हमारे देश में धान की खेती व्यापक स्तर पर होती हैं। धान की फसल में विभिन्न प्रकार के कीटों का प्रकोप होता है जिससे काफी बड़े स्तर पर उत्पादन पर असर पड़ता हैं। इन्हीं कीटों में से माहो कीट के प्रबंधन की जानकारी प्रस्तुत हैं। माहो कीट मुख्य रूप से तीन प्रकार के होते हैं- हरा माहो, सफेद माहो एवं भूरा माहो। सफेद माहो, भूरा माहो एवं हरा माहो कीट का प्रकोप क्रमशः फसल की थरहा, गभोट एवं बाली अवस्था में होती हैं। सफेद माहो एवं भूरा माहो पौधे के मुख्य तने से एवं हरा माहो पत्तियों से रस चूसकर पौधे को कमजोर करती हैं। कीट के प्रकोप की तिव्रता अधिक होने पर कई बार संपूर्ण फसल नष्ट हो जाती है इसलिए इस कीट का समय पर उचित प्रबंधन आवश्यक हैं।
हरा माहो (निफोटेटिक्स विरसेन्स)
कीट की पहचानः वयस्क माहो लगभग 5 मि.मी. लंबे हरे चमकदरा होते हैं। इनके अग्र पंखों पर काले रंग के धब्बे होते हैं नर वयस्कों के अग्र पंखो के सिर काले होते हैं, जबकि मादा वयस्कों के अग्र पंखो के सिर भूरे रंग के होते हैं। इन कीटों का सिर उल्टे वाई आकार का होते हैं। पैरों पर कांटेदार रोम पाये जाते हैं। शिशु सफेद रंग के होते हैं, जो कि बाद में हरे रंग के हो जाते हैं। ये समूह में पत्तियों पर देखी जा सकती हैं।

लक्षणः इस कीट के शिशु एवं वयस्क दोनों प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष रूप से हानि पहुँचाते हैं, हरा माहो पत्तियों से रस चुसकर पौधे को कमजोर करती हैं। पौधे की बढ़त की पहली अवस्था के दौरान माहो के हमले से पौधे में कल्लों की संख्या, ऊँचाई और उसकी ताकत घट जाती हैं, लेकिन तेज और कड़े हमले के मामले में पत्तियां पीली सी दिखाई देती हैं। ये कीट धान की फसल में टुंगरू वायरस एवं पीला बोना बिमारी (येंलो ड्वार्फडीसीज) के वाहक के रूप में काम करता हैं। टुंगरू विषाणु रोग से प्रभावित पौधों की बढ़त रूक जाती है और उनके कल्ले कम हो जाते है, शरूआत की पत्तियाँ हल्की हरी से पीली होती हैं। इस बिमारी से प्रभावित पत्तियाँ जल्दी ही सुख जाती है, यदि पौधे शुरूआत की अवस्थाओं के दौरान ही इस बिमारी की चपेट में आ जाते हैं तो उनके फूलों के गुच्छे नही निकल पाते हैं।

प्रबंधनः मेढ़ों और खेतों के आसपास लगी घास व अन्य खरपतवारों की सफाई करने से कीटों को अण्डा देने से रोका जा सकता हैं। प्रकाश प्रपंच का प्रयोग माहो कीट को आकर्षित करने हेतु शाम 6 बजे से रात्रि 10 बजे तक चालु रखें एवं ध्यान रहें कि इससे अधिक समय तक रखने पर मित्रकीट भी आकर्षित होने लगते हैं। आकर्षित हुये माहो कीटों को मिट्टी तेल युक्त पानी में डुबाकर मारा जा सकता हैं। रासायनिक उर्वरकों की संतुलित मात्रा फसल को दे, क्योंकि नत्रजन की अधिकता होने से पौधों में हरापन के साथ-साथ कोमलता भी बढ़ने लगती है जो कि हरा माहो के प्रकोप हेतु अनुकूल परिस्थिति पैदा करता हैं। हरा माहो की संख्या 15-20 कीट प्रति पौधा होने पर इमिडाक्लोप्रिड 17.8 प्रतिशत एस.एल. 100-125 मि.ली. दवा को 500 लीटर पानी में घोलकर सुबह या शाम के समय छिड़काव करना प्रभावकारी होता हैं। नीम और करंज के तेल 1:4 अनुपात में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए।

सफेद माहो (सोगाटेला फर्सीफेरा)

कीट की पहचानः यह कीट सफेद पीठ वाले छोटे आकार के होते हैं वयस्क माहो की पीठ पर काली धारी होती हैं। इसका सिर सूंड की भांति आगे निकला होता हैं तथा पैरों पर कम संख्या में रोम होते हैं। पंख की शिरायें गहरे रंग की होती हैं।

लक्षणः इस कीट के शिशु एवं वयस्क दोनों ही पौधो से रस चूसकर हानि पहुँचाते हैं। प्रकोपित फसल की पत्तियाँ पीली होने लगती है एवं अग्र सिरे से सूखना आरम्भ करती है यह कीट मुख्य तना से भी रस चूसकर पौधे को कमजोर करती हैं। इस कीट द्वारा उत्सर्जित मधुरस पर पत्तियों के ऊपर काली फफूँद विकसित हो जाती हैं, जिससे प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में बाधा उत्पन्न होती है कीट प्रकाप की तीव्रता होने पर फसल गोल घेरे में झुलसी हुई प्रतीत होती है जिसे हाॅपर-बर्न अथवा माहो जलन कहा जाता हैं।

