प्रगति ताम्रकार, एम. एससी स्कॉलर, वृक्षारोपण, मसाले, औषधीय और सुगंधित फसलें विभाग,
डॉ. मेधा साहा, सहायक प्रोफेसर, फूलों की खेती और लैंडस्केप वास्तुकला विभाग,
उमेश कुमार यदु,पीएच.डी. स्कॉलर, फूलों की खेती और लैंडस्केप आर्किटेक्चर विभाग,
पंडित केएलएस, कॉलेज ऑफ हॉर्टिकल्चर एंड रिसर्च स्टेशन, राजनांदगांव, एमजीयूवीवी, दुर्ग, छत्तीसगढ़

राउवोल्फिया सर्पेन्टिना की सूखी जड़े जिसे आमतौर पर सर्पेन्टाइन रूट या सर्पेन्टिना रूट के नाम से जाना जाता है प्राचीन काल से देशी चिकित्सा पद्धति में इस्तेमाल की जाने वाली सबसे महत्वपूर्ण अपरिष्कृत औषधियों में से एक है। इस मूल औषधि और इससे प्राप्त एल्कलॉइड्स के महत्व को एलोपैथिक चिकित्सा पद्धति में उच्च रक्तचाप के उपचार या शामक और शांतिदायक कारक के रूप में मान्यता प्राप्त है। इस पौधे की जड़ों से बड़ी संख्या में एल्कलॉइड्स जैसे कि

अजमालिसिन अजमालाइन मैलिनिन रेसिनामाइन रेसर्पाइन रेसर्पिनिन सर्पेन्टाइन, सर्पेन्टाइन आदि पृथक किए गए हैं। इसके बाद इस पौधे की खेती के प्रयास किए गए। भारत प्रतिवर्ष लगभग 4 टन, 0.43 मिलियन रुपये मूल्य का, अन्य देशों को निर्यात करता है। आर. सर्पेन्टिना भारत और उसके पड़ोसी देशों का मूल निवासी है। यह गंगा के मैदानों, हिमालय की निचली पहाड़ियों और पश्चिमी घाटों में भी जंगली रूप से उगता है।

किस्में

आरएस-1
जेएनकेवीवी कृषि महाविद्यालय इंदौर द्वारा विकसित। इसके बीज भंडारण (7 महीने तक) के बाद भी अच्छा अंकुरण देते हैं 18 महीने की उम्र में हवा में सुखाई गई जड़ें (2.5 टन/हेक्टेयर) देते हैं जिनमें कुल एल्कलॉइड का 1.64 से 2.94% होता है।

सीआईएम-शील
सीआईएमएपी, लखनऊ द्वारा विकसित, यह एक उच्च उपज देने वाली किस्म है।

जलवायु और मिट्टी
सर्पगंधा विभिन्न प्रकार की जलवायु परिस्थितियों में उगता है। हालाँकि, पर्याप्त वर्षा वाले उष्णकटिबंधीय और आर्द्र क्षेत्र इसके लिए सबसे उपयुक्त स्थान हैं जहाँ यह प्रचुर मात्रा में पनपता है और इसे खुली या आंशिक छाया में उगाया जा सकता है। इसके पौधों के लिए 10-30°C तापमान अनुकूल पाया गया है। यह समुद्र तल से 1300 मीटर की ऊँचाई तक बढ़ता है।

यह पौधा रेतीली जलोढ़ कोम से लेकर अम्लीय से लेकर उदासीन प्रतिक्रिया वाली लाल लैटेराइट दोमट मिट्टी तक, विभिन्न प्रकार की मिट्टी में उगता है।

प्रवर्धन

1. बीज से पौधे तैयार करना- लगभग 5.5 किलो बीज को 0.05 हेक्टेयर नर्सरी क्षेत्र में बोने से एक हेक्टेयर खेत के लिए पर्याप्त पौधे मिल जाते हैं। बीज तीन सप्ताह में अंकुरित हो जाते हैं। पौधे लगभग 0.5 मीटर ऊँचे होते हैं और इनमें कई फूल आते हैं।

2. जड़ की कटिंग - मुख्य जड़ (टैप रूट) और साइड की जड़ों (लेट्रल रूटलेट्स) से 2.5 से 3.0 सेमी लंबी कटिंग्स तैयार की जाती हैं। इन्हें बरसात की शुरुआत (मॉनसून) में 5 सेमी गहराई वाले गड्ढों में लगाया जाता है और ऊपर से 2.5 से 5.0 सेमी मिट्टी की परत डाल दी जाती है।अगर नमी बनी रहे तो कटिंग्स तीन सप्ताह में अंकुरित हो जाती हैं।

3. तने की कटिंग - 15 से 20 सेमी लंबी कटिंग्स जिनमें तीन गांठें (internodes) हों, जुलाई-अगस्त में नर्सरी में लगाई जाती हैं।मिट्टी नम रखी जाती है।इनमें लगभग 60 दिनों में जड़ें बन जाती हैं, उसके बाद इन्हें मुख्य खेत में लगाया जा सकता है।इस विधि से 40 से 65 प्रतिशत तक सफलता मिलती है।

