डॉ. पी. मुवेंथन (वरिष्ठ वैज्ञानिक), डॉ. गुंजन झा (वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रमुख, कृषि विज्ञान केंद्र, राजनांदगांव),
सुमन सिंह (वरिष्ठ अनुसंधान सहायक, एनएएसएफ परियोजना), एवं डॉ. हेम प्रकाश वर्मा (वरिष्ठ अनुसंधान सहायक, एफएफपी परियोजना)
भाकृअनुप. - राष्ट्रीय जैविक स्ट्रेस प्रबंधन संस्थान, बारोंडा, रायपुर (छत्तीसगढ़)
प्रो ट्रे नर्सरी क्या है?
प्रो-ट्रे नर्सरी सब्ज़ियाँ उगाने का एक नया और स्मार्ट तरीका है। मिट्टी में बीज बोने के बजाय, छोटे छेद वाली छोटी प्लास्टिक ट्रे का इस्तेमाल किया जाता है। ये ट्रे एक खास हल्के, साफ और पौष्टिक पदार्थ से भरी होती हैं जो बीजों को तेज़ी से और स्वस्थ रूप से बढ़ने में मदद करती हैं। प्रत्येक छेद में केवल एक बीज रखा जाता है ताकि उन्हें आपस में प्रतिस्पर्धा न करनी पड़े और वे मज़बूत जड़ें विकसित कर सकें। इस तरह उगाए गए पौधे आसानी से निकाले जा सकते हैं, स्वस्थ रहते हैं और ज़मीन में रोपने के बाद तेज़ी से बढ़ते हैं। क्योंकि कम जगह में कई स्वस्थ पौधे उगाए जा सकते हैं, इसलिए यह तरीका किसानों के लिए ढेर सारी सब्ज़ियाँ उगाने, अच्छी गुणवत्ता वाले पौधे प्राप्त करने और ज़्यादा कमाई करने में बहुत मददगार है।
प्रो ट्रे के प्रकार एवं संरचना
प्रो ट्रे मज़बूत, हल्की प्लास्टिक की ट्रे होती हैं जिनका कई बार इस्तेमाल किया जा सकता है। इनका इस्तेमाल नई सब्ज़ियों को बाहर रोपने से पहले उगाने के लिए किया जाता है। इन ट्रे में कई छोटे-छोटे छेद होते हैं जिन्हें कोशिकाएँ कहते हैं, और हर कोशिका में सिर्फ़ एक बीज होता है। हर कोशिका का आकार पौधे की छोटी जड़ों को ठीक से बढ़ने और बढ़ते समय सुरक्षित रहने में मदद करता है।
1. प्रो ट्रे के प्रकार (सेल संख्या के आधार पर)
किस पौधे की नर्सरी बनानी है, उसके अनुसार ट्रे चुनी जाती है:
- 50 सेल ट्रे – बड़े बीज वाली फसलों के लिए (कद्दू, लौकी, तरबूज आदि)
- 70/72 सेल ट्रे – थोड़ा बड़े पौधों के लिए
- 98 सेल ट्रे – टमाटर, मिर्च, बैंगन के लिए
- 104 सेल ट्रे – गोभी–फूलगोभी जैसे पौधों के लिए
- 128 सेल ट्रे – छोटे बीज वाली सब्ज़ियाँ (प्याज, पत्तीदार सब्ज़ियाँ)
सेल जितने ज्यादा होंगे, उनका आकार उतना छोटा होगा, इसलिए छोटे बीजों के लिए ज्यादा सेल वाली ट्रे उपयोग होती हैं।
2. प्रो ट्रे की संरचना
- मजबूत प्लास्टिक की बनी होती है ताकि कई बार इस्तेमाल की जा सके।
- इसमें खाँचे (सेल) बराबर दूरी पर होते हैं ताकि पौधे समान रूप से बढ़ें।
- हर सेल के नीचे नाली/छेद होता है जिससे अतिरिक्त पानी निकल सके और जड़ें सड़ें नहीं।
- ट्रे हल्की होती है, इसलिए एक जगह से दूसरी जगह ले जाना आसान।
- ट्रे का ऊपरी हिस्सा चौड़ा और नीचे पतला होता है, जिससे पौधा निकालना आसान हो जाता है।
3. सही ट्रे कैसे चुनें?
