जलवायु
चौलाई की खेती के लिए गर्मतर जलवायु की आवश्यकता होती हैं। यह फसल अधिक गर्मियों व बरसात के मौसम में उगायी जाती हैं। गर्म दिन वृद्धि के लिए अच्छे रहते हैं।

भूमि एवं खेत की तैयारी
चौलाई के लिए सर्वोत्तम हलकी बलुई दोमट या दोमट भूमि रहती हैं। वैसे यह फसल लगभग सभी प्रकार की भूमि में पैदा की जा सकती हैं। यह क्षारीय व अम्लीय भूमि में पैदा नहीं होती हैं। भूमि का पीएच मान 6.0-7.0 के बीच का उत्तम रहता हैं। भूमि की तैयारी के लिए खेत को अच्छी तरह से घासरहित करना चाहिए। पहले 2-3 जुताइयां ट्रैक्टर -हैरो या मिट्टी पलटने वाले हल से करनी चाहिए तथा बाद में घास सूखने के बाद ट्रिलर या देशी हल से 1-2 बार जुताई करके खेत को तैयार कर लेना चाहिए तथा मेड़बंदी करके छोटी-छोटी क्यारियां बना देनी चाहिए। क्यारियों के बीच सिंचाई की नालियां बनाना चाहिए जिससे बाद में पानी लगाने में सुविधा रहे। यह फसल अन्य फसल के साथ भी लगाई जा सकती हैं। गृह-वाटिका में अलग-अलग सब्जियां बोई जाती हैं। इसलिये गृह-वाटिका की पत्तियों वाली गर्मी की यह एक मुख्य फसल हैं जोकि कम क्षेत्र में अधिक सब्जी देती हैं। बगीचों की यह एक मुख्य फसल हैं जो कि कम समय में ही पत्तियां देने लगती हैं। चैलाई को गमलों में भी लगाया जा सकता हैं। यह कम क्षेत्रों के कारण गमलों में उगाकर पैदा की जा सकती हैं। कुछ जातियां सजावट के लिये भी अच्छी होती हैं। चौलाई के लिये भूमि की खुदाई करके ठीक प्रकार से तैयार कर लेना चाहिए। इसे दूसरी फसल के साथ भी बोते हैं। इसको अन्य फसल की मेड़ों पर भी लगाकर उगाया जा सकता हैं।

खाद एवं उर्वरक
चौलाई की फसल के लिए गोबर की खाद युक्त भूमि की आवश्यकता होती हैं। देशी खाद 15-20 ट्रौली प्रति हेक्टेयर की दर से डालना चाहिए तथा रासायनिक उर्वरक नत्रजन 20-25 किलो, डाई अमोनियम फास्फेट 80-100 किलो प्रति हेक्टेयर में देना चाहिए यह फास्फेट तथा आधी नत्रजन की मात्रा को भूमि तैयार करते समय मिला देना चाहिए तथा शेष 12-15 किलो नत्रजन की मात्रा को हिस्सों में बांटकर प्रत्येक तुड़ाई या कटाई के बाद देना चाहिए जिससे फुटाव शीघ्र आ सके।

उन्नतशील  जातियां
अपने देश में चौलाई की अनेक जातियां उगायी जाती हैं। इनमें मुख्यतः दो जातियों का प्रयोग अधिक करते हैं जिसकी अच्छी उपज मिलती हैं जो निम्नलिखित हैं-

बड़ी चौलाई
यह किस्म अधिक उपज देने वाली, पत्तियां बड़ी, मुलायम तथा कांटे रहित होती हैं। तना हरा, मध्यम, मोटा व मुलायम होता हैं। फूल गुच्छे में शीर्ष पर मध्यम आकार के होते हैं। यह बुवाई से 35-40 दिन के बाद तैयार हो जाती हैं। इस जाति के पौधे बड़े आकार होते हैं।

