किरण नेताम, डॉ. प्रदीप कुमार तिवारी, सुषमा वर्मा
पादप रोग विज्ञान विभाग,
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविधालय, रायपुर (छ. ग.)
परिचय- काला चना (Black Gram), जिसे उर्द या उड़द भी कहा जाता है, उड़द खरीफ मौसम की महत्वपूर्ण दलहनी फसल है यह फसल प्रोटीन, खनिज और फाइबर से भरपूर होती है और भारतीय रसोई में कई प्रकार के व्यंजनों में उपयोग की जाती है। उड़द की फसल मृदा धरण रोकने एवं मृदा उर्वरता बढ़ाने में भी सहायक होती है। उड़द की जड़े भूमि में गहराई तक जाकर मृदा में वायु अनुपात बढ़ाती है तथा इनकी जड़ों में उपस्थित राइजोबियम बैक्टीरियम मृदा में नत्रजन की वृद्धि करता है और हरी खाद के रूप में भी प्रयोग किया जा सकता है उड़द में औसतन 20 से 25 प्रतिशत प्रोटीन की मात्रा पाई जाती है। छत्तीसगढ़ में । उड़द की खेती प्रदेश के सभी भागों में की जाती है राजनांदगांव, कवर्धा, बेमेतरा,दुर्ग,बलौदाबाजार, बिलासपुर, माहसमुंद कोरबा, गरियाबंद, रायपुर, सरगुजा, जिले प्रमुख उत्पादक क्षेत्र है।
हानिकारक रोग एवं उनका नियंत्रण
1. पत्तियों का झुलसा रोग:- (Cercospora canescens) (एक प्रकार का फफूंद) सबसे पहले नीचे की पुरानी पत्तियों पर छोटे भूरे धब्बे दिखाई देते हैं।ये धब्बे धीरे-धीरे बड़े होकर गहरे भूरे से काले रंग के हो जाते हैं, जिनका किनारा असमान या गोल होता है।संक्रमित पत्तियाँ पीली होकर सूख जाती हैं और झड़ने लगती हैं, जिससे पौधे की प्राकृतिक प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया प्रभावित होती है।फसल की बढ़वार और दाना उत्पादन में भारी कमी आती है।
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चित्र :- पत्तियों का झुलसा रोग |
2. जड़ सड़न रोग:- (Macrophomina phaseolina)
शुरुआत में पौधा धीमी वृद्धि करता है, पत्तियाँ पीली व मुरझाई हुई लगती हैं। मिट्टी के पास तने पर गहरा रंग दिखाई देता है और तना कमजोर हो जाता है। पौधे को उखाड़ने पर जड़ों में सड़न, काले धब्बे और फफूंदी जैसे लक्षण दिखते हैं। पौधा अचानक सूखने लगता है, खासकर धूप के समय। यह रोग सामान्यतः तेज तापमान और जलसंकट की स्थिति में अधिक फैलता है।
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चित्र :- जड़ सड़न रोग |
3. पीलिया रोग:- (मोज़ेक वायरस)
यह सफेद मक्खी (Bemisia tabaci) द्वारा फैलता है।पत्तियों पर पहले पीले रंग की अनियमित आकृतियाँ दिखती हैं। धीरे-धीरे ये आकृतियाँ फैलकर पूरी पत्ती पर पीले और हरे पैच बना देती हैं। रोगी पत्तियाँ छोटी, मुड़ी हुई और मोटी दिखती हैं। गंभीर संक्रमण में पूरा पौधा पीला हो जाता है और फूल व फलन रुक जाता है।
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चित्र:- पीलिया रोग |
4. अन्थ्रेक्नोज:- (Colletotrichum lindemuthianum)
इस रोग से तना, पत्तियाँ और फलियाँ प्रभावित होती हैं। पत्तियों पर काले या गहरे भूरे रंग के धंसे हुए धब्बे बनते हैं, जिनके किनारे लाल-भूरे रंग के हो सकते हैं। तने पर काले या गहरे रंग के निशान जो आगे चलकर तने को तोड़ सकते हैं। फलियाँ संक्रमित हो जाती हैं और उनमें बीज का विकास रुक जाता है या बीज सिकुड़ जाते हैं।
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चित्र:- अन्थ्रेक्नोज |
5. झुलसन रोग- (Fusarium oxysporum)
रोग की शुरुआत में पत्तियाँ धीरे-धीरे पीली होकर मुरझाने लगती हैं,शुरुआत निचली पत्तियों से होती है, और यह धीरे-धीरे ऊपर की ओर फैलती है। तना काटने पर उसमें भूरे रंग की धारियाँ दिखाई देती हैं। रोग ग्रसित पौधा धीरे-धीरे पूरी तरह सूख जाता है। यह रोग मिट्टी में लंबे समय तक बना रह सकता है ।
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चित्र:- झुलसन रोग |
6. चूर्णिल आसिता (पाउडरी मिल्ड्यू) (Erysiphe polygoni)
यह एक फफूंदीजनित रोग है इस रोग में पत्तियों, तनों और कभी-कभी फलियों की सतह पर सफेद, पाउडर जैसा पदार्थ दिखाई देता है।बाद में यह पूरे पत्ते और तनों पर फैल सकता है।संक्रमित पत्तियां पीली होकर मुरझा जाती हैं।पौधे की वृद्धि रुक जाती है और उपज में कमी आ जाती है।
