कृषि कार्ययोजना

  • गेहूँ  फसल में कन्से तथा गांठ बनने की अवस्था में सिंचाई करें।
  • गेहूँ  में गेरुआ रोग दिखने पर जिनेब (3 ग्राम) या ट्राइएडीमीफॅान 50 मि.ग्रा./10 लीटर पानी का छिड़काव करें।
  • मटर में गेरुआ रोग की रोकथाम हेतु ट्राइडेमॅार्फ (1 मि.ली./ली. पानी) का छिड़काव करें।
  • यह माह ग्रीष्मकालीन मूंग बोने के लिए अनुकूल हैं, जहां चना की कटाई हो गई हो वहां सीमित सिंचाई उपलब्ध होने की स्थिति में मूंग की बुवाई करें।
  • सरसों में माहू (एफिड) का प्रकोप बढ़ने की संभावना हैं। यदि माहू बढ़ता हैं, तो उसके रोकथाम के लिए डाइमिथोएट 30 ई.सी. 1000 मि.ली. प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।
  • सरसों में चूर्णी फफूँदी या भभूतिया रोग आने पर डिनोकेप (1 मि.ली.)/कार्बेन्डाजिम (1 ग्राम) दवा का प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करें।
  • दलहनी फसलों में पीला मोजेक रोग दिखाई देने पर रोगग्रस्त पौधों को उखाड़ कर नष्ट कर दें तथा इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस.एल. 250 मि.ली./हेक्टेयर कीटनाषक दवा का पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।
  • कद्दूवर्गीय सब्जियों जैसे- लौकी, करेला इत्यादि के अलावा बरबट्टी, भिंडी एवं अन्य ग्रीष्मकालीन सब्जियांे के अच्छे अंकुरण के लिए तापमान अनुकूल है। अच्छी तरह भुरभुरी खेत तैयार कर इन फसलों की बुवाई करें।
  • वर्तमान मौसम ग्रीष्मकालीन सब्जियों की बुवाई के लिए उपयुक्त हैं। अतः किसान भाइयों को सलाह दी जाती है कि कद्दूवर्गीय सब्जियों की पॉलिथीन बैग में नर्सरी तैयार करें, पत्तेदार सब्जियों की बुवाई करें एवं ग्रीष्मकालीन सब्जियों के लिए खेतों की तैयारी करें।
  • अदरक, हल्दी एवं कंदवग्रीय फसलों की खुदाई करें।
  • आम फसल में मिली बग से बचाव हेतु पेड़ में जमीन से ऊपर लगभग एक फिट में ग्रीस बैंड लगाएँ तथा पेड़ों के नीचे जमीन की जुताई कर क्लोरोपायरीफास 1.5ः चूर्ण का भुरकाव करें।
  • आम में फुदका कीट का प्रकोप होने पर मिथाइल डिमेटान 25 मि.ली. अथवा डायमिथोएट 30 ई.सी., 2 मि.ली./लीटर पानी की दर से छिड़काव करें। षाम के समय आम के बगीचे में जगह-जगह सूखा कचरा इकट्ठा कर जला कर उसमें गंधक चूर्ण डालकर धूम्रण करें।
  • गन्ने की बुवाई के पूर्व लगाने वाले टुकड़ों को दीमक से बचाव हेतु क्लोरपायरीफास 20 ई.सी. दवा के घोल से उपाचारित कर लें।
  • ग्रीष्मकालीन फसलों की बुवाई के पूर्व दीमक तथा अन्य जड़ के हानिकारक कीटों से बचाव हेतु मिट्टी का उपचार क्लोरपायरीफास 1.5ः चूर्ण से 25 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर से करें।
  • आलु में पछेती अंगमारी रोग आने पर मेटालेक्जिल (1.5 ग्राम) दवा का प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करें। आवष्यकतानुसार 8-10 दिन में दोबारा छिड़काव करें।
  • प्याज के बैगनी धब्बा (परपल ब्लाच) रोग की रोगथाम के लिये मेन्कोजेब/ताम्रयुक्त दवा (3ग्राम)/थायोफिनेट मिथाइल या कार्बेन्डाजिम (1 ग्राम)/साफ सुपर (2 ग्राम) में से किसी एक दवा का छिड़काव करें।

पशुपालन कार्ययोजना

  • क्षय रोग (एंथे्रक्स) संक्रमण वाले इलाकों में पालतू पषुओं को एंथे्रक्स का टीका लगवायें।
  • अगर्भित भैंसो के गर्भाधान पर विषेष ध्यान देवें।
  • पशुओं के षरीर पर बाह्य परजीवियों (जूँ, किलनी, पिस्सू आदि) का प्रकोप होने पर कीटनाशक दवाओं का छिड़काव (स्प्रेइंग एवं डस्टिंग) करें। भेड़-बकरियों एवं आवश्यक होने पर अंडा देने वाली मुर्गियों की डिपिंग (कीटनाशक दवा के घोल में डुबाना, जैसे साइपरमेथ्रिन 0.1 से 0.2ः या मेलाथियान 0.5ः) की व्यवस्था करें।
  • हरा चारा सुखाकर ही तैयार करें।

(स्त्रोतः इंदिरा गांधी कृषि विष्वविद्यालय, रायपुर)