उन्नत किस्में:- DHN6, IGFRI-6, IGFRI-10, पूसा जियंट नेपियर, CO-3, CO-4, CO-5, यशवंत, APBN-1
  
मृदा एवं खेत की तैयारीः- नेपियर चारा हेतु उचित जल निकास वाली टोमर भूमि सर्वोतम होती हैं। एक गहरी जुताई के बाद 2-3 हेरो या कल्टीवेटर चला करके चारे की फसल की बुवाई की जाती हैं।

बुवाई का समय एवं विधिः- सिंचित क्षेत्रों में फरवरी माह क दुसरे सप्ताह से सितंबर माह तक एवं असिंचित क्षेत्रों के स्थान पर वर्षा ऋतु में इसकी रोपाई की जा सकती हैं। नेपियर की जड़ सहित तने की कतार से कतार एवं पौधे से पौधे की दूरी 60 से.मी. रखें। यदि रबी में बरसीम की फसल को अंतरसस्य में बोया जाता है तब नेपियर की कतार से कतार की दूरी 2.5 से 3.0 मीटर रख सकते हैं। एक हेक्टेयर क्षेत्र में रोपाई हेतु 20,000 से 40,000 जड़ सहित तनों की आवश्यकता पड़ती हैं।

सिंचाईः- यदि रोपाई फरवरी माह में की गई है तो पहली सिंचाई रोपाई के तुरंत बाद एवं दूसरी सिंचाई अगामी एक सप्ताह बाद करें। गर्मी के मौसम में प्रत्येक 15 से 16 दिन के अंतराल एवं प्रत्येक कटाई के बाद में सिंचाई करें।

खाद एवं उर्वरकः- नेपियर की जड़ सहित तनों की रोपाई से पूर्व 5 टन गोबर खाद प्रति हेक्टेयर के दर से खेत में अच्छी तरह मिला लें उसके बाद 75:50:40 कि.ग्रा. एनःपीःके प्रति हेक्टेयर का प्रयोग करना चाहिए। इसके बाद प्रत्येक कटाई पर 40 कि.ग्रा. नत्रजन प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।

निंदाई-गुड़ाईः- खरपतवार की रोकथाम के लिये रोपाई के 30 दिन बाद एक बार निंदाई-गुड़ाई अवश्य करें।

कीट व रोग नियंत्रण:- एक ही खेत पर अधिक समय तक फसल लेने से पत्तियों पर बदामी दाग (लीफ स्पॉट) से पड़ने लगते हैं। इसकी रोकथाम के लिए मेन्कोजेब की 2 मि.ली. मात्रा प्रति लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करना चाहिए।

कटाई एवं उत्पादनः- प्रथम कटाई रोपाई के 75-80 दिन बाद एवं आगामी प्रत्येक 35 दिन एवं गर्मी के दिनों में 45 दिन के अंतर पर करें। नेपियर चारा का उत्पादन औसतन 1200 क्विंटल प्रति हेक्टेयर प्रति वर्ष होता हैं।