जैविक खेती बन रही आत्मनिर्भरता की मिसाल

राजनांदगांव जिले के ग्राम मोखला और भर्रेगांव की महिला स्व-सहायता समूहों ने प्राकृतिक खेती को जीवन का नया आधार बनाकर एक प्रेरक उदाहरण प्रस्तुत किया है। प्रयास एवं उन्नति स्व-सहायता समूह की कृषि सखियों ने रसायन-मुक्त खेती को बढ़ावा देने के लिए जैविक उत्पादों के निर्माण एवं विक्रय का कार्य प्रारंभ कर आर्थिक समृद्धि की दिशा में कदम बढ़ाया है।

राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन के अंतर्गत समूहों को तकनीकी प्रशिक्षण प्रदान किया गया, जिसके माध्यम से कृषि सखियों ने जीवामृत, बीजामृत, धनामृत, अग्न्यास्त्र, ब्रह्मास्त्र, निमास्त्र तथा दशपर्णी अर्क जैसे उच्च गुणवत्ता के जैव उत्पाद तैयार किए। इन उत्पादों के माध्यम से न केवल किसानों की लागत में उल्लेखनीय कमी आई है, बल्कि रसायनों के दुष्प्रभाव से भी उन्हें मुक्ति मिल रही है।

महिला समूहों की नवाचारी पहल को देखते हुए कृषि विभाग द्वारा 375 एकड़ क्षेत्र में प्राकृतिक खेती क्लस्टर विकसित कर उन्हें जैव आदान सामग्री आपूर्ति की जिम्मेदारी सौंपी गई। जैव आदान विक्रय केन्द्र (बीआरसी) के माध्यम से समूह द्वारा किसानों को बोवाई से लेकर कटाई तक आवश्यक जैविक सामग्री उपलब्ध कराई जा रही है। ग्राम धामनसरा, ढोडिया, भोडिया, मोखला, भरेगांव, बांकल और पनेका के किसानों को 1200 लीटर दशपर्णी अर्क, ब्रह्मास्त्र एवं निमास्त्र का वितरण किया गया तथा इनके उपयोग की विधि भी समझाई गई।

इस अभिनव कार्य से समूह की कृषि सखियों ने खरीफ सीजन में प्रति समूह लगभग एक लाख रुपये की आय अर्जित की है। बीआरसी समूह की अध्यक्ष श्रीमती नीतू चंद्राकर के अनुसार जैविक उत्पाद निर्माण से न केवल आजीविका के अवसर बढ़े हैं, बल्कि ग्रामीणों को जहरीले रसायनों से होने वाले दुष्प्रभावों के प्रति जागरूक करने का भी अवसर मिला है। वह चाहती हैं कि अधिक से अधिक महिलाएं इस अभियान से जुड़कर प्राकृतिक खेती को गांव-गांव तक पहुंचाएं।