विनोद बरफा, सहायक प्राध्यापक, सेज यूनिवर्सिटी, इंदौर
प्रमोद जोशी, सहायक प्राध्यापक सेज यूनिवर्सिटी, इंदौर
द्रोणक कुमार साहू, पीएचडी स्कॉलर कृषि अर्थशास्त्र विभाग (इंदिरा गांधी कृ.वि.वि,रायपुर)

जैव उर्वरक के प्रयोग से रासायनिक उर्वरकों की एक तिहाई मात्रा तक की बचत हो जाती है। नाइट्रोजन पूर्ति करने वाले ये जैव उर्वरक प्राकृतिक रूप से सभी दलहनी फसलों और सोयाबीन, मूंगफली आदि की जड़ों में छोटी-छोटी गांठो में पाए आते हैं दूसरे शब्दों में हम कह सकते है की जैव उर्वरक जीवित उर्वरक है जिनमे सूक्ष्मजीव विद्यमान होते है। फसलों में जैव उर्वरकों का इस्तेमाल करने से वायुमण्डल में उपस्थित नाइट्रोजन पौधों को सुगमता से उपलब्ध होती है तथा भूमि में पहले से मौजूद अघुलनशील फास्फोरस आदि पोषक तत्व घुलनशील अवस्था में परिवर्तित होकर पौधों को आसानी से उपलब्ध होते हैं जैव उर्वरक रासायनिक उर्वरकों के पूरक है, विकल्प कतई नहीं है। रासायनिक उर्वरकों के पूरक के रूप में जैव उर्वरकों का प्रयोग करने से हम बेहतर परिणाम प्राप्त कर सकते है।

जैव उर्वरक के प्रकार

राइजोबियम
नाइट्रोजन का लगभग 78% वायुमंडल में विद्यमान है। सूक्ष्म जीवाणु वायुमंडलीय नाइट्रोजन को वायुमंडल से भूमि में पहुँचाने का एक माध्यम है। राइजोबियम को बीजों के साथ मिश्रित करने के पश्चात बो देने पर जीवाणु जड़ों में प्रवेश करके छोटी छोटी गाठें बना लेते है।इन गाठों में जीवाणु बहुत अधिक मात्रा में रहते हुए, प्राकृतिक नाइट्रोजन को वायुमंडल से ग्रहण करके पोषक तत्वों में परिवर्तित कर के पौधों को उपलब्ध करवाते है।पौधों की जितनी अधिक गाठें होती है, पौधा उतना ही स्वस्थ होता है।राइजोबियम कल्चर के प्रयोग से फसल का उत्पादन 25-30% तक बढ़ जाता है। राइजोबियम कल्चर के प्रयोग से भूमि में लगभग 30-40 किलो नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर तक बढ़ जाती है।

एजोटोबैक्टर
एजोटोबैक्टर मृदा में पाया जाने वाला एक मृतजीवी जीवाणु है जो कि अदलहनी फसलों में नाइट्रोजन स्थिरीकरण में सहायक है। यह जीवाणु लम्बे व अंडाकार आकृति के होते है। इसका उपयोग मुख्यतः धान एवं गेंहूँ की फसलों में किया जाता है। इसके प्रयोग से मिट्टी में 35-40 किलोग्राम नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर स्थिर हो जाती है। एजोटोबैक्टर का प्रयोग मिट्टी के उपचार, रोपाई एवं बीजों के उपचार के लिए किया जाता है। एजोटोबैक्टर के प्रयोग से लगभग 10-15 किलोग्राम तक नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर नाइट्रेट में परिवर्तित होकर पौधों को मिल जाती है। इसके इस्तेमाल से फसल का उत्पादन भी लगभग 10-20 % तक बढ़ जाता है।

एजोस्पिरिल्लुम (Azospirillum)
बैक्टैरिया और नीले हरे शैलाव जैसे कुछ सूक्ष्म जीवों में वायुमंडलीय नाइट्रोजन का उपयोग करने और फसली पौधों को इस पोषक तत्व को उपलब्ध कराने की क्षमता होती है।यह खाद मक्का, जौ, जई और ज्वार चारा वाली फसलों के लिए एक टिका है।इसे फसल उत्पादन की क्षमता 10 से 20 प्रतिशत बढ़ जाती है।बाजरा की उत्पादन क्षमता 30 और चारा वाली फसलों की 50 प्रतिशत तक बढ़ सकती है.

