दीपक पटेल, स्नाकोत्तर (उद्यानिकी) परिकटन प्रबंधन
डॉ. वर्षा कुमारी, सहायक प्राध्यापक, सब्जी विज्ञान
चंद्रशेखर ओगरे, स्नाकोत्तर (उद्यानिकी) फल विज्ञान
पंडित किशोरी लाल शुक्ला उद्यानिकी महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र, राजनांदगांव (छ.ग.)

भारत विश्व के प्रमुख फल एवं सब्जी उत्पादक देशों में से एक है, किंतु कटाई उपरांत हानियों के कारण उत्पादित फल का एक बड़ा हिस्सा उपभोक्ता तक नहीं पहुँच पाता। यह समस्या न केवल किसानों की आय को प्रभावित करती है, बल्कि खाद्य सुरक्षा, पोषण और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के लिए भी चुनौती है। अध्ययन दर्शाते हैं कि फलों एवं सब्जियों में 25-33 प्रतिशत तक की मात्रात्मक हानि तथा उल्लेखनीय गुणात्मक हानि होती है। इस लेख में कटाई उपरांत हानियों के प्रकार, कारण, और नवीनतम वैज्ञानिक संरक्षण तकनीकों जैसे ओमिक हीटिंग, पल्स इलेक्ट्रिक फील्ड, उच्च दाब प्रसंस्करण, अल्ट्रासोनिकेशन एवं विकिरण का तुलनात्मक विश्लेषण किया गया है।

भारत एक कृषि प्रधान देश है जहाँ फलों एवं सब्जियों का उत्पादन विश्व स्तर पर अत्यधिक है। इसके बावजूद किसानों को उनकी उपज का पूरा मूल्य नहीं मिल पाता, जिसका प्रमुख कारण कटाई के बाद की हानियाँ हैं। फल अत्यधिक नाशवान होते हैं और इनकी भंडारण अवधि सीमित होती है। उत्पादन से उपभोक्ता तक की श्रृंखला में अनुचित तापमान, नमी, और प्रबंधन के कारण फलों का बड़ा भाग नष्ट हो जाता है।

कटाई उपरांत हानियों के प्रकार
मात्रात्मक हानि - मात्रात्मक हानियाँ वे हैं जो सीधे उपज की मात्रा को प्रभावित करती हैं। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की सर्वभारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना के अनुसार लगभग 13 प्रतिशत हानि खेत स्तर की गतिविधियों (कटाई, छंटाई, श्रेणी निर्धारण, प्रबंधन) में होती है। 6 प्रतिशत हानि भंडारण के दौरान, और 12 प्रतिशत हानि बाजार एवं खुदरा स्तर पर होती है।

गुणात्मक हानि - ये हानियाँ फल की गुणवत्ता, स्वाद, पोषण मूल्य, और उपभोक्ता स्वीकृति को प्रभावित करती हैं। इनका परिमाण आँकना कठिन है, परंतु इनका आर्थिक प्रभाव अत्यधिक होता है।

परंपरागत विधियों की समस्याएँ और वैज्ञानिक समाधान- कटाई उपरांत फलों और सब्जियों में कई समस्याएँ उत्पन्न होती हैं जिनके वैज्ञानिक कारण और समाधान स्पष्ट हैं। उच्च तापमान से पोषक तत्वों की क्षति होती है, जिसे शीत संरक्षण, संशोधित वातावरण पैकेजिंग और उच्च दाब प्रसंस्करण (गैर-तापीय खाद्य संरक्षण तकनीक)ं द्वारा रोका जा सकता है। धीमी प्रसंस्करण प्रक्रिया और अधिक ऊर्जा खपत की समस्या को माइक्रोवेव व अवरक्त किरणें तकनीक से हल किया जा सकता है। गुणवत्ता में गिरावट को नियंत्रित करने हेतु शीत श्रृंखला प्रबंधन प्रणाली और स्मार्ट सेंसर उपयोगी हैं। ऑक्सीजन और प्रकाश के संपर्क से होने वाली पोषण हानि को निर्वात पैकेजिंग और संशोधित वातावरण पैकेजिंग से कम किया जा सकता है। वहीं, ऊर्जा की अक्षमता को घटाने के लिए सोलर और इलेक्ट्रिक ड्रायर जैसे ऊर्जा-कुशल उपकरणों का प्रयोग किया जाना चाहिए।

