मूंग खरीफ की तीसरी प्रमुख दलहनी फसल हैं। सिंचाई की व्यवस्था होने पर ग्रीष्म ऋतु में भी कृषक मूंग की फसल लेकर कम लागत में अधिक लाभ ले सकते हैं साथ ही यह दलहनी फसल होनेे से आगामी फसल के लिए नत्रजन छोड़ती हैं जिससे भूमि की उर्वरा शक्ति में वृद्धि होती हैं। मूंग की फसल कम समय में (60 से 70 दिन) में पक कर तैयार होने के कारण सघन फसल प्रणाली के लिये भी उपयुक्त हैं। हरी फसल पशुओं को हरे चारे के रूप में खिलाई जाती हैं। मूंग की पकी हुई फसल से दाना निकालने के उपरांत भूसा बहुत ही पौष्टिक तथा स्वादिष्ट होता है जिसको पशु बड़े ही चाव से खाते हैं।  

खेत की तैयारी
रबी मौसम की फसल की कटाई के पश्चात दो-तीन बार हल चलाकर खेत की मिट्टी को भुरभुरा व नींदा रहित करें साथ ही पाटा लगाकर खेत को समतल करना चाहिए। 

उन्नत बीज का चुनाव, मात्रा व उपचार
बीज शुद्ध, प्रमाणित, रोग मुक्त होना चाहिए। भंडारित बीज को साफ करके, अंकुरण परीक्षण करने के बाद बोने हेतु उपयोग में लाना चाहिए। प्रति हेक्टेयर 15-20 कि.ग्रा. बीज का प्रयोग बुवाई हेतु करें। खरीफ में मूंग की बुवाई मानसून आने पर जून के दूसरे पखवाड़े से जुलाई के प्रथम पखवाड़े तक की जा सकती हैं। ग्रीष्मकालीन मूंग की बोनी का उपयुक्त समय मार्च से अप्रेल माह का प्रथम सप्ताह हैं। बुवाई हेतु कतार से कतार के बीच की दूरी 10 से.मी. रखें साथ ही बीज को 3-4 से.मी. की गहराई पर लगाएं। बुवाई से पूर्व बीज को कार्बेन्डाजिम की 2 ग्राम अथवा कार्बाक्सिन (बीटावैक्स) की 2 ग्राम + थायोमेथाक्जिन 75 डब्ल्यू.एस. की 3 ग्राम मात्रा से प्रति कि.ग्रा. बीज को उपचारित कर बोना चाहिए ताकि बीज जनित रोगों से छुटकारा मिल सकें। 

खाद व उर्वरक

मृदा परीक्षण की संस्तुति के आधार पर उर्वरकों का उपयोग करना चाहिए। नत्रजन, फास्फोरस व पोटाष की 20: 60ः20  कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर के मान से उपयोग करना चाहिए। इस हेतु 40 कि.ग्रा. डीएपी व 10 कि.ग्रा. म्यूरेट ऑफ पोटाश प्रति एकड़ उपयोग करना चाहिए। 

बुवाई से पहले फफूँदनाशक से उपचारित बीज को राइजोबियम व पी.एस.बी. कल्चर से निवेषित (उपचारित) करना चाहिए। इस हेतु 5 ग्राम कल्चर प्रति कि.ग्रा. बीज के मान से उपयोग करना चाहिए। 

सिंचाई
ग्रीष्मकालीन फसल होने के कारण मूंग की फसल को 5-6 सिंचाईयों की आवश्यकता पड़ती हैं। शाखा बनते समय, फलियां बनते समय तथा दानाभरते समय सिंचाई करना चाहिए। सिंचाई अधिक करने से नींदा की समस्या रहती हैं। अतः 15 एवं 30 दिनों के बाद खेत से नींदा निकालना चाहिए। 

खरपतवार प्रबंधन 
पौधे जब 6 इंच के हो जावें तब डोरा से एक बार निंदाई करना चाहिये। आवष्यकता के अनुसार दो बार निंदाई करना चाहियें। नींदा की रोकथाम के लिए नींदानाशक दवाओं का प्रयोग किया जा सकता हैं। एक हेक्टेयर के लिए नींदानाशकों की संस्तूत मात्रा को 600 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। खरपतवार नाशक दवाओं के छिड़काव के लिये हमेशा फ्लेट फेन नोजल का ही उपयोग करें।