एसीटोबैक्टर
यह जीवाणु गन्ने की फसल में नाइट्रोजन स्थिरीकरण में सहायक है। एसीटोबैक्टर से मिट्टी की उर्वरा शक्ति का विकास होता है। यह रासायनिक खाद के प्रयोग को कम करता है। यह गन्ने व चुकंदर की फसल में उत्पादन वृद्धि के साथ-साथ उसमें शर्करा की मात्रा को भी बढ़ाता है।

फास्फेट विलयकारी जैव उर्वरक (PSB)
फास्फेट विलयकारी जैव उर्वरक मिट्टी के अंदर की अघुलनशील फास्फोरस को घुलनशील फास्फोरस में परिवर्तित पौधों को उपलब्ध करता है, इसका उपयोग सभी फसलों में किया जा सकता है, यह फास्फोरस की कमी को पूरा करता है फास्फोरस विभिन्न कार्बनिक एवं अकार्बनिक यौगिकों के रूप में मिलता है, परन्तु पौधे इस फास्फोरस का उपयोग नहीं कर पाते हैं। पौधों द्वारा फास्फोरस का अवशोषण मुख्य रूप से प्राथमिक ओर्थोफास्फेट आयरन के रूप में होता है।
    फास्फेट विलयकारी सूक्ष्म जीवों से निर्मित इस जैव उर्वरक में जीवाणु मिट्टी में मौजूदा अघुलनशील फास्फेट को घुलनशील बनाकर पौधों तक पहुंचाते हैं क्योंकि फास्फेट का लगभग 70-80 प्रतिशत भाग मिट्टी में स्थिर हो जाने के कारण यह पौधों तक नहीं पहुच पाता है। इस जैव उर्वरक से मृदा उपचार तथा बीजोपचार करने पर यह मिट्टी में मौजूदा अघुलनशील फास्फेट को घुलनशील फास्फेट में बदलकर पौधों की जड़ों तक पहुँचता है जो अवशोषित कर लिया जाता है। इन जैव उर्वरकों का प्रयोग मृदा उपचार, बीज उपचार, कंद उपचार तथा रोपाई के लिए किया जाता है।

नील-हरित शैवाल (BGA)
नील-हरित शैवाल प्रकाश संषलेषी सूक्ष्म जीव होते है, जो नाइट्रोजन के स्थितिकरण में सहायक हैं। नील-हरित शैवाल को “सायनोबैक्टरिया” भी कहा जाता है। चावल के लिए बायो फ़र्टिलाइज़र के रूप में नीले हरे शैलाव का उपयोग बहुत ही लाभदायक है।यह चावल के लिए यह नाइट्रोजन और पोषक तत्वों का भंडार है, और यह मिट्टी की क्षारीयता को भी कम करने में मदद करता है।सूक्ष्म जीव गुणात्मक रूप से जीवाणु वर्ग से अधिक विशिष्ठ होता है। इसलिए ये सायनोबैक्टरिया कहलाते हैं। सभी नील-हरित शैवाल नाइट्रोजन के स्थितिकरण में सहायक नहीं होते हैं। मिट्टी में पाई जाने वाली नील-हरित शैवाल प्रजातियाँ बड़े आकार की तथा संरचना में जटिल होती हैं।

एजोला
एजोला का प्रयोग धान की फसल में किया जाता है। एक एकड़ खेत के लिए पौध रोपने के 15 दिन बाद पानी लगाकर उसमें लगभग 10 किलोग्राम एजोला डाल देते हैं। इसके बाद खेत का पानी निकालकर इसे मिट्टी में अच्छी तरह से मिला देते हैं। खेत में दुबारा पानी लगाने पर एजोला के बीज में अंकुरण प्रारंभ हो जाता है, जो कि आगामी फसल के लिए लाभप्रद होता है, देश के अनेक भागों में एजोला का प्रयोग धान की फसल में हरी खाद के रूप में किया जाता है। यह नाइट्रोजन के स्थिरीकरण में सहायक है। जिसके फलस्वरूप धान में वृद्धि होती है।




बायो फ़र्टिलाइज़र जैव उर्वरकों की प्रयोग विधि (Method of Uses of Bio Fertilizer)

