सुरेश कुमार साहू एवं आयुष गुप्ता

अलसी तिलहन फसलों में दूसरी महत्वपूर्ण फसल है। अलसी का बोटेनिकल नाम लिनम यूसीटेटीसिमम है। अलसी के बीजों में कई पोषक तत्व पाए जाते हैं, जिनसे सेहत को कई फायदे होते हैं अलसी को फ्लैक्ससीड के नाम से भी जाना जाता है। अलसी के पौधे में नीले फूल आते हैं। अलसी का सम्पूर्ण पौधा आर्थिक महत्व का होता है। इसके तने से लिनेन नामक बहुमूल्य रेशा प्राप्त होता है और बीज का उपयोग तेल प्राप्त करने के साथ-साथ औषधीय रूप में किया जाता है। आयुर्वेद में अलसी को दैनिक भोजन माना जाता है. अलसी के कुल उत्पादन का लगभग 20 प्रतिशत खाद्य तेल के रूप में तथा शेष 80 प्रतिशत उद्योगों में प्रयोग होता है. अलसी का बीज ओमेगा-3 वसीय अम्ल 50 से 60 प्रतिशत पाया जाता है अलसी में मुख्य पौष्टिक तत्व ओमेगा-3 फैटी एसिड एल्फा-लिनोलेनिक एसिड, लिगनेन, प्रोटीन व फाइबर होते हैं। अलसी गर्भावस्था से वृद्धावस्था तक फायदेमंद है। महात्मा गांधी जी ने स्वास्थ्य पर भी शोध की व बहुत सी पुस्तकें लिखीं हैं। उन्होंने अलसी पर भी शोध किया, इसके चमत्कारी गुणों को पहचाना और अपनी एक पुस्तक में लिखा है, ”जहां अलसी का सेवन किया जायेगा, वह समाज स्वस्थ व समृद्ध रहेगा। अलसी को अतसी, उमा, क्षुमा, पार्वती, नीलपुष्पी, तीसी आदि नामों से भी पुकारा जाता है। अलसी दुर्गा का पांचवा स्वरूप है। प्राचीनकाल में नवरात्री के पांचवें दिन स्कंदमाता यानी अलसी की पूजा की जाती थी और इसे प्रसाद के रूप में खाया जाता था, जिससे वात, पित्त और कफ तीनों रोग दूर होते थे और जीते जी मोक्ष की प्राप्ति हो जाती थी।

अलसी में लगभग 18-20 प्रतिशत ओमेगा-3 फैटी एसिड होते हैं। अलसी ओमेगा-3 फैटी एसिड का पृथ्वी पर सबसे बड़ा स्त्रोत है। हमारे स्वास्थ्य पर अलसी के चमत्कारी प्रभावों को भली भांति समझने के लिए हमें ओमेगा-3 व ओमेगा-6 फैटी एसिड को विस्तार से समझना होगा। ये हमारे शरीर के विभिन्न अंगों विशेष तौर पर मस्तिष्क, स्नायुतंत्र व ऑखों के विकास व उनके सुचारु रुप से संचालन में महत्वपूर्ण योगदान करते हैं और कोशिकाओं की भित्तियों का निर्माण करते हैं।

सेवन का तरीका
हमें प्रतिदिन 30-50 ग्राम अलसी का सेवन करना चाहिये। अलसी को कभी रोस्ट नहीं करें, हां इसे पकाया या बेक किया जा सकता है। अलसी को रोज मिक्सी में पीसकर, आटे में मिलाकर रोटी, पराठा आदि बनाकर खाएं। आप अलसी को पीसकर अमूमन सात दिन तक रख सकते हैं। इसकी ब्रेड, केक, कुकीज़, आइसक्रीम, लड्डू आदि स्वादिष्ट व्यंजन भी बनाए जाते हैं। इसे आप सब्जी, दही, दाल, सलाद आदि में भी डाल कर ले सकते हैं। अलसी के नियमित सेवन से व्यक्ति के जीवन में चमत्कारी कायाकल्प हो जाता है। याद रखें बाजार में उपलब्ध रोस्टेड अलसी कभी प्रयोग में नहीं लें। वे इसे लोहे के बड़े पात्र या कड़ाही में बड़ी तेज़ आंच पर रोस्ट करते हैं, जिससे अलसी के सारे पौष्टिक तत्व जल जाते हैं।

