- 2.1 बीज के श्वसन में परिवर्तन: बीज के वृद्ध होने पर माइटोकॉन्ड्रिया की सक्रियता घट जाती है, जिससे श्वसन दर धीमी हो जाती है। श्वसन की दक्षता कम होने से ATP उत्पादन प्रभावित होता है, और ऊर्जा आपूर्ति घटने के कारण अंकुरण क्षमता कम हो जाती है। इसके साथ ही इलेक्ट्रॉन परिवहन श्रृंखला असंतुलित हो जाती है, जिससे ऑक्सीजन की खपत और कार्बन-डाइऑक्साइड उत्सर्जन में असामान्यता उत्पन्न होती है।
- 2.2 ROS (Reactive Oxygen Species) का जमाव: श्वसन असंतुलन और एंजाइमों की दक्षता कम होने से बीज कोशिकाओं में ROS का स्तर बढ़ जाता है। हाइड्रोजन पेरॉक्साइड (H₂O₂), सुपरऑक्साइड रेडिकल्स (O₂⁻) और हाइड्रॉक्सिल रेडिकल्स (•OH) जैसे ROS माइटोकॉन्ड्रियल झिल्ली, DNA और प्रोटीन पर आघात करते हैं। एंटीऑक्सीडेंट तंत्र कमजोर होने पर ये ROS तेजी से जमाव करते हैं और वृद्धावस्था की गति को और तेज कर देते हैं।
- 2.3 लिपिड परॉक्सीडेशन: ROS के अत्यधिक स्तर के कारण असंतृप्त फैटी एसिड ऑक्सीकृत होकर लिपिड परॉक्सीडेशन को जन्म देते हैं। इससे माइटोकॉन्ड्रियल और प्लाज़्मा झिल्लियों की तरलता और अखंडता प्रभावित होती है। झिल्लियों में बनने वाले मॉलोनडायल्डिहाइड (MDA) जैसे उप-उत्पाद कोशिका विषाक्तता को बढ़ाते हैं। इसका प्रत्यक्ष असर बीज की नमी संतुलन, एंजाइम सक्रियता और अंकुरण पर पड़ता है, जिससे बीज की जीवन-क्षमता कम हो जाती है।
- 3.1 ऊर्जा उत्पादन (ATP synthesis): माइटोकॉन्ड्रिया बीज कोशिकाओं की ऊर्जा इकाई है, जहाँ ऑक्सीडेटिव फॉस्फोरिलेशन द्वारा ATP का निर्माण होता है। वृद्धावस्था में माइटोकॉन्ड्रियल झिल्ली की संरचना क्षतिग्रस्त होने लगती है, जिससे प्रोटोन ग्रेडिएंट और ATP सिंथेज एंजाइम की दक्षता घट जाती है। इसके परिणामस्वरूप ऊर्जा उत्पादन कम होता है और अंकुरण व चयापचय प्रक्रियाएँ प्रभावित होती हैं।
- 3.2 ऑक्सीडेटिव फॉस्फोरिलेशन में गिरावट: बीज वृद्धावस्था के दौरान माइटोकॉन्ड्रिया की आंतरिक झिल्ली क्षति और ROS के प्रभाव से ऑक्सीडेटिव फॉस्फोरिलेशन की दर घट जाती है। इससे NADH और FADH₂ जैसे रिड्यूसिंग इक्विवेलेंट का उपयोग कुशलता से नहीं हो पाता। ATP की उपलब्धता कम होने के कारण बीज का एंजाइम सक्रियण, प्रोटीन संश्लेषण और कोशिकीय मरम्मत प्रक्रियाएँ बाधित हो जाती हैं।
- 3.3 ETC (Electron Transport Chain) में हानि: इलेक्ट्रॉन परिवहन श्रृंखला (ETC) माइटोकॉन्ड्रियल झिल्ली पर स्थित जटिल प्रोटीनों से बनी होती है। वृद्धावस्था में इन कॉम्प्लेक्सों की संरचना और कार्य क्षमता कम हो जाती है। इलेक्ट्रॉनों का असंपूर्ण स्थानांतरण ROS का अत्यधिक निर्माण करता है, जो झिल्लियों और एंजाइमों को और क्षति पहुँचाता है। परिणामस्वरूप ऊर्जा उत्पादन गिरता है और बीज की जीवन शक्ति घटने लगती है।
- 4.1 ROS और माइटोकॉन्ड्रियल DNA क्षति: वृद्धावस्था के दौरान ROS (Reactive Oxygen Species) का अत्यधिक संचय माइटोकॉन्ड्रियल DNA पर प्रत्यक्ष प्रभाव डालता है। DNA में होने वाले ऑक्सीडेटिव क्षति के कारण जीन अभिव्यक्ति और प्रोटीन संश्लेषण बाधित हो जाते हैं। परिणामस्वरूप माइटोकॉन्ड्रियल कार्यक्षमता घटती है और ऊर्जा उत्पादन की स्थिरता प्रभावित होती है, जिससे बीज की जीवन शक्ति तेजी से घटने लगती है।
- 4.2 प्रोटीन ऑक्सीडेशन और मेम्ब्रेन क्षति: माइटोकॉन्ड्रियल प्रोटीन और झिल्ली संरचनाएँ ROS के कारण ऑक्सीडेटिव क्षति झेलती हैं। प्रोटीन ऑक्सीडेशन से एंजाइमों की सक्रियता घट जाती है, जबकि लिपिड परॉक्सीडेशन झिल्ली की तरलता और अखंडता को नष्ट करता है। इसके कारण आयन संतुलन बिगड़ता है और इलेक्ट्रॉन परिवहन श्रृंखला बाधित होती है, जिससे ऊर्जा उत्पादन और बीज की अंकुरण क्षमता दोनों कम हो जाती हैं।
