बकरी पालन (Goat farming) एक ऐसा व्यवसाय है जिसे किसान एवं पशुपालक आसानी से शुरू कर सकते हैं और किसान अतिरिक्त आय के लिए बकरी पालन करना भी चाहते हैं, बकरी पालन के लिए बहुत से किसानों को लोन की आवशयकता भी होती है परन्तु किसनों को जानकारी के आभाव में लोन नहीं मिल पाता है द्य बकरी पालन एक ऐसा व्यवसाय है जो कम जमापूँजी में अधिक मुनाफा देता है। इसके साथ यह जानवरों को एक अच्छा माहौल प्रदान कराता है। आज के युग में लोग बहुत से जानवरों का पालन करते हैं जिनका दाना-पानी और रहने की व्यवस्था उन्हें काफी महंगी पड़ती है। वहीं बकरी पालन एक सस्ता और टिकाऊ व्यवसाय है जिसमें पालन का खर्च कम होने के कारण आप ज्यादा से ज्यादा मुनाफा ले सकते हैं। बकरी पालकर बेचने का व्यवसाय आपके लिए बहुत ही फायदेमंद और उपयोगी साबित हो सकता है। बकरी पालन के व्यवसाय से निम्न तरीकों से मुनाफा कमाया जा सकता हैरू
- दूध देने वाली बकरियों को बेचकर.
- बकरियों को माँस के रूप में बेचकर.
- ऊन व खाल द्वारा प्राप्त आय से.
- बकरी की मींगणियों को खाद के रूप में बेचकर।
बकरी पालन के लिए गवर्नमेंट स्किम
बकरी पालन के लिए राज्य सरकारें अलग-अलग स्किम चला रही हैं। पशुपालन के लिए केंद्र प्रयोजित योजना है जो 10वीं पंचवर्षीय योजना के वर्ष 2005-06 तथा 2006-07 में 11वीं पंचवर्षीय योजना के वर्ष 2007-08 मे प्रयोग के तौर पर देश के 100 चुनिंदा जिलों में लागू की गई। अलग-अलग जिलों मे अलग-अलग योजनाओं का लाभ है। ये योजनाएं राज्य सरकार की ओर से चलाई जाती हैं। बकरी पालन यूँ तो काफ़ी आसान बिज़नेस है लेकिन हमें इसमें कई महत्वपूर्ण चीजों का ख़ास ध्यान रखना होता है। यह कुछ इस प्रकार से हैं।
- पालन के लिए सबसे पहले ध्यान रखना होता है कि उन्हें बकरियों को ठोस ज़मीन पर रखा जाए जहाँ नमी न हो । उन्हें उसी स्थान पर रखें जो हवादार व साफ़ सुथरा हो।
- बकरियों के चारे में हरी पत्तियों को जरूर शामिल करें। हरा चारा बकरियों के लिए बहुत फायदेमंद होता है।
- बारिश से बकरियों को दूर रखे क्योंकि पानी में लगातार भीगना बकरियों के लिए नुकसान दायक है।
- बकरीपालन के लिए तीन चीजें बहुत जरूरी होती हैं-
- बिना पैसों के कुछ नहीं होता और वैसे ही गोट फार्मिंग के लिए भी पैसा बहुत जरूरी है। भले ही आप छोटे स्तर से शुरुआत करें।
- बकरियों के लिए अच्छी जगह चुनें पर याद रहे जगह आपकी खुद की हो तो ज्यादा बेहतर रहेगा जिसे आम भाषा में बाड़ा कहते हैं। इनके लिए 1 से 2 एकड़ की जमीन की आवश्यकता होती है। रेन्ट या किराये पर बकरी पालन उचित नहीं होता व काफ़ी महंगा पड़ता है।
- इस व्यवसाय मे आपको धैर्य रखना बहुत जरूरी है। एकदम से इसमें आप मुनाफा नहीं कमा सकते उसके लिए 1 से 2 साल तक इंतजार करना होगा। यह बकरी की नस्ल पर भी काफ़ी हद तक निर्भर करता है की आपको मुनाफा कितने समय में शुरू हो जाता है।
