योगेन्द्र सिंह, सहायक प्राध्यापक (फल विज्ञान)कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र, कोरबा
देवेन्द्र कुमार साहू, (सब्जी विज्ञान)अतिथि शिक्षक कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र कोरबा
चाइना एस्टर (कैलिस्टेफस चिनेंसिस) एस्टेरेसी परिवार से संबंधित है। यह दुनिया भर में उगाए जाने वाले वार्षिक उद्यानों में सबसे लोकप्रिय है। लंबे समय के कारण स्थायी गुणवत्ता कटे हुए एस्टर का उपयोग फूलदान और फूलों की सजावट में किया जाता है। चाइना एस्टर का पौधा बहुत आकर्षक दिखता है। हमारे छत्तीसगढ़ के सीमांत एवं छोटे किसान बड़े पैमाने पर पारंपरिक फसल के रूप में इसकी खेती कर सकते है। छत्तीसगढ़ में चाइना एस्टर की खेती मुख्य रूप से की जा सकती है।चाइना एस्टर एक फूलदार किस्म का पौधा है। इसकी खेती से किसानों को अच्छा मुनाफ़ा हो सकता है। चाइना एस्टर को खुली जगह अर्द्धछाया गृह तथा हरित गृह में उगाया जाता है। इसके फूल विभिन्न रंगो में खिलने तथा लम्बे समय तक ताजा रहने के कारण सजावट के लिए पंसद किये जाते है। इसके फूलों से मनमोहक रंगोली माल पुष्पविन्यास बनाया जाता है। चाइना एस्टर के फूलों की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए खेत में ज़िंक कॉपर बोरोन और मैगनीज़ जैसे सूक्ष्म पोषक तत्वों का इस्तेमाल किया जा सकता है चाइना एस्टर नारियल के बागानों में मिश्रित फसल के रूप में उपयुक्त होता है।
विभिन्न प्रकार के वार्षिक एस्टर उपलब्ध हैं और प्रत्येक प्रकार की अलग-अलग किस्में हैं विकास की आदत, फूल के आकार, और फूलों की उपस्थिति, रंगों में भिन्नता फूल आदि दोहरे प्रकार के चाइना एस्टर को तीन समूहों में बांटा गया है, बौना, मध्यम,और लंबा।
(अ) लंबा- इस समूह के अंतर्गत पौधों की ऊंचाई 60 से 80 सेमी के बीच होती है। प्रकार और विभिन्न किस्मों के रंगों का वर्णन नीचे दिया गया है-
1.अमेरिकी शाखाएँ:-लंबे तने वाले फूलों की विस्तृत श्रृंखला होती है रंग यानी, गहरा नीला, हल्का नीला, गुलाबी, लाल, और बैंगन हैं
2.बैंक्वेट पाउडर पफ्स:-फूल मध्यम आकार के होते हैं, कठोर तनों पर उत्पन्न होता है। फूल अलग-अलग रंगों में पाए जाते हैं ।
3.राजकुमारी और विशाल राजकुमारीः-अतिरिक्त दोहरे और बड़े फूल लंबे काष्ठीय तनों पर उत्पन्न होता है। इस प्रकार में पाए जाने वाले रंग गुलाबी होते हैं गहरा पीला, नीला, क्रीम सफेद, पंक्ति, गहरा लाल, कैरमाइन, सफेद, नीबू पीला आदि, यह किस्म कटे हुए फूलों के प्रयोजन के लिए उपयुक्त है।
(ब) मध्यम-लंबा:- इस किस्म में पौधे की ऊँचाई 40, 60 सेमी के बीच होती है।
फूल मध्यम आकार के घुमावदार पंखुड़ियाँ वाले होते हैं। इस प्रकार के फूलों के रंगों की विस्तृत श्रृंखला उपलब्ध है।