शाकनाशी का नाम
व्यवसायिक मात्रा/हेक्टेयर
प्रयोग
खरपतवार नियंत्रण
फ्लूक्लोरालिन
3000 मि.ली.
रोपण पूर्व
समस्त खरपतवार
पेन्डिमिथिलीन
3000 मि.ली.
बुवाई के 0-3 दिन तक
घासकुल एवं कुछ चैड़ी पत्ती वाले खरपतवार
इमेजेथापायर
750 मि.ली.
बुवाई के 20 दिन बाद
घासकुल, मोथाकुल एवं चैड़ी पत्ती वाले खरपतवार
क्यूजालोफाप ईथाइल
1250 मि.ली.
बुवाई के 15-20 दिन बाद
घासकुल के खरपतवारों का प्रभावी नियंत्रण

पौध संरक्षण
मूंग की फसल सर्कोस्पोरा पर्णधब्बा, श्यामवर्ण, पाउडरी मिल्ड्यू एवं पीत विषाणु रोग तथा फ्लई बीटल, सफेद मक्खी, थ्रिप्स, फली छेदक कीटों का प्रकोप होता हैं। जिनका उड़द में उल्लेखित विधियों द्वारा प्रबंधन करते हैं।

उपज
मूंग की फल्लियां गुच्छों में लगती हैं तथा अधिकांश प्रजातियों में फल्लियां एक साथ नहीं पकती अतः 2-3 बार तोड़ाई पर पूरी फसल की फल्लियां तोड़ ली जाती हैं। मूंग के दानों को बैल चलाकर या डंडे से पीटकर अलग किया जाता हैं। भूसे से मूंग के दानों को हवा द्वारा अलग करके अच्छी तरह साफ कर सुखाने के बाद ही भण्डारण करते हैं।
उन्नत सस्य क्रियाएं व पौध संरक्षण अपनाने पर 7-8 क्विंटल मूंग प्रति हेक्टेयर प्राप्त होती हैं। इस प्रकार एक एकड़ क्षेत्र में 4000-5000 रूपये लागत आने पर 15000 की आय होती हैं।

उन्नतशील किस्मों का विवरण

किस्म
पकने की अवधि
प्रति हेक्टेयर उपज (किलो)
अन्य विवरण
टी.एम.-98-50
75-90
900-1000
यह किस्म पीला मोजेक एवं मूल विगलन रोग के लिए अवरोधी हैं। कम वर्षा वाले क्षेत्र के लिए उपयुक्त।
टी.एम.-37
65-70
1100
इस प्रजाति में पीला मोजेक रोग बोने के 40-45 दिन बाद आता हैं।
एल.जी.जो.-460
60-65
900-1000
यह किस्म पीला मोजेक रोग के लिए सहिष्णु हैं।
जवाहर मूंग-721
60-65
800-1000
सम्पूर्ण मध्य प्रदेश।
पी.डी.एम.-139
60-65
900-1000
यह किस्म पीला मोजेक रोग के लिए अवरोधी हैं।
टार्म-1
85
1240
यह किस्म पीला मोजेक, भभूतिया एवं मूलविगलन रोग के लिए अवरोधी हैं।
एच.यू.एम.-1
65-75
1000-1200
यह किस्म झुलसा रोग एवं फली बेधक रोग के लिए सहनशील हैं।
एच.यू.एम.-6
65-75
1000-1200
यह किस्म पीला मोजेक एवं लीफकर्ल रोग के लिए मध्यम अवरोधी हैं।
पी.डी.एम.-84-178
65-70
800-900
यह किस्म बसंत एवं वर्षा ऋतु के लिए संस्तुत हैं।
टी.जे.एम.-3
60-70
1000-1200
पीला मोजेक एवं पाउडरी मिल्डयू रोग हेतु प्रतिरोधक हैं। यह किस्म बसंत एवं वर्षा ऋतु के लिए संस्तूत हैं।