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चित्र:- चूर्णिल आसिता |
समन्वित रोग प्रबंधन (आई. पी. एम.) तकनीक के प्रमुख बिन्दु-
- रोगमुक्त बीजों का उपयोग करें।
- खेत में अच्छी जल निकासी की व्यवस्था करें।
- रोग से ग्रसित पौधे के अवशेषों को एकत्र कर जला दें ताकि यह अन्य पौधों में न फैले ।
- रोग की रोकथाम के लिए हर 2–3 वर्षों में फसल चक्र के तहत दलहनी के स्थान पर अनाज फसलें जैसे गेहूं या मक्का उगानी चाहिए।
- जैविक नियंत्रण में बीजों का उपचार Trichoderma asperelloid से ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से किया जा सकता है तथा Pseudomonas fluorescens के 5-10 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करने से रोग नियंत्रण में मदद मिलती हैं।
- नीम का तेल (Neem oil) 5 मिली प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करने से सफेद मक्खियों की संख्या नियंत्रित होती है, इसके अतिरिक्त Verticillium lecanii जैसे जैव कीटनाशकों का छिड़काव भी प्रभावी होता है।
- पौधों के बीच पर्याप्त दूरी बनाए रखना
क्र.
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रोग
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अनुशासित (फफूंदनाशी/कीटनाशी)
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छिड़काव का समय
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1
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सर्कोस्पोरा पत्तेदार धब्बा
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कार्बेन्डाजिम (1000 मिली/हेक्टेयर) या मैंकोजेब (250 मिली/हेक्टेयर)
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रोग दिखते ही; 10–15 दिन के अंतराल पर दोहराएँ
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2
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मूल सड़न
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बीजोपचार – कार्बेन्डाजिम + थीरम @ 2g/किग्रा बीज; ज़रूरत हो तो मिट्टी में ड्रेन्चिंग करें
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बुवाई से पहले बीजोपचार
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3
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पीलिया मोज़ेक वायरस
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सफेद मक्खी नियंत्रण हेतु: इमिडाक्लोप्रिड (100 मिली/हेक्टेयर)
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प्रारंभिक अवस्था में; 15 दिन के अंतराल पर दोहराएँ
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4
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एन्थ्रेक्नोज़
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कार्बेन्डाजिम (1000 मिली/हेक्टेयर) या क्लोरोथालोनिल (200 मिली/हेक्टेयर)
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प्रारंभिक अवस्था में;आवश्यकतानुसार दोहराएँ
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5.
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झुलसन रोग
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प्रभावित क्षेत्र में कार्बेन्डाजिम (1 ग्राम/लीटर पानी) या हेक्साकोनाजोल (1 ग्राम/लीटरपानी)से मिट्टी की ड्रेन्चिंग करें।
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फसल में विल्ट के लक्षण दिखाई दें
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6.
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चूर्णिल आसिता
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2 ग्राम वेटेबल सल्फर/लीटर पानी
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7-10 दिन के अंतराल पर दोहराएं अगर रोग जारी रहे
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