- 4.3 माइटोकॉन्ड्रियल जैव-जनन (Biogenesis) में कमी: माइटोकॉन्ड्रियल जैव-जनन नए माइटोकॉन्ड्रिया के निर्माण और उनकी मरम्मत की प्रक्रिया है। बीज वृद्धावस्था में DNA क्षति और प्रोटीन संश्लेषण की कमी से यह प्रक्रिया धीमी हो जाती है। इसके परिणामस्वरूप क्षतिग्रस्त माइटोकॉन्ड्रिया का पुनर्निर्माण नहीं हो पाता और उनकी संख्या एवं गुणवत्ता घट जाती है। इससे बीज की कोशिकीय ऊर्जा आपूर्ति और चयापचय क्षमता पर गहरा असर पड़ता है।
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सब्ज़ी |
बीज की आयु |
माइटोकॉन्ड्रियल स्वास्थ्य |
टिप्पणी |
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गाजर |
कम (2–4 वर्ष) |
सीमित स्थिरता, ROS उत्पादन अधिक |
बीज जल्दी अपनी अंकुरण क्षमता खो देते हैं। |
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टमाटर |
उच्च (6–8 वर्ष) |
अच्छी झिल्ली स्थिरता, संतुलित ऊर्जा उत्पादन |
बीज लंबे समय तक व्यवहार्य रहते हैं। |
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पत्तागोभी |
कम (2–3 वर्ष) |
श्वसन गतिविधि जल्दी कम होती है |
डीएनए और प्रोटीन का ऑक्सीकरण तेजी से होता है। |
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खीरा |
बहुत कम (1–2 वर्ष) |
एंजाइम गतिविधि जल्दी कम होती है |
बीज तेजी से अपनी व्यवहार्यता (viability) खो देते हैं। |
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बैंगन |
मध्यम (5–6 वर्ष) |
सक्रिय श्वसन, बेहतर प्रोटीन स्थिरता |
मध्यम स्तर का ROS संचय। |
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मिर्च |
कम (2–3 वर्ष) |
झिल्ली जल्दी क्षतिग्रस्त, ऊर्जा उत्पादन घटता है |
उच्च ROS संचय और लिपिड पेरोक्सीडेशन। |
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मटर |
मध्यम (4–5 वर्ष) |
संतुलित कार्य,
उच्च आर्द्रता से प्रभावित |
आर्द्रता से बीज की दीर्घायु पर गहरा प्रभाव पड़ता है। |
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प्याज |
बहुत कम (1–2 वर्ष) |
गतिविधि शीघ्र कमजोर होती है |
तेजी से ROS संचय और व्यवहार्यता में कमी। |
- 6.1 नियंत्रित आर्द्रता व तापमान: बीजों की दीर्घायु बढ़ाने का सबसे प्रभावी तरीका उन्हें नियंत्रित आर्द्रता और निम्न तापमान पर भंडारित करना है। कम नमी और ठंडे वातावरण में माइटोकॉन्ड्रियल गतिविधि धीमी हो जाती है, जिससे ROS उत्पादन घटता है और बीज अधिक समय तक जीवित रहते हैं।
- 6.2 एंटीऑक्सीडेंट प्राइमिंग (Ascorbate, Glutathione): एंटीऑक्सीडेंट प्राइमिंग तकनीक से बीजों में ROS को निष्क्रिय करने की क्षमता बढ़ाई जा सकती है। Ascorbate और Glutathione जैसे यौगिक माइटोकॉन्ड्रियल झिल्ली की रक्षा करते हैं और प्रोटीन ऑक्सीडेशन को कम करते हैं, जिससे बीज अंकुरण क्षमता लंबे समय तक बनी रहती है।
- 6.3 माइटोकॉन्ड्रियल एंजाइम्स की सक्रियता बनाए रखना: बीजों की ऊर्जा आपूर्ति के लिए आवश्यक माइटोकॉन्ड्रियल एंजाइम जैसे dehydrogenases और oxidases की सक्रियता को बनाए रखना दीर्घायु के लिए महत्वपूर्ण है। इसके लिए बीज प्राइमिंग, जैव-नियामक (bioregulators) और उचित भंडारण स्थितियाँ सहायक सिद्ध होती हैं।

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