पी.एच.डी. स्कालर, इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर 

आधुनिक समय में जीरों टिलेज का मतलब पूर्व फसल के अवशेष युक्त भूमि को बिना जोते यांत्रिक बुआई को जीरों टिलेज कहते हैं। धान की सीधी बुआई से कई महत्वपूर्ण फायदें होते हैं जैसे समय पर धान की बुआई हो जाती एवं लागत कम हो जाती है। परम्परागत तरीके से नर्सरी उगाने, खेत की मताई करना एवं रोपनी करने पर धान की खेती में लागत बढ़ जाती हैं। शोध में पाया गया है कि हमेशा खेत की मताई करने से वहाँ की मिट्टी की भौतिक दशा खराब हो जाती हैं, जिससे रबी फसलों की पैदावार में कमी आती हैं। फसलों में कम लागत लगाकर अधिक उत्पादन पाने के लिए किसानों को फसल चक्र को समझना एवं समय पर रोपाई या बुआई के साथ-साथ उत्तम बीज और उर्वरकों की संतुलित मात्रा एवं तकनीकों का प्रयोग प्रतिदिन लागत में वृद्धि, समय पर पानी एवं मजदूरों की अनुपलब्धता एवं मृदा स्वास्थ में गिरावट की समस्या के समाधान हेतु धान की सीधी बुआई ही रोपाई का एक सही विकल्प हैं। समय से धान की बोआई से 6-10% तक उत्पादन में वृद्धि होती हैं और 15-20% उत्पादन लागत में बचत होती हैं। साथ ही इस तकनीक का प्रयोग करने से समय, श्रम संसाधन एवं लागत की बचत होती हैं। इन्हीं फायदों के मद्देनजर किसानों का ज्यादा रूझान सीधी बुआई की तरफ निरन्तर बढ़ रहा हैं।


धान में सीधी बुआई की जरूरत:
पराम्परागत तरीके से धान की खेती करने के लिए समय पर नर्सरी तैयार करना, खेत में पानी की उचित व्यवस्था करके कादों करना एवं अंत में मजदूरों से रोपाई करने की आवश्यकता होती हैं। इससे धान की खेती की कुल लागत में बढ़ोत्तरी हो जाती हैं। समय पर वर्षा का पानी न मिलने से कादों एवं रोपनी करने में विलम्ब हो जाती हैं। वर्षा आधारित एवं नहर आश्रित धनहर क्षेत्रों में यह एक प्रमुख समस्या हैं। लगातार कादाहें करने से मिट्टी की भौतिक दशा भी प्रभावित होती है, जो कि रबी फसलों के लिए योग्य नहीं रह पाती एवं उनके उत्पादकता में कमी हो जाती है। सीधी बुआई तकनीक अपनाकर उपरोक्त समस्याओं को कम किया जा सकता हैं एवं उच्च उत्पादन प्राप्त किया जा सकता हैं।


धान की सीधी बुआई उपयुक्त यंत्र 
धान की सीधी बुआई के लिए जीरो टिलेज ड्रिल अथवा मल्टीक्राॅप प्रयोग में लाया जाता हैं। जिन खेतों में फसलों के अवशेष हों और जमीन आच्छादित हो, वहाँ पर टरबो हैपी सीडर या रोटरी डिस्क ड्रिल जैसी मशीनों से धान की बुआई करनी चाहिए। जीरो टिल ड्रील अथवा मल्टीक्राॅप जीरो टीलेज ड्रील 35-45 हार्स पावर ट्रैक्टर से चलती हैं। इस मशीन में मिट्टी चीरने वाले 9 या 11 भालानुमा फार 22 से.मी. की दूरी पर लगे होते हैं और इसे ट्रैक्टर के पीछे बांध कर चलाया जाता हैं। नौ कतार वाली जीरो टिलेज ड्रिल से करीब प्रति घण्टा एक एकड़ में धान की सीधी बुआई हो जाती हैं। ध्यान देने योगय बात है कि बुआई के समय खेत में पर्याप्त नमी होनी चाहिए। बिना जुताई किए हुए खेतों में राईंस ट्रान्सप्लान्टर द्वारा भी 15 दिन पुराने बिचड़ों की रोपाई की जा सकती हैं, बशर्तें की भूमि समतल एवं सपाट हो।


सीधी बुवाई के लिए किस्मों का चयन:
किसान सही किस्मों का समयानुसार और क्षेत्रानुसार चयन करके अच्छी उत्पादन ले सकते हैं। धान की खेती सीधी बुआई करने हेतु किस्में निम्न प्रकार की हैं।