2. विशालकाय धूमकेतुः- पौधे अत्यधिक शाखायुक्त और कठोर होते हैं जो मुड़ी हुई पंखुड़ियाँ वाले फूल उत्पादन करते हैं ।
3. विशाल क्रेगोः- पौधे झाड़ीदार और मजबूत होते हैं, फूल मुड़े हुए होते हैं पंखुड़ी के विभिन्न रंग होते हैं जैसे सफेद, गहरा गुलाबी, गहरा नीला, हल्का नीला, शैल गुलाबी, लाल रंग, ।
4. अर्ली बर्पीनाः- अर्द्ध विकसित पंखुड़ियाँ, फूलों के रंग लाल, नीले, गुलाब और सफेद उपलब्ध हैं ।
5.पोम्पोनः- पौधे गोलाकार आकार के फूल पैदा करते हैं जिनमें पंखुड़ियाँ होती हैं, फूल कई प्रकार के रंगों में उपलब्ध हैं-
(स) बौना डबल:- मैरीगोल्ड, चाइना एस्टर और चमेली इस समूह के भी कई प्रकार हैं। पौधे की ऊंचाई 20-40 सेमी तक होती है।
1. पिनोचियोः- फूल, संख्या में अधिक, तारे के आकार के बौने और सघन होते हैं पौधे क्यारियों में उगाने के लिए आदर्श होते हैं।
2. रंगीन कालीन:- पौधे बौने और एकसमान होते हैं, मम-सदृश संपूर्ण संयंत्र फूलों का आवरण होता है ।
जलवायु संबंधी आवश्यकताएँ - एस्टर की वृद्धि और पुष्पन में प्रकाश और तापमान प्रमुख भूमिका निभाते हैं। प्रकाश की अवधि वृद्धि और विकास पर काफी प्रभाव डालती है। यदि एस्टर छोटे दिनों के दौरान पौधों को कृत्रिम प्रकाश प्रदान किया जाता है, वे गोल फूल दे सकते हैं। रात्रि का तापमान 10 डिग्री सेंटीग्रेड दोगुना उत्पादन के लिए आदर्श है फूल मजबूत तने वाले होते हैं जबकि उच्च तापमान के कारण तने कमजोर और पंखुड़ियों की संख्याकम हो जाते हैं। चाइना एस्टर के लिए ठण्डी जलवायु उपयुक्त रहती है। अच्छी तरह से फूलों के रंग के विकास के लिए 50-60 प्रतिशत सापेक्षिक आद्र्रता के साथ दिन का तापमान 20-30 डिग्री सेल्सियस और रात का 15-17 डिग्री सेल्सियस तापमान की आवश्यकता होती है।
मिट्टी- हरित गृह में इसको वर्ष भर तापमान, प्रकाश और आद्र्रता को नियंत्रित कर उत्पादन किया जाता है। चाइना एस्टर की अच्छी वृद्धि के लिए उपजाऊ, उचित जल निकास वाली, लाल दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है। चाइना एस्टर की खेती के लिए ऐसी भूमि जिसका पीएच मान 6-8--7-5 उपयुक्त होती है।
खेत की तैयारी- चाइना एस्टर की खेती के लिए एक अच्छी तरह से प्रबंधित और समतल खेत की आवश्यकता होती है। इसके लिए खेत में 2 से 3 जुताई अच्छी तरह से करने के बाद खेत में पाटा लागाना चाहिए और उसमें 5-6 टन गोबर की सड़ी खाद प्रति एकड़ की दर से मिलानी चाहिए। क्यारियों की लम्बाई अपनी सुविधा के अनुसार रखनी चाहिए तथा जल निकास की समुचित व्यवस्था रखनी चाहिए।
