छत्तीसगढ़ के खैरागढ़ विकासखंड के ग्राम करमतरा के एक युवा किसान राकेश साहू जो दो साल पहले ही बस्तर के शहीद गुंडाधुर कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केन्द्र से अपनी कृषि की पढ़ाई पूर्ण कर गांव लौटे हैं। राकेश साहू पढ़ाई के बाद गांव में ही रह कर अपने गांव तथा अपने आस पास के किसानों के खेती में लागत तथा श्रम को कम करने के लिए नए-नए तकनीक तथा नए- नए पहल कर रहे हैं। उन्होंने अपने क्षेत्र में एक नई फसल ग्रीष्मकालीन मूंग से किसानों को अवगत कराया। वे पिछले साल अपने खेत मे सोयाबीन के बाद चना तथा चना के बाद तीसरी फसल ग्रीष्मकालीन मूँग लगाए तथा कुछ खेत मे धान- चना के बाद तीसरी फसल में मूँग लगाए जिसका प्रति सप्ताह अपने गांव तथा अपने आस-पास के किसानों को भर्मण करते थे, जिससे बाकी किसान प्रभावित हो कर इस साल बहुत से किसानो ने ग्रीष्मकालीन मूँग की खेती अपनाये जिससे किसान अपने खाली समय का उपयोग कर अतिरिक्त आय प्राप्त किये।
    राकेश साहू से पता चला कि इस साल उनके क्षेत्र में उनके माध्यम से 232 एकड़ में मूंग की खेती को किसान अपनाये है तथा जो किसान ग्रीष्मकालीन धान की खेती करते है उनको भी आने वाले साल में मूंग की खेती करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। आस-पास के लोग इन्हें युवा किसान , कृषि वैज्ञानिक तथा प्रगतिशील किसान के नाम से भी पुकारते हैं। राकेश साहू अभी एक साल में एक ही खेत मे चार फसल लेने के लिए काम कर रहे हैं। वे बताते है कि इस साल वे अपने खेत मे चार फसल लगाए हैं-
  • पहला फसल धान का जो 90-110 दिन में तैयार हो जाता हैं।
  • दूसरा फसल चने या गेहू का जो 110-120 दिनों में पक जाते हैं।
  • तीसरा ग्रीष्मकालीन मूँग या उड़द जो 65-70 दिनों में तैयार हो जाते हैं।
  • चौथा हरी खाद के लिए सनई या ढेंचा जिसको 35-40 दिनों बाद खेत मे मिला कर फिर से धान लगा दिया जाता हैं।
इस पूरी फसल के लिए 230 से 240 दिन लगते हैं तथा खेत तैयार करने के लिए आप के पास हर फसल के बाद 4-5 दिनों का समय भी मिलता हैं।


राकेश साहू इस सघन फसल प्रणाली के लाभ भी गिनाये-

1. किसान को साल भर अपने ही खेत मे रोजगार मिलेगा।
2. एक साल में एक एकड़ से 80 हजार से 1 लाख रुपये का आय प्राप्त होगा।
3. जितनी पानी के उपयोग कर किसान ग्रीष्मकालीन धान लगते है उतने ही पानी मे वे रबी में चना, ग्रीष्मकालीन मूंग तथा हरीखाद के लिए सनई की खेती सफलतापूर्वक कर सकते हैं।
4. इस सघन फसल प्रणाली में मृदा की उपजाऊ सक्ति में भरपूर वृद्धि होती है, जिससे किसानों की रसायनिक खाद पे निर्भरता कम हो जाती हैं।
5. इस फसल प्रणाली से देश को दाल के लिए आत्मनिर्भर बनाया जा सकता हैं।

इस सघन फसल प्रणाली की कुछ सीमाएं भी हैं-

1. किसान के पास स्वयं का ट्रैक्टर तथा खेत तैयार करने के कृषि यंत्र होना चाहिए।
2. खेत मे पानी की व्यवस्था होनी चाहिए।
3. जानवरो से बचाव के लिए खेत का घेरा होना चाहिए।

युवा किसान राकेश साहू ने जो पढ़ाई किया है उसका उपयोग कर अपने क्षेत्र के किसानों के लिए बहुत ही सराहनी कार्य किया है।
    इनके द्वारा सुझाये गए सघन कृषि प्रणाली को अपनाने से निश्चित रूप से किसानों की आय में बढोतरी होगी तथा कृषि लागत में कमी आएगी।
*डॉ. बी.एस. राजपुत
समन्वयक कृषि विज्ञान केंद्र राजनांदगांव*