सीधी बुवाई का उचित समय:
सामान्यः धान की सीधी बुआई मानसून आने के करीब एक से दो सप्ताह पूर्व करना अच्छा होता हैं। देश के मध्य पूर्वोत्तर इलाके में मानसून का आगमन 10-15 जून तक होता है अतः धान की सीधी बुआई 31 मई तक हो जानी चाहिए। ऊपरी जमीन पर जहाँ पानी का भराव नहीं होता और अगेती प्रजातियाँ लगाना है वहाँ पर धान की सीधी बुआई 15 जुलाई तक कर सकते हैं। धान की सीधी बुआई का समय इस प्रकार हैः

खरीफ धान:
पिछेती किस्में: 140-155 दिन, 25 मई से 10 जून
मध्यम किस्में: 130-140 दिन, 10 जून से 25 जून
अगहनी एवं अगेती किस्में: 100-140 दिन, 25 जून से 15 जुलाई


ग्रीष्मकालीन धान: 01 से 15 मार्च


बीज की मात्रा एवं बीजोपचार:
सीधी बुआई विधि में जीरो टिलेज ड्रिल मशीन के द्वारा मोटे आकार के दानों वाले धान की किस्मों के लिए बीज की मात्रा 30-35 किलोग्राम, मध्यम धान की 25 से 30 किलोग्राम एवं छोटे महीन दाने वाले धान की 20 से 25 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर पर्याप्त होती हैं। बुआई से पूर्व धान के बीजों का उपचार अति आवश्यक हैं। सबसे पहले बीज को 8-10 घंटे पानी में भिंगोकर उसमें से खराब बीज को निकाल देते हैं। इसके बाद एक किलोग्राम बीज की मात्रा के लिए 0.2 ग्राम स्टेप्टोसाईवलीन के साथ 2 ग्राम कार्बेन्डाजिम मिलाकर बीज को दो घंटे छाया में सुखाकर मशीन के द्वारा सीधी बुआई करनी चाहिए।


धान की बुआई की तैयारी:
बुआई से पूर्व धान के खेत को यथासंभव समतल कर लेना चाहिए। यदि आर्थिक रूप से संभव हो तो भूमि को लेजर लेवलर मशीन से समतल कर लें। बुआई के समय खेत में पर्याप्त नमी की मात्रा उपलब्ध होनी चाहिए। जिस खेत में नमी की कमी हो अथवा बहुत ही कम हो, वहाँ पहले खरपतवारनाशी का प्रयोग करना चाहिए इसके एक सप्ताह बाद हल्की सिंचाई कर दें एवं खेत में उचित नमी आने पर मशीन द्वारा बुआई करना हितकर हैं। बुवाई करने से पूर्व जीरो टिल ड्रिल मशीन का अंश शोधन कर लेना चाहिए जिससे बीज एवं खाद निर्धारित मात्रा एक कप से एवं गहराई में पड़े। धान की सीधी बुआई करते समय बीज को 3-5 से.मी. गहराई पर ही बोना चाहिए। इससे ज्यादा गहरा करने पर अंकुरण कुप्रभावित होता हैं, जिससे धान की पैदावार में कमी आती हैं। मशीन द्वारा सीधी बुआई में कतार से कतार की दूरी 20 से.मी. एवं पौधे की दूरी 5-10 से.मी. होती हैं।


उर्वरक प्रबंधन:
मिट्टी परीक्षण के आधार पर संतुलित उर्वरकों, हरी खाद एवं जैविक खाद का समयानुसार एवं संस्तृत अवस्था में प्रयोग करना चाहिए। सामान्यतः सीधी बुआई वाली धान में प्रति हैक्टेयर 80-100 कि.ग्रा. नाइट्रोजन (75-217 कि.ग्रा. यूरिया), 40 किलो फाॅस्फोरस (250 कि.ग्रा. एस.एस.पी) और 20 किलो पोटाश (33 किलो म्यूरेट आफ पोटाश) की जरूरत होती हैं। नाइट्रोजन की एक तिहाई और फाॅस्फोरस तथा पोटाश की पूरी मात्रा बुआई के समय प्रयोग करना चाहिए। नाइट्रोजन की बाकी मात्रा (शेष मात्रा दो बराबर हिस्सों में कल्ले फूटते समय तथा बाली निकलने के समय प्रयोग करें)। अगर मिट्टी में गंधक की कमी पाई जाती है तो बुआई के समय ही 30 कि.ग्रा. गंधक प्रति हैक्टेयर की दर से उपयोग करना चाहिए एवं धान-गेहूँ फसल चक्र वाले क्षेत्रों में हर दो साल पर 25 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर जिंक सल्फेट का प्रयोग बुआई के समय करना चाहिए।


