भारत एक कृषि प्रधान देश है जिसने कृषि के साथ-साथ पशुपालन को एक संलग्नक व्यवसाय के रूप में अपना रखा है। हमारा देश लगभग 195 मिलियन टन दुग्ध उत्पादन कर विश्व में प्रथम स्थान पर विराजमान है। पशुओं की आँखों के प्रभावित करने वाले रोग पशु को दुग्ध उत्पादन क्षमता में गिरावट ला सकते हैं। समय रहते पशुओं की आँख में होने वाले रोगों का समुचित उपचार कराना चाहिए अन्यथा प्रभावित पशु, अन्धापन का शिकार हो जाता है।
पशुओं की आँख को प्रभावित करने वाले रोग प्रमुख रूप से निम्नलिखित है:-
- आँखों का घाव पशु की आँख मे चोट लगने या कट जाने से आँख में घाव हो जाता है। यदि चोट साधारण होती है तो बोरिक ऐसिड पाउडर के एक चम्मच को 1/2 लीटर गुनगुने पानी में डालकर आँख को अच्छी तरह से धुले तथा उसके बाद ऐन्टीबायोटिक मलहम जैसे- जेन्टामाइसीन, क्लोरोमाइसेटीन या नेवासल्फ आंयटमेन्ट लगाने से लाभ मिलता है। यदि लगने वाली चोट गम्भीर है और आँख खराब हो गयी है तो शल्य चिकित्सा द्वारा आँख को निकलवाना जरूरी होता है।
- आँखों से पानी बहना कभी कभी पशुओं की आँख से बिना किसी स्पष्ट कारण के आँख से पानी बहता रहता है। तथा पशुपालन के ध्यान न देने के कारण पशुओं की आँख के अन्य रोग भी हो जाते है। इसके उपचार के लिए बोरिक ऐसिड की 1-2 चम्मच 1/2 लीटर पानी में डालकर उबालकर किसी रूई के टुकडे़ से भिगोकर गुनगुने पानी से आँख की सिकाई करने से लाभ मिलता है।
- आँखों की लाली कान्जेक्टिीवाइटीस आँखों की श्लेष्मिक झिल्ली में सूजन आने पर इसे कान्जेक्टीवाइटीस कहा जाता है। इसमें पशुओं की आँखे लाल हो जाती हैं तथा आँखों में दर्द होता है और आँखों से कीचड़ निकलता रहता है तथा पानी बहता है। इस रोग से प्रभावित पशु को पशुओं का आँख आना, आँख का दुखना या गुलाबी आँख के नाम से भी जाना जाता है।
रोग का कारण -
- पशुओं की आंख में धूल, पराग, बालू चूना, कुटटी-भूसा आदि के पड़ने से यह रोग हो जाता है।
- पशुओं में जीवाणु, विषाणु या फफूँद के संक्रमण से यह रोग हो जाता है।
- पशुओं में यह मक्खियां कीड़े या टिक्स आदि के कारण यह रोग हो जाता है।
- आँख में लगने वाले बाहरी आघात अथवा पशुओं की आँख में ऐलर्जी के कारण यह रोग हो जाता है।
रोग के लक्षण -
- इस रोग से प्रभावित पशु की आँखों के श्लेष्मिक झिल्ली में सूजन तथा लाली आ जाती है।
- पशु की एक या दोनों आँखे प्रभावित होती है।
- रोग से प्रभावित पशुओं की आँखों में दर्द चुभन एवं किरकिरी का अनुभव होता है।
- पशुओं की रोग से प्रभावित आँखों से आंसू, या पानी या लसलसा सा श्राव बाहर निकलता रहता है।
- रोग से प्रभावित पशु सुस्त एवं उदास रहता है।
- जीवाणु या विषाणु के संक्रमण होने की दशा में आँखों से लसदार पानी या गाढ़ा पीलाश्राव अधिक मात्रा में बाहर निकलता है। पशु बुखार से पीड़ित हेाता है। श्वास एवं नाड़ी की गति अधिक त्रीव हो जाती है।
- रोग से प्रभावित पशु की आँख में कभी-कभी परजीवी एवं कीड़े भी दिखायी देते है।