- जड़ बड़ा करने वाली फसलें → बड़े सेल वाली ट्रे
- छोटे बीज वाली फसलें → छोटे सेल वाली ट्रे
- बार-बार इस्तेमाल के लिए → मोटी प्लास्टिक की ट्रे
- एक बार उपयोग के लिए → पतली लेकिन किफायती ट्रे
मिडिया की तैयारी
मिडिया की तैयारी प्रो ट्रे नर्सरी का सबसे महत्वपूर्ण चरण है, क्योंकि इसी मिश्रण में बीज अंकुरित होकर मजबूत पौधे बनते हैं। प्रो ट्रे को भरने के लिए ऐसा माध्यम तैयार किया जाता है जो हल्का, साफ, नरम और पूरी तरह रोग-मुक्त हो। इसके लिए सामान्यतः कोकोपीट, वर्मी कम्पोस्ट और परलाइट/वर्मीकुलाइट का मिश्रण उपयोग किया जाता है। कोकोपीट हल्की और नमी को रोककर रखने वाली सामग्री है, जो बीजों के जल्दी अंकुरण में मदद करती है। वर्मी कम्पोस्ट से पौधों को शुरुआती पोषण मिलता है, जबकि परलाइट या वर्मीकुलाइट मिडिया को हवा आने-जाने योग्य बनाता है, जिससे जड़ें स्वस्थ रहती हैं और सड़ती नहीं। इन सभी को लगभग 70% कोकोपीट, 20% वर्मी कम्पोस्ट और 10% परलाइट/वर्मीकुलाइट के अनुपात में मिलाकर एक अच्छा, संतुलित और स्वच्छ ग्रोइंग मिडिया तैयार किया जाता है। उपयोग से पहले मिडिया को हल्का गीला करना और आवश्यकता होने पर ट्राइकोडर्मा जैसी जैविक दवा मिलाकर रोग से बचाव करना भी फायदेमंद होता है। ऐसा तैयार मिडिया बीजों के तेज, समान और स्वस्थ अंकुरण के लिए आदर्श माना जाता है।
बीज उपचार एवं बुवाई प्रक्रिया
बीज बोने से पहले, हम उन्हें स्वस्थ और मज़बूत बनाने के लिए कुछ खास कदम उठाते हैं। सबसे पहले, हम बीजों को एक सुरक्षित दवा से उपचारित करते हैं जो कीटाणुओं से लड़ती है और उन्हें बेहतर तरीके से अंकुरित होने में मदद करती है। हम बीजों पर थोड़ी सी दवा लगाते हैं और फिर उन्हें सूखने देते हैं। सूखने के बाद, हम एक ट्रे में, जिसमें कई छोटे-छोटे छेद हों, हर छोटी जगह में एक बीज डालते हैं। बीज डालने के बाद, हम उन्हें नमी बनाए रखने के लिए नरम, नम मिट्टी या किसी खास रोपण सामग्री से हल्के से ढक देते हैं। फिर, बीजों को हिलने से रोकने और उन्हें नम बनाए रखने के लिए ट्रे पर हल्के से पानी का छिड़काव करते हैं। हम ट्रे को किसी छायादार जगह या किसी खास ग्रीनहाउस में रखते हैं जहाँ कुछ दिनों तक नमी और गर्मी बनी रहती है। इन सभी चरणों का पालन करने से बीजों को जल्दी अंकुरित होने और मज़बूत छोटे पौधों के रूप में विकसित होने में मदद मिलती है।
सिंचाई एवं पोषक तत्व प्रबंधन
