- एस आर आई पद्धति में 21 दिन के बाद पौधा रोपा जाता हैं जिसमें जड बनने से ज्यादा ऊर्जा नष्ट हो जाती हैं। श्री विधि में पौध 8 से 12 दिन की रोपाई की जाती हैं। जिससे पौधे की जडे फैलाने एवं वृद्धि के लिए पर्याप्त समय एवं ऊर्जा प्राप्त होती हैं।
- पौध रोपाई के समय एवं रोपाई के बाद खेत में पानी भरा नही रहता हैं।
- पौध को सीडलिंग सहित उखाडकर तुरंत रोपाई की जाती हैं, जिससे पौध में ओज बना रहता हैं, पौधे शीघ्र वृद्धि करते हैं।
- पौधे से पौधे एवं कतार से कतार की दूरी 25 सेन्टीमीटर रखी जाती हैं, जिससे प्रकाश, वायु एवं पोषक तत्वों का संचार ठीक से होता हैं, जडो का अधिक फैलाव, पौधे में अधिक कन्से अच्छी वृद्धि के लिए पर्याप्त स्थान होता हैं।
- पौधे में पोषक तत्वो के सामान रुप से विवरण एवं वायु संचार अच्छा होने से पौधे स्वस्थ्य एवं निरोग रहते हैं।
- जिन क्षेत्रो में सिंचित धान की खेती होती हैं वह भूमि उपयुक्त होती है।
- सिंचाई की पर्याप्त व्यवस्था होनी चाहिए।
- समतल भूमि जहां पानी नही भरता हो।
- अधिक उपज देनी वाली उन्नत या संकर किस्मों का चयन करना चाहिए।
- कम या मध्यम समयावधी 100 सें 125 दिन में पकने वाली किस्में।
- एक एकड क्षेत्र के लिए 2 से 2.5 किलो ग्राम बीज पर्याप्त होता हैं।
- छह लीटर पानी में 1.5 से 2 कि.ग्रा. नमक डालें जब तक मुर्गी का अण्डा पानी पर ऊपर तैरने ना लगे।
- बीज को पानी में भिगोने पर जो बीज ऊपर तैरने लगे ,उसे निकाल कर अलग कर दें।
- बेविस्टिन 5 ग्राम प्रति किलो ग्राम बीज के हिसाब से उपचारित करें।
- एजेक्टोबेक्टर 5 ग्राम एवं पीएसबी ग्राम प्रतिकिलो ग्राम बीज के हिसाब से उपचारित करें।
- एक एकड़ खेत के लिए 30 × 5 फीट की 6 बीज सैय्या या 10× 01 मीटर एक चैड़ी क्यारी बनायें । इसे 6 बराबर भागों में बांट दें। प्रत्येक क्यारी के बीच में 15 सेन्टीमीटर की नाली बनायें।
- बीज सैय्या खेत से 15 सेन्टीमीटर ऊंची बनायें।
- प्रत्येक क्यारी में दो से तीन टोकरी गोबर केंचूवा खाद मिलायें।
- उपचारित बीज को 6 बराबर भागों मंे बांट कर प्रत्येक क्यारी में समान रूप से फैला देवें।
- बीज को गोबर या केचूंवा के बारीक भुरभुरी खाद की पतली परत से ढक दें।
- रोपणी की बोनी के उपरांत प्रथम सिंचाई हजारा से करें।
- खेत की मिट्टी का परीक्षण करायें।
- ग्रीष्म कालीन गहरी जोताई करायें।
- खेत में हरी खाद का उपयोग करें।
- खेत को परपंरागत तरीके से तैयार कर भुरभुरा एवं समतल कर लें।
- खेत की तैयारी से 15 दिन पूर्व 6 से 8 टन गोबर या कम्पोस्ट खाद का उपयोग करें।
- 8 से 12 दिन की पौध जिसमें 2 पत्ती निकल आई है, रोपाई में उपयोग लाते है।
- पौधों को जड़ की मिट्टी एवं सिडलिंग सहित सावधानी से निकाल लें।
- पौधे समतल पात्र में रखकर लायें ताकि पौध क्षतिग्रस्त न हो। एवं बीज पौध से अलग न हो।
- रोपाई करते समय खेत गीला होना चाहिए। पानी भरा हुआ न हो।
- थरहा को सावधानीपूर्वक धीरे से रोपे।
- पौधे से पौधे एवं कतार की दूरी 25 सेन्टीमीटर रखें।
- एक पौधा प्रति हिल रोपे।
- पौध रोपाई की 15वीं कतार के बाद 16 वी कतार 45 सेन्टीमीटर की दूरी पर रखें।