- प्रभावित पशुओं का समय से उपचार न होने की अवस्था में आँखों के श्वेत मण्डल में संक्रमण के कारण पशुओं को किरेटाइटीस हो जाता है।
रोग का उपचार -
- रोग से प्रभावित पशुओं की आँखों का अच्छी तरह से निरीक्षण करना चाहिए। निरीक्षण के समय यदि कोई बाहरी वस्तु आँख में दिखायी देती है तो उसे तुरन्त निकाल देना चाहिए।
- प्रभावित पशुओं के आँख लाल एवं पानी बहने की दशा में प्रोटार्गल लोशन, आर्जीराल लोशन या बोरोजिन्क लोशन के 2% का 2-3 बूँद दिन में 2-3 बार आँखों में डाले।
- प्रभावित पशुओं की आँखों में ऐन्टीबायोटिक मलहम या घोल जैसे जेन्टामाइसीन, क्लोरोमाइसेटीन, गारामाइसीन या टेरामाइसीन इत्यादि लगाने से लाभ मिलता है। साथ ही साथ ऐन्टीबायोटिक की सूई मांस में लगवाने से लाभ मिलता है।
- रोग से प्रभावित पशुओं की आँख में यदि सूजन हो तथा आँखों की पुतलियों में शोथ हो तथा आँखे उभरी हुई हो और तथा बड़ी दिखाई पड़ती है। तो इस अवस्था में पशुओं को ऐन्टीहिस्टामिनिक्स या ऐनीस्टामीन या एन्टीएलर्जिक दवायें जैसे वैटनेसाल की 10 मिली लीटर मात्रा की सूई मांस में लगवाये। साथ ही साथ ऐन्टीबायोटिक की सूई लगाना लाभदायक होता है।
- प्रभावित पशुओं में दानेदार कान्जक्टिवाइटीस होने की अवस्था में सिल्वर नाइट्रेट या कापर सल्फेट का प्रयोग करना लाभदायक होता है।
- आँखों में परजीवों होने की स्थित में पिपराजीन की 1-2% नार्मल सलाइन घोल आँखों में डालना लाभदायक होता है।
- रोग से प्रभावित पशुओं को धूप, रोशनी, धूल इत्यादि से बचाकर रखना चाहिए।
आँखों की सफेदी या आँखो का माड़ा
इस रोग में पशुओं के आँख के बीच का श्वेत मण्डल थोड़ा या पूरा सफेद या उजला हो जाता है। आँखों से पानी बहता रहता है। तथा आँख से पूरा दिखायी नही देता है। रोग का कारण यह रोग आँख में किसी प्रकार से चोट या झटका इत्यादि लगने के कारण होता है। आँखों में पाये जाने वाले कीड़े भी इस रोग का कारण बन सकते हैं। यह रोग विटामिन-ए की कमी के कारण भी हो सकता है।
रोग का उपचार -
प्रभावित पशुओं की आँख को बोरिकऐसिड पाउडर गुनगुने पानी में डालकर आँख को धुलने से लाभ मिलता है। यदि आँख सफेद या उजली हो गयी हो तो सिल्वर नाइट्रेट का 1/2: घोल का 3-4 बूँद दिन में 2-3 बार आँख में डालने से रोग ठीक हो जाता है। पशुओं की आँख में कैलोमल तथा बोरिक एसिड पाउडर को बराबर भाग में मिलाकर चुटकी से सुबह-शाम आँख में डालने से आँख की सफेदी कट जाती है। रोग से प्रभावित पशुओं को विटामिन ‘ए‘ की 5-6 मिली लीटर मात्रा की सूई बड़े पशुओं में मांस में एक दिन के अन्तराल पर लगाना लाभदायक होता है तथा साथ ही साथ विटामिन ‘ए‘ युक्त दाना एवं खनिज लवण देना लाभदायक होता है। आँख में परजीवी कीड़े के पाये जाने की अवस्था में पिपराजीन नार्मल सलाइन का घोल आँख में डालने से कीड़े मर जाते है।
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