छोटी चौलाई
इस जाति की पत्तियों का रंग हरा होता हैं जो छोटे-छोटे पौधों पर लगती हैं। पत्तियां भी छोटी, तना मुलायम होता हैं। तुड़ाई के बाद शीघ्र वृद्धि करती हैं।
उपरोक्त जातियों के अतिरिक्त हरी-किस्में अधिक हैं। लेकिन लाल पत्तियों वाली केवल एक ही किस्म हैं जो कि बाजार में आसानी से मिल जाती हैं। इन जातियों के अतिरिक्त और भी जातियां हैं- कोयमबस-I, कोयम्बटूर-II 7

बुवाई का समय एवं दूरी
चौलाई की बुवाई दो मौसम से की जाती हैं। प्रथम बुवाई फरवरी से मार्च के मध्य तक करते हैं। इसके गर्मियों में पत्तियां खाने को मिलती हैं तथा वर्षा ऋतु की बुवाई के समय कतारों में फसलों को बोना चाहिए। कतार से कतार की दूरी बड़ी चौलाई की जाति के लिए 25-30 सेमी. तथा छोटी चौलाई की कतारों की आपस की दूरी 15-20 सेमी. तथा पौधे से पोधे की 5-10 सेमी. रखनी चाहिए। बड़ी चैलाई के पौधे 10 सेमी. के अन्तर तथा छोटी के 5 सेमी. के अन्तर से रखना चाहिए। बीज की गहराई अधिक न रखकर केवल 1-2 सेमी. पर रखने से अंकुरण सही होता हैं।

बीज की मात्रा एवं बोने का ढंग
चौलाई की बीज दर किस्म पर एवं बीज के आकार बुवाई के समय पर निर्भर करती हैं। इन सब बातों को ध्यान में रखकर बीज 2.5 किलो से 3.0 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से बोते हें। बीज हल्का व छोटा होने के कारण चींटी आदि द्वारा भी नष्ट हो जाता हैं। इसलिये बीज की मात्रा कम नहीं होनी चाहिए। बगीचे, गृह-वाटिका या गमलों में चौलाई को बोया जाता हैं तो अच्छी किस्म का बीज बोना चाहिए जिससे अधिक उपज मिले। 8-10 वर्ग मी. क्षेत्र के लिए बीज की मात्रा 20-25 ग्रा. पर्याप्त होती हैं। गमलों में 4-5 बीज छेद विधि से बोने चाहिए तथा बाद में 2-3 पौधे ही रखने उचित होते हैं। अन्य पौधों को किसी दूसरे गमलों में लगाया जा सकता हैं। बीजों को बगीचे में कतारों में 15 सेमी. की दूरी पर बोना चाहिए। पौधों की दूरी 5-8 सेमी. रखनी चाहिए।

सिंचाई
चौलाई की सिंचाई मौसम के आधार पर की जाती हैं। गर्मी वाली फसल की सिंचाई 5-6 दिन के अन्तर से करनी चाहिए तथा वर्षा ऋतु की सिंचाई वर्षा न होने पर नमी भी आवश्यकतानुसार करनी चाहिए। बोने से पहली सिंचाई 15-20 दिन बाद करनी चाहिए।

निकाई-गुड़ाई
चौलाई की फसल में सिंचाई के बाद खरपतवार तथा अन्य घास हो जाती हैं। फसल को निकालना अति आवश्यक हो जाता हैं क्योंकि पोषक तत्वों को खरपतवार ही सोख लेते हैं। फसल कमजोर हो जाती हैं। इसलिए निकाई-गुड़ाई करने से सभी खरपतवारों को खेत से बाहर निकाल देना चाहिए तथा साथ-साथ पौधों की थिनिंग भी करते रहना चाहिए। पौधों की आपस की दूरी सही रखनी चाहिए। फालतू पौधों को खाली जगह यदि हो तो वहां पर लगा देना चाहिए। इस प्रकार से शुरू में दो निकाई-गुड़ाई अवश्य करनी चाहिए जिससे खरपतवार नहीं आ सकें।