- प्रति एकड़ नाईट्रोजन, फास्फोरस एवं पोटाष क्रमषः 40ः20ः10 किलोग्राम पर्याप्त होता है।
- नाईट्रोजन की आधी मात्रा फास्फोरस एवं पोटा्रश की पूरी मात्रा खेत की तैयारी के समय डाले।
- शेष नाईट्रोजन की आधी मात्रा कन्से कूटते समय एवं शेष आधी मात्रा गभोट अवस्था में डालें।
- खाद डालते समय खेत में पर्याप्त नमी होना चाहिए।
- पौध रोपण के बाद कम से कम दो बार कोनोवीडर चलाना चाहिए ।
- पौध रोपण के 7 से 10 दिन के अंतराल से कोनोवीडर से निंदाई करें।
- खेत में पानी भरा न रहने दें, परंतु नमी बनाये रखें।
- कन्से निकालते समय दो से चार दिन खेत सूखा छोड़ देना चाहिए जिससे सामान्य कन्से निकले।
- एक जगह पर प्रत्येक पौधे से 40 से 80 कन्से फूटते है, क्योंकि प्रत्येक कन्से को पर्याप्त जगह, सूरज की रोशनी तथा पोषण मिलता है।
- ठन 40 से 80 कन्सो से अच्छी विकसित बालियों निकलती है।
- एक एकड़ क्षेत्र से 20 से 25 क्विंटल उपज प्राप्त होती है।
विवरण |
खेत की लागत
(एक एकड़) |
|
पारंपरिक तरीका |
एसआरआई तरीका |
|
अवयव और संचालन |
||
जुताई |
1800 |
1800 |
बीज |
400 |
50 |
पुनर्रोपण |
1000 |
800 |
निंदाई,गोड़ाई |
1200 |
500 |
पौध संरक्षण रसायन |
800 |
400 |
कटाई और कुटाई |
2000 |
2000 |
कुल |
7200 |
5550 |
आय |
||
उपज (टन प्रति
एकड) |
2.24 |
2.80 |
सकल आय(1815/रू. प्रति क्विंटल की दर से ) |
40656 |
50820 |
शुद्ध आय |
33456 |
45270 |
छत्तीसगढ़ के किसान
श्री अमरसिंह पटेल
बिलासपुर के द्वारा
एसआरआई पद्धति से धान
रोपण से प्राप्त
लाभ -अमरसिंह पटेल
मुख्य रूप से
चांवल उपजाने वाले
किसान है, लेकिन
जाड़े एवं गरमी
में सब्जी भी
उगाते है। उनके
पास धान की
खेती करने योग्य
करीब 4 एकड़ खेत
है। जिसमें करीब
एक एकड़ जमीन
नदी के किनारे
है। इसकी सिंचाई
एक छिछले कुंए
से होती है।
शेष जमीन असिंचित
है। एक अच्छे
वर्ष में सिंचाई
करने के बाद
10 से 12 क्विंटल प्रति एकड़
धान उपजा लेते
है। वह उर्वरकों
का न्यूनतम उपयोग
करते है और
नियमित रूप से
खेतों के कचरो का ही उपयोग करते है।
उन्हे जन स्वास्थ्य सहयोग बिलासपुर के
कार्बनिक खेती कार्यक्रम
द्वारा 2006 में ग्रामीण
बैठको के दौरान
श्री पद्धति से
परिचय कराया गया
था। लेकिन जन
स्वास्थ्य सहयोग से बीज
लेने के बाद
वह परीक्षण से
बचते रहे। गाव
के दो किसान
के द्वारा पराक्षण
के उत्साहजनक परिणाम
मिलने के बाद
उन्होने 2007 में 0.12 एकड. की
अपनी जमीन पर
पहला परिक्षण किया।
उन्हाने डीआरके नामक उत्तम
किस्म का परिक्षण
करने का फैसला
लिया। जन स्वास्थ्य
सहयोग के खेती
कार्यक्रम से प्रशिक्षित
और परामर्श लेकर
वह एसआरआइ तरिके
का पूरी तरह
पालन करने में
सक्षम हुए। दो
बार निकाई - गूडाई
की गयी। जमीन
के समतलीकरण न
कियें जाने के
कारण फसल असमान
थी। इसके बावजूद
उत्पादन अच्छा रहा। अनुमानित
उत्पादन 3.2-3.5 टन प्रति
एकड हुआ। खाद
के रुप मे
केवल खेत के
कचडे के ही
उपयोग किया गया
और कोई कीटनाशक
का भी उपयोग
नही हुआ।
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