निकिता शर्मा1 ,अनुभूति द्विवेदी1, अंकुर त्रिवेदी , डाॅ. चंद्रहास साहू2,
1डेयरी पालीटेक्नीक बेमेतरा
2दुग्ध विज्ञान खाद्य प्रौद्योगिकी महाविद्यालय, रायपुर


प्रस्तावना
भारत विश्व का सबसे बड़ी जनसंख्या वाला देश है, और इतनी विशाल आबादी के पोषण व खाद्य सुरक्षा की जिम्मेदारी

कृषि और उससे जुड़े क्षेत्रों पर ही निर्भर करती है। कृषि के साथ-साथ डेयरी उद्योग को ग्रामीण भारत की जीवनरेखा कहा जाता है। दूध उत्पादन, पशुपालन और डेयरी उत्पादों का कारोबार न केवल किसानों की आय बढ़ाता है बल्कि राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को भी मजबूत बनाता है।

भारत कृषि प्रधान देश है, जहाँ पशुपालन और विशेषकर दुग्ध व्यवसाय ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ माने जाते हैं। आज भारत विश्व का सबसे बड़ा दूग्ध उत्पादक देश है और यहाँ का डेयरी क्षेत्र न केवल किसानों की आय बढ़ाने में सहायक है बल्कि देश की अर्थव्यवस्था को भी मजबूत बना रहा है।

दूध उत्पादन भारत की श्वेत क्रांति से लगातार जारी है। डेयरी प्रधानता की कहानी कृषि कौशल के एक उल्लेखनीय प्रदर्शन में, भारत ने दूध उत्पादन में असाधारण वृद्धि करके दुनिया के डेयरी पावरहाउस के रूप में अपनी स्थिति को सुदृढ़ किया है। देश के डेयरी क्षेत्र ने वर्ष 2018-19 और वर्ष 2023-24 के बीच 497ः की प्रभावशाली चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (सीएजीआर) दर्ज की है, जो वर्ष 2023-24 में 239.30 मिलियन टन के ऐतिहासिक स्तर पर पहुंच गई है। एफएओ के अनुसार, भारत ने अमेरिका, पाकिस्तान, चीन और ब्राजील को पीछे छोड़ते हुए दूध उत्पादन में वैष्विक लीडर के रूप में गर्व से अपना स्थान बनाए रखा है।

चित्र 1: भारत में दूध उत्पादन और वार्षिक वृद्धि दर (2014-15 से 2023-24)





चित्र 2 वर्ष 2023-24 के दौरान दूध उत्पादन की प्रतिशत हिस्सेदारी


दूध के लिए औसत उत्पादन दरः वर्ष 2023-24 के दौरान राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न प्रजातियों से प्रति पशु प्रतिदिन दूध का औसत उत्पादन नीचे तालिका 1 में दर्षाया गया हैः

तालिका 1:दूध की औसत उत्पादन दर

विदेशी गायें

संकर नस्ल की गायें

देशी गायें

नॉन-डिस्क्रिप्ट  गायें

देशी भैंस

नॉनडिस्क्रिप्ट भैंस

बकरी

किलोग्राम/दिन/ पशु

9.82

8.35

4.20

3.00

6.63

4.73

0.48

स्रोतः मूल पशुपालन सांख्यिकी-2024

उपरोक्त तालिका में गाय, भैंस और बकरी द्वारा दूध उत्पादन में योगदान दिखाया गया है। विश्लेषण से पता चलता है कि लगभग दूध उत्पादन में देशी/नॉन-डिस्क्रिप्ट भैंसों का योगदान 45.32% और उसके बाद संकर/विदेशी गायों का योगदान 33.21% है। देशी/ नॉन-डिस्क्रिप्ट गायें देश में कुल दूध उत्पादन में 21.47% योगदान देती हैं। देशभर में कुल दूध उत्पादन में बकरी के दूध का योगदान 3.36% है।

ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़
भारत की लगभग 70% ग्रामीण आबादी डेयरी और पशुपालन से किसी न किसी रूप में जुड़ी हुई है। छोटे और सीमांत किसानों के लिए जहाँ कृषि भूमि सीमित है, वहीं पशुपालन और दूध उत्पादन उन्हें निरंतर और स्थिर आय प्रदान करता है। खेती का उत्पादन मौसम और वर्षा पर निर्भर करता है, जबकि दूध एक ऐसा उत्पाद है जिसकी माँग पूरे वर्षभर बढ़ते क्रम में रहती है। इस प्रकार, दुग्ध व्यवसाय दुग्ध उत्पादक किसानों को हर दिन नियमित नकदी प्रवाह उपलब्ध कराती है।

दुग्ध व्यवसाय का महत्व
भारत की लगभग 70% ग्रामीण आबादी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से दुग्ध व्यवसाय से जुड़ी हुई है। छोटे और सीमांत किसान, जिनके पास कृषि भूमि सीमित है, वे डेयरी को आजीविका का मुख्य साधन मानते हैं। दूध उत्पादन से उन्हें नियमित आय प्राप्त होती है, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति बेहतर होती है।