नर्सरी तैयार करना- बीज को बीज बक्से या ऊँची क्यारियों में डाल कर पौध तैयार कर सकते है। भारत में जून से अक्टूबर तक किसी भी समय पौध को तैयार किया जा सकता है। बीज के अंकुरण के लिए उचित तापमान 21-25 डिग्री सेल्सियस अच्छा माना जाता है। एक एकड़ क्षेत्र के लिए लगभग 125-150 ग्राम बीज पर्याप्त होता है। नर्सरी के लिए मिट्टी, बालू तथा गोबर की खाद के मिश्रण 1ः1ः1 से 1 मीटर चैड़ी तथा 3-6 मीटर लम्बी क्यारियाँ तैयार करनी चाहिए। बीज को 5 सेमी फासले वाली कतार पर 1 सेमी दूरी पर गिराना चाहिए तथा बीज को सड़ी गोबर की खाद या छनी हुई पत्ती की खाद से ढक देना चाहिए, ध्यान रहे बीजों को ज्यादा गहराई में नही डालें। नर्सरी में महीन हजारे से पानी देते रहना चाहिए जिससे नमी बनी रहे।
रोपाई एवं पौधे तथा लाइन के बीच की दूरी- रोपाई के लिए स्वस्थ तथा रोग मुक्त अंकुरित पौध का उपयोग करना चाहिए। जब पौध में 3 से 4 पत्तियां आ जाए तब रोपाई के लिए उपयुक्त होती है। रोपाई से पहले हमें पौध की जड़ों को कवकनाशी घोल में डुबोना चाहिए जिससे कवकजनित बीमारी से बचाया जा सके। पौध को शाम के समय रोपना चाहिए क्योंकि वह इससे आसानी से स्थापित हो जाती है तथा पौधों की मृत्यु दर कम होती है और इससे पौधे की अच्छी वृद्धि होती है। उत्पादन के लिए उचित दूरी आवश्यक होती है। अच्छी उपज के लिए कतार की दूरी 30 सेमी तथा पौधे से पौधे की दूरी 30 सेमी रखनी चाहिए। इससे फूल खिलने की अवधि तथा बीज उत्पादन भी बढ़ जाता है।
सिंचाई- चाइना एस्टर एक उथली जड़ वाली फसल है इसलिए इसे नियमित रूप से पानी देने की आवश्यकता होती है। सामान्यतः इसकी सिंचाई 7-10 दिन के अन्तराल पर की जाती है.
खाद व उर्वरक -एस्टर की खेती के लिए उचित खाद और उर्वरक की आवश्यकता होती है पोषण के कमी के परिणामस्वरूप विकास कम और खराब फूल आते हैं। नाइट्रोजन की कमी का कारण विकास में रुकावट और फीका रंग के साथ फूल का उत्पादन में कमी हो जाती है । फास्फोरस के कमी कारण, के वानस्पतिक विकास काफी हद तक मंद हो जाता है और फूल आना बंद हो जाता है। फूलों की अच्छी पैदावार के लिए खाद एवं उर्वरक की जरूरत होती है। पोषक तत्व की कमी से पौधों का विकास कम होता है तथा फूलों की पैदावार भी कम होती है। अच्छी तरह से पौधों के विकास एवं फूलों की वृद्धि के लिए खेत की तैयारी के समय 90 किग्रा नाइट्रोजन, 60 किग्रा फास्फोरस, और 60 किग्रा पोटाश की आवश्यकता होती है। 90 किग्रा नाइट्रोजन फसल की रोपाई के 40 दिनों के बाद टॉप ड्रेसिंग के रूप में पौधों को दी जाती है। सूक्ष्म पोषक तत्व जैसे जिंक, कॉपर, बोरान और मैगनीज का प्रयोग खेत में करने से फूलों की गुणवत्ता अच्छी होती है।
खरपतवार नियन्त्रण-बरसात तथा जाड़े में खरपतवार ज्यादा बढ़ते हैं। बिचड़ों को उगाने के बाद समय-समय पर खरपतवार निकालते रहना चाहिए। खेत में पौधा लगाने के पहले डायुरान 1-25 किलो या सिमाजिन 1-5 किलो या एलाक्लोर 1-5 किलो प्रति हेक्टर की दर से छिड़काव करने पर खरपतवार कम निकलते है।
भारत की महत्वपूर्ण उन्नतशील किस्में
