ को निष्क्रिय करके शरीर की रक्षा करते है।
  • मशरूम में फोलिक अम्ल पाया जाता है जो शरीर में खून बनाने में सहायक होता है।

मशरूम एक सरल निम्न कोटि की वनस्पति है जिसे फफॅंूद कहते है। इसमें क्लोरोफिल नहीं होता है ये अपना भोजन स्वयं नहीं बनाते हैं इसलिये इन्हें उगने व बढ़ने के लिये धूप की आवश्यकता नही होती, ये अपनी कार्बनिक आवश्यकताएं पौधें के अवशेषों या खाद से प्राप्त करते है। इसे विभिन्न जगहों पर भिन्न-भिन्न नामों से जानते हैं जैसे खुम्बी, ढींगरी, भूमिकवक, पफवाल्स, कुसुम्बी, धरती का फूल एवं गोबरछत्ता । भारत जैसे देश में जहां अधिकांश जनसंख्या शाकाहारी हैं मशरूम के उत्पादन एवं उपयोग की प्रचुर सम्भावनायें है।भारतवासियों को विशेषकर आदिवासियों जिनके पास कवक मशरूम अथवा खुम्बी की खेती के काम आने वाले उप-उत्पाद प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है एक शाकाहारी, पौष्टिक आहार प्रदान करने के साथ आमदनी का अच्छा स्त्रोत बन सकता है।मशरूम को वैज्ञानिक तरीकों से उगाने के लिये विभिन्न माध्यमों जैसे गेहूं या चावल का भूसा, गोबर तथा कई अन्य कार्बनिक व अकार्बनिक पदार्थों को मिलाकर तैयार की हुई कृत्रिम खाद का उपयोग किया जाता है।मशरूम की खेती और जैविक खेती एक ही सिक्के के दो पहलू हैं मशरूम की खेती के अवशेष जैविक खेती के उपयोग में आ सकते हैं और जैविक खेती के विभिन्न कारक जैसे गोबर की खाद, कम्पोस्ट, नीम की खली और खेत में बचे अवशेष मशरूम की खेती के लिये उत्यंत उपयोगी है।वेदों और बाइबिल जैसे प्राचीन ग्रंथों में खुम्बी की पोष्टिकता का उल्लेख सर्वप्रथम महान दार्शनिक थियोफास्टिक (ईसा पूर्व) ने किया था। मध्य युग में राजकीय भोज (यूनानी तथा रोमन) की शान खुम्बी थी। वर्तमान समय में मशरूम एक विशिष्ट पौष्टिक आहार के नाम से जाना जाता है। मशरूम को जापान में ‘अमरत्व का मशरूम‘ तथा कोरिया में ‘दीघार्यु मशरूम‘ के नाम से तथा रोम में ‘भगवान आहार‘ के नाम से जाना जाता है चाइनीज इसे जीवन को स्वस्थ्य रखने के लिये तेज वर्धक औषधी एवं बहुमूल्य स्वास्थ्यवर्धक आहार मानते हैं। भारत जैसे विकासशील देश में प्रोटीन की कमी एक समस्या है जो कृषि वैज्ञानिकों के लिये चिंता का विषय है। विश्व भर में मशरूम प्रोटीन को वनस्पति प्रोटीन से श्रेष्ठ और पशु प्रोटीन जैसा उत्तम माना गया है। यह प्रोटीन शाकाहारी श्रेणी में आती है। मशरूम एकमात्र ऐसा आहार है जो भारतीय आहार में प्रोटीन की कमी को पूरा कर सकता है। प्रोटीन की गुणवत्ता उसमें उपसिथत अमीनो हम्ल पर निर्भर कती है जो शरीर की वृद्धि के लिये अति आवश्यक है।

औषधीय गुण:-

1. कुपोषण:- उच्चकोटि का प्रोटीन होने के कारण जहां जनसंख्या मुख्यतः अनाज आहार पर निर्भर है मशरूम को संपुरक आहार माना गया है।

2. हृदय रोग:- मशरूम में वसा की बहुत कम मात्रा होती है इसमें लिनोलेनिक अम्ल अधिक होने के कारण कोलेस्ट्राल बनता नहीं एवं कालेस्ट्राल की मात्रा को कम करने में सहायक होता है।

3. उच्च रक्तचाप:- वसा और कार्बोहाइड्रेट शर्करा अतिसूक्ष्म मात्रा में होती है साथ ही पोटेशियम-सोडियम का अनुपात ऊंचा होने से उच्च रक्तचाप में फायदा होता है।