सिंचाई प्रबंधन:
धान की बुआई सीधी विधि द्वारा करने पर 40 से 60 प्रतिशत पानी की बचत पारंपरिक तरीके द्वारा धान की खेती की अपेक्षा होती हैं। धान के खेत में लगातार जल भराब की जरूरत नहीं होती। धान की सीधी बुआई के समय खेत में उचित नमी होता जरूरी है और सूखे बीज का प्रयोग किया गया है तो बुआई के 12 घंटे के अंदर हल्की सिंचाई देनी चाहिए। फसल के जमाव एवं 20-25 दिनों तक हल्की सिंचाई के द्वारा खेत में नमी बनाए रखना चाहिए। फूल आने से पहले व फूल आने की अवस्था में लगभग 25-30 दिन तक खेत में पर्याप्त नमी बनाए रखें। दाना बनने की अवस्था में एक सप्ताह तक पानी की कमी खेत में नहीं होनी चाहिए। मुख्यतः कल्ला फूटने के समय वाली, गाभा फूटते समय और दाना बनने वाली अवस्थाओं में धान के खेत में पर्याप्त नमी की कमी नहीं होने देना चाहिए। बिना कादों किए सीधी बुआई वाले धान के खेत में पानी सूखने पर बड़ी-बड़ी दरारे नही पड़ती हैं अतः इन खेतों में महीन दरार आने पर सिंचाई कर देनी चाहिए। कटाई से 15-20 दिन पहले सिंचाई बंद कर देनी चाहिए, जिससे फसल की कटाई आसानी से हो सके।


खरपतवार प्रबंधन:
सीधी बिजाई वाले धान में खरपतवार पर नियंत्रण एक जटिल एवं गम्भीर समस्या है। धान की बीजाई सूखे एवं नम मिट्टी में होने के कारण खरपतवार की बढ़वार के लिए उचित वातावरण मिलता है। अभी तक बाजार में ऐसा कोई भी रासायनिक खरपतवारनाशी उपलब्ध नहीं है, जिससे कि धान में पाये जाने वाले सभी प्रकार के खरपतवार पर नियंत्रण पाया जा सके। खरपतवार की समस्या के कारण धान की उत्पादकता औसतन 20-40 प्रतिशत और कुछ परिस्थितियों में इससे भी ज्यादा कम हो जाती है। अतः सीधी बिजाई वाले धान में खरपतवार पर नियंत्रण अत्यावश्यक है। अगर खरपतवार की उचित समय पर रोकथाम न की जाए, तो फसल की पैदावर व उसकी गुणवत्ता में कमी आ जाती है। इसलिए बुआई से पूर्व, बीज के अंकुरण से पहले एवं बुआई के बाद खरपतवारों की रोकथाम का समुचित प्रबंधन जरूरी हैं अन्यथा 50-80 प्रतिशत तक उपज में हानि हो सकती हैं।


धान की सीधी बुआई (जीरो टिलेज) तकनीक से लाभ:
धान की रोपाई विधि से खेती करने में जो समस्याएं आती हैं, उनका एक ही विल्पि है धान की सीधी बुआई तकनीक को अपनाना। धान की सीधी बुआई तकनीक के प्रमुख लाभ निम्नलिखित हैं:

  • 20 से 25 प्रतिशत पानी की बचत होती है क्योंकि इस विधि से धान की बुआई करने पर खेत में लगातार पानी रखने की आवश्यकता नहीं पड़ती हैं।
  • मजदूरों एवं समय की बचत होती हैं क्योंकि एस विधि में रोपाई करने की जरूरत नहीं पड़ती हैं।
  • धान की नर्सरी उगाने, खेत का कादों करने व रोपनी का खर्च बच जाता हैं।
  • रोपाई वाली विधि के तुलना में इस तकनीक में ऊर्जा व ईंधन की बचत होती है।
  • समय से धान की खेती शुरू हो जाती हैं इससे इसकी उपज अधिक मिलने की संभावना होती हैं।
  • पानी, श्रम एवं ईंधन की बचत के कारण सीधी बुआई में लागत कम आती हैं।
  • लगातार धान की खेती रोपाई विधि से करने पर कादों करने की जरूरत पड़ती है जिससे भूमि को भौतिक दशा पर बुरा असर पड़ता हैं, जबकि सीधी बुआई तकनीक मिट्टी की भौतिक गुणवत्ता को बनाई रखती हैं।
  • इस विधि से किसान जीरो टिलेज मशीन में खाद व बीज डालकर आसानी से बुआई कर सकते हैं एवं कादों तथा रोपाई से निजात पा लेता हैं।
  • रोपाई विधि के अपेक्षा सीधी बुवाई सामयिक हो जाती है और अधिक पैदावर मिलती हैं।
  • रोपाई विधि की तुलना में सीधी बुआई विधि से धान की खेती करने में बीज की मात्रा कम लगती है। इस विधि से धान की बुआई सीधे खेत में 50 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर की दर से की जाती हैं।
  • समय, श्रम, संसाधन एवं लागत की भी बचत होती हैं।