द्रोणक कुमार साहू (पीएचडी स्कॉलर, कृषि अर्थशास्त्र विभाग), इन्दिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर    
महेंद्र कुमार देशमुख, सहायक प्राध्यापक, संत कबीर कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र, कवर्धा

देश  में शरदकालीन एवं बसंतकालीन गन्ने की फसल बोई जाती है। अब बसंत कालीन गन्ने की फसल बोने का समय शुरू हो चुका है। बसंत कालीन गन्ने की फसल 15 फरवरी से 15 मार्च तक करनी चाहिए। यह समय सबसे श्रेष्ठ माना जाता है। बसंत कालीन गन्ने की बुवाई देर से काटे गए धान वाले खेत व तोरिया, मटर व आलू की फसल से खाली हुए खेत में की जा सकती है। जबकि शरद कालीन गन्ने की बुवाई 15 अक्टूबर तक करनी चाहिए। गन्ने के खेत में दूसरी फसल भी बोई जा सकती है जिससे किसान अतिरिक्त आमदनी प्राप्त कर सकते हैं। बसंत कालीन खेती में मूंग, उड़द, धनिया, मेथी की खेती जा सकती है।

गन्ना की खेती करने के कारण / ऐसी होती है गन्ने की खेती से कमाई
  • गन्ना एक प्रमुख बहुवर्षीय फसल है और अच्छे प्रबंधन से साल दर साल डेढ़ लाख रुपए प्रति हेक्टेयर से अधिक का मुनाफा कमाया जा सकता है।
  • प्रचलित फसल चक्रों जैसे मक्का, गेहूं या धान-गेहूं, सोयाबीन-गेहूं की तुलना में अधिक लाभ दिलाता है।
  • गन्ने की खेती में न्यूतनम जोखिम रहती है। इस पर रोग, कीट ग्रस्तता एवं विपरित परिस्थितियों का अपेक्षाकृत कम असर होता है।
  • गन्ना की किसी भी अन्य फसल से प्रतिस्पर्धा नहीं है। वर्षभर उपलब्ध साधनों एवं मजदूरों का सद्उपयोग होता है।

बसंत कालीन गन्ने की खेती की प्रक्रिया
मिट्टी :
गन्ने के लिए दोमट मिट्टी का खेत सबसे बढिय़ा होता है। किंतु भारी टोमट मिट्टी होने पर भी गन्ने की अच्छी फसल हो सकती है। क्षारीय/अमली भूमि व जिस भूमि पर पानी का जमाव होता हो वहां पर गन्ने की खेती नहीं करनी चाहिए। खेत को तैयार करने के लिए एक बार मिट्टी पलटने वाले हल से जोतकर तीन बार हैरो चलाना चाहिए। देसी हल की 5-6 जुताइयां करनी जरूरी होती है। बुवाई के समय खेत में नमी होना आवश्यक है। जिस खेत में गन्ना उगाना हो उसमें पिछले वर्ष की गन्ने की रोगी फसल नहीं बोनी चाहिए।

उन्नत गन्ने की खेती के लिए बीज की तैयारी
जिस खेत से गन्ने का बीज लेना हो उस खेत में अच्छी तरह खाद डाली जानी चाहिए। गन्ना निरोगी होना चाहिए। यदि गन्ने का केवल ऊपरी भाग बीज के काम लाया जाए तो अधिक अंकुरित होता है। गन्ने के तीन आंख वाले टुकड़ों को काट देना चाहिए। इस तरह 40 हजार टुकड़े प्रति हेक्टेयर के लिए काफी होंगे। इसका वजन करीब 70-75 क्विंटल होगा। बोने से पहले बीज को कार्बनिक कवकनाशी से उपचारित कर लें।