4. मधुमेह:- शर्करा की अतिसूक्ष्म मात्रा एवं रेशा उपस्थित होने से यह मधुमेह से बचाता है और इसके सेवन से इंसुलिन की मात्रा कम हो जाती है ।

5. कब्ज:- भस्म व रेशा उपलब्ध होने के कारण पेट का अम्लीयपन व कब्ज जैसे रोगियों के लिये उत्तम आहार है।

6. कैंसर एवं एड्स:- पाॅलीसेकेराइड्स एवं अन्य प्रतिरोधी तत्वों की उपस्थिति कैंसर एवं एड्स रोग के प्रति प्रतिरोधकता बढ़ाने में अहम भूमिका निभाता है।मोरी अनुसंधान जापान के वैज्ञानिक शोध से पता चला है कि मशरूम में कैंसर नियंत्रण के लिये विशेष तत्व है।

7. मशरूम में कोलेस्ट्राल की मात्रा:- इसमें कोलेस्ट्राल की मात्रा नहीं होती है। इसमें इरगेस्ट्रोल पाया जाता है जो शरीर द्वारा विटामिन डी में परिवर्तित हो जाता है।

8. रोगियों को आराम:- मशरूम के सेवन से पीलिया तथा दमें के रोगियों को आराम मिलता है।

9. पाचन क्रिया:- इसमें ट्रिप्सिन नामक एन्जाइम की काफी मात्रा पाई जाती है। जो पाचन क्रिया को ठीक करने में सहायक है।

10. मांसपेशी एवं जोड़ के दर्द:- प्लुरोटस आस्ट्रीएटस आयस्टर मशरूम मांसपेशियों एवं जोड़ों के दर्द में सहायक होता है ।

11. एनीमिया:- लौह तत्व कम उपस्थित होता है परंतु जो लौह तत्व रहता है फोलिक एसिड़ । वह खून में हिमोग्लोबिन का स्तर सही बनाए रखता है ।

12. एन्टीवाइरल प्रभाव:- लेन्टीनस इडोडस मशरूम में कुछ पदार्थ ऐसे विद्यमान है जो इन्फ्लुएन्जा फैलाने वाले वायरस की वृद्धि को रोकता है।

13. एन्टीट्यूमर प्रभाव:- मशरूम वैज्ञानिक छिहारा व अन्य वैज्ञानिकों के अनुसार लेन्टीनस इडोडस प्रजाति में पानी में घुलनशील पाॅलीसैकराइड पाया जाता है। जिसमें एन्टीट्यूमर का गुण है ।


आयस्टर मशरूम के लाभ:-
  • इस मशरूम की अनेक प्रजातियाॅ है, जो छŸाीसगढ़ क्षेत्र में जुलाई से अप्रैल माह तक आसानी से उगाई जा सकती है।
  • इस मशरूम को अनेक प्रकार के कृषि अवशेष (पैराकुट्टी, गेहूँ भूसा, सोयाबीन भूसा, सरसों भूसा आदि) में आसानी से उगाया जा सकता है।
  • आयस्टर मशरूम को आसानी से सुखाकर लंबे समय तक संरक्षित किया जा सकता है।
  • आयस्टर मशरूम की उत्पादन क्षमता (70-100 प्रतिशत जैविक क्षमता) अन्य सभी मशरूम से ज्यादा है।
  • किस्मों में विविधता के कारण लगभग सालभर उत्पादन कर सकते है।
  • उत्पादन तकनीक सरल एवं सस्ती है।
  • कम क्षेत्र में अधिक लाभ।
  • सालभर में 5-6 फसलें ली जा सकती है।
  • पौष्टिक एवं औषधीय गुणों में श्रेष्ठ।
  • सम्पूर्ण आय या अतिरिक्त आय का उत्तम साधन।
  • पलायन रोकने में सहायक।
  • मजदूर वर्ग एवं निम्न आय वर्ग के लिये विशेष लाभकारी।
  • एनीमिया एवं कुपोषण दूर करने में सहायक।

आयस्टर मशरूम की छत्तीसगढ़ प्रदेश में उगाई जा सकने वाली प्रमुख किस्में इस प्रकार है:-

1. प्लूरोटास फ्लोरिडा: यह किस्म एकदम सफेद रंग की होती है जिसके कारण बहुत लोग इसे पसंद करते है। इसकी मांग अन्य किस्मों से अधिक है।इसकी खेती जन से लेकर अप्रैल तक आसानी से की जा सकती है। इसे उगाने हेतु उपयुक्त तापक्रम 20 से 30 डिग्री सेन्टीग्रेड एवं नमी 89-90 प्रतिशत तक होनी चाहिये।