आर्थिक योगदान और जीडीपी में हिस्सेदारी
भारतीय अर्थव्यवस्था में डेयरी का योगदान बेहद महत्त्वपूर्ण है। कृषि और सहायक क्षेत्रों के कुल लाभ में डेयरी उद्योग की हिस्सेदारी लगातार बढ़ रही है। वर्ष 2022-23 में कृषि जीडीपी में डेयरी का योगदान लगभग 5% से अधिक दर्ज किया गया। इसके अलावा, दूध और दुग्ध उत्पादों के निर्यात से भारत को हर साल अरबों डॉलर की विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है। पनीर, घी, चीज, दूध पाउडर, केसिन पाउडर और मिठाई उद्योग का निर्यात भारत की वैश्विक पहचान को और मजबूत कर रहा है।

किसानों के लिए अवसर
श्वेतक्रांति” ने यह सिद्ध कर दिया कि भारत में दुग्ध उत्पादन को बढ़ाकर न केवल खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकती है, बल्कि किसानों को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर भी बनाया जा सकता है। आज आधुनिक तकनीकों, संगठित डेयरी सहकारी समितियों और सरकारी योजनाओं के चलते दूध उत्पादन में निरंतर वृद्धि हो रही है।

सामाजिक और पोषण संबंधी महत्व
डेयरी केवल आर्थिक दृष्टिकोण से ही नहीं, बल्कि सामाजिक और पोषण की दृष्टि से भी बहुत महत्वपूर्ण है। दूध और दुग्ध उत्पाद प्रोटीन, कैल्शियम और अन्य पोषक तत्वों का प्रमुख स्रोत हैं। ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में दूध की उपलब्धता से पोषण सुरक्षा सुनिश्चित होती है। इसके अतिरिक्त, डेयरी गतिविधियों में महिलाओं की सक्रिय भागीदारी उन्हें आर्थिक और सामाजिक रूप से सशक्त बनाती है।

किसान और महिला सशक्तिकरण
डेयरी क्षेत्र का सबसे बड़ा सामाजिक योगदान किसानों और विशेषकर ग्रामीण महिलाओं का सशक्तिकरण है।
  • महिला भागीदारीर: अधिकांश ग्रामीण क्षेत्रों में दूध दुहना, पशुओं की देखभाल और दूध की बिक्री में महिलाओं की अग्रणी भूमिका रहती है। सहकारी समितियों में महिलाओं की भागीदारी ने उन्हें आर्थिक स्वतंत्रता दी है।
  • रोजगार सृजनर: डेयरी केवल किसानों के लिए ही नहीं, बल्कि दुग्ध संग्रह, परिवहन, प्रोसेसिंग और वितरण के माध्यम से लाखों लोगों को प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रोजगार देती है।
  • डेयरी सहकारी समितियों की भूमिका भारत की डेयरी क्रांति में अमूल मॉडल जैसी सहकारी समितियों की भूमिका ऐतिहासिक रही है।
  • किसानों से सीधे दूध खरीदना
  • उन्हें उचितमूल्य दिलाना
  • आधुनिक दुग्ध उपकरणों के माध्यम से प्रोसेसिंग और पैकेजिंग
  • घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजार तक पहुँच उपलब्ध कराना
ये समितियाँ छोटे किसानों को संगठित शक्ति प्रदान करती हैं और उनकी आय बढ़ाती हैं।


चुनौतियाँ और भविष्य की संभावनाएँ
हालाँकि डेयरी उद्योग तेजी से प्रगति कर रहा है, फिर भी इसमें कई चुनौतियाँ मौजूद हैं। पशुओं की नस्ल सुधार, चारे की कमी, उत्पादन लागत में वृद्धि और बाजार तक पहुँच जैसी समस्याएँ अक्सर किसानों के सामने आती हैं। साथ ही, वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा और गुणवत्ता मानकों को पूरा करना भी आवश्यक है। फिर भी, डेयरी क्षेत्र में अपार संभावनाएँ हैं। यदि आधुनिक तकनीकों, बेहतर प्रबंधन और सरकारी नीतियों का सही दिशा में उपयोग किया जाए, तो भारत न केवल दूध उत्पादन में बल्कि डेयरी उत्पादों के निर्यात में भी विश्व में अग्रणी स्थान हासिल कर सकता है।

चुनौतियाँ
हालाँकि डेयरी क्षेत्र तेजी से बढ़ रहा है, लेकिन इसके सामने कई चुनौतियाँ हैं
  • उच्च गुणवत्ता वाले चारे की कमी
  • पशुनस्ल सुधार की आवश्यकता
  • उत्पादन लागत में वृद्धि
  • बाजार और कोल्ड-चेन ढाँचे की सीमाएँ
  • वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा और गुणवत्ता मानक

इन चुनौतियों का समाधान आधुनिक तकनीक, प्रशिक्षण, अनुसंधान और सरकारी योजनाओं से किया जा सकता है।

भविष्य की संभावनाएँ
भारत में डेयरी क्षेत्र अपार संभावनाओं से भरा है। यदि वैज्ञानिक पद्धतियों का विस्तार किया जाए, आधुनिक उपकरण उपलब्ध कराए जाएँ और किसानों को बेहतर बाजार मिले, तो भारत न केवल दूध उत्पादन में बल्कि डेयरी उत्पादों के वैश्विक निर्यात में भी शीर्ष पर पहुँच सकता है।