किरण नेताम, सुषमा वर्मा, पादप रोग विज्ञान विभाग
डॉ. सुष्मिता कश्यप, कीट विज्ञान विभाग, 
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविधालय,रायपुर ( छ.ग.)

परिचय:- मल्चिंग तकनीक को पलवार या मल्च भी कहा जाता है। मल्च एक ऐसी प्रक्रिया है जिसका उपयोग मिट्टी में नमी बनाए रखने, खरपतवारों को दबाने, मिट्टी को ठंडा रखने और सर्दियों में पाले की समस्या से पौधों को सुरक्षित रखने के लिए मल्चिंग की प्रक्रिया को अपनाया जाता है। कार्बनिक मल्च धीरे-धीरे अपघटित होने के कारण ये मिट्टी की संरचना, जल निकासी और पोषक तत्वों को धारण करने की क्षमता में सुधार करने में भी मदद करती है। इस तकनीक की खास बात यह है कि आप अपने खेतों में खरपतवार और घास फूल की इस्तेमाल करके मल्चिंग कर सकते हैं।

मल्च के प्रकार
  • कार्बनिक मल्च (Organic mulch)
  • अकार्बनिक मल्च (Non-organic Mulch)

कार्बनिक मल्च:- इस विधि में मल्चिंग के लिए धान का पुआल या पैरा, पेड़ों की पत्तियां घास तथा रसोई से निकले वेस्ट का प्रयोग करते हैं।कार्बनिक मल्च की विशषेता यह है कि मल्च के रूप में जो मटेरियल प्रयोग किया जाता है वह धीरे-धीरे कुछ समय बाद सड़ गल कर कार्बनिक खाद बन जाता है। कार्बनिक मल्च के नीचे सूक्ष्मजीव अधिक संख्या में पाए जाते हैं जो कार्बनिक पदार्थ को सड़ा कर ह्यमूस का निर्माण करते हैं। ह्यमूस से फसल को पोषक तत्व की प्राप्ति होती है। इसके प्रयोग से पर्यावरण प्रदूषण नहीं फैलता है और मिट्टी की उर्वरता में सुधार करते हैं।उदा.- गोबर, सूखी पत्तियाँ, घास के टुकड़े, लकड़ी के चूरे, समुद्री शैवाल, फसल की तिनके, कचरा ऑर्गेनिक मल्च मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ जोड़कर उसकी संरचना और पोषक तत्वों को बेहतर बनाते हैं। साथ ही, ये जल धारण करने में मदद करते हैं, खरपतवार को दबाते हैं और मिट्टी के तापमान को नियंत्रित करते हैं।

चित्र:- ऑर्गेनिक मल्च


अकार्बनिक मल्च: इस विधि में मल्चिंग के लिए प्लास्टिक मल्चिंग पेपर का प्रयोग किया जाता है। आधुनिक कृषि में मल्च के रूप में प्लास्टिक मल्चिंग पेपर का उपयोग बहुत बड़े पैमाने पर किया जाता है। इस विधि का उपयोग वर्ष भर किया जाता है सभी प्रकार के मौसम में इसका प्रयोग किया जा सकता है। एक एकड़ या उससे अधिक भूमि पर की जाने वाली खेती के लिए यह प्रणाली अधिक लाभदायक होती है और विशेष रूप से मिट्टी की नमी बनाए रखने, खरपतवार नियंत्रण, और पौधों की सुरक्षा के लिए उपयोग किए जाते हैं। इनका मुख्य उद्देश्य मिट्टी की नमी को बनाए रखना, मिट्टी के तापमान को नियंत्रित करना, और खरपतवार की वृद्धि को रोकना होता है। उदा.- प्लास्टिक शीट्स, पत्थर, रेत , कांच के टुकड़े ,इंडस्ट्रियल फैब्रिक, स्लेट

चित्र:- नॉन-ऑर्गेनिक मल्च


तालिका :- विभिन्न प्लास्टिक शीट मोटाई और उनके द्वारा विभिन्न सब्जियों की उपज में वृद्धि के बीच संबंध को दर्शाती है

प्लास्टिक शीट की मोटाई (माइक्रोमीटर µ)

फसल / सब्जियाँ

उपज में वृद्धि

25 µ

बैंगन

10-27%

25 µ

भिंडी

48-55%

50 µ

आलू

49-50%

25 µ

टमाटर

65-70%

25 µ

स्नैप बीन्स

33-73%

25 µ

खीरा

44-52%

50 µ

पत्ता गोभी / फूलगोभी

10-71%

25 µ

मिर्च

60%

50 µ

गाजर

10-50%


मल्चिंग कब की जाती है
वर्ष में मुख्यतः दो समय होते हैं जब गार्डन में सब्जियों, फल व फूलों के पौधों के आसपास मिट्टी में मल्चिंग करना आवश्यक होता है।
  • देर से शरद ऋतु में गार्डन में या आउटडोर लगे पौधों के चारों ओर मल्चिंग करें, ताकि पौधों को ठंडे वातावरण से सुरक्षित रखा जा सके।
  • गर्मियों में पौधों को गर्म वातावरण से बचाने व पौधों में आवश्यक नमी बनाए रखने एवं खरपतवारों के विकास को कम करने के लिए मल्चिंग की जाती है।

मल्चिंग के लाभ
  • बीज अंकुरण को प्रोत्साहित करता है साथ ही जल्दी परिपक्वता और बेहतर उपज देता है।
  • मल्चिंग मृदा की लवणता (salinity) को कम करता है।
  • यह उर्वरकों के मृदा से बह जाने (leaching) को रोकता है।

खरपतवार नियंत्रण: 
  • खरपतवार की ऊर्जा आपूर्ति को रोककर उनका विकास रुकता है।
  • मृदा में नमी को लंबे समय तक संचित रखने में मदद करता है।
  • पौधों की जड़ों के आस-पास नमी का स्तर बनाए रखता है।
  • मल्च पौधों में जड़ें ऊपर की ओर विकसित कर सकते हैं।