2. प्लूरोटस सजर काजू: इस प्रजाति के लिये उपयुक्त तापक्रम 20 से 25 डिग्री सेन्टीग्रेट एवं नमी 90 प्रतिशत तक होनी चाहिये। इसमें सबसे अधिक प्रोटीन (40 प्रतिशत) होता है।इसका रंग हल्का मटमैला होता है, इस कारण अनेक लोग इसे कम पसंद करते है। इसकी खेती जुलाई से अप्रैल तक आसानी से की जा सकती है।

3. प्लूरोटस फ्लेबीलेटस: इसका रंग सफेद छतानुमा भाग बड़ा तथा तना तुलनात्मक रूप से लम्बा होता है।छत्तीसगढ़ में इसे जुलाई से मार्च तक आसानी से उगाया जा सकता है।इसकी उत्पादन क्षमता 60-70 प्रतिशत है।

4. बलु आयस्टर: इस प्रजाति के लिये तापक्रम 16-23 डिग्री सेन्टीग्रेड एवं नमी 65 प्रतिशत तक होनी चाहिये । इसका रंग मटमैला, छतानुमा भाग बड़ा तथा तना तुलनात्मक रूप से छोटा होता है।इसकी खेत अक्टूबर से मार्च माह तक की जा सकती है, यह नई किस्म है जो कि छत्तीसगढ़ की जलवायु में अच्छी उपज प्रदान कर रही है।

आयस्टर मशरूम उत्पादन हेतु आवश्यक सामग्री: पैराकुट्टी अथवा गेहूँ का भूसा, आयस्टर मशरूम स्पान (बीज), पोलीथीन की थैलियां (12ग् 18 इंच आकार की ), नायलोन रस्सी, मशरूम की थैलियां टांगने हेतु बांस, प्लास्टिक का ड्रम अथवा पानी टंकी, मशरूम घर (मशरूम झोंपड़ी), रसायन (बाविस्टिन एवं फार्मेलिन)।

आयस्टर मशरूम उत्पादन तकनीक:-

1. उपयुक्त माध्यम: छत्तीसगढ़ में प्रचुर मात्रा में धान का पैरा व गेहूॅं भूसा उपलब्ध होता है।इनमें से किसी भी माध्यम का प्रयोग सुविधानुसार एवं उपलब्धता के आधार पर किया जा सकता है।आयस्टर मशरूम उत्पादन हेतु पैरा कुट्टी, गेहूँ भूसा, सोयाबीन का भूसा, सरसों का भूसा, ज्वार एवं मक्के की कड़ी आदि उपयुक्त माध्यम पाये गए है। माध्यम को ताजा या उपयुक्त भंडारण के पश्चात भी प्रयोग किया जा सकता है।


2. माध्यम का उपचार: धान का पैरा उपयोग करने की दिशा में इसे मशीन द्वारा 2-3 इंच के आकार में काटा जाता है।माध्यम का चुनाव कर उसे उपयुक्त आकार के टुकड़ों में काटने के पश्चात विभिन्न विधियों द्वारा उपचारित किया जाता है, ताकि माध्यमों में उपस्थित सूक्ष्म जीव निष्क्रिय हो सकें। इस हेतु माध्यम को गर्म पानी या रसायन अथवा भाप द्वारा उपचारित किया जा सकता है जिसका विवरण निम्न है:-

अ. गर्म पानी: सर्वप्रथम 10 कि. ग्रा. सूखे माध्यम को ड्रम में 100 लीटर ठंडे पानी में, 14-16 घंटे तक (अथवा रात भर) भिगोया जाता है, जिससे माध्यम मुलायम हो जाय, तत्पश्चात् ठंडा पानी निकालकर इसमें उबलता हुआ पानी (50 लीटर) मिलाना है एवं माध्यम को 1 घंटे तक गर्म पानी में रखने से इसमें उपस्थित सूक्ष्मजीव निष्क्रिय हो जाते है।

ब. रसायन द्वारा: माध्यम का उपचार रसायन द्वारा भी किया जा सकता है। रसायन द्वारा माध्यम को उपचारित करने के लिए इसे 100 लीटर पानी में 7.5 ग्राम बाविस्टिन एवं 132 मि. ली. फार्मेलिन सहित मिलाना है एवं इस घोल में माध्यम को 12-14 घंटे भिगोना है। घोल में माध्यम को डालने के पश्चात ड्रम का मुुंह ढंकना चाहिए। इस तरह दोनों विधि से माध्यम उपचारित किया जा सकता है। तैयार माध्यम सूखे माध्यम की तुलना में 2-2.5 गुना अधिक होता है।


