डाॅ.नूतन रामटेके, कृषि विज्ञान केन्द्र, राजनांदगांव

मुर्गीपालन आज के दौर मे व्यवसाय का रूप ले चुका है। बैकयार्ड कुक्कुट पालन का छत्तीसगढ़ ग्रामीण अर्थव्यवस्था में एक विशेष महत्व है। यह कृषकों के लिए आय एवं जीविकापार्जन का प्रमुख साधन बन गया है। मुर्गीपालन का व्यवसाय कम जगह कम खर्च पर किया जा सकता है। ऐसे किसान जिनके पास बहुत कम जमीन है व भूमिहीन मजदूर घर के पिछवाड़े में खुले बाड़े में कुक्कुट पालन कर लाभ कमा सकते है।


वनराजा

कड़कनाथ
बैकयार्ड कुक्कुट पालन के लाभ
  • ग्रामीण कृषकों एवं युवाओं को रोजगार के अवसर उपलब्ध करता है साथ ही महिलायें एवं बच्चे भी इस व्यवसाय को अपनाकर लाभ कमा सकते हैं।
  • कुक्कुट पालन आय के साथ साथ पौष्टिक आहार जैसे- मांस अंडा भी उपलब्ध करती है।
  • इस व्यवसाय में अधिक भूमि की आवश्यकता नहीं होती है अतः इसे भूमिविहीन कृषक भी अपना सकते है।
  • घर में बचे हुए अनाज, सब्जी आदि का उपयोग कुक्कुट आहार के रूप में किया जा सकता है। अतः कुक्कुट निम्न गुणवत्ता के आहार को खाकर उच्च गुणवत्ता वाले मांस एवं अंडे में बदल देती है।

बैकयार्ड कुक्कुट पालन हेतु विकसित उन्नत नस्लें
बैकयार्ड कुक्कुट पालन हेतु ग्रामीण कृषक देशी या स्थानीय मुर्गियों का चुनाव करते है जिनकी उत्पादन क्षमता बहुत कम होती है। अतः बैकयार्ड कुक्कुट पालन के लिए उन्नत नस्ल का चुनाव कर कृषक कम लागत में अधिक से अधिक लाभ कमा सकते है।

बैकयार्ड कुक्कुट पालन हेतु मुर्गियों में निम्नलिखित विशेषताएं होनी चाहिए:-
  • ग्रामीण परिवेश में आसानी से पाली जा सके।
  • शारीरिक बनावट अच्छी हो।
  • रोग प्रतिरोधक क्षमता हो।
  • मृत्यु दर कम हो।
  • अच्छा अंडा व मांस उत्पादन करने की क्षमता हो।
केन्द्रीय पक्षी अनुसंधान केन्द्र एवं कुक्कुट पालन परियोजना निदेशालय, हैदराबाद द्वारा कुक्कुट की विभिन्न नस्लें विकसित की गई है जैसेः कारीश्यामा, कारीनिर्भीक,कारीप्रिया,ग्रामप्रिया, वनराजा, आदि। इन मुर्गियों को घर के पिछवाड़े में पाल कर लाभ कमा सकते है। इन विकसित नस्लो की उत्पादन क्षमता अधिक होती है जिससे कृषक अधिक लाभ कमा सकते है।

बैकयार्ड पालन हेतु गृह व्यवस्था
बैकयार्ड पालन हेतु अलग से गृह व्यवस्था की जरूरत नहीं पड़ती। मुर्गियों को दिन में घर के बाड़े में छोड़ सकते है जिससे मुर्गियां घुमकर अपना भोजन प्राप्त कर सकें एवं रात्रि के लिए उचित आवास व्यवस्था हो जिससे मुर्गियों को जंगली जानवरों से बचाया जा सके साथ ही साथ बारिश एवं धुप में भी बचाव हो सके। उचित आवास व्यवस्था नहीं होने पर मुर्गियों के उत्पादन क्षमता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है, एवं मृत्युदर भी बढ़ जाता है। मुर्गियों के लिए आवास बनाने के लिए निम्नलिखित सावधानियां रखनी चाहिए -
  • मुर्गियों के घर की लम्बाई पूर्व-पश्चिम छायादार स्थान में होनी चाहिए, ताकि मुर्गियों को सीधी धुप से बचाया जा सके।
  • मुर्गियों के घर इस प्रकार हो कि सभी को उचित स्थान मिल सके।
  • जंगली जानवर एवं चुहों से बचाव हो सके।
  • आवास सस्ते एवं स्थानीय उपलब्ध वस्तुओं का बना हो।
  • आवास जमीन से 2 फीट ऊंचा हो जिससे आसानी से साफ किया जा सके।
  • आवास में बिछावन के लिए चावल की भूसी, गेहूं का भूसा बिछाया जा सकता है।

अंडे सेना 
ग्रामीण क्षेत्र की मुर्गियों खुद अंडों पर बैठकर उसे सेती है, लेकिन उन्नत नस्ल की मुर्गियों में यह गुण नहीं पाया जाता है। अतः ग्रामीण कृषक ऐसी देशी मुर्गी जिसमे बहुत अच्छी सेने का गुण हो का चयन कर उपयोग में ला सकते है।












चुजों का रखरखाव
प्रारंभिक अवस्था यानि 1 से 45 दिन चुजों का विशेष ध्यान रखना पड़ता है, क्योकि इस समय चुजों के पंख नहीं उगे होते है जिससे कि वे अपने षरीर का तापमान नियंत्रित कर सके। अतः चुजो को कृत्रिम गर्मी की आवष्यकता होती है इसके लिए लकड़ी/टोकरी के बने कृत्रिम ब्रुडर के नीचे एक बल्ब लगाकर 50-60 चुजों को रख सकते है। गर्मी प्रदान करने के लिए बिछावन बुडर के अंदर 1-2‘‘ मोटी चादर के रूप में बिछाना चाहिए। बिछावन के लिए गेहूं या चावल का भूसा, लकड़ी का बुरादा प्रयोग किया जा सकता है।












आहार प्रबंधन
बैकयार्ड कुक्कुट पालन में आहार पर खर्च कम आता है, क्योंकि मुर्गियां घुमकर कीड़े-मकोड़े खाकर एवं घर के बचे अनाज को खाकर अपना भोजन प्राप्त कर लेती है। परन्तु इन सब से मुर्गियों को पूरी पोषक तत्व उपलब्ध नहीं हो पाता इसलिए इसके अतिरिक्त इनको कुछ मात्रा में संतुलित आहार प्रदान करना चाहिए। संतुलित आहार के साथ-साथ साफ पानी देवें।

स्वास्थ्य प्रबंधन
मुर्गियों की मुख्य बीमारी रानी खेत है। इसलिए बिमारियों से बचाव हेतु मुर्गियों को इस बीमारी का टीकाकरण अवश्य कराये। इसके लिए छः माह के अंतराल में रानीखेत बीमारी का टीका लगाना लाभदायक रहता है, 2-3 माह के अंतराल में आंतरिक व बाह्य परजीविनाशक दवा अवश्य देना चाहिए।