|
खरपतवार प्रतिस्पर्धा का क्रांतिक समय (बुवाई के बाद दिन) |
उपज में कमी (प्रतिशत) |
|
(क) |
खाद्यान्न फसलें |
||
|
धान (सीधी बुवाई) |
15-45 |
47-86 |
|
धान (रोपाई) |
20-40 |
15-38 |
|
मक्का |
30-45 |
40-60 |
|
ज्वार |
30-45 |
06-40 |
|
बाजरा |
30-45 |
15-56 |
(ख) |
दलहनी फसलें |
|
|
|
अरहर |
15-60 |
20-40 |
|
मूंग |
15-30 |
30-50 |
|
उरद |
15-30 |
30-50 |
|
लोबिया |
15-30 |
30-50 |
(ग) |
तिलहनी फसलें |
|
|
|
सोयाबीन |
15-45 |
40-60 |
|
मूंगफली |
40-60 |
40-50 |
|
सूरजमुखी |
30-45 |
33-50 |
|
अरण्डी |
30-60 |
30-50 |
|
कुसुम |
15-45 |
35-60 |
|
तिल |
15-45 |
17-41 |
(घ) |
अन्य फसलें |
|
|
|
गन्ना |
15-60 |
20-30 |
|
कपास |
15-60 |
40-50 |
भिन्डी |
15-30 |
40-50 |
- खरपतवारों की रोकथाम: खरपतवार की रोकथाम में ध्यान देने योग्य बात यह है कि खरपतवारों का नियंत्रण सही समय पर करें। खरपतवारों की रोकथाम निम्नलिखित तरीकों से की जाती है।
- निवारण विधि : इस विधि में वे सभी क्रियाएँ शामिल है जिनके द्वारा खेतों में खरपतवारों के प्रवेश को रोका जा सकता है, जैसे प्रमाणित बीजों का प्रयोग, अच्छी सड़ी गोबर एवं कम्पोस्ट खाद का प्रयोग, सिंचाई की नालियों की सफाई, खेत की तयारी एवं बुवाई के प्रयोग में किये जाने वाले यंत्रों का प्रयोग से पूर्व अच्छी तरह से साफ़-सफाई इत्यादि।
- यांत्रिक विधि : खरपतवारों पर काबू पाने की यह एक सरल एवं प्रभावी विधि है। फसल की प्रारंभिक अवस्था में बुवाई के 15 से 45 दिन के मध्य फसलों को खरपतवारों से मुक्त रखना जरूरी है। सामान्यत: दो निराई-गुड़ाई, पहली 20-25 व दूसरी 45 दिन बाद करने से खरपतवारों का नियंत्रण प्रभावी ढंग से होता है।
- मृदा सौरीकरण : इस तकनीक के अंतर्गत विभिन्न मोटाई की पारदर्शी पोलिथाईलिन शीट (50-100 मिलीमाईक्रोन) को समतल नमीयुक्त मिट्टी की ऊपरी सतह पर फसल की बोवाई के पहले मई के महीने में 4-6 सप्ताह तक फैलाकर मिट्टी की ऊपरी सतह का तापमान बाह्य तापमान की तुलना में 8-12 0से. ज्यादा किया जाता है। इससे मिट्टी की ऊपरी सतह में जमा खरपतवारों की बीजों के अंकुरण होने की शक्ति कम या निष्क्रिय हो जाती है। इसके आलावा कुछ हानिकारक कीड़े, सूत्रकृमि अन्य नाशक भी नष्ट हो जाते हैं। यह तकनीक पौधशाला में पौध तैयार करते समय खरपतवारों को नियंत्रित करने में बहुत ही प्रभावशाली है।
- जीरो टिलेज तकनीक: इस तकनीक में खेत में केवल बोवाई के लिए ही विशेष मशीन (जीरो टिलेज मशीन) द्वारा खाद तथा बीज को डाला जाता है। उससे पहले खेत में कोई क्रिया नहीं की जाती है। यह तकनीक गेहूँ की फसल में प्रयोग की जाती है। तकनीक से किसानों को लगभग 2500 रूपये प्रति हेक्टेयर कम लागत आई है और इससे गुल्ली डंडा नामक खरपतवार की संख्या कम होती है|
- रासायनिक विधि: खरपतवारनाशी रसायन द्वारा भी खरपतवारों को सफलता पूर्वक नियंत्रित किया जा सकता है। इससे प्रति हेक्टेयर लागत कम आती है तथा समय की भी बचत होती है। लेकिन इन रसायनों का प्रयोग करते समय सावधानी बरतनी पड़ती है। खरपतवार नियंत्रण में खरपतवारनाशी रसायनों के उपयोग में एक और विशेष लाभ है। हाथ निंदाई या डोरा चलाकर निंदाई, फसल की कुछ बाढ़ हो जाने पर की जाती है, और इन शस्य क्रियाओं में नीदा जड़ मूल से समाप्त होने के बजाय, उपर से टूट जाते हैं, जो बाद में फिर बाढ़ पकड़ लेते हैं। खरपतवारनाशी रसायनों में यह स्थिति नहीं बनती क्योंकि यह फसल बोने के पूर्व या बुवाई के बाद उपयोग किये जाते हैं। जिससे खरपतवार अंकुरण अवस्था में ही समाप्त हो जाते हैं अथवा बाद में नीदा रसायन के प्रभाव से पूर्णतया नष्ट हो जाते हैं। खरपतवारनाशी रसायनों का विस्तृत विवरण (सारणी 4) में दिया गया है।
- खरपतवारों की रोकथाम: खरपतवार की रोकथाम में ध्यान देने योग्य बात यह है कि खरपतवारों का नियंत्रण सही समय पर करें। खरपतवारों की रोकथाम निम्नलिखित तरीकों से की जाती है।
- निवारण विधि : इस विधि में वे सभी क्रियाएँ शामिल है जिनके द्वारा खेतों में खरपतवारों के प्रवेश को रोका जा सकता है, जैसे प्रमाणित बीजों का प्रयोग, अच्छी सड़ी गोबर एवं कम्पोस्ट खाद का प्रयोग, सिंचाई की नालियों की सफाई, खेत की तयारी एवं बुवाई के प्रयोग में किये जाने वाले यंत्रों का प्रयोग से पूर्व अच्छी तरह से साफ़-सफाई इत्यादि।
- यांत्रिक विधि : खरपतवारों पर काबू पाने की यह एक सरल एवं प्रभावी विधि है। फसल की प्रारंभिक अवस्था में बुवाई के 15 से 45 दिन के मध्य फसलों को खरपतवारों से मुक्त रखना जरूरी है। सामान्यत: दो निराई-गुड़ाई, पहली 20-25 व दूसरी 45 दिन बाद करने से खरपतवारों का नियंत्रण प्रभावी ढंग से होता है।
- मृदा सौरीकरण : इस तकनीक के अंतर्गत विभिन्न मोटाई की पारदर्शी पोलिथाईलिन शीट (50-100 मिलीमाईक्रोन) को समतल नमीयुक्त मिट्टी की ऊपरी सतह पर फसल की बोवाई के पहले मई के महीने में 4-6 सप्ताह तक फैलाकर मिट्टी की ऊपरी सतह का तापमान बाह्य तापमान की तुलना में 8-12 0से. ज्यादा किया जाता है। इससे मिट्टी की ऊपरी सतह में जमा खरपतवारों की बीजों के अंकुरण होने की शक्ति कम या निष्क्रिय हो जाती है। इसके आलावा कुछ हानिकारक कीड़े, सूत्रकृमि अन्य नाशक भी नष्ट हो जाते हैं। यह तकनीक पौधशाला में पौध तैयार करते समय खरपतवारों को नियंत्रित करने में बहुत ही प्रभावशाली है।
- जीरो टिलेज तकनीक: इस तकनीक में खेत में केवल बोवाई के लिए ही विशेष मशीन (जीरो टिलेज मशीन) द्वारा खाद तथा बीज को डाला जाता है। उससे पहले खेत में कोई क्रिया नहीं की जाती है। यह तकनीक गेहूँ की फसल में प्रयोग की जाती है। तकनीक से किसानों को लगभग 2500 रूपये प्रति हेक्टेयर कम लागत आई है और इससे गुल्ली डंडा नामक खरपतवार की संख्या कम होती है|
- रासायनिक विधि: खरपतवारनाशी रसायन द्वारा भी खरपतवारों को सफलता पूर्वक नियंत्रित किया जा सकता है। इससे प्रति हेक्टेयर लागत कम आती है तथा समय की भी बचत होती है। लेकिन इन रसायनों का प्रयोग करते समय सावधानी बरतनी पड़ती है। खरपतवार नियंत्रण में खरपतवारनाशी रसायनों के उपयोग में एक और विशेष लाभ है। हाथ निंदाई या डोरा चलाकर निंदाई, फसल की कुछ बाढ़ हो जाने पर की जाती है, और इन शस्य क्रियाओं में नीदा जड़ मूल से समाप्त होने के बजाय, उपर से टूट जाते हैं, जो बाद में फिर बाढ़ पकड़ लेते हैं। खरपतवारनाशी रसायनों में यह स्थिति नहीं बनती क्योंकि यह फसल बोने के पूर्व या बुवाई के बाद उपयोग किये जाते हैं। जिससे खरपतवार अंकुरण अवस्था में ही समाप्त हो जाते हैं अथवा बाद में नीदा रसायन के प्रभाव से पूर्णतया नष्ट हो जाते हैं। खरपतवारनाशी रसायनों का विस्तृत विवरण (सारणी 4) में दिया गया है।
फसल |
खरपतवारनाशी |
मात्रा (ग्राम/हें.) |
व्यापारिक
मात्रा (ग्राम/हें.) |
प्रयोग
का समय |
खरपतवारों के प्रकार |
|||||||
|
रसायनिक
नाम |
व्यवसायिक
नाम |
||||||||||
धान |
पेंडीमेथिलिन +
पाइराजोसल्फयूरॉन
@39.5 5 % |
920 |
2343.95 ग्रा./ (ग्राम/हें.) |
बुवाई
के 3 दिन के अंदर |
संकरी, सेजेस एवं चौड़ी पत्ती
|
|||||||
पेंडीमेथिलिन 30 %(ई.सी.) |
स्टाम्प, पेंडीगोल्ड, पेंडीलीन, धानुटांप, पेनिडा, पेंडीहबे |
1000-1250 |
3000-4500 |
बुवाई
के 3 दिन के अंदर |
संकरी एवं चौड़ी पत्ती |
|||||||
बिसपैरिबैक
सोडियम |
नॉमिनी
गोल्ड |
25 |
250 |
बुवाई
से 20-25
दिन बाद |
संकरी, सेजेस एवं चौड़ी पत्ती |
|||||||
प्रेटिलाक्लोर |
सोफिट, रिफिट |
750-1000 |
1500 |
बुवाई
के 3-7
दिन के अंदर |
संकरी |
|||||||
2, 4-डी |
2,4-डी, एग्रोडान-48, काम्बी, इर्विटाक्स, टेफासाइड, वीडमार |
750-1000 |
2000-3000 20-25 किग्रा. (4% दानेदार) |
रोपाई
के 20-25
दिन बाद |
चौड़ी
पत्ती |
|||||||
क्लोरीम्यूरॉन
+मेट्सल्फूरॉन |
आलमिक्स |
4 |
20 (कंपनी
मिश्रण) |
रोपाई
के 15-20
दिन बाद |
संकरी, सेजेस एवं चौड़ी पत्ती |
|||||||
फिनाक्साप्राप
इथाईल |
व्हिप
सुपर |
70 |
700-750 |
रोपाई
के 25-30
दिन बाद |
संकरी |
|||||||
पाइराजोसल्फयूरॉन |
साथी |
25 |
200 |
रोपाई
के 15 दिन बाद |
सेजेस
एवं चौड़ी पत्ती |
|||||||
बिसपैरिबैक
सोडियम + पाइराजोसल्फयूरॉन |
35 |
100 |
संकरी, सेजेस एवं चौड़ी पत्ती |
|||||||||
मक्का, |
एट्राजीन |
एट्राटाफ, धानुजीन, सोलारो |
1000 |
2000 |
बुवाई
के 20-25
दिन बाद |
संकरी एवं चौड़ी पत्ती |
||||||
|
2,4-डी 58 % |
2, 4-डी, एग्रोडान-48, काम्बी, इर्विटाक्स, टेफासाइड, वीडमार |
500 |
862.07 |
बुवाई
के 15-20
दिन बाद |
चौड़ी
पत्ती |
||||||
हैलोसुल्फुरोन
एथिल |
67.5 |
90 |
बुवाई
के 20-25
दिन बाद |
सेजेस |
||||||||
टेम्बोट्रिओन 34.4 % |
लॉडिस |
120 |
348.84 |
बुवाई
के 15-20
दिन बाद |
संकरी एवं चौड़ी पत्ती |
|||||||
टॉपरामिज़ॉन 33.6 % (ई.सी.) |
टिंजर |
25.2 |
75 |
बुवाई के 15-20 दिन बाद |
संकरी एवं चौड़ी पत्ती |
|||||||
ज्वार, बाजरा |
2,4-डी 58 % |
2, 4-डी, एग्रोडान-48, काम्बी, इर्विटाक्स, टेफासाइड, वीडमार |
500 |
1317 |
बुवाई
के 30-35
दिन बाद |
चौड़ी
पत्ती |
||||||
दलहनी फसलें
(अरहर, उरद एवं मूंग) |
||||||||||||
अरहर, उरद एवं मूंग |
पेंडीमेथालीन 38.7 % (ऐस. सी.) |
स्टाम्प, पेंडीगोल्ड, पेंडीलीन, धानुटाप, पेनिडा, पेंडीहर्ब |
250 |
645.99 |
बुवाई
के 3 दिन के अंदर |
संकरी एवं चौड़ी पत्ती |
||||||
क्यूजालोफॉप इथाईल (5%ई.सी.) |
टरगा
सुपर |
40-50 |
800-1000 |
बुवाई
के 15-20
दिन बाद |
संकरी
पत्ती |
|||||||
इमेजेथापायर 10 % (ई.सी.) | परस्यूट |
100 |
1000 |
बुवाई
के 15-20
दिन बाद |
संकरी एवं चौड़ी पत्ती |
|||||||
तिलहनी फसलें |
||||||||||||
कपास |
डायूरान |
एग्रोमेक्स, कारमेक्स, क्लास, टू |
750-1000 |
900-1150 |
बुवाई
के 0-5
दिन के अंदर |
चौड़ी पत्ती |
||||||
फिनाक्साप्राप 9.3 % |
व्हिप
सुपर |
67.5 |
725.80 |
बुवाई
से 20-25
दिन बाद |
संकरी
पत्ती |
|||||||
क्यूजालोफॉप इथाईल (5% ई.सी.) |
टरगा
सुपर |
40-50 |
800-1000 |
बुवाई
के 15-20
दिन बाद |
संकरी
पत्ती |
|||||||
पाइरीथ्रोबाक
सोडियम + पेंडीमेथलीन 37.1 % |
742 |
2000 |
बुवाई
के 3 दिन के अंदर |
संकरी एवं चौड़ी पत्ती |
||||||||
पेंडीमेथिलिन 30 % (ई.सी.) |
स्टाम्प, पेंडीगोल्ड, पेंडीलीन, धानुटांप, पेनिडा, पेंडीहबे |
1000-1250 |
3000-4500 |
बुवाई
के 3 दिन के अंदर |
संकरी एवं चौड़ी पत्ती |
|||||||
ग्लूफोसिनेट अमोनियम
13.5 % |
450 |
3333 |
बुवाई
के 15-20
दिन बाद |
संकरी एवं चौड़ी पत्ती |
||||||||
सोयाबीन |
क्लोरीम्यूरॉन 4% |
क्लोबेन |
8-12 |
40-60 |
बुवाई
के 15-20
दिन बाद |
संकरी एवं चौड़ी पत्ती |
||||||
फिनाक्साप्राप 9.3 % |
व्हिप
सुपर |
80-100 |
800-1000 |
बुवाई
से 20-25
दिन बाद |
संकरी
पत्ती |
|||||||
इमेजेथापायर 10 % (ऐस.
ऐल.) |
परस्यूट |
100 |
1000 |
बुवाई
के 15-20
दिन बाद |
संकरी एवं चौड़ी पत्ती |
|||||||
मेटलाक्लोर (50 % ई.सी.) |
डुअल |
1000-1500 |
2000-3000 |
बुवाई
के 3 दिन के अंदर |
संकरी एवं चौड़ी पत्ती |
|||||||
पेंडीमेथिलीन 30 % (ई.सी.) |
स्टाम्प, पेंडीगोल्ड, पेंडीलीन, धानुटाप, पेनिडा, पेंडीहर्ब |
1000-1250 |
3330-4160 |
बुवाई
से पहले या बुवाई के 3
दिन के अंदर |
संकरी एवं चौड़ी पत्ती |
|||||||
क्यूजालोफॉप इथाईल ¼5% (ई.सी.) |
टरगा
सुपर |
40-50 |
800-1000 |
बुवाई
के 15-20
दिन बाद |
संकरी
पत्ती |
|||||||
मेट्रिब्यूजिन 70 % (डब्लू.पी) |
350 |
500 |
बुवाई
के 3 दिन के अंदर |
संकरी एवं चौड़ी पत्ती |
||||||||
ऑक्साडाईजोन 25% (ई.सी.) |
रोनस्टर |
500 |
2000 |
बुवाई
के 3 दिन के अंदर |
संकरी एवं चौड़ी पत्ती |
|||||||
सोडियम
ऐसीफ्लूरोफेन + क्लॉडिनोफॉप प्रोपार्जिल @
22.5 % |
245 |
1088.89 |
बुवाई
के 15-20
दिन बाद |
संकरी एवं
सेजेस |
||||||||
मूंगफली |
पेंडीमेथिलीन 30 % (ई.सी.) |
स्टाम्प, पेंडीगोल्ड, पेंडीलीन, धानुटाप, पेनिडा, पेंडीहर्ब |
1000-1250 |
3330-4160 |
बुवाई
से पहले या बुवाई के 3
दिन के अंदर |
संकरी एवं चौड़ी पत्ती |
||||||
क्यूजालोफॉप इथाईल (5% ई.सी.) |
टरगा
सुपर |
40-50 |
800-1000 |
बुवाई
के 15-20
दिन बाद |
संकरी
पत्ती |
|||||||
इमेजेथापायर + इमेजामॉक्स 70 % |
ओडिसी |
70 |
100 |
बुवाई
के 15-20
दिन बाद |
संकरी एवं चौड़ी पत्ती |
|||||||
फिनाक्साप्राप 9.3 % |
व्हिप
सुपर |
80-100 |
800-1000 |
बुवाई
से 20-25
दिन बाद |
संकरी
पत्ती |
|||||||
ऑक्साडाईजोन 25% (ई.सी.) |
रोनस्टर |
750 |
3000 |
बुवाई
के 3 दिन के अंदर |
संकरी एवं चौड़ी पत्ती |
सारणी 3. खरीफ एवं रबी के सब्जियों में प्रमुख खरपतवारनाशी रसायन
सब्जियां |
शाकनाशी दवा |
सक्रियतत्व मात्रा (ग्रा. अथवा मिली/हे.) |
व्यापारी मात्रा (ग्रा./हे.) |
प्रयोग का समय |
खरपतवारों के प्रकार |
भिण्डी | पेंडीमेथालिन (30% ई.सी.) | 500-1000 | 1500-3000 | बुवाई के तुरंत बाद (0-3) दिन | संकरी एवं चौडी पत्ती |
|
फलूजीफाॅपब्यूटिल (13.4% ई.सी) | 250 | 1800-1850 | बुवाई के 20-25 दिन बाद | मुख्य रूप संकरी पत्ती वाले खरपतवार |
|
ऑक्सीफ्लोरफेन (23.5% ई.सी.) | 150 | 425-640 | बुवाई के तुरंत बाद (0-3) दिन | संकरी एवं चौडी पत्ती (केवल मटर) |
|
मेटोलाक्लोर (50% ई.सी.) | 750 | 1500 | बुवाई के तुरंत बाद (0-3) | दिन संकरी एवं चौडी पत्ती |
धनिया | पेंडीमेथालिन (30% ई.सी.) | 1000-1500 | 3333-5000 | बुवाई के तुरंत बाद (0-8) दिन | संकरी एवं चौडी पत्ती |
|
क्विजालोफाॅप इथाईल (5% ई.सी.) | 40-50 | 800-1000 | बुवाई के 20-25 दिन बाद | संकरी सकरी |
प्याज एवं लहसुन | पेंडीमेथालिन (30% ई.सी.) | 1000-1500 | 3333-5000 | राईजोम लगने के तुरंत बाद (0-8) दिन | संकरी एवं चौडी पत्ती |
|
क्विजालोफाॅप इथाईल (5% ई.सी.) | 40-50 | 800-1000 | राईजोम लगने के 20-25 दिन बाद | संकरी |
|
ऑक्साडाइजोन (25% ई.सी.) | 500 | 2000 | राईजोम लगने के तुरंत बाद (0-3) दिन | संकरी एवं चौडी सकरी |
|
हैलाॅक्सीफाॅपयूटिल (13.4% ई.सी) | 100 | राईजोम लगने के बाद (10-15) दिन | संकरी एवं सेज | |
टालु | ब्यूटाक्लोर (5% ई.सी.) | 750-1000 | 1500-2000 | कंद लगने के 0 से 4 दिन बाद | संकरी एवं चौडी पत्ती |
|
पेंडीमेथालिन (30% ई.सी.) |
1000&1500 |
3333&5000 |
कंद लगने के तुरंत बाद (0-8) दिन |
संकरी एवं चौडी पत्ती |
|
मेट्रीव्यूजिन (70% डब्ल्यू.पी.) |
525 |
750 |
कंद लगने के 0 से 3 दिन या 15 से 20 दिन बाद |
चौडी पत्ती एवं सेजेस |
टमाटर | पेंडीमेथालिन (30% ई.सी.) |
1000&1500 |
3333&5000 |
पौधा लगने के तुरंत बाद (0-8) दिन |
संकरी एवं चौडी पत्ती |
|
मेट्रीव्यूजिन (70% डब्ल्यू.पी.) |
525 |
750 |
पौधा लगने से पहले अथवा सुरक्षा करते हुए स्प्रे |
सकरी एवं कुछ चौड़ी पत्ती |
|
क्विजालोफाॅप इथाईल (5% ई.सी.) |
40&50 |
800&1000 |
पौधा लगने के 20-25 दिन बाद |
संकरी पत्ती |
फूलगोभी एवं पत्ता गोभी | पेंडीमेथालिन (30% ई.सी.) |
1000&1500 |
3333&5000 |
रोपा के तुरंत बाद (0-3) दिन |
संकरी एवं चौडी पत्ती |
|
ऑक्सीफ्लोरफेन (23.5% ई.सी.) |
200&300 |
850&1277 |
रोपा के पहले |
संकरी एवं चौडी पत्ती |
मिर्च,बैगन एवं मेथी | पेंडीमेथालिन (30% ई.सी.) |
1000&1500 |
3333&5000 |
पौधा लगने के तुरंत बाद (0-8) दिन |
संकरी एवं चौडी पत्ती |
|
क्विजालोफाॅप इथाईल (5% ई.सी.) |
40&50 |
800&1000 |
पौधा लगने के 20-25 दिन बाद |
संकरी पत्ती |
|
ऑक्साडाइजोन (25% ई.सी.) |
500 |
2000 |
पौधा लगने के 20-25 दिन बाद |
संकरी एवं चौडी पत्ती |
कुकुरबिट्स (परवल, कुदरू, करेला, ककड़ी, कद्दू, तरोई, डोढका एवं लौकी) |
ऑक्सीफ्लोरफेन (23.5% ई.सी.) |
200&300 |
850&1277 |
बीज या पौधा लगने के 0-5 दिन बाद | संकरी एवं कुछ चौडी पत्ती (पौधे या बीज के सीधे सम्पर्क में ना डाले) |
|
मेट्रीव्यूजिन (70% डब्ल्यू.पी.) |
525 |
750 |
बीज या पौधा लगने के 0-5 दिन बाद |
सकरी एवं कुछ चौड़ी पत्ती |
- चिन्हित क्षेत्र में शाकनाशियों पर एक समान छिडकाव करने के लिए स्प्रेयर का व्यास सावधानी से नापें।
- मात्रा क्षेत्र तथा विभिन्न संरूपणों (फार्मुलेशन) में उपलब्ध सक्रिय संघटकोण के आधार पर खरपतवारनाशियों का आकलन करके एक निशिचत तौल बना लें।
- खेत में स्प्रे करने के लगभग आधा घंटे से पहले तुले हुए शाकनाशियों को पानी में अच्छी तरह मिला लें।
- शाकनाशियों के स्प्रे के लिए फ्लैट फेन नोजल का इस्तेमाल करें।
- गैर चयनित शाकनाशियों के इस्तेमाल करते समय स्प्रेयर के नोजल पर सुरक्षात्मक शील्ड लगाकर ही पौधों पर छिडकाव करें।
- खरपतवारनाशी का छिडकाव बराबर मात्रा में करें, कहीं कम या ज्यादा न हो।
- रसायनों का प्रयोग अदल-बदल कर करें।
- खरपतवारनाशी रसायनों को बच्चों की पहुँच से दूर रखें।
- तेज हवाओं के चलने पर छिडकाव न करें क्योंकि शाकनाशी हवाओं के साथ उड़कर समीप की अन्य संवेदी फसलों को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
- वर्षा की संभावना होने पर शाकनाशियों का छिडकाव न करें।
- मिश्रित फसलों में रसायनों का चयन फसलों के मुताबिक ही करें।
- खरपतवारनाशी का इस्तेमाल रेत, खाद व मिट्टी में मिलाकर न करें।
- हवाओं के प्रतिकूल रुख की ओर कभी भी छिडकाव न करें।
- शाकनाशियों का इस्तेमाल करते समय रक्षात्मक वस्त्र (बूट, दस्ताने, धूप का चश्मा, मास्क आदि) इस्तेमाल करें।
- छिडकाव पूरा हो जाने के बाद खाली डिब्बे को या तो जमीन में दवा दें या जला दें।
- छिडकाव करने के बाद अपने हाथ तथा अन्य अंगों को साबुन से अच्छी तरह से धो दें।
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