पशुओं से अधिकतम दुग्ध उत्पादन प्राप्त करने के लिए उन्हें पर्याप्त मात्रा में पौष्टिक चारे की आवश्यकता होती है। चारे को अधिकांशतः हरी अवस्था में पशुओं को खिलाया जाता है, जो पौष्टिक तत्वों से परिपूर्ण होता है। इसकी उपलब्धता पूरे वर्ष एक जैसी नहीं रहती। आवश्यकता से अधिक उपलब्ध चारे को सुखाकर भविष्य में उपयोग के लिए भंडारित कर लिया जाता है, ताकि चारे की कमी के समय उसका इस्तेमाल पशुओं को खिलाने के लिए किया जा सके। इस तरह से भंडारण करने से उसमें पोषक तत्व बहुत कम रह जाते हैं। इसी चारे का भंडारण यदि वैज्ञानिक तरीके से साईलेज के रूप में कर लिया जाये तो उसकी पौष्टिकता में कोई कमी नहीं आती तथा अभाव के दिनों में पशुओं को समुचित पौष्टिक आहार प्रदान किया जा सकता है।
हरे चारे को हवा की अनुपस्थिति में साईलो के अंदर रसदार परिरक्षित अवस्था में रखने से चारे में लैक्टिक अम्ल बनता है। यह हरे चारे का पी-एच कम कर कुछ समय बाद एक अचार की तरह बन जाता है और उसे सुरक्षित रखता है। इस सुरक्षित हरे चारे को साईलेज कहते हैं।
फसलों का चुनाव
दाने वाली पफसलें जैसे-मक्का, ज्वार, जई, बाजरा, आदि साईलेज बनाने के लिए उत्तम हैं। इनमें कार्बोहायड्रेट की मात्रा अधिक होती है। कार्बोहाइड्रेट की अधिकता से दबे चारे में किण्वन क्रिया तीव्र होती है। दलहनी फसलों का साईलेज अच्छा नहीं रहता।
फसल कटाई की अवस्था
दाने वाली पफसलें जैसे-मक्का, ज्वार, जई, बाजरा, आदि को साईलेज बनाने के लिए, जब दाने दूधिया अवस्था में हों तो काटना चाहिए। इस समय चारे में 65-70 प्रतिशत पानी रहता है, जिसे किसी मान्यता प्राप्त लैबोरेटरी में परीक्षण कर ज्ञात किया जा सकता है। अगर पानी की मात्रा अधिक है तो चारे को थोड़ा सुखा लेना चाहिए। फसल की कटाई का सही समय किसान अपने खेत में ‘ग्रैब टेस्ट’ विधि से भी ज्ञात कर सकते हैं। इस विधि में थोड़ी सी पफसल के छोटे-छोटे टुकड़े कर मुट्ठी से अच्छी तरह गेंद का आकार देते हुए 20-30 सेकेंड तक दबायें। अगर दबाने पर पानी नहीं निकलता और मुट्ठी खोलने पर गेंद धीरे-धीरे खुलती है तो समझना चाहिए पफसल साईलेज बनाने के लिए उपयुक्त है।
साईलो का चुनाव
साईलेज जिसमें बनाया जाता है, उसे साइलो कहते हैं, ये निम्न प्रकार के हैंः पिट, बंकर, टावर और प्लास्टिक बैग साइलो। मुख्यतः पिट और बंकर साइलो भारत में ज्यादा प्रचलित हैं। इनका आकार उपलब्ध चारे व पशुओं की संख्या पर निर्भर करता है। इन साइलों के लिए जगह का चुनाव बहुत महत्वपूर्ण हैः
- साइलो हमेशा ऊंचे स्थान पर बनाने चाहिए, जहां से वर्षा के पानी का निकास अच्छी तरह हो सके।
- भूमि में पानी का स्तर नीचे हो।
- साईलेज बनाने का स्थान पशुशाला के नजदीक हो।
बंकर साइलो
सही और ऊंचे स्थान का चयन कर आवश्यकतानुसार दो कंक्रीट के त्रिकोण आकार, दरारमुक्त, प्लेन और मजबूत दीवार बनाकर उसे ट्रैक्टर और लोडर के साथ पैक किया जाता है। बंकर की क्षमता तथा दीवार का आकार उपलब्ध चारे व पशुओं की संख्या पर निर्भर करता है, जो मुख्यतः सारणी-1 में दर्शाये गये हैं।
पिट साइलो
पिट साइलो बनाने के लिए सही स्थान का चयन कर पहले भूमि में आवश्यकतानुसार गड्ढे बनायें। गड्ढों के धरातल में ईंटों से तथा चारों ओर सीमेंट एवं ईंटों से भलीभांति चिनाई कर देनी चाहिए। जहां ऐसा संभव न हो सके वहां पर चारों ओर तथा धरातल की गीली मिट्टी से अच्छी तरह लिपाई कर देनी चाहिए। इनके साथ सूखे चारे की एक तह लगा देनी चाहिए या चारों ओर दीवारों के साथ पाॅलीथीन लगा दें।
साइलो को भरना तथा बन्द करना
