शुभी सिंह (पी एच.डी. स्कॉलर)
कृषि अर्थशास्त्र विभाग,
शुभम पांडेय (पीएचडी स्कॉलर)
फॉर्म मशीनरी एवं शक्ति विभाग
इंदिरा गाँधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर (छ.ग.)

कोरोना काल में कृषि ने अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है, जिसमें मुख्यतः ग्रामीणों को मानसून में आय के लिए मुख्य स्त्रोत के रूप में “पुटू’ का विशेष योगदान है, बाज़ार की उच्च मांग होने पर ग्रामीणों को अच्छी रकम प्राप्त हो रही है , इसमें उपस्थित बहुत से पोषक तत्व से लोगों की रोग प्रतिरक्षा तंत्र सुदृढ़ हो रही है ।
    प्राकृतिक स्रोत से प्राप्त छत्तीसगढ़ की स्पेशल पुटू (बोड़ा) जो बाजार में चिकन और पनीर से भी महंगी है, बारिश के आते ही सरगुजा, कोरिया, बस्तर के हर किचन की सबसे प्रमुख डिश अगर कोई होती है, तो वह है “पुटू” ।


    छत्तीसगढ़ के अलावा यह भारत में झारखंड, उत्तराखंड ,बंगाल और उड़ीसा में होता है इसमें सामान्य मशरूम से ज्यादा पोषक तत्व पाए जाते हैं ।

इसे अन्य नामों से भी जाना जाता है 
बस्तर और मध्य छत्तीसगढ़ में इसे बोड़ा,उत्तरी छत्तीसगढ़ में यह पुटू ,पूर्वी भाग में पटरस पुटू, झारखण्ड में रुगड़ा व अन्य जगह अंडर ग्राउंड मशरूम, इनके अलावा पफ़वॉल्व, पुटकल नाम से भी जाना जाता है ।

मशरूम की प्रजाति है पुटू
पुटू मशरूम की ही प्रजाति है, इसमें अंतर यह है कि यह जमीन के अंदर पाया जाता है, इसकी १२ से अधिक प्रजातियां हैं जिसमें सफेद रंग की प्रजाति को सर्वाधिक पौष्टिक माना जाता है।


    मशरूम की प्रजाति का यह बोड़ा पुटू दिखने में छोटे आकार के आलू की तरह होता है, आम मशरूम के विपरीत यह जमीन के भीतर पैदा होते हैं, वह भी हर जगह नहीं बल्कि साल के वृक्ष के नीचे पाए जाने वाली दरारों में पानी पढ़ते ही पनपना शुरू हो जाता है, दरअसल यह एक प्रकार का माइक्रोलॉजिकल फंगस है जो साल की जड़ो से उत्सर्जित केमिकल से विकसित होता है और साल की गिरी सूखी पत्तियों पर जीवित रहता है।
    मानसून आगमन पर यह ज़मीन की उपरी सतह पर उभर जाता है जिसे कुरेद कर निकला जाता है, इसके बाद ग्रामीण इन्हें एकत्र करके बेचते हैं। शुरु में निकलने वाला गहरी रंगत का बोड़ा “जात बोड़ा” कहलाता है, जबकि महीने भर बाद इसकी ऊपरी परत नरम होने के साथ सफ़ेद होती जाती है , तब इसे “लाखड़ी बोड़ा” कहते है।



पोषकतत्त्व का अच्छा स्त्रोत
बोड़ा(पुटू) सेलुलोज और कार्बोहाइड्रेट का अच्छा स्त्रोत है, इसके अलावा प्रोटीन , वसा, फाइबर, जिंक और लौह तत्व से परिपूर्ण है। बोड़ा अपने आयुर्वेदिक गुणों के लिए भी जाना जाता है, यह ब्लड प्रेसर और दिल के मरीजों के लिए वरदान की तरह है। इनमें विटामिन बी,डी,पोटैशियम,कॉपर, और सेलेनियम प्रयाप्त मात्रा में होती है । इसके अलावा Choline नाम का एक खास तत्व पाया जाता है ,जो माँसपेशियों की सक्रियता और याददाश्त को बरकरार रखने में बेहद फायेदेमंद रहता है।

पोषक तत्व

पोषक मूल्य

पानी

89.61 ग्राम

कैलोरी

31 कैलोरी

कार्बोहाइड्रेट

5.10 ग्राम

वसा

0.57 ग्राम

प्रोटीन

3.12 ग्राम

शुगर

0.60 ग्राम

फाइबर

2.8 ग्राम




मशरूम के नुकसान 
मशरूम (कुकुरमुत्ता) के फायदे तब तक ही हैं, जब तक उसे उचित मात्रा और सही जानकारी के साथ खाया जाए। इसे असंतुलित मात्रा में खाने से कुछ नुकसान हो सकते हैं, जो इस प्रकार हैं:
  • कुछ मशरूम में जहरीला प्रभाव होता है, जिस कारण ये जानलेवा साबित हो सकते हैं ।
  • फंगस लगे मशरूम को नहीं खाना चाहिए, यह स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है ।
  • कई दिनों से रखे हुए मशरूम का सेवन न करें। कई मशरूम बेहद कम समय के लिए खाने योग्य होते हैं। उनमें जल्दी कीड़ा या फंगस लग जाती है ।
*सरगुजा जिले में कही कही इसके नुकसान में डायरिया होने का कारण पुटू को ही माना जाता है।



ग्रामीणों का बरसात में आय का मुख्य स्त्रोत
मुख्यता आदिवासियों का जंगलों पर आश्रित वन संपदाओं में बोड़ा भी प्रमुख रूप से आता है, जिसे वो बेचकर अपने जीवन यापन करते है, बाजार में यह 400-1000 रूपए किलो के भाव में बिकता है जिससे यह बरसात में ग्रामीणों के आय का अच्छा स्त्रोत बन जाता है । प्राकृतिक रूप से अधिक पोषक तत्व पाए जाते है इसलिए लोग इसे मुह मांगे दम पर खरीद लेते है।