कीट एवं उन पर नियंत्रण
चौलाई पर भी अन्य पत्तियों वाली फसल की तरह कीट लगते हैं और अधिकतर कीट मेथी जैसे हैं-

पत्तियों को काटने वाला कैटर पिलर
यह कीट अधिकतर पत्तियों के रस को चूसता हैं तथा बाद में पत्तियां पीली पड़ जाती हैं और अन्त में सूख जाती हैं।

नियंत्रण
इसके नियंत्रण के लिए जैसे ही थोड़े केटर पिलर पौधों पर दिखाई दें तो उन पौधों को उखाड़ देना चाहिए तथा जला देना चाहिए।

ग्रासहोपर
यह कीट भी पत्तियों के रंग जैसा हरा होता हैं। यह दिखाई नहीं देता, छिपकर फसल को क्षति पहुंचाता हैं। मुलायम तना तथा पत्तियों को काटता हैं।

नियंत्रण
इसके नियंत्रण के लिए खेत में पतवार नहीं होने चाहिए। इनका साफ खेत पर कम आक्रमण होता हैं।

बीमारी
चौलाई पर बीमारी कम लगती हैं। देर से बोई जाने वाली फसल पर पाउडरी मिल्डयू आती हैं।

नियंत्रण
इसके नियंत्रण के लिए समय पर बुवाई करनी चाहिए।

सावधानी
पत्तियों वाली फसल पर कीटनाशक दवाओं को छिड़ने की सिफारिश नहीं की जाती हैं। केवल बीज के लिए पैदा की जा रही फसल पर 0.1 प्रतिशत् BHC का घोल बनाकर छिड़का जा सकता हैं।

फसल की तुड़ाई
फसल की तुड़ाई बुवाई से 20-25 दिनों के बाद ही आरम्भ कर देनी चाहिए। बड़ी चौलाई के पत्ते शीघ्र बड़े हो जाते हैं। लेकिन छोटी चौलाई की 6-7 बार कटाई की जाती हैं। चौलाई के मुलायम तनों की शाखाओं को तोड़ना चाहिए। इस प्रकार से जो भी किस्म लगाई हो 5-6 तुड़ाई आराम से ही की जा सकती हैं। बाद में तना कठोर होने पर न तोड़कर बीज पकाने के लिए शीर्ष को छोड़ देना चाहिए। फरवरी में बोई गई फसल अप्रेल में पत्तियां देने लगती हैं तथा चैलाई की फसल अक्टूबर में तैयार हो जाती हैं। शीर्ष (हेड) जब परिपक्व होने लगे तो अधिक पकने से पहले ही हेडों को एकत्र कर लेना चाहिए अन्यथा बीज खेत में ही गिर सकते हैं। बगीचों व गमलों की फसल भी 15-20 दिन में तैयार हो जाती हैं। समय-समय पर ताजा साग, पकौड़े बनाने के लिए गृहवाटिका से पत्तियां तोड़नी चाहिए। इस प्रकार से 5-6 तुड़ाई मिल जाती हैं। बाद में हेडों को बीज के लिए छोड़ देना चाहिए। सूख कर गिरने से पहले ही हेड को काट लेना चाहिए। सुखाकर चौलाई का बीज तैयार कर लेना अच्छा रहता हैं।

उपज
चौलाई का पैदावार सही देखभाल के बाद पत्तियां औसतन 70-80 क्विंटल प्रति हेक्टेयर प्राप्त होती हैं तथा बीज 3-4 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से प्राप्त हो जाता हैं। बगीचों में हरी पत्तियां जाति के अनुसार 15-20 किलो 8-10 वर्ग मी. क्षेत्र में मिल जाती हैं तथा 500-800 ग्रा. बीज की प्राप्ति हो जाती हैं। बीज के हेडों को सावधानी से सुखाकर बीज निकालना चाहिए। छोटा बीज होने के कारण गिरने का भय रहता हैं।