3. आयस्टर मशरूम स्पान (मशरूम बीज) का चुनाव एवं स्त्रोत: प्रमाणित मशरूम बीज प्रयोगशालाओं से ही प्राप्त करें । छत्तीसगढ़ में इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर के पौध रोग विभाग से अथवा छत्तीसगढ़ मशरूम तेंदुआ (अभनपुर) से अथवा एस.के.एस. कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र, राजनांदगांव से आप उच्च गुणवत्ता योग्य आयस्टर मशरूम बीज प्राप्त कर सकते हैं अथवा मशरूम वैज्ञानिकों से प्रशिक्षण लेकर भी घर में छोटी प्रयोगशाला बनाकर उच्च गुणवत्तायुक्त मशरूम बीज उत्पादन किया जा सकता है।अच्छा बैग देखने में एकदम सफेद, कवक तन्तु रसेदार एवं सम्पूर्ण माध्यम को ढके हुए होना चाहिये । मशरूम फफूंद को माध्यम में फैलने में कम समय लगना चाहिये तथा कवक तंतु में पीलापन नहीं होना चाहिये ।


4. माध्यम में बीज मिलाना: उपचारित माध्यम में जल व नमी का प्रतिशत 68-72 प्रतिशत हो तब इसे बीज मिलाने के लिये उपयोग किया जा सकता है। बीजाई, मिश्रण विधि या तह विधि दोनों से ही की जा सकती है। मिश्रण विधि में संपूर्ण बीज (1 कि. ग्रा.) को माध्यम में अच्छे से मिलाया जाता है।जबकि तह विधि में सर्वप्रथम पोलीथीन की थैलियों में पहले एक तह माध्यम डालते हैं फिर बीज। मिश्रण विधि में संपूर्ण बीज (1 कि. ग्रा.) को माध्यम में अच्छे से मिलाया जाता है।जबकि तह विधि में सर्वप्रथम पोलीथीन की थैलियों में पहले एक तह माध्यम डालते हैं फिर बीज। माध्यम में बीज एक समान मिलाना चाहिये । इस हेतु प्रायः 1 कि. ग्रा. तैयार माध्यम में 30-40 ग्राम बीज मिलाया जाता है।माध्यम में बीज मिश्रण की प्रमुख विधियां है:-

अ. सम्पूर्ण मिश्रण विधि: इस विधि में सम्पूर्ण माध्यम में 3-4 प्रतिशत दर से (30 से 40 ग्राम बीज/कि.ग्रा. गीला भूसा) बीज मिलाया जाता है।यह कार्य स्वच्छ एवं साफ जगह पर फार्मेलिन छिड़क कर करना चाहिये। माध्यम में बीज मिलाते समय यह ध्यान रहे कि बीज की एक समान मात्रा सम्पूर्ण माध्यम में मिश्रित हो।

ब. तह विधि: इस विधि में पहलंी तह माध्यम की होती है, तत्पश्चात एक तह किनारों की ओर बीज की होती है, तत्पश्चात माध्यम एवं पुनः दूसरी तह बीज की होती है, इस तरह चार तह माध्यम की एवं तीन तह बीज की होती है इस विधि में समय थोड़ा अधिक लगता है।


5. बीज मिश्रित माध्यम: उपयुक्त आकार की पालीथीन थैलियां 30-45 से.मी. एवं 40-50 से.मी. आकार की बाजार में उपलब्ध होती है, जिनमें 3 से 8 कि.ग्रा. तक बीज मिश्रित माध्यम भरा जा सकता है। इन थैलियों में सर्वप्रथम निचले किनारों की ओर 3-4 छिद्र होने चाहिये, ताकि पानी अधिकता में यह छिद्रों से निकलता रहे। माध्यम को थैलियों में दबाकर भरना चाहिये ताकि खाली जगह न छूटे। थैली का केवल 3 चैथाई भाग ही भरना चाहिये, शेष एक चैथाई भाग रस्सी बांधने के लिए छोड़ना चाहिये। थैली में माध्यम को भरकर नायलोन की सुतली से बांध देना चाहिए। थैलियों में चारों ओर 10-12 छिद्र कर देते हैं। व थैलियों में नीचे की ओर दोनों कोनों को थोड़ा-थोड़ा काट देतेें हैं जिससे अतिरिक्त पानी निकल जाय। थैलियों को बांधने के पश्चात इनमें तारीख डाल देना चाहिये।


