बेल हमारे देश में उगायें जाने वाला एक पौराणिक वृक्ष हैं। कम सिंचित भूमि में भी इसे आसानी से उगाया जा सकता हैं, भगवान शिव की आराधना में बेल पत्र एवं फल का विशेष स्थान हैं। बेल फल के पंचांग (जड़, छाल, पत्ते, शाख एवं फल) औषधि रूप में मानव जीवन के लिये उपयोगी एवं उदर रोगों में बहुतायत से किया जाता हैं। राजस्थान में इसकी खेती सभी जिलों में की जा सकती हैं।   

जलवायुः- बेल एक उपोष्ण जलवायु का पौधा हैं, फिर भी इसे उष्ण जलवायु में भी सफलतसपूर्वक उगाया जा सकता हैं। इसकी खेती समुद्र तल से 1200 मीटर ऊँचाई तक और 7-46 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान तक की जा सकती हैं। फूल एवं फल के विकास के समय पर्याप्त वर्षा व नमी का होना आवष्यक हैं। इसके लिए शुष्क एवं गर्म वातावरण उपयुक्त होता हैं। 

भूमिः- बेल की खेती सभी प्रकार की भूमि में की जा सकती हैं, परन्तु उपयुक्त जल निकास युक्त बलुई दोमट भूमि, इसकी खेती के लिये अधिक उपयुक्त हैं, भूमि की पी.एच. मान 6-8 तक अधिक उपयुक्त रहता हैं, पड़ती एवं शुष्क भूमि में लगाने के लिए उपयुक्त पौधा हैं। 

किस्मेंः- सिवान, देवरिया, बड़ा, कागजी इटावा, चकिया, मिर्जापुरी, कागजी, गोण्डा, नरेन्द्र बेल-5, नरेन्द्र बेल-7, नरेन्द्र बेल-9, पंत सिवानी, पंत अर्पणा पंत उर्वशी और पंत सुजाता नेल की उपयुक्त किस्में हैं। 

प्रवर्धन या बडिंगः- बेल के पौधों का प्रवर्धन लैंगिक एवं वानस्पतिक दोनों विधियों से किया जाता हैं। बीजों की बुवाई फलों से निकालने के तुरन्त बाद 15-20 से.मी. की ऊंची एवं 13 10 मी. की बैड में 1-2 से.मी. की गहराई 15-20 से.मी. की ऊँची एवं 1 मी. की बैड में 1-2 से.मी. की गहराई पर फरवरी-मार्च एवं जून-जुलाई के महिने में की जाती हैं। जब पौधे एक वर्ष के हो जाएं अथवा तना पेंसिल की मोटाई के आकार का हो जाए तो कलिकायन करने के योग्य हो जाते हैं। जुलाई-अगस्त या फरवरी माह कलिकायन के लिए उपयुक्त समय हैं। बेल में पेंच कलिकायन विधि सर्वोत्तम रहती हैं। 

पौधा रोपणः- कलिकायन किये हुये पौधों के रोपण का सर्वोत्तम समय जुलाई-अगस्त हैं। इसके लिए जून माह में 1x1x1 मीटर के गड्ढ़े 8-10 मीटर की दूरी पर खोदें। इन गड्ढ़ों को 20-30 दिनों तक खुला छोड़ कर 10-15 किलोग्राम गोबर की सड़ी खाद तथा क्लोरोेपायरीफाॅस 4 प्रतिशत् चूर्णत प्रति गड्ढ़ा मिलाकर भर दें। 

खाद एवं उर्वरकः- एक वर्ष के पौधे को 10 कि.ग्रा. गोबर खाद, 100 ग्राम यूरिया, 150 ग्राम सुपर फास्फेट एवं 100 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश दें। यह मात्र इसी दर से 8 वर्ष तक बढ़ाते रहें। पौधों में उर्वरकों का उपयोग मार्च-अप्रेल में तथा गोबर खाद का प्रयोग जुलाई माह में करें। 

सिंचाईः- बेल के नये स्थापित बगीचों में गर्मी से सात दिन के अन्तराल पर व शीतकाल में 15 दिन के अन्तराल पर सिंचाई करें। 

निराई-गुड़ाईः- बेल के थालों में खाद एवं उर्वरक के प्रयोग के समय गुड़ाई करें। 

पौधों की कटाई-छंटाईः- पौधों की साफ-सुथरी प्ररोह विधि से करना उत्तम होता हैं। सधाई का कार्य शुरू के 4-5 वर्षों में ही करें। मुख्य तने को 75 से.मी. तक अकेला रखें। तत्पश्चात 4-6 शाखायें चारों दिशाओं में बढ़ने दें। सूखी तथा कीड़ों एवं बीमारियों से ग्रसित टहनियों को समय-समय पर निकालते रहें।