डॉ. सौरभ बनर्जी, पशु चिकित्सा सहायक शल्यज्ञ,
पशुधन विकास विभाग छत्तीसगढ़ जिला- कोरिया
डॉ. अंकित शुक्ला, पशु चिकित्सा सहायक शल्यज्ञ,
पशुधन विकास विभाग छत्तीसगढ़ जिला- कोरबा
डॉ. वंदिता मिश्रा, सहायक प्राध्यापक पशुधन उत्पाद प्रौद्योगिकी विभाग,
केन्द्रीय कृषि विश्वविध्यालय आईजोल, मिज़ोरम
डॉ. ऋचा चौधरी, सहायक प्राध्यापक कीट विज्ञान विभाग,
कृषि महाविद्यालय कांपा, महासमुंद छत्तीसगढ़
सुश्री सुमेधा बनर्जी,अध्ययनरत छात्रा पी. एच. डी.
भारती विश्वविध्यालय दुर्ग छत्तीसगढ़

प्रस्तावना:- वैश्विक रूप से इमरजींग एवं रिईंमरजिंग रोग वृहद रूप से चिंतन का विषय बनता जा रहा है, जिसका प्रमुख कारण है इन रोगों की बारंबार पुनरावृत्ति होना| प्रभावी ज़ूनोटिक रोगों का जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं द्वारा निदान बहुत निर्णयक कदम है| इन प्रथमतः जवाबदेही व्यक्तियों को प्रशिक्षण, संसाधन प्रदाय करना ही गागर में सागर के रूप में परिणत होगा|

A-HELP का चयन ग्रामों में पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग द्वारा संचालित योजनाओं के माध्यम से बने हुए पशु सखियों के मध्य से एवं स्वसहायता समूहों में कार्यरत महिलाओं के मध्य से किया जाना एवं उनको 16 दिवसीय आवास युक्त प्रशिक्षण एवं 17 वे दिन परीक्षा लेकर उस परीक्षा में खरी उतरने पर ही किया जाना संभव होगा|

Paravets पशुधन विकास विभाग के रीढ़ के हड्डी के समान कार्य करते है इनके द्वरा समस्त विभागीय एवं गैर विभागीय दायित्वों का निर्वहन पशु चिकित्सा अधिकारी के मार्गदर्शन में संपादित किया जाता है|

विस्तार:- जमीनी कार्यकर्ताओं को सशक्त करने के उपाय :-

1. प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण:
  • ज़ूनोटिक रोग जागरूकता:प्रथमतः खड़े इन कार्यकर्ता सामान्य ज़ूनोटिक रोगों, उनके संचरण मार्गों और रोकथाम विधियों के बारे में अपनी जानकारी को प्रगाढ़ करें।
  • निगरानी कौशल: उन्हें संभावित रोग उद्भेदों की पहचान करने और रिपोर्ट करने का प्रशिक्षण दें, जिसमें असामान्य पशु बीमारियों या मानव लक्षणों की पहचान शामिल हो।
  • संचार कौशल: सामुदायिक लोगों को ज़ूनोटिक रोगों के बारे में शिक्षित करने और रोकथाम व्यवहार को बढ़ावा देने के लिए प्रभावी संचार रणनीतियों का प्रशिक्षण प्रदान करें।
  • सामुदायिक भागीदारी: उन्हें विविध समुदाय समूहों, विशेष रूप से संवेदनशील जनसंख्या के साथ काम करने के लिए प्रशिक्षित करें ताकि जानकारी और सेवाओं तक समान पहुंच सुनिश्चित की जा सके।
  • संसाधनों की पहुंच: उन्हें उनके कार्यों में सहायता के लिए आवश्यक उपकरण, सामग्री और तकनीकों तक पहुंच प्रदान करें, जिसमें व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (PPE) शामिल हैं।

2. सामुदायिक भागीदारी/ जुड़ाव को सुदृढ़ करना:
  • विश्वास निर्माण: जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं और समुदाय के सदस्यों के बीच विश्वास और मजबूत संबंध बनाएं।
  • जानकारी को अनुकूल बनाना: संचार संदेशों और सामग्री को विभिन्न समुदायों की विशिष्ट आवश्यकताओं और सांस्कृतिक संदर्भों के अनुसार ढालें।
  • सामुदायिक सहभागिता: रोग नियंत्रण प्रयासों में सक्रिय भागीदारी को प्रोत्साहित करें, जिससे समुदाय अपनी स्वास्थ्य सुरक्षा की जिम्मेदारी ले सकें।
  • स्थानीय विशेषज्ञता: सामुदायिक सदस्यों की अनूठी जानकारी और कौशल, जैसे पारंपरिक चिकित्सक और स्थानीय नेताओं की विशेषज्ञता को पहचानें और उपयोग करें।