उन्नत गन्ने की खेती में बुवाई : गन्ना बोने की खाई विधि
बसंत ऋतु में 75 से.मी. की दूर पर तथा शरद ऋतु में 90 से.मी. की दूरी पर रिजन से 20 से.मी. गहरी नालियां खोदनी चाहिए। इसके बाद उर्वरक को नाली में डालकर मिट्टी मिला देनी चाहिए। बुवाई के 5 दिन बाद गाम बीएचसी (लिंडेन) का 1200-1300 लीटर पानी में घोलकर बोए गए टुकड़े पर छिडक़ाव से दीमक व जड़ और तने में भेदक कीड़े नहीं लगते हैं। इस दवा को 50 लीटर पानी में घोलकर नालियों पर छिडक़कर उन्हें मिट्टी से बंद कर दें। यदि पायरिला के अंडों की संख्या बढ़ जाती है तो उस समय किसी भी रसायन का प्रयोग न करें। कीट विशेषा से राय लें। यदि खड़ी फसल में दीमक का प्रकोप हो गया है तो 5 लीटर गामा बी.एच.सी. 20 ई.सी. का प्रति हैक्टेयर की दर से खेत में सिंचाई करते समय प्रयोग करना चाहिए।

बसंतकालीन गन्ने की सिंचाई
बसंतकालीन गन्ने की खेती में 6 सिंचाई की आवश्यकता होती है। 4 सिंचाई बारिश से पहले व दो सिंचाई बारिश के बाद करनी चाहिए। तराई क्षेत्रों में बरसात के पहले 2-3 सिंचाई पर्याप्त होती है और बरसात में सिर्फ 1 सिंचाई पर्याप्त होती है।

खरपतवार नियंत्रण
गन्ना बोने के 25-30 दिनों के अंतरपर तीन गुड़ाइयां करके खरपतवार नियंत्रण किया जा सकता है। रसायनों से खरपतवार को नष्ट नहीं किया जा सकता है। गन्ना बोने के तुरंत बाद एट्राजिन तथा सेंकर का एक किग्रा सक्रिय पदार्थ एक हजार लीटर पानी में खरपतवार होने की दशा में छिडक़ाव करें।

गन्ने की उन्नत खेती में रोगों की रोकथाम
गन्ने में रोग मुख्यत: बीज द्वारा लगते हैं। रोगों की रोकथाम के लिए निम्न तरीके अपनाए जा सकते हैं।
  • स्वस्थ और प्रमाणित बीज लें। बीज के टुकड़े काटते समय लाल, पीले रंग एवं गांठों की जड़ निकाल लें तथा सूखे टुकड़ों को अलग कर दें।
  • बीज को ट्राईकोडर्मा की 10 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में घोलकर बनाकर उपचारित करके बोयें।
  • रोग लगे खेत में गन्ने की फसल २-३ साल तक नहीं बोनी चाहिए।

कीटों की रोकथाम
  • दीमक एवं अंकुरबेधक (अर्ली सतवेटर) की रोकथाम क्लोरोपाइरीफॉस 4 लीटर/हैक्टर की दर से 1200/1300 लीटर पानी में घोलकर कूंडों में बुआई के बाद टुकड़ों पर हजारे से छिडक़ें।
  • जुलाई के दूसरे पखवाड़े में एक छिडक़ाव इंडोसल्पफॉस 1.5 मिली लीटर प्रति लीटर पानी में करें। ताकि तनाबेधक, पोरीबेधक, स्लग केटरपिलर एवं करंट कीट आदि की रोकथाम हो जाए।
  • चोटीबेधक की पहली पीढ़ी एवं काली चिट्टा आदि कीटों की रोकथाम के लिए 8-10 अप्रेल के आसपास मोनोक्रोटाफॉस 1 मिली प्रति लीटर लीटर पानी में मिलाकर छिडक़ाव करें।
  • चोटीबेधक की तीसरी पीढ़ी की रोकथाम के लिए जून के आखिरी सप्ताह या जुलाई के प्रथम सप्ताह में 25 किग्रा प्रति हैक्टर की दर से फ्लूराडान को सूखी रेत या राख में मिलाकर बिखेर दें तथा इसके बाद खेत की सिंचाई करें।