6. बकरियों पर ध्यान रखने की आवश्यकता होती है। ये जब भी बीमार होती है तो सबसे पहले खाना.पीना छोड़ देती हैं। ऐसी स्थिति में पशु चिकित्सीय परामर्श भी लेते रहें।
बकरियों की सही नस्ल का चुनाव
भारत में बकरियों की 20 स्थापित नस्लें हैं। विशेष बात यह है की यहाँ इन नस्लीय बकरियों की संख्या से कई गुना अधिक अवर्णित नस्ल की बकरियाँ पायी जाती हैं। बकरी पालन के लिए सही बकरी का चुनाव करते समय यह विशेष ध्यान रखें की जो भी बकरी की नस्ल आप चुनें वह आप जिस स्थान पर आप रहते हैं उस वातावरण में ढ़लने लायक हो। अपने स्थान के हिसाब से ही बकरियों की सही नस्ल का चुनाव करें जिससे वो वातावरण के अनुकूल खुद को ढा़ल पाएँ। आपकी मदद के लिए नीचे कुछ नस्लें दी गई हैं।
ब्लैक बंगालः इस जाति की बकरियाँ पश्चिम बंगाल, झारखंड, असम, उत्तरी उड़ीसा एवं बंगाल में पायी जाती हैं। इसके शरीर पर कालाए भूरा तथा सफेद रंग का छोटा रोंआ पाया जाता हैं। अधिकांश;करीब 80 प्रतिशत बकरियों में काला रोंआ होता हैं। यह छोटे कद की होती है वयस्क नर का वजन करीब 18-20 किलो ग्राम होता है जबकि मादा का वजन 15-18 किलो ग्राम होता हैं।
ब्लैक बंगाल |
जमुनापारीः जमुनापारी भारत में पायी जाने वाली अन्य नस्लों की तुलना में सबसे उँची तथा लम्बी होती हैण् यह उत्तर प्रदेश के इटावा जिला एवं गंगाए यमुना तथा चम्बल नदियों से घिरे क्षेत्र में पायी जाती हैं।एंग्लोनुवियन बकरियों के विकास में जमुनापारी नस्ल का विशेष योगदान रहा हैं।
जमुनापारी |
बीटलः बीटल नस्ल की बकरियाँ मुख्य रूप से पंजाब प्रांत के गुरदासपुर जिला के बटाला अनुमंडल में पाया जाता हैं।पंजाब से लगे पाकिस्तान के क्षेत्रों में भी इस नस्ल की बकरियाँ उपलब्ध हैं। इसका शरीर भूरे रंग पर सफेद-सफेद धब्बा या काले रंग पर सफेद-सफेद धब्बा लिये होता
बारबरीः बारबरी मुख्य रूप से मध्य एवं पश्चिमी अफ्रीका में पायी जाती हैण् इस नस्ल के नर तथा मादा को पादरियों के द्वारा भारत वर्ष में सर्वप्रथम लाया गया। अब यह उत्तर प्रदेश के आगरा, मथुरा एवं इससे लगे क्षेत्रों में काफी संख्या में उपलब्ध हैं।
बीटल |
सिरोहीः सिरोही नस्ल की बकरियाँ मुख्य रूप से राजस्थान के सिरोही जिला में पायी जाती हैण् यह गुजरात एवं राजस्थान के सीमावर्ती क्षेत्रों में भी उपलब्ध हैं। इस नस्ल की बकरियाँ दूध उत्पादन हेतु पाली जाती है लेकिन मांस उत्पादन के लिए भी यह उपयुक्त हैं। इसका शरीर गठीला एवं रंग सफेदए भूरा या सफेद एवं भूरा का मिश्रण लिये होता हैण् इसका नाक छोटा परन्तु उभरा रहता हैं। कान लम्बा होता है, पूंछ मुड़ा हुआ एवं पूंछ का बाल मोटा तथा खड़ा होता हैं। इसके शरीर का बाल मोटा एवं छोटा होता हैं।यह सलाना एक वियान में औसतन 1-5 बच्चे उत्पन्न करती हैं। इस नस्ल की बकरियों को बिना चराये भी पाला जा सकता हैं।
सिरोही |