जिस चारे का साईलेज बनाना है, उसे काटकर थोड़ी देर के लिए खेत में सुखाने के लिए छोड़ देना चाहिए। जब चारे में नमी 65-70 प्रतिशत के लगभग रह जाये तो उसे कुट्टी काटने वाली मशीन से छोटे-छोटे (आधा से एक इंच) टुकड़ों में काटकर पिट या बंकर साइलो में अच्छी तरह दबाकर भर देना चाहिए। छोटे साइलो को पैरों से दबा सकते हैं, जबकि बड़े साइलो ट्रैक्टर चलाकर दबा देने चाहिए। साइलो ऊपरी सतह से लगभग एक मीटर ऊंचा ढेर तक भराई करते रहना चाहिए। भराई के बाद इसे ऊपर से गुम्बदाकार बना दें और पाॅलीथीन या सूखे घास से ढककर मिट्टी अच्छी तरह दबा दें और ऊपर से लिपाई कर दें, ताकि इसमें बाहर से पानी तथा वायु आदि न जा सके।
साइलो को खोलना
साइलो भरने के 45 दिनों या उसके बाद इसे खोलना चाहिए। खोलते समय ध्यान रखें कि साईलेज एक तरपफ से परतों में निकाला जाए और साइलो का कुछ हिस्सा ही खोला जाए तथा बाद में उसे ढक दें। साइलो खोलने के बाद साईलेज को जितना जल्दी हो सके पशुओं को खिलाकर समाप्त करना चाहिए। गड्ढे के ऊपरी भागों और दीवारों के पास में फफूंदी लग जाती है। यह ध्यान रखें कि ऐसे साईलेज पशुओं को नहीं खिलाने चाहिए।
सारणी 1. बंकर साइलो का आकार एवं क्षमता
आकार, चौड़ाई× ऊंचाई× लंबाई
(फुट)
|
क्षमता, टन (65 प्रतिशत
नमी)
|
आकार, चौड़ाई× ऊंचाई नमी) × लंबाई
(फुट)
|
क्षमता, टन (65 प्रतिशत नमी)
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20 × 8 × 40
|
114
|
40 × 20 × 80
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1123
|
20 × 8 × 40
|
243
|
40 × 20 × 120
|
1763
|
20 × 12 × 40
|
163
|
40 × 20 × 160
|
2403
|
20 × 12 × 80
|
354
|
60 × 16 × 120
|
2154
|
40 × 12 × 80
|
711
|
60 × 12 × 160
|
2923
|
40 × 12 × 120
|
1097
|
60 × 16 × 200
|
3691
|
40 × 16 × 80
|
923
|
60 × 20 × 120
|
2643
|
40 × 16 × 120
|
1434
|
60 × 20 × 160
|
3606
|
40 × 16 × 160
|
1949
|
60 × 20 × 200
|
4566
|
साईलेज की गुणवत्ता
साईलेज की गुणवत्ता का परीक्षण किसी मान्यता प्राप्त लैबोरेटरी से करवाया जा सकता है, जिसके आधार पर बहुत अच्छा, अच्छा, साधारण या खराब के स्तर पर गुणवत्ता तय की जा सकती है। इसकी गुणवत्ता कछु मापदंडो पर निर्भर करती है, जो निम्नलिखित हैंः-
साईलेज गुणवत्ता
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स्वाद, रंग एवं गंध
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पी-एच.
|
नाइट्रोजन प्रतिशत
|
अन्य
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बहुत अच्छा
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हल्का अम्लीय, भूरा, पीला
एवं मीठा
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3.5-4.2
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10 प्रतिशत से कम
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ब्यूटायरिक अम्लमुक्त, फफूंद रहित
|
अच्छा
|
हल्का भूरा, अम्लीय
|
4.2-4.5
|
10-15 प्रतिशत
|
ब्यूटायरिक अम्ल 0.2 प्रतिशत से
कम
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साधारण
|
गाढ़ा भूरा, अम्लीय
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4.5-4.8
|
15-20 प्रतिशत
|
ब्यूटायरिक अम्ल, फफूंद के
अंश
|
खराब
|
काला, जला हुआ बदबूदार
|
>4.8
|
20 प्रतिशत से अधिक
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ब्यूटायरिक अम्ल, फफूंद आदि
बहुतायत मात्रा में
|
पशुओं को साईलेज खिलाना
सभी प्रकार के पशुओं को साईलेज खिलाया जा सकता है। एक भाग सूखा चारा और एक भाग साईलेज मिलाकर खिलाना चाहिए। यदि हरे चारे की कमी हो तो साईलेज की मात्रा बढ़ाई जा सकती है। साईलेज बनाने के 45-60 दिनों बाद इसे खिलाया जा सकता है। एक सामान्य पशु को 20-25 कि.ग्रा. साईलेज प्रतिदिन खिलाया जा सकता है। दुधारू पशुओं को साईलेज, दूध निकालने के बाद खिलायें ताकि दूध में इसकी गंध न आ सके। यह देखा गया है कि बढ़िया साईलेज में 85-90 प्रतिशत हरे चारे के बराबर पोषक तत्व होते हैं। इसलिए चारे की कमी के समय इसे खिलाकर पशुओं का दुग्ध उत्पादन बढ़ाया जा सकता है।
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