अर्का कामिनीः- पौधे की ऊँचाई 60 सेमी होती है तथा फूल मध्यम आकार के गुलाबी रंग के होते है। अर्का कामिनी फूलों को 8 दिन तक रखा जा सकता है ।
अर्का पूर्णिमा:- पौधे की ऊँचाई 50 सेमी होती है तथा फूल बड़े आकार के सफेद रंग के होते है। इसके एक फूल का वजन लगभग 3-5 ग्राम होता है।
अर्का शशांक:- पौधे की ऊँचाई 55 सेमी होती है तथा फूल सफेद रंग के होते है। एक फूल का वजन 2-5 ग्राम होता है। इसके फूल माला के लिए उपयुक्त होते है।
फुले गणेश वायलेट:- इसके फूल मध्यम आकार के वायलेट रंग के होते है। यह किस्म प्रति हेक्टेयर 60 लाख फूलों का उत्पादन करती है।
फुले गणेश गुलाबी:- यह एक अगेती किस्म है। इसके फूल बड़े आकार के गुलाबी रंग के होते है। यह किस्म प्रति हेक्टेयर 43 लाख फूलों का उत्पादन करती है।
फुले गणेश सफेद:- यह एक पछेती किस्म है। इसके फूल मध्यम आकार के सफेद रंग के होते है। यह किस्म प्रति हेक्टेयर 47 लाख फूलों का उत्पादन करती है।
फुले गणेश बैंगनी:- इसके फूल मध्यम आकार के बैंगनी रंग के होते है। यह किस्म प्रति हेक्टेयर 46 लाख फूलों का उत्पादन करती है।
अन्तः कृषि क्रियाए
पिंचिग- चाइना एस्टर में की जाने वाली एक महत्वपूर्ण क्रिया है। पिंचिंग से पौधों में बगल में निकलने वाली साखा, पौधों पर फूलों की संख्या तथा प्रति यूनिट क्षेत्र की पैदावार बढ़ाने में मदद मिलती है। पिंचिंग पौधों की रोपाई के 45 दिन बाद करना लाभदायक होता है।
गुड़ाई- चाइना एस्टर में की जाने वाली एक महत्वपूर्ण क्रिया है। गुड़ाई खरपतवार नियंत्रण में मदद करती है तथा मृदा सतह को खुला व वायु संचार को बढ़ाती है।
वृद्धि नियामकों का उपयोग- चाइना एस्टर में जिब्रेलिक एसिड 200-300 पीपीएम का छिड़काव करने से प्रति पौधे में फूलों की संख्या तथा फूलों की अवधि को बढ़ाता है।
खरपतवार नियंत्रण- बरसात तथा जाड़े में खरपतवार ज्यादा बढ़ते है। पौध को उगाने के बाद समय-समय पर खरपतवार निकालते रहना चाहिए। खेत में पौधा लगाने के पहले डायुरान 1-25 किग्रा या सिमजिन 1-5 किग्रा या एलाक्लोर 1-5 किग्रा प्रति हेक्टर की दर से छिड़काव करने पर खरपतवार कम निकलते है।
कीट प्रबंधनः
लीफ हॉपर- यह कीट रस चूस कर तथा पत्तियों को खाकर वायरस फैलाता है। इसकी रोकथाम के लिए मिथाइल पाराथियान दवा 1-5 मिली/लीटर पानी में घोल कर 10 दिनों के अंतराल पर छिड़कानी चाहिए।
(ख) एस्टर ब्लिस्टर बीटल- कीट पत्तियों तथा फूलों को खाकर नुकसान पहुँचाता है। इसकी रोकथाम के लिए मिथोक्सिक्लोर दवा 1-1-5 मिली/लीटर पानी में घोलकर 5-7 दिनों के अंतराल पर छिड़कानी चाहिए।
(ग) माहू- यह कीट जड़ों तथा पौधे के ऊपर नुकसान पहुँचाता है जिससे पौधे कमजोर होकर मर जाते है। इसके लिए जड़ों के पास लिन्डेन 2 मिली/लीटर पानी में घोल कर छिड़कनी चाहिए।