पौधों का रोपण
इंदौर कृषि महाविद्यालय द्वारा ‘RI-1’ नाम की एक उन्नत किस्म विकसित की गई है।जून-जुलाई महीने पौधों के रोपण के लिए सबसे उपयुक्त हैं।7.5 से 12 सेमी ऊँचे पौधों को सावधानीपूर्वक नर्सरी से निकालकर खेत में लगाया जाता है और तुरंत सिंचाई की जाती है।

बाद की देखभाल
25–30 टन प्रति हेक्टेयर की दर से गोबर की खाद, पत्ती की सड़ी खाद (leaf mould) और कंपोस्ट डालनी चाहिए।साथ ही 20 किलो नाइट्रोजन (N), 30 किलो फास्फोरस (P₂O₅) और 30 किलो पोटाश (K₂O) की बेसल डोज दी जाती है।बढ़वार के मौसम में हर साल 20 किलो नाइट्रोजन की दो टॉप ड्रेसिंग करनी चाहिए।

सिंचाई
रोपण के बाद नियमित सिंचाई आवश्यक है।गर्मियों में हर 15 दिन पर सिंचाई करनी चाहिए। सर्दियों में महीने में एक बार। बारानी परिस्थितियों में पैदावार बहुत कम होती है।

मिश्रित खेती
हालाँकि अकेले फसल के रूप में लगाने पर जड़ की पैदावार अधिक होती है,लेकिन बरसात में सोयाबीन और सर्दी में लहसुन या प्याज के साथ मिलाकर खेती करने की सलाह दी जाती है।यह पौधा केला, पपीता या आम के बगीचे के नीचे भी लगाया जा सकता है,परंतु खुले स्थानों में पौधे अधिक अच्छे से बढ़ते हैं।

खुदाई और कटाई
राउल्फिया सर्पेंटाइना की जड़ों को 2 से 3 वर्ष बाद खोदना सबसे उचित रहता है,क्योंकि इस समय तक मुख्य मोटी जड़ और सहायक रेशेदार जड़ें पूरी तरह विकसित हो जाती हैं और औषधीय उपयोग के लिए उपयुक्त होती हैं। पौधे की जड़ों को इसलिए इकट्ठा किया जाता है क्योंकि इनमें एल्कलॉइड (औषधीय तत्व) की मात्रा अधिक होती है।जड़ें मिट्टी में गहराई तक जाती हैं, इसलिए इन्हें निकालने के लिए खुरपी या खोदने वाले फोर्क (digging fork) का उपयोग किया जाता है।खुदाई से पहले सिंचाई करने से जड़ों (मुख्य और सहायक दोनों) को निकालना आसान हो जाता है।कटाई के समय जड़ की छाल (root bark) को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहिए, क्योंकि छाल में लकड़ी की तुलना में एल्कलॉइड की मात्रा अधिक होती है।

जड़ों का सुखाना और भंडारण –
कटाई के बाद जड़ों को अच्छी तरह सुखाया जाता है।पहले हवा में सुखाया जाता है और फिर कृत्रिम तरीके से (artificial drying) सुखाकर नमी लगभग 3% तक कम की जाती है।सुखी हुई जड़ों को 15–20 सेमी के छोटे टुकड़ों में तोड़कर हवादार बंद कंटेनरों में ठंडी और सूखी जगह पर रखा जाता है।भंडार (godown) में रखी जड़ों को समय-समय पर हवा में फैलाना चाहिए, ताकि फफूंदी या कीट नुकसान न करें।

उपज (Yield)
एक अच्छी फसल से लगभग 2000 किलो सूखी जड़ें प्रति हेक्टेयर प्राप्त की जा सकती हैं।इन जड़ों, विशेषकर उनकी छाल से, शुद्ध एल्कलॉइड (औषधीय रसायन) निकाले जाते हैं।जड़ की छाल में औसतन 2.4% एल्कलॉइड पाया जाता है,जबकि जड़ की लकड़ी में केवल 0.40%।रेशेदार जड़ों (fibrous roots) में लगभग 2.52% एल्कलॉइड होता है।तना और पत्तियाँ में 0.45–0.54% एल्कलॉइड पाया जाता है।विभिन्न स्थानों से प्राप्त जड़ों में कुल एल्कलॉइड मात्रा 0.7% से 3.0% तक पाई जाती है।

रोग और कीट नियंत्रण
राउल्फिया सर्पेंटाइना (R. serpentina) पौधा कई बीमारियों से प्रभावित होता है, जैसे —पत्तियों के धब्बे (Leaf spot),झुलसा रोग (Leaf blight),पाउडरी मिल्ड्यू (Powdery mildew),और डाई-बैक रोग (Die-back disease)। इन रोगों के नियंत्रण के लिए —0.5% बोर्डो मिश्रण (Bordeaux mixture) का 2–3 बार छिड़काव, तथा 0.2% डिथेन Z-78 का स्प्रे करने की सलाह दी जाती है।