3. "वन हेल्थ" दृष्टिकोण के साथ एकीकरण:
  • अंतर-क्षेत्रीय सहयोग: मानव स्वास्थ्य, पशु स्वास्थ्य और पर्यावरणीय क्षेत्रों के बीच संवाद और सहयोग को प्रोत्साहित करें।
  • प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली: सभी क्षेत्रों से जानकारी को एकीकृत करते हुए ज़ूनोटिक खतरों की पहचान और प्रतिक्रिया के लिए प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली का विकास करें।
  • सतत समाधान: ऐसे सतत अभ्यासों को बढ़ावा दें जो ज़ूनोटिक रोगों के उद्भव के मूल कारणों जैसे वनों की कटाई और वन्यजीव व्यापार को संबोधित करते हैं।

4. चुनौतियों का समाधान:
  • संसाधनों की कमी: जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं को सहयोग देने के लिए पर्याप्त संसाधन, प्रशिक्षण और उपकरण प्रदान करें।
  • सामुदायिक भागीदारी: यह सुनिश्चित करें कि सामुदायिक भागीदारी समावेशी और समान हो, जिससे समाज के सभी वर्गों तक पहुंच हो सके।
  • दीर्घकालिक स्थिरता:जमीनी स्तर की पहलों की स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए दीर्घकालिक क्षमता निर्माण और समर्थन प्रणालियों में निवेश करें।


उपसंहार:- सही उपकरणों, ज्ञान और समर्थन से जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं को सशक्त बनाकर, सामुदायिक ज़ूनोटिक रोगों को रोकने और नियंत्रित करने में बेहतर तरीके से तैयार हो सकते हैं, जिससे मानव और पशु दोनों की स्वास्थ्य सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकती है।

कई देशों में पारंपरिक रोग निगरानी प्रणालियों को उभरती ज़ूनोटिक बीमारियों की बदलती पारिस्थितिकी और उन निर्धारकों के अनुसार ढालने की आवश्यकता है जो मनुष्यों, जानवरों और पर्यावरण के मेल बिंदु पर परस्पर क्रिया करते हैं। इसके लिए विभिन्न क्षेत्रों को एक साथ काम करने में सक्षम बनाने और बहु-स्रोत डेटा संग्रहण एवं उसके साथ-साथ विश्लेषण, व्याख्या और संप्रेषण की प्रणाली को बेहतर बनाने हेतु संरचनात्मक परिवर्तन आवश्यक हैं |

इसके अतिरिक्त, परिवर्तन लाने के लिए स्थानीय समुदायों के साथ खुला संवाद ज़रूरी है, उनकी आवश्यकताओं और प्रथाओं को समझना, 'वन हेल्थ' (One Health) संस्कृति को बढ़ावा देना, और समुदायों को स्वास्थ्य खतरों से निपटने के लिए सक्षम बनाना तथा उनके व्यवहारों में अनुकूलन लाना और ज़ूनोटिक रोगों की रोकथाम व नियंत्रण हेतु ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर की समग्र दृष्टिकोण अपनाना आवश्यक है।

इस व्यवहारिक और सामाजिक-सांस्कृतिक परिवर्तन का नेतृत्व करने में सामाजिक विज्ञानों की स्पष्ट भूमिका है, जिसे सार्वजनिक स्वास्थ्य, पशु स्वास्थ्य, कृषि और पर्यावरण से संबंधित मंत्रालयों की नीतियों में शामिल करना आवश्यक है।

समुदाय की भूमिका के साथ-साथ यह भी आवश्यक है कि यह समझा जाए कि निजी क्षेत्र के सेवा प्रदाताओं को इस प्रकार की एकीकृत वन हेल्थ प्रारंभिक चेतावनी और प्रतिक्रिया प्रणाली (OH-EWRS) में कैसे जोड़ा जा सकता है।

अब समय आ गया है कि समुदाय, निजी क्षेत्र, गैर-सरकारी संगठन (NGOs), संबंधित मंत्रालय, अंतरराष्ट्रीय और अंतरसरकारी संगठन और अकादमिक संस्थान अपनी क्षमताओं का एकीकरण करें और एक मजबूत संयोजन का निर्माण करें जो हमारे ग्रह के लोगों, जानवरों और पारिस्थितिकी तंत्र की सेवा कर सके।