(घ) लीफमाइनर- यह नन्हा कीट पत्तियों के बीच में सुरंग बनाकर जाली के समान कर देता है। इस कीट का प्रकोप होने पर क्लोरोडेन या टोक्साफेन दवा 1-5 मिली/लीटर पानी में घोल कर 10 दिनों के अंतराल पर छिड़कानी चाहिए।
(ङ) स्पाइडर माइट- यह छोटा सूक्ष्म कीट पत्तियों का रस चूसकर पत्तियों को रंगहीन तथा खराब बना देगा है। कैलाथेन दवा 1 मि.ली./ली. पानी में घोल कर छिड़कनी चाहिए।
(च) निमेटोड- यह जड़ों में रहकर जड़ों को खाकर सड़ा देता है जिससे पौधे सूखकर मरने लगते हैं। खेत में एल्डीकार्ब दाने का प्रयोग करना चाहिए।
रोग प्रबंधन
(क) कॉलर और रूट रोट- यह चाइना एस्टर की बहुत गंभीर बीमारी है। इस बीमारी में पौधे अचानक मुरझाने लगते है तथा पौधों के तने जमीन के पास से गलने लग जाते है। इस बिमारी से बचाव के लिए मिट्टी में अतिरिक्त नमी इकट्ठा होने से रोकना चाहिए तथा इस के साथ-साथ कैप्टान, मैनकोजेब जैसे कवकनाशी के उपयोग से भी इस बीमारी की रोकथाम की जा सकती है।
(ख)मुर्झा- यह फफूंदी से होने वाला मिट्टी जनित रोग है। इस रोग में पौधा मुझार्ने के बाद सूखने लगता है। रोग प्रतिरोधी किस्मों को लगाना चाहिए। बीज उपचार कर पौधे लगाने से रोग की संभावना कम होती है। वेविस्टीन दवा 2 ग्राम/लीटर पानी में घोलकर 10 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करनाचाहिए। (ग) पीलिया रोग या “क्लोरोजिनस कैलिस्ट्रेफी” द्वारा वायरस से होने वाला रोग है। यह वायरस लीफ हॉयर कीट द्वारा फैलाया जाता है। इस रोग में पौधे छोटे रह जाते हैं तथा पत्तियाँ पीली हो जाती हैं। फूल भी पीले हरे रंग का हो जाता है। रोग ग्रसित पौधे को उखाड़ कर जला देना चाहिए तथा मिथाइन पाराथियान दवा 1-5 मि.ली./ली. पानी में घोल कर 10 दिनों के अंतराल पर छिड़कानी चाहिए।
उपजः-
(क) फूल- चाइना एस्टर में पूर्ण रंग आ जाने पर ही फूलों को काटना चाहिए। प्रति पौधे में 25 से 30 फूल आते है। चाइना एस्टर की आधुनिक खेती से प्रति हेक्टेयर 18-20 टन फूल और 400-500 फूलों के बड़े बंडल।
(ख)बीजउपज- जब बीज में 20 प्रतिशत नमी से कम हो तब ही बीज निकालना चाहिए। बीज की मात्रा उसकी किस्म पर निर्भर करती है। अच्छी खेती से एक एकड़ में 25 से 50 किलो ग्राम बीज का उत्पादन होता है।
फूलों की तुड़ाई- फूलों की गुणवत्ता और फूलों की पैदावार के लिए फूलों की तुड़ाई सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। फूलों की तुड़ाई का समय तथा फूलों को किस अवस्था में तोड़ना हैयह इस बात पर निर्भर करता है की फूलों को किस उद्देश्य के लिए प्रयोग करना है। कटाई हमेशा शाम या सुबह के समय की जाती है। कट फ्लावर उद्देश्य के लिए हमें फूलों को कटाई के तुरत बाद साफ पानी में डालना चाहिए।

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