साधारण दवाइयाँ

1. मैग्नीशियम सल्फेट- रंगहीन, गंधहीन, रबेदार पदार्थ हैं इसे मैगसल्फ के नाम से भी जाना जाता हैं इसका जुलाब के रूप में प्रयोग किया जाता हैं प्रति बड़े पशु मात्रा 250-300 ग्राम। 

2. अंडी का तेल- इसका तेल गाढ़ा होता हैं 500-600 ग्राम व 30-60 ग्राम की मात्रा जुलाब के रूप में क्रमश: बड़े पशुओं व बच्चों को दिया जाता हैं। 

3. फिनाइल- किटाणुनाशक खुरपका मुँह पका रोग में खुर धोने के लिए 5ः (अनुपात) तथा मुँह के अन्दर लगाने के लिए 10ः का घोल प्रयोग किया जाता हैं। 

4. कार्बोलिक एसिड- कीटाणुनाशक, घाव धोने में 1ः (अनुपात) व फ़र्श आदि धोने में 5ः (अनुपात) घोल प्रयोग में करते हैं। 

5. पोटेशियम परमेग्नेट- कीटाणुनाशक रंग लाल, 5ः (अनुपात) का घोल साधारण सफाई में और 0.1ः (अनुपात) से 1ः (अनुपात) का घोल घाव धोने में साँप काटने पर इसके दवों का प्रयोग किया जाता हैं इसे लाल दवा के नाम से भी जाना जाता हैं। 

6. लाइसोल- 2ः (अनुपात) का घोल बच्चेदानी के धोने में तथा 1ः (अनुपात) का घोल अन्य कार्यों में प्रयोग किया जाता हैं। 

7. कपूर- इसको 6-8 गुना सरसों या जैतुन के तेल में मिलाकर चोट, मोच, दर्द में मालिश करते हैं यह उत्तेजक हैं, 2-4 ड्राप खाँसी व जुकाम में देते हैं। 

8. एल्कोहल (शराब)- उत्तेजक हैं कमजोरी अवस्था में या पाचन क्रिया मन्द होने पर 100-150 मिली. प्रति पशु देते हैं। 

9. नीला थोथा या तूतिया- यह काॅपर सल्फेट होता हैं इसका उपयोग पेट के कीड़े मारने, बमन कराने, त्वचा के परजीवियों को मारने में किया जाता हैं खुरपका के छालों के ऊपरी 1ः (अनुपात) का घोल दिन में कई बार डाला जाता हैं। 

10. फिटकरी- यह द्रवों को जमाती व जन्तुओं को संकुचित करती हैं। खून को बहाने से रोकती हैं इसका 2 से 5ः  (अनुपात) का घोल प्रयोग में लाया जाता हैं। 

11. टिंचर ऑफ आयोडीन- इसमें आयोडीन पोटेशियम डाइक्लोराइड पानी और एल्कोहल होता हैं यह एन्टीसेप्टिक डिसइन्फेक्टेन्ट पैराराइटी साइड एक्सपेक्टोरेन्ट हैं। 

12. तारपीन का तेल- इस तेल का एक भाग, सरसों के तेल का चार भाग, अमोनियम फोर्ट एक भाग और पानी आधा भाग में फेंटकेर चोट मोच गठिया पर मालिश करते हैं। 

13. सरसों का तेल- खून का दौरा कम होने पर इससे मालिश की जाती हैं कुपच होने पर बच्चों को 50 ग्राम व बड़े जानवरों को 200-300 ग्राम दिया जाता हैं। 

14. कत्था, खड़िया- पेचिस व दस्त रोकने में प्रयोग की जाती हैं 30 ग्राम खड़िया, 15 ग्राम कत्था व 200 ग्राम बेलगुदा मिलाकर देना चाहिए। 

15. कलमी शोरा- पानी में घोलकर पिलाने से खून बन्द करता हैं बुखार में भी प्रयोग करता हैं। 

इसके अतिरिक्त सोंफ पेट की खराबी में 30-60 ग्राम, हींग अफरा व मरोड़ में 2-4 ग्राम, काला नमक हाजमा ठीक करने के लिए 2-4 ग्राम, सोहागा मुँह का जख्म धोने के लिए (3 भाग सुहागा, 22 भाग ग्लिसरीन) सोंठ ऐंठन कम करता हैं खुराक 1-2 ग्राम, ईसबगोल दस्त में 30-60 ग्राम, कुचला बलवर्धक, बिश हाजमा ठीक करता हैं खुराक 1-2 ग्राम। 

पशुओं को दवा देने की विधियाँ 

1. बाँस या बोतल से पानी के साथ घोलकर पिलाना। 

2. चटनी, लोऐ, गोली तथा केप्सूल के रूप में दवा खिलाना। 

3. एनीमा द्वारा जब पशु खाने में असमर्थ हों। 

4. दवा का वफारा-साँस की बीमारियों में दिया जाता हैं। 

5. दवा के पानी से गरम सेंक, दवा के पानी में डुबाना। 

6. पुल्टिस-अलसी की पुल्टिस फोड़ा पकने में या सेंक लगाने के लिए। 

7. सुई द्वारा यह तीन प्रकार से ही हो सकता हैं- 
  1. त्वचा के अन्दर। 
  2. माँसपेसी के अन्दर। 
  3. शिरा के अन्दर।