मध्य प्रदेश के उज्जैन जिले के विक्रमपुर गांव में रहने वाले वीरेंद्र गुज्जर 25 एकड़ में सोयाबीन की खेती करते हैं. वह बताते हैं कि सोयाबीन की पूरी खेती में 72 हजार से एक लाख तक की लागत लग जाती है. अगर सोयोबीन की खेती अच्छी हुई और भाव अच्छा हुआ तो वह 25 एकड़ की फसल से तकरीबन 10 लाख तक सालाना निकाल लेते हैं.
वह ये भी बताते हैं कि पिछले दो सालों में लॉकडाउन और मौसम की वजह से उनका मुनाफा काफी हद तक कम हो गया है, लेकिन समान्य समय होने पर ये मुनाफा फिर से बढ़ जाएगा.

भारत में सोयाबीन की खेती अधिकतर मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, कर्नाटक राजस्थान एवं आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में सबसे अधिक की जाती है. तिलहन श्रेणी के अंतर्गत आने वाले इस फसल को सरकार की तरफ से भी लगातार बढ़ावा दिया जा रहा है. मध्य प्रदेश जैसे राज्य तो इसकी खेती पर अनुदान भी देते हैं. वहीं केंद्र सरकार ने इंदौर शहर में भारतीय सोयाबीन अनुसन्धान केंद्र की स्थापना की है, जहां सोयाबीन को लेकर विभिन्न प्रकार की रिसर्च की जाती है और खेती के उन्नत तरीकों के बारे में बताया जाता हैं.

सोयाबीन प्रोटीन का सबसे महत्वपूर्ण स्रोत माना जाता है. इसकी खेती के लिए चिकनी दोमट भूमि अधिक उपयुक्त होती है. इसके अलावा इस फसल को उन खेतों में लगाना चाहिए जहां जलनिकासी की व्यवस्था काफी बेहतर हो, क्योंकि पानी लगने से सोयाबीन की फसल खेतो में ही खड़े-खड़े खराब हो जाती है.

जुलाई का महीना सोयाबीन की फसल लगाने का सबसे उपयुक्त समय मना जाता है. एक एकड़ में तकरीबन जुलाई के प्रथम सप्ताह के बाद बीज बोने की दर 5-10 प्रतिशत बढ़ा देना चाहिए. इस दौरान इस बात का खास ख्याल रखा जाना चाहिए कि एक कतारों से दूसरे कतारों की दूरी 30 से.मी. हो. वीरेंद्र बताते हैं कि एक एकड़ की फसल में तकरीबन 60 किलो बीज की आवश्यकता होती है. बीज लगाने के तीन महीने बाद ये फसल तैयार होकर खड़ी हो जाती है, फिर आप इसकी कटाई कर सकते हैं.

सोयाबीन की खेती से एक और फायदा है कि इसके साथ आप अरहर, ज्वार, मक्का, तिल आदि जैसे अंतरवर्तीय फसलों को भी लगा सकते हैं. जिससे किसानों की सोयाबीन की फसल की लागत निकल आएगी, किसानों की आय बढ़ाने में भी काफी सहायक होगी. किसानों की आय दोगुनी हो, इसके लिए सरकारें फसलों के साथ अंतरवर्तीय फसलों की खेती को बढ़ावा दे रही है.

सौजन्य:- आजतक