प्रमुख बीमारियाँ
मूंग की फसल सर्कोस्पोरा पर्ण धब्बा, श्यामवर्ण, पाउडरी मिल्ड्यू एवं पीत विषाणु रोगों का प्रकोप होता हैं। जिनका प्रबंधन निम्नानुसार करते हैं।

समन्वित रोग प्रबन्धन
1. गर्मी में खेत की गहरी जुताई करें।
2. रोग प्रतिरोधी अथवा सहनषील किस्मों का चयन करें।
3. प्रमाणित एवं स्वस्थ बीजों का प्रयोग करें।
4. समय से बुवाई करें।
5. पीला चितकबरी (मोजेक) रोग के प्रबंधन के लिये बीज की बुवाई जुलाई के प्रथम सप्ताह तक कतारों में करें प्रारम्भिक अवस्था में रोग ग्रसित पौधों को उखाड़कर नष्ट करें। यह रोग विषाणु जनित हैं जिसका वाहक सफेद मक्खी कीट हैं जिसे नियंत्रित करने के लिये ट्रायजोफाॅस 40 ई.सी. 2 मि.ली. प्रति लीटर अथवा थायोमेथाक्साम 25 डब्ल्यू.जी. 2 ग्राम/ली या डायमेथोएट 30 ई.सी. 1 मि.ली./लीटर पानी में घोल बनाकर 2 या 3 बार 10 दिन के अन्तराल पर आवश्यकतानुसार छिड़काव करें।
6. सर्कोस्पोरा पर्ण दाग रोग के लक्षण दिखाई देने पर मेन्कोजेब 75 डब्ल्यू.पी. की 2.5 ग्राम लीटर या कार्बेन्डाइजिम 50 डब्ल्यू.पी. की 1 ग्राम/लीटर दवा का घोल बनाकर 2-3 बार छिड़काव करें।
7. एन्थ्राक्नोज रोग के प्रबंधन के लिये फफूँददनाशक दवा जैसे मेन्कोजेब 75 डब्ल्यू.पी. 2.5 ग्राम/ली. या काब्रेन्डाजिम 50 डब्ल्यू.पी. की 1 ग्राम/लीटर का छिड़काव बुवाई के 40 एवं 55 दिन पश्चात् करें।
8. भभूतिया (पाउडरी मिल्डयू) रोग के लक्षण दिखाई देने पर कैराथन या सल्फर पाउडर 2.5 ग्राम/लीटर पानी की दर से छिड़काव करें।

प्रमुख कीट एवं प्रबन्धन
मूंग की फसल में प्रमुख रूप  से फली भ्रंग, हरा फुदका, माहू तथा कम्बल कीट का प्रकोप होता हैं। पत्ती भक्षक कीटों के नियंत्रण हेतु क्विनालफाॅस की 1.5 लीटर या मोनोक्रोटोफाॅस की 750 मि.ली. तथा हरा फुदका, माहू एवं सफेद मक्खी जैसे रस चूसक कीटों के लिए डायमिथोएट 1000 मि.ली. प्रति 600 लीटर पानी या इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस.एल. प्रति 600 लीटर पानी में 125 मि.ली. दवा के हिसाब से प्रति हेक्टेयर छिड़काव करना लाभप्रद रहता हैं।

मूंग का अधिक उत्पादन लेने के लिए आवश्यक बाते-
1. स्वस्थ एवं प्रमाणित बीज का उपयोग करें।
2. सही समय पर बुवाई करें, देर से बुवाई करने पर उपज कम हो जाती हैं।
3. किस्मों का चयन क्षेत्रीय अनुकूलता के अनुसार करें।
4. बीजोपचार अवश्य करें जिससे पौधों को बीज एवं मृदा जनित बीमारियों से प्रारंभिक अवस्था में प्रभावित होने से बचाया जा सकें।
5. मिट्टी परीक्षण के आधार पर संतुलित उर्वरक उपयोग करें जिससे भूमि की उर्वरा शक्ति बनी रहती हैं जो टिकाऊ उत्पादन के लिए जरूरी हैं।
6. खरीफ मौसम में मेड नाली पद्धति से बुवाई करें।
7. समय पर खरपतवारों नियंत्रण एवं पौध संरक्षण करें जिससे रोग एवं बीमारियों का समय पर नियंत्रण किया जा सकें।