फलों एवं सब्जियों के भंडारण में प्रयुक्त नवीन तकनीकें

ओमिक हीटिंगः यह एक विद्युत प्रतिरोध आधारित विधि है जिसमें भोजन को विद्युत धारा के माध्यम से सीधे गर्म किया जाता है। इस प्रक्रिया में लगभग 5000 वोल्ट वोल्टेज और 40°C से 140°C तक तापमान का उपयोग किया जाता है। इसका प्रयोग निर्जमीकरण, जूस व तेल निष्कर्षण, पाश्चुरीकरण, छीलन तथा निर्जलीकरण जैसे कार्यों में किया जाता है। यह तकनीक समान ताप वितरण सुनिश्चित करती है, जिससे पोषक तत्व और उत्पाद की गुणवत्ता सुरक्षित रहती है।



पल्स इलेक्ट्रिक फील्ड- यह एक गैर-तापीय संरक्षण विधि है जिसमें 20-80 kV/cm वोल्टेज के तीव्र विद्युत पल्स द्वारा सूक्ष्मजीवों को निष्क्रिय किया जाता है। इसका प्रयोग जूस निष्कर्षण, पाश्चुरीकरण, किण्वन नियंत्रण और सलाद संरक्षण में किया जाता है। यह तकनीक ताप-संवेदनशील उत्पादों के लिए विशेष रूप से उपयुक्त है क्योंकि इसमें ऊष्मा से होने वाली पोषण हानि न्यूनतम होती है।



हाई प्रेशर प्रोसेसिंग- इस विधि में खाद्य पदार्थों को 400-600 MPa तक के उच्च दाब में रखा जाता है, जिससे सूक्ष्मजीव निष्क्रिय हो जाते हैं और उत्पाद लंबे समय तक सुरक्षित रहता है। इसका उपयोग फलों के रस, सॉस, अचार, दही, मांस और सब्जियों के प्रसंस्करण में किया जाता है। यह तकनीक बिना ताप के पाश्चुरीकरण करती है, जिससे स्वाद और रंग सुरक्षित रहते हैं तथा उत्पाद की भंडारण अवधि बढ़ जाती है।



अल्ट्रासाउंड तकनीक- इस विधि में 20 kHz से अधिक आवृत्ति की ध्वनि तरंगों का उपयोग किया जाता है, जो खाद्य पदार्थों में मौजूद सूक्ष्मजीवों को निष्क्रिय करती हैं। इसका प्रयोग निष्कर्षण, सुखाने, पाश्चुरीकरण, इमल्सीकरण और मांस कोमल बनाने में किया जाता है। यह तकनीक कम समय में कार्य पूर्ण करती है, ऊर्जा की बचत करती है और उत्पाद की गुणवत्ता को बेहतर बनाए रखती है।



विकिरण - इस तकनीक में गामा किरणें, एक्स-रे या इलेक्ट्रॉन बीम का उपयोग करके सूक्ष्मजीवों को निष्क्रिय किया जाता है। सामान्यतः 0.03 से 10 kGy तक की डोज खाद्य पदार्थ के प्रकार के अनुसार दी जाती है। यह विधि अंकुरण रोकथाम, कीट नियंत्रण और रोगाणु निष्क्रियकरण में अत्यंत प्रभावी होती है।

परिणाम एवं चर्चा - विभिन्न अध्ययनों से यह सिद्ध हुआ है कि आधुनिक गैर-तापीय तकनीकें पारंपरिक संरक्षण विधियों की तुलना में अधिक प्रभावी हैं। उदाहरण के लिए, हाई प्रेशर प्रोसेसिंग से उत्पाद की भंडारण अवधि में 2.3 गुना वृद्धि होती है, जबकि सूक्ष्मजीव 99.9 प्रतिशत तक निष्क्रिय हो सकते हैं। इन तकनीकों का ऊर्जा-दक्ष और पर्यावरण-मित्र स्वरूप इन्हें भविष्य के खाद्य संरक्षण समाधान के रूप में स्थापित करता है।

निष्कर्ष - कटाई उपरांत हानियाँ भारत के कृषि क्षेत्र की प्रमुख चुनौतियों में से एक हैं, जिन्हें कम करने के लिए वैज्ञानिक दृष्टिकोण और नवीन तकनीकों का प्रयोग आवश्यक है। पल्स इलेक्ट्रिक फील्ड, हाई प्रेशर प्रोसेसिंग और ओमिक हीटिंग जैसी उन्नत विधियाँ पोषण और गुणवत्ता को सुरक्षित रखते हुए उत्पादों की भंडारण अवधि बढ़ाने में सक्षम हैं। भविष्य में इन तकनीकों के औद्योगिक स्तर पर विस्तार के लिए लागत-लाभ विश्लेषण, तकनीकी अनुकूलन, तथा किसान जागरूकता अत्यंत आवश्यक है।