प्रो ट्रे नर्सरी में सिंचाई बहुत ही सावधानी से करनी होती है, क्योंकि अधिक पानी देने से बीज सड़ सकता है या फफूंद रोग होने का खतरा रहता है। इसलिए ट्रे में पानी देने के लिए स्प्रे पंप या झारी का उपयोग किया जाता है ताकि पानी हल्के रूप में मिले और बीज अपनी जगह से न हिले। मिडिया हमेशा हल्का नमीदार रहना चाहिए, लेकिन कभी भी पानी से भरा नहीं होना चाहिए। पौध निकलने के 10–12 दिन बाद घुलनशील खाद (जैसे 19:19:19 या 13:40:13) को हल्की मात्रा में पानी में मिलाकर स्प्रे किया जा सकता है, जिससे पौधे मजबूत और हरे-भरे बनते हैं। पोषक तत्वों का संतुलित उपयोग पौधों की तेज वृद्धि में मदद करता है और रोपाई के बाद उनकी जीवितता भी बढ़ाता है।
नर्सरी में तापमान–वातावरण प्रबंधन
प्रो ट्रे नर्सरी को ऐसे स्थान पर रखना चाहिए जहाँ तापमान और नमी नियंत्रित रह सके। इसके लिए सबसे अच्छा स्थान छाया नेट (50% शेड नेट) या पॉलीहाउस होता है। यहाँ पौधों को तेज धूप, भारी बारिश और ठंडी हवा से बचाया जा सकता है। सामान्यतः बीज अंकुरण के लिए 25–30°C तापमान और 60–70% नमी उपयुक्त रहती है। गर्मी के मौसम में ट्रे पर दिन में 2–3 बार हल्का पानी स्प्रे करके नमी बनाए रखी जाती है, जबकि सर्दी में ट्रे को ठंडी हवा से बचाने की जरूरत होती है। सही तापमान और नमी बनाए रखने से पौधे जल्दी, समान और स्वस्थ रूप से विकसित होते हैं।
कीट एवं रोग प्रबंधन
प्रो ट्रे नर्सरी में पौधे छोटे और नाजुक होते हैं, इसलिए कीट और रोग जल्दी आ सकते हैं। सबसे आम समस्या डैम्पिंग-ऑफ रोग की होती है, जिसे रोकने के लिए कोकोपीट को इस्तेमाल से पहले ट्राइकोडर्मा या हल्के फफूंदनाशी से उपचारित करना जरूरी है। पौध निकलने के बाद एफिड, व्हाइटफ्लाई या छोटी इल्ली जैसे कीट दिखाई दें तो 0.5–1 मिली उपयुक्त कीटनाशी को प्रति लीटर पानी में मिलाकर हल्का स्प्रे करना चाहिए। दवाइयों की मात्रा कम और सुरक्षित रखनी चाहिए ताकि पौधे पर कोई असर न पड़े। साफ-सफाई, उचित नमी और हवा का प्रवाह भी रोगों की रोकथाम में बहुत महत्वपूर्ण है।
रोपाई से पहले पौधों का सख्तीकरण
सख्तीकरण का मतलब पौधों को धीरे-धीरे खेत की खुली परिस्थितियों के अनुकूल बनाना है। रोपाई से 4–5 दिन पहले पौधों को रोज़ कुछ घंटे हल्की धूप में रखा जाता है और सिंचाई भी थोड़ी कम कर दी जाती है। इससे पौधे मजबूत बनते हैं, पत्तियाँ मोटी हो जाती हैं और जड़ें ज्यादा सक्रिय रहती हैं। इस प्रक्रिया से पौधे खेत में लगाने के बाद धूप, हवा और तापमान के बदलाव को आसानी से सह लेते हैं। हार्डनिंग न करने पर पौधों में झुलसा, पत्ती गिरना या मरने जैसी समस्या आ सकती है। इसलिए यह कदम बहुत जरूरी है।
खेत में रोपाई की विधि