गन्ने की उन्नत खेती में खाद एवं उर्वरक
फसल के पकने की अवधि लंबी होने कारण खाद एवं उर्वरक की आवश्यकता भी अधिक होती है अत: खेत की अंतिम जुताई से पूर्व 20 टन सड़ा गोबर/कम्पोस्ट खाद खेत में समान रूप से मिलाना चाहिए। इसके अतिरिक्त 300 किलो नत्रजन (650 कि.ग्रा. यूरिया ), 85 कि.ग्रा. स्फुर, ( 500 कि.ग्रा. सिंगल सुपर फास्फेट) एवं 60 कि. पोटाश (100 कि.ग्रा. म्यूरेटआपपोटाश) प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए। स्फुर एवं पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई के समय प्रयोग करें एवं नत्रजन की मात्रा को निम्नानुसार प्रयोग करें। बसंतकालीन गन्ने में नत्रजन की कुल मात्रा को तीन समान भागों में विभक्त कर बोनी क्रमश: 30, 90 एवं 120 दिन में प्रयोग करें। नत्रजन उर्वरक के साथ नीमखली के चूर्ण में मिलाकर प्रयोग करने में नत्रजन उर्वरक की उपयोगिता बढ़ती है। साथ ही दीमक से भी सुरक्षा मिलती है। 25 कि.ग्रा. जिंक सल्फेट व 50 कि.ग्रा. फेरस सल्फेट 3 वर्ष के अंतराल में जिंक व आयरन सूक्ष्म तत्व की पूर्ति के लिए आधार खाद के रूप में बुवाई के समय उपयोग करें।

गन्ने को गिरने से बचाने के उपाय
  • खेत में गन्ना के कतारों की दिशा पूर्व व पश्चिम रखें।
  • गन्ना की उथली बोनी न करें।
  • गन्ना के कतार के दोनों तरफ 15 से 30 सेमी मिट्टी दो बार (जब पौधा 1.5 से 2 मीटर का (120 दिन बाद) हो तथा इसे अधिक बढ़वार होने पर चढ़ाएं (150 दिन बाद)।
  • गन्ना की बंधाई करें। इसमें तनों को एक साथ मिलाकर पत्तियों के सहारे बांध दें। यह कार्य दो बार तक करें। पहली बंधाई अगस्त में तथा दूसरी इसके एक माह बाद करें जब पौधा 2 से 2.5 मीटर का हो जाए। बंधाई का कार्य इस प्रकार करें कि हरी पत्तियों का समूहि एक जगह एकत्र न हो अन्यथा प्रकाश संलेषण क्रिया प्रभावित होगी।

गन्ने के साथ अन्तरवर्ती खेती
गन्ने के खेत में दूसरी फसल भी बोई जा सकती है जिससे किसान अतिरिक्त आमदनी प्राप्त कर सकते हैं। गन्ने की फसल की बढ़वार शुरू के 2-3 माह तक धीमी गति से होता है। गन्ने के दो कतारों के बीच का स्थान काफी समय तक खाली रह जाता है। इसे ध्यान में रखते हुए यदि कम अवधि की फसलों को अन्तरवर्ती खेती के रूप में उगाया जाए तो निश्चित यप से गन्ने की फसल के साथ-साथ प्रति इकाई अतिरिक्त आमदनी प्राप्त हो सकती है। इसके लिए निम्न फसलें अंतरवर्ती खेती में रूप में उगाई जा सकती है। शरदकालीन खेती में प्याज, मटर, धनिया, चना व गेहूं। बसंत कालीन खेती में मूंग, उड़द, धनिया, मेथी।

गन्ने की कटाई
जैसे ही हेंड रिप्रेफ्क्टोमीटर (दस्ती आवपन मापी) का बिंदु 18 तक पहुंचे, गन्ने की कटाई शुरू कर देनी चाहिए। यंत्र के अभाव में गन्ने की मिठास से गन्ने के पकने का पता लगता है।