स्पान रन कक्ष में थैलियों का रख रखाव: थैलियों को मशरूम घर में रेक विधि या लटकन विधि द्वारा रखा जा सकता है। थैलियों को 12-15 दिन तक मशरूम घर में ऐसे ही रखना चाहिये जहां का तापमान 25 से 28 अंश से. गेे्र. व नमी या आर्द्रता 70 से 85 प्रतिशत हो। साथ ही यह ध्यान रखना आवश्यक है कि मशरूम की झोंपड़ी में सूर्य का सीधा प्रकाश व वायु का सीधा आवागमन न हो सके परन्तु कक्ष के अंदरशुद्ध वायु का आवागमन होना चाहिए। स्पान रन कक्ष में थैलियों को रखने के पूर्व इसे अच्छे से निर्जीवीकृत कर देना चाहिए। थैलियों को लोहे की बनी रेक या सुतली से लटका सकते हैं। थैलियों का दैनिक निरीक्षण करते रहना चाहिये तथा संक्रमित थैलियों को तुरंत हटा देना चाहिये। मशरूम फफूंद को माध्यम में फैलने में 15-18 दिन लग जाते हैं। मशरूम फफूंद जब माध्यम में पूर्ण रूप से फैल जाती है, तब थैली बाहर से ही सफेद दुधिया रंग की दिखाई देने लगती है। थैलियों से पालीथीन हटाने पर माध्यम को एक पिंडनुमा संरचना प्राप्त होती है। स्पान कक्ष में रखी थैलियों में अतिरिक्त पानी की आवश्यकता नहीं होती है।


फसल उत्पादन एवं प्रबंधन: स्पान रन कक्ष में पिंडनुमा रचना जो कि पालीथीन हटाने के पश्चात प्राप्त होती है, इसकी देखभाल एवं प्रबंधन ही पूर्ण उत्पादन पर निर्भर करता है।संरचना नम रहना चाहिए, इसके लिए दिन में 3-4 बार पानी छिड़काव करना चाहिए । संरचना 2-3 दिनों में कवक जाल, इकट्ठा होकर छोटे-छोटे सफेद गोल दाने जैसी आकृति बनाते हैं जो पिन हेड अवस्था कहलाती है।यह क्रमशः वृद्धि कर 5-7 दिनों में पूर्ण छत्ते के रूप में विकसित हो जाते हैं, इसे फलनकाय कहते है। अब इन फलनकाय के किनारे नीचे या अंदर की तरफ मुड़ने लगे, तब इन फलनकाय की तुड़ाई कर लेना चाहिए । इस तरह पहली तुड़ाई बिजाई के लगभग 18-22 दिन बाद होती है।इसके 5-7 दिन पश्चात पुनः फलनकाय तोड़ाई हेतु तैयार हो जाते हैं जब इसकी दूसरी तुड़ाई करें एवं पुनः 5-7 दिन पश्चात इसकी तुड़ाई करें । इस तीसरी तुड़ाई के पश्चात पिंडनुमा संरचना को फसल उत्पादन कक्ष से हटा देते है।


    उत्पादन कक्ष में अनेक प्रकार के कीट मुख्य रूप से मक्खियों का प्रकोप होता है इसके प्रबंधन हेतु सलाह दी जाती है कि उत्पादन कक्ष में 15-20 दिनों के अंतराल में थैलियों को बाहर कर कीटनाशक दवाओं जेसे-नुवान (0.5 ग्राम प्रति लीटर पानी) का छिड़काव करें । प्रतिस्पर्धात्मक फफूंदों के आक्रमण को रोकने के लिए फफूंद नाशी दवाओं का छिड़काव थैलियों को बाहर कर उत्पादन कक्ष में 15-20 दिनों के अंतराल में करें ।
    ताजे मशरूम को बेच कर भी धन कमाया जा सकता है।इसकी सब्जी बनाकर खाया जाता है। इसके विभिन्न व्यंजन जैसे - मशरूम पकौडे, समोसें, मशरूम सेडविच, मशरूम बिरयानी, मशरूम पुलाव, बडे़ आदि बना कर बेचा जा सकता है साथ ही इसके विभिन्न प्रसंस्कृत उत्पाद जैसे - मशरूम का अचार, मशरूम बडी, मशरूम पापड़ आदि बेच कर लाभ कमाया जा सकता है। मशरूम को सुखाकर उसका पावडर बनाकर भी सुरक्षित रखा जा सकता है। मशरूम में प्रचुर मात्रा में प्रोटीन होने के कारण यह गर्भवती महिलाओं व कुपोषण से ग्रसित बच्चों को खिलाया जा सकता है।