प्रो ट्रे नर्सरी से तैयार पौधों की रोपाई बहुत आसान होती है, क्योंकि प्रत्येक पौधा अपने अलग सेल में विकसित होता है और उसकी जड़ें सुरक्षित रहती हैं। रोपाई के लिए खेत की क्यारियों को अच्छी तरह तैयार करें और उचित दूरी पर गड्ढे बनाएं। अब प्रो ट्रे के सेल को हल्के हाथ से दबाकर पूरा पौधा बाहर निकालें—यह आसानी से निकल जाता है क्योंकि नीचे छेद (ड्रेनेज होल) होता है। पौधे को उसके मिट्टी/मिडिया के गोले सहित गड्ढे में लगाएँ और हल्की सिंचाई करें। इस विधि से पौधे को झटका नहीं लगता, जड़ें टूटी नहीं रहतीं और पौधा खेत में जल्दी जम जाता है। रोपाई समय सांझ का या बादल वाले दिन सबसे अच्छा माना जाता है।
प्रो ट्रे विधि के लाभ
प्रो ट्रे नर्सरी की सबसे बड़ी खासियत है कि इसमें अंकुरण तेज और समान होता है, जिससे सभी पौधे एक जैसी अवस्था में विकसित होते हैं। मिडिया स्वच्छ और रोग-मुक्त होने के कारण पौधों में बीमारी का खतरा कम रहता है। चूंकि हर पौधा अलग सेल में होता है, उसकी जड़ें मजबूत और लंबी बनती हैं, जिससे रोपाई के बाद पौधे जल्दी बढ़ने लगते हैं। यह तकनीक किसानों के लिए लागत बचत वाली है, क्योंकि कम स्थान में अधिक पौधे तैयार किए जा सकते हैं और नुकसान भी कम होता है। अंततः खेत में पौधों की अच्छी जीवितता, तेज वृद्धि और बेहतर उपज प्राप्त होती है।
पारंपरिक नर्सरी बनाम प्रो ट्रे नर्सरी
पारंपरिक नर्सरी में बीज सीधे मिट्टी में बोए जाते हैं, जिससे मिट्टीजनित रोगों का खतरा अधिक होता है और पौध समान रूप से विकसित नहीं हो पाती। अक्सर पौधें उखाड़ते समय जड़ें टूट जाती हैं या पौधे कमजोर हो जाते हैं। इसके विपरीत, प्रो ट्रे नर्सरी में पौधें साफ, हल्के और रोग-मुक्त मिडिया में तैयार होते हैं। हर बीज अलग सेल में होने से पौधे एक-दूसरे से प्रतिस्पर्धा नहीं करते और समान रूप से विकसित होते हैं। रोपाई करते समय पौधा सेल सहित निकलता है, जिससे जड़ें सुरक्षित रहती हैं और पौधे का खेत में जीवित रहने का प्रतिशत बहुत अधिक होता है। इसलिए यह विधि आधुनिक, सुरक्षित और अधिक उत्पादन देने वाली मानी जाती है।
निष्कर्ष
प्रो ट्रे नर्सरी तकनीक किसानों के लिए एक सरल, आधुनिक और भरोसेमंद तरीका है जो समय, लागत और मेहनत—तीनों की बचत करता है। इससे तैयार पौधे मजबूत, समान और रोग-मुक्त होते हैं, जो खेत में लगाने के बाद बेहतर रूप से बढ़ते हैं और अच्छी उपज देते हैं। पारंपरिक नर्सरी की तुलना में प्रो ट्रे नर्सरी अधिक सुरक्षित, वैज्ञानिक और उच्च उत्पादकता वाली विधि साबित होती है। इसलिए आज के समय में सब्ज़ी उत्पादन को लाभदायक बनाने के लिए प्रो ट्रे नर्सरी एक अत्यंत उपयोगी तकनीक है।

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