द्रोणक कुमार साहू (पीएचडी स्कालर, कृषि अर्थशास्त्र)
गरिमा दीवान (पीएचडी स्कालर, सब्जी विज्ञान विभाग)
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर (छ.ग.)

लोबिया एक पौधा है जिसकी फलियाँ पतली, लम्बी होती हैं। इनकी सब्ज़ी बनती है। इस पौधे को हरी खाद बनाने के लिये भी प्रयोग में लाया जाता है। लोबिया एक प्रकार का बोड़ा है। इसे 'चौला' या 'चौरा' भी कहते हैं। यह सफेद रंग का और बहुत बड़ा होता है। इसके फल एक हाथ लंबे और तीन अंगुल तक चौड़े और बहुत कोमल होते हैं और पकाकर खाए जाते हैं।

किस्में 
पूसा कोमल, पूसा सुकोमल, अर्का गरिमा, नरेन्द्र लोबिया, काशी गौरी तथा काशी कंचन

जलवायु
लोबिया की खेती के लिए गर्म व आर्द्र जलवायु उपयुक्त हे। तापमान 24-27 डिग्री से. के बीच ठीक रहता है । अधिक ठेडे मौसम में पौधों की बढ़वार रुक जाती है।

भूमि
लगभग सभी प्रकार की भूमियों में इसकी खेती की जा सकती है। मिट॒टी का पी.एच. मान 5.5 से 6.5 उचित है। भूमि में जल निकास का उचित प्रबंध होना चाहिए तथा क्षारीय भूमि इसकी खेती के लिए उपयुक्त नहीं है।

बीज दर
साधारण्तया 12-20 कि.ग्रा. बीज/हेक्टेयर की दर से पर्याप्त होता है। बीज की मात्रा प्रजाति तथा मौसम पर निर्भर करती है। बेलदार प्रजाति के लिए बीज की कम मात्रा की आवश्यकता होती है।

बुवाई का समय
वर्षा के मौसम में इसकी बुवाई जून अंत से जुलाई माह में तथा गर्मी के मौसम में फरवरी-मार्च में  की जाती है।

बुवाई की दूरी
झाड़ीदार किस्मों के बीज की बुवाई के लिए पंक्ति से पंक्ति की दूरी 45-60 सें.मी. तथा बीज से बीज की दूरी 10 सें.मी. रखी जाती है तथा बेलदार किस्मो के लिए पंक्ति से पंक्ति की दूरी 80-90 सें.मी. रखते हैं। बुवाई से पहले बीज का राजजोबियम नामक जीवाणु से उपचार कर लेना चाहिए। बुवाई के समय भूमि में बीज के जमाव हेतु पर्याप्त नमी का होना बहुत आवश्यक है।

उर्वरण व खाद
गोबर या कम्पोस्ट की 20-25 टन मात्रा बुवाई से 1 माह पहले खेत में डाल दें। लोबिया एक दलहनी फसल है इसलिए नत्रजन की 20 कि.ग्रा., फास्फोरस 60 कि.ग्रा. तथा पोटाश 50 कि.ग्रा./ हेक्टेयर खेत में अंतिम जुलाई के समय मिट॒टी में मिला देना चाहिए तथा 20 कि.ग्रा. नत्रजन की मात्रा फसल में फूल आने पर प्रयोग करें।

खरपतवार नियंत्रण  
दो से तीन निराई व गुड़ाई खरपतवार नियंत्रण के लिए करनी चाहिए। रासायनिक खरपतवार नियंत्रण के लिए स्टाम्प 3 लिटर/हेक्टेयर की दर से बुवाई के बाद दो दिन के अन्दर प्रयोग करें।

तुड़ाई
लोबिया की नर्म व कच्ची फलियों की तुड़ाई नियमित रुप से 4-5 दिन के अंतराल में करें। झाड़ीदार प्रजातियों में 3-4 तुड़ाई तथा बेलदार प्रजातियों

उपज
हरी फली की झाड़ीदार प्रजातियों में उपज 60-70 क्विंटल तथा बेलदार प्रजातियों में 80-100 क्विंटल हो सकती है। बीजोत्पादन : लोबिया के बीज उत्पादन के लिए गर्मी का मौसम उचित है क्योंकि वर्षा के मौसम में वातावरण के अंदर आर्द्रता ज्यादा होने से फली के अंदर बीज का जमाव हो जाने से बीज खराब हो जाता है। बीज शुद्धता बनाए रखने के लिए प्रमाणित बीज की पृथक्करण दूरी 5 मी. व आधार बीज के लिए 10 मी. रखें। बीज फसल में दो बार अवांछित पौधों को निकाल दें। पहली बार फसल के फूल आने की अवस्था में तथा दूसरी बार फलियों में बीज से भरने की अवस्था पर पौधे तथा फलियों के गुणों के आधार पर अवांछित पौधों को निकाल दें। समय-समय पर पकी फलियों की तुड़ाई करके बीज अलग कर लेने के बाद उन्हें सुखाकर व बीमारी नाशक तथा कीटनाशी मिलाकर भंडारित करें।

बीज उपज
5-6 क्विंटल/हेक्टेयर

प्रमुख रोग एवं नियंत्रण

रोग

लक्षण

नियंत्रण

जीवाणुज अंगमारी (जैन्थोमोनास कैम्पेस्ट्रिस विग्नीकोला)

रोग संक्रमित बीजों से निकलने वाले पौधों के बीज पत्रों एवं नई पत्तियों पर रोग के लक्षण सर्वप्रथम दिखाई पड़ते हैं। इस रोग के कारण बीज पत्र लाल रंग के होकर सिकुड़ जाते हैं। नई पत्तियों पर सूखे धब्बे बनते हैं। पौधों की कलिकाएँ नष्ट हो जाती है और बढ़वार रुक जाती है। अन्त में पूरा पौधा सूख जाता है।

* रोगी पौधो के अवशेषों को नष्ट कर देना चाहिए।

* जल निकास का अच्छा प्रबंध होना चाहिए।

* दो वर्षों का फसल चक्र अपनाना चाहिए।

* उपचारित बीज का प्रयोग करना चाहिए तथा उन्नत कृषि विधियाँ अपनानी चाहिए|

* खड़ी फसलों में कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 3 कि. ग्रा. एक हजार लिटर पानी में घोल बनाकर प्रति हैक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए।

लोबिया मोजैक (मोजैक विषाणु)

रोगी पत्तियाँ हल्की पीली हो जाती है । इस रोग में हल्के पीले तथा हरे रंग के दाग भी बनते हैं। रोग की उग्र अवस्था में पत्तियों का आकार छोटा हो जाता है और उन पर फफोले सदृश उभार आ जाते हैं । रोगी फलियों के दाने सिकुड़े हुए होते हैं तथा कम बनते हैं।

* रोगी पौधो को उखाड़ कर नष्ट कर देना चाहिए।

* स्वस्थ तथा अच्छे पौधों से प्राप्त बीज को ही बीज उत्पादन के काम मे लाना चाहिए|

* कीटनाशी जैसे मेटासिस्टॉक्स (ऑक्सी मिथाइल डेमेटॉन) एक मि.लि. या डायमेक्रान (फॉज्ञफेमिडान) आधा मि.लि. प्रति लिटर पानी के हिसाब से घोल बनाकर 15-15 दिन के अंतराल पर छिडकाव करना चाहिए।