(i) बीज उपचार विधि (Seeds Treatment Method)
बायो फ़र्टिलाइज़र के प्रयोग की यह सबसे अच्छी विधि है।1 लिटर पानी मे लगभग 100 से 110 ग्राम गुड़ के साथ जैव उर्वरक अच्छी तरह मिलकर घोल बना ले, इसको 20 किलोग्राम बीज पर अच्छी तरह छिड़क कर बीजों पर इसकी परत बना दे, इसके बाद इसको छायादार जगह पर सुखा दे, जब बीज अच्छे से सुख जाए उसके तुरंत बाद इसकी बिजाई कर दे।

(ii) कंद उपचार विधि (Tuber Treatment Method)
गन्ना, आलू, अरबी और अदरक जैसी फसलों में बायो फ़र्टिलाइज़र के प्रयोग के लिए कन्धों को उपचारित किया जाता है। 1 किलोग्राम एजोटोवेक्टर और 1 किलोग्राम फास्फोरस विलायक जीवाणु का 25 से 30 लिटर पानी में घोल तैयार कर ले, इसके बाद कन्दों को 10 से 15 मिनट घोल में दूबों दे और फिर निकाल का रोपाई कर दे।

(iii) पौध जड़ उपचार विधि (Plant Root Treatment Method)
धान और सब्जी वाली फसलें जिनके पौधे की रोपाई की जाती है जैसे टमाटर, फूलगोभी, पत्तागोभी और प्याज इत्यादि फसलों में पौधों की जड़ों को जैव उर्वरकों द्वारा उपचारित किया जाता है।इसके लिए चौड़ा और खुला बर्तन ले अब इसमें 6 से 8 लिटर पानी ले, 1 किलोग्राम एजोटोबैक्टर और 1 किलोग्राम फास्फोरस विलायक जीवाणु व 250 से 300 ग्राम गुड़ मिलाकर घोल बना ले।इसके बाद पौध को उखाड़ कर उसकी जड़े साफ कर ले और को 70 से 100 पौधों के बंडल बना ले और अब उनको जैव उर्वरक के घोल में 10 से 15 मिनट के लिए डुबो दे और निकाल कर तुरंत रोपाई कर देते है।

(iv) मिट्टी उपचार विधि (Soil Treatment Method)
5 से 10 किलोग्राम बायो फ़र्टिलाइज़र फसल के अनुसार, 80 से 100 किलोग्राम मिट्टी या कम्पोस्ट खाद का मिश्रण कर के 10 से 12 घंटे के लिए छोड़ दे, इसके बाद अंतिम जुताई में खेत में मिला दे।

जैविक उर्वरकों के उपयोग से लाभ

1.इनके प्रयोग से उपज में लगभग 15-20 प्रतिशत की वृद्धि होती हैं ।

2.यह रसायनिक खादों विशेष रुप से नाइट्रोजन और फास्फोरस की जरुरत का 20-25 प्रतिशत तक पूरा करते हैं ।

3. मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ ह्यूमस में वृद्धि, मिट्टी की भौतिक और रासायनिक स्थिति में सुधार होता है।

4. इनके प्रयोग से अंकुरण शीघ्र होता है तथा कल्लों की संख्या में वृद्धि होती है ।

5. जमीन की उर्वरा शक्ति को बढ़ाते हैं ।

6. मिट्टी की क्षारीय स्थिति में भी सुधार देखने को मिलता है।

7. मृदा में कार्बनिक पदार्थ (ह्यूमस) की वृद्धि तथा मृदा की भौतिक एवं रासायनिक दशा में सुधार होता हैं ।

8. इनके प्रयोग से अच्छी उपज के अतिरिक्त गन्ने में शर्करा की, मक्का व आलू में स्टार्च तथा तिलहनों में तेल की मात्रा में वृद्धि होती है।

जैविक उर्वरकों के प्रयोग में सांवधानियां

1. बायो फ़र्टिलाइज़र को हमेशा छायादार स्थान पर रखें ।

2. फसल के अनुसार ही जैव उर्वरक का चुनाव करे नही तो उत्पादन प्रभावित हो सकता है।

3. उचित मात्रा का प्रयोग करें ।

4. जैव उर्वरक खरीदते समय उर्वरक का नाम बनाने की तिथि व फसल का नाम इत्यादि ध्यान से देख लें ।

5. जैव उर्वरक का प्रयोग समाप्ति की तिथि के पश्चात न करें ।