प्रबंधनः मेढ़ों और खेतों के आसपास लगी घास व अन्य खरपतवारों की सफाई करना चाहिए। प्रकाश प्रपंच के प्रयोग से मादा कीट को आकर्शित करके उसको मार सकते हैं। नत्रजन युक्त खाद का अधिक उपयोग कीट को प्रोत्साहित करता हैं। अतः इनका संतुलित मात्रा में प्रयोग करना चाहिए। खेत में भरे पानी को 3-4 दिन में ही बाहर निकाल देना चाहिए, इससे इनका प्रजनन स्थान बाधित हो जाती हैं। पौधों के बीच का अंतरण 20x15 सें.मी. उत्तम हैं। रोपा लगाते समय प्रत्येक 3 मी. के पश्चात 30 सें.मी. का पथ निरीक्षण करने के लिए छोड़ दें, जिससे फसल के अंदर हवा का आवागमन सुचारु रूप से होता रहे। कीट की संख्या 15-20 प्रति पौधा होने पर 3 प्रतिशत नीम तेल प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए। रासायनिक नियंत्रण के लिए इमिडाक्लोप्रिड 70 प्रतिशत डब्ल्यू.जी. 30-35 ग्राम को 300-375 लीटर पानी में घोलकर सुबह या शाम के समय छिड़काव करें या थायामेथोक्सान 25 प्रतिशत डब्ल्यू.जी. 100 ग्राम या ब्यूप्रोफेजिन 25 एस.सी. की 500-750 मि.ली. मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें

भूरा माहो (निलापरवता लूजेन्स)
कीट की पहचानः कीट हल्के भूरे रंग का होता हैं एवं इसकी लंबाई लगभग 3 मि.मी. होती हैं धान के पौधे की मुख्य तना पर ये समुह में बैठकर रस चसूते हैं। यह कीट धान के खेत की जल स्तर के ठीक ऊपर पाये जाते हैं।

लक्षणः भूरा माहो कीट के शिशु एवं प्रौढ़ दोनों अवस्थाओं में फसल को हानि पहुँचाते है। यह पौधे की मुख्य तना से रस चुसकर जाइलम एवं फ्लोयम को बंद कर देते है और तने के बीच के पिथ को भी क्षतिग्रस्त करता हैं। जिसके फलस्वरूप पत्तियाँ सूखी हुयी एवं भूरे रंग की हो जाती है इस अवस्था को माहो जलन (हाॅपर-बर्न) कहते हैं। प्रभावित पौधे की ऊँचाई घट जाती हैं। प्रारंभ में यह एक स्थान में रहते है कि वृद्धि की प्रारंम्भिक अवस्था में होता है तो पौधों में कल्ले नही निकल पाते एवं यदि पुष्प गुच्छे निकलने के बाद आक्रमण होता है तो अधिकांश बालों में दाने नही बनते। यह कीट उकठा स्टंट (विल्टेड स्टंट) एवं विषाणु जनित बीमारी ग्रासी स्टंट, रेजेड स्टंट के लिए वाहक का काम करती हैं। इस कीट की आक्रमण अधिक होने पर कभी-कभी सारी फसल नष्ट हो जाती हैं। कीट गर्म वातावरण एवं अधिक आद्र्रता की दशाओं में अधिक सक्रिय रहता हैं। धान कटने के पश्चात यह घास एवं खरपतवार पर जीवन निर्वाह करता हैं।

प्रबंधनः निंदाई करते समय सांवा के पौधों को खेत में जगह-जगह पर छोड़ देवें इससे भूरा माहो के परभक्षी कीट मिरीड बग्स (सिरटोरीनस लाइवीडाइपेनीस) जो भूरा माहो एवं हरा माहो दोनों के अण्डे एवं शिशु को खाता हैं। सांवा के दुध को पीकर अपना वंश आगे बढ़ाते हैं। भूरा माहो के शिशु परजीवी कीट स्यूडोगोनाटोपस स्पेसीज (बर्र/वेस्प) के आश्रय हेतु खेत के मेढ़ों पर फूलों वाले पौधे लगाये जाने चाहिए। भूरा माहो के अधिक प्रकोप होने पर खेत में भरे हुए पानी को निकाल देना चाहिए इससे कीट पौधे के आधारीय भाग पर अण्डा सड़ जाते हैं। खेत के आसपास दूब घास को निकाल देना चाहिए, क्योंकि ये इन्हे आश्रय प्रदान करता हैं। प्रकाश प्रपंच का प्रयोग कीट को आकर्षित करने के लिए किया जाना चाहिए रासायनिक खादों (फर्टिलाइजर) का संतुलित मात्रा (100 कि.ग्रा. से ऊपर) यूरिया के प्रयोग से भूरा माहो की संख्या प्रति पौधा 15-20 होने पर नीम बीज निचोड़ की 1500-2500 मि.ली. मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए। रासायनिक नियंत्रण हेतु ब्यूप्रोफेजिन 25 एस.सी. की 500-750 मि.ली. मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें या थायामेथेाक्सान 25 प्रतिशत डब्ल्यू.जी. 100 ग्राम अथवा इमिडाक्लोप्रिड 200 एस.एल. की 125 मि.ली. मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें।