सुरेश कुमार वाकरे (पी.एच.डी. रिसर्च स्काॅलर), सब्जि विज्ञान विभाग,
उद्यानिकी महाविद्यालय सांकरा (छ.ग.)
नरोत्तम अत्री ( पी.एच.डी. रिसर्च स्काॅलर),कृषि अर्थशास्त्र विभाग,
कृषि महाविद्यालय रायपुर (छ.ग.)
डाॅ. देवेन्द्र कुर्रे (सहायक प्रध्यापक)
लिंगो मुढ़ियाल कृषि महाविद्यालय नारायणपुर (छ.ग.)
डाॅ. अमित कुमार पैंकरा (अतिथि शिक्षक),
उद्यानिकी महाविद्यालय महाविद्यालय एवं अनुशन्धान केन्द्र कुनहारावनद जगदलपुर (छ.ग.)
1. प्रस्तावना
भारत जैसे विकासशील देश में कुपोषण एक गंभीर समस्या है, जो विशेषकर ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में व्यापक रूप से फैली हुई है। कुपोषण न केवल शारीरिक विकास को रोकता है, बल्कि मानसिक और बौद्धिक क्षमताओं को भी प्रभावित करता है। ऐसे में एक ऐसा प्राकृतिक स्रोत जो सस्ता, सुलभ, पोषक और औषधीय गुणों से भरपूर हो, समाज के लिए वरदान साबित हो सकता है।
मुनगा (जिसे सहजन, सौजन, या ड्रमस्टिक भी कहा जाता है) एक ऐसा ही पौधा है, जिसे ‘‘हरित चमत्कार‘‘ की उपाधि दी गई है। इसकी पत्तियाँ, फलियाँ, बीज, फूल, छाल और जड़ें- सबका उपयोग औषधीय और पोषणीय दृष्टिकोण से किया जाता है। यह पौधा सिर्फ एक सब्जी नहीं बल्कि संपूर्ण पोषण और स्वास्थ्य का खजाना है।
2. मुनगा का परिचय एवं नामकरण
मुनगा का वानस्पतिक डवतपदहं वसमपमितं है। यह पौधा ‘मोरेन्गेसी‘ कुल का सदस्य है और मूल रूप से भारत, नेपाल और पाकिस्तान का निवासी है। इसे भारत में विभिन्न नामों से जाना जाता है- जैसे कि बिहार और उत्तर प्रदेश में ‘‘सहजन‘‘, महाराष्ट्र में ‘‘शेवगा‘‘, तमिलनाडु में ‘‘मुरुंगई‘‘, और अंग्रेजी में ‘‘ड्रमस्टिक ट्री‘‘।
मुनगा का नामकरण ‘‘मोरेगा‘‘ नामक तमिल शब्द से हुआ है, जिसका अर्थ होता है ‘‘मरोड़ना‘‘, जो इसकी फली की विशेषता को दर्शाता है। इसका उपयोग पारंपरिक आयुर्वेदिक चिकित्सा, यूनानी और सिद्ध पद्धतियों में हजारों वर्षों से होता आ रहा है।
3. मुनगा का पौध संरचना एवं जैविक गुण
मुनगा एक बहुवर्षीय और शीघ्र वृद्धि करने वाला वृक्ष है। इसकी प्रमुख जैविक विशेषताएँ निम्नलिखित हैंः
- उच्च ताप और सूखा सहिष्णुताः यह पौधा 25°C से 40°C तापमान में आसानी से उगता है और कम जल की स्थिति में भी जीवित रह सकता है।
- मिट्टी की अनुकूलताः यह रेतीली, दोमट या मध्यम काली मिट्टी में अच्छी तरह उगता है।
- गहराई तक जड़ेंः इसकी जड़ें गहराई तक जाती हैं, जिससे यह सूखा झेलने में सक्षम होता है।
- तेज वृद्धि दरः बीज बोने के 6 महीने के अंदर यह फल देना प्रारंभ कर देता है।
- वृक्ष की ऊँचाईः सामान्यतः इसकी ऊँचाई 6 से 10 मीटर तक होती है।
इस पौधे के सभी भाग पत्तियाँ, तना, फूल, फलियाँ, बीज और जड़ किसी न किसी रूप में उपयोगी हैं।
4. पोषण मूल्यः मुनगा एक पोषण शक्ति
मुनगा को ‘‘सुपरफूड‘‘ की श्रेणी में रखा गया है, क्योंकि इसमें कई आवश्यक पोषक तत्व अत्यधिक मात्रा में पाए जाते हैंः
घटक मात्रा |
(100 ग्राम पत्तियों में) |
प्रोटीन |
9.4 ग्राम |
विटामिन |
6780 IU- |
विटामिन ’सी’ |
220 मिलीग्राम |
कैल्शियम |
440 मिलीग्राम |
पोटैशियम |
259 मिलीग्राम |
आयरन |
7 मिलीग्राम |
मैग्नीशियम |
42 मिलीग्राम |
5. मुनगा के विभिन्न भागों का औषधीय उपयोग
मुनगा एक संपूर्ण चिकित्सा भंडार हैः
- पत्तियाँः रक्त शुद्धि, प्रतिरक्षा बढ़ाने, आँखों की रोशनी सुधारने और बच्चों के विकास में सहायक।
- फलियाँः पाचन सुधार, यकृत की क्रियाशीलता बढ़ाना और हड्डियाँ मजबूत करना।
- बीजः जल शुद्धिकरण, त्वचा रोगों में लाभकारी, और तेल के रूप में उपयोग।
- छाल और जड़ेंः गठिया, बुखार, और पेट के रोगों में उपयोगी।
- फूलः एंटीऑक्सीडेंट गुण और प्रजनन स्वास्थ्य में सहायक।
आयुर्वेद के अनुसार मुनगा वात, पित्त और कफ तीनों दोषों को संतुलित करता है।
6. मुनगा और कुपोषण निवारण
भारत में हर तीसरा बच्चा कुपोषित है। गर्भवती महिलाएँ, बच्चे और वृद्ध सबसे अधिक प्रभावित होते हैं। मुनगा एक ऐसा पौधा है जो अत्यंत सस्ते मूल्य पर अत्यधिक पोषण उपलब्ध कराता हैः
- बच्चों को प्रतिदिन मुनगा की पत्तियों का सूप या साग देने से उनकी वृद्धि तीव्र होती है।
- इसमें उच्च प्रोटीन और आयरन होने के कारण एनीमिया को रोका जा सकता है।
- विटामिन A बच्चों की दृष्टि को सुरक्षित रखता है।
- महिलाओं में कैल्शियम की पूर्ति से हड्डियाँ मजबूत होती हैं।
7. गर्भवती महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों के लिए उपयोगिता
- गर्भवती महिलाएँः मुनगा पत्तियों के सेवन से गर्भस्थ शिशु को पोषण, मातृ दुग्धवृद्धि और कमजोरी से मुक्ति मिलती है।
- बच्चेः मुनगा सूप या पाउडर बच्चों की थाली में शामिल कर उन्हें संतुलित आहार दिया जा सकता है।
- बुजुर्ग: जोड़ों का दर्द, मधुमेह और रक्तचाप जैसी समस्याओं में मुनगा फायदेमंद है।
8. आर्थिक और सामाजिक महत्व
- मुनगा की खेती कम लागत में अधिक लाभ देती है।
- इसकी पत्तियों से पाउडर बनाकर विक्रय किया जा सकता है।
- स्वयं सहायता समूहों द्वारा मुनगा आधारित उत्पाद जैसे मुनगा चाय, टेबलेट, पाउडर आदि बेचे जाते हैं।
- ग्रामीण महिलाओं को आय का स्रोत मिलता है।
9. मुनगा की खेतीः एक सतत कृषि समाधान
- जलवायु अनुकूलताः सूखा और अल्प वर्षा क्षेत्र में भी खेती संभव।
- कम लागत, अधिक लाभः 1 एकड़ में लगभग ₹40,000 तक की आय।
- जैविक खेतीः मुनगा की खेती में रासायनिक उर्वरकों की आवश्यकता न्यूनतम होती है।
- फसल चक्र में उपयोगः अंतरवर्तीय खेती हेतु उपयुक्त।
10. मुनगा को जन-जन तक पहुँचाने के प्रयास
- आंगनवाड़ी केंद्रों, स्कूलों, और रसोईघरों में मुनगा का नियमित उपयोग।
- गाँवों में मुनगा वृक्षारोपण अभियान।
- महिला स्व-सहायता समूहों को प्रशिक्षण देना।
- पोषण शिक्षा कार्यक्रमों में मुनगा की जानकारी देना।
11. सरकारी योजनाओं में मुनगा का समावेश
- राष्ट्रीय पोषण मिशन (POSHAN Abhiyaan) में मुनगा को ‘‘न्यूट्री-गार्डन‘‘ का हिस्सा बनाया गया है।
- मध्याह्न भोजन योजना में मुनगा पत्तियों के सूपध्सब्जी को शामिल किया जा रहा है।
- ICDS कार्यक्रम में मुनगा आधारित रेडी-टू-ईट फॉर्मूलेशन का वितरण।
- कृषि मंत्रालय द्वारा मुनगा उत्पादन को बढ़ावा देने हेतु योजनाएँ।
12. निष्कर्षः मुनगा से समृद्धि और स्वास्थ्य की ओर
मुनगा केवल एक पौधा नहीं, बल्कि हरित चमत्कार है एक ऐसा समाधान जो कुपोषण, गरीबी, बेरोजगारी और स्वास्थ्य समस्याओं के विरुद्ध एक मजबूत हथियार बन सकता है। यदि इसे योजनाबद्ध ढंग से समाज के हर वर्ग तक पहुँचाया जाए तो यह भारत को पोषण की दृष्टि से आत्मनिर्भर बनाने में सक्षम है। ‘‘हर घर मुनगा, हर थाली में मुनगा‘‘ का मंत्र अपनाकर हम स्वस्थ, समृद्ध और सशक्त भारत की ओर ।
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