महत्त्व
  • अलसी हमारे रक्तचाप को संतुलित रखती है। अलसी हमारे रक्त में अच्छे कॉलेस्ट्रॉल (HDL-Cholesterol) की मात्रा को को बढ़ाती है और ट्राइग्लीसराइड्स व खराब कॉलेस्ट्रॉल (LDL & Cholesterol) की मात्रा को कम करती है। अलसी रक्त को पतला बनाये रखती है और दिल की धमनियों को साफ करती है। यानि अलसी प्राकृतिक एस्पिरिन की तरह काम करती है। इस तरह अलसी दिल की धमनियों में खून के थक्के बनने से रोकती है और हृदयाघात व स्ट्रोक जैसी बीमारियों से बचाव करती है। मतलब अलसी हार्ट अटेक के कारण पर अटैक करती है। अलसी सेवन करने वालों को दिल की बीमारियों के कारण अकस्मात मृत्यु नहीं होती।
  • अलसी ब्लड शुगर नियंत्रित रखती है और डायबिटीज़ के शरीर पर होने वाले दुष्प्रभावों को कम करती हैं। चिकित्सक डायबिटीज के रोगी को कम शुगर और ज्यादा फाइबर लेने की सलाह देते हैं। अलसी में फाइबर की मात्रा अधिक होती है। इस कारण अलसी सेवन से लंबे समय तक पेट भरा हुआ रहता है, देर तक भूख नहीं लगती। डायबिटीज़ के रोगियों के लिए अलसी एक आदर्श और अमृत तुल्य भोजन है। डायबिटीज़ में 20 ग्राम पिसी अलसी सुबह और 20 ग्राम पिसी अलसी शाम को आटे में मिलाकर रोटियां बनवाकर खाए।
  • अलसी के तेल की मालिश से शरीर के अंग स्वस्थ होते हैं, और बेहतर तरीके से कार्य करते हैं। इस तेल की मसाज से चेहरे की त्वचा कांतिमय हो जाती है।
  • अलसी शाकाहारी लोगों के लिए ओमेगा-3 का बेहतर विकल्प है, क्योंकि अब तक मछली को ओमेगा-3 का अच्छा स्त्रोत माना जाता हैं, जिसका सेवन नॉन-वेजिटेरियन लोग ही कर पाते हैं।
  • अलसी में 27 प्रतिशत घुलनशील (म्यूसिलेज़) और अघुलनशील दोनों ही तरह के फाइबर होते हैं, अतः अलसी कब्ज़ी, पाइल्स, बवासीर, फिश्चुला, डाइवर्टिकुलाइटिस, अल्सरेटिव कोलाइटिस और आई.बी.एस. के रोगियों को बहुत राहत देती है। कब्ज़ी में अलसी के सेवन से पहले ही दिन से राहत मिल जाती है। हाल ही में हुई शोध से पता चला है कि कब्ज़ी के लिए यह अलसी इसबगोल की भुस्सी से भी ज्यादा लाभदायक है। अलसी पित्त की थैली में पथरी नहीं बनने देती और यदि पथरियां बन भी चुकी हैं तो छोटी पथरियां तो घुलने लगती हैं।
  • यदि आप त्वचा, नाखून और बालों की सभी समस्याओं का एक शब्द में समाधान चाहते हैं तो मेरा उत्तर है ”ओमेगा-3“। मानव त्वचा को सबसे ज्यादा नुकसान फ्री रेडिकलस् से होता है। हवा में मौजूद फ्री-रेडिकलस या ऑक्सीडेंट्स त्वचा की कोलेजन कोशिकाओं से इलेक्ट्रोन चुरा लेते हैं। परिणाम स्वरूप त्वचा में महीन रेखाएं बन जाती हैं जो धीरे-धीरे झुर्रियों व झाइयों का रूप ले लेती है, त्वचा में रूखापन आ जाता है और त्वचा वृद्ध सी लगने लगती है। अलसी के शक्तिशाली एंटी-ऑक्सीडेंट ओमेगा-3 व लिगनेन त्वचा के कोलेजन की रक्षा करते हैं और त्वचा को आकर्षक, कोमल, नम, बेदाग़ व गोरा बनाते हैं। स्वस्थ त्वचा जड़ों को भरपूर पोषण देकर बालों को स्वस्थ, चमकदार व मजबूत बनाती हैं।
  • अलसी त्वचा की बीमारियों जैसे मुहांसे, एग्ज़ीमा, दाद, खाज, सूखी त्वचा, खुजली, सोरायसिस, ल्यूपस, बालों का सूखा व पतला होना, बाल झड़ना आदि में काफी असरकारक है। अलसी सेवन करने वाली स्त्रियों के बालों में न कभी रूसी होती है और न ही वे झड़ते हैं। अलसी नाखूनों कीे स्वस्थ व सुंदर आकार प्रदान करती है। अलसी युक्त भोजन खाने व इसके तेल की मालिश से त्वचा के दाग, धब्बे, झाइयां व झुर्रियां दूर होती हैं। अलसी आपको युवा बनाए रखती है। आप अपनी उम्र से काफी छोटे दिखते हैं।
  • अलसी आर्थाइटिस, शियेटिका, ल्युपस, गाउट, ऑस्टियोआथ्र्राइटिस आदि का उपचार है। अलसी इम्युनिटी को मज़बूत बनाती है। अलसी में विद्यमान ओमेगा-3 फैटी एसिड और लिगनेन प्रदाहरोधी हैं तथा अलसी दर्द और जकड़न में राहत देते हैं। अलसी का तेल भी काॅटेज चीज़ या पनीर में मिला कर लिया जा सकता है।
  • अलसी में अल्फा लाइनोइक एसिड पाया जाता है, जो ऑथ्राईटिस, अस्थमा, डाइबिटीज और कैंसर से लड़ने में मदद करता है। खास तौर से कोलोन कैंसर से लड़ने में यह सहायक होता है।
  • अलसी बॉडी बिल्डिंग के लिए आवश्यक व संपूर्ण आहार है। अलसी में 20 प्रतिशत बहुत अच्छे प्रोटीन होते हैं। प्रोटीन से मांस-पेशियों का विकास होता है।
  • ओमेगा-3 से हमारी नज़र अच्छी हो जाती है, रंग ज्यादा स्पष्ट व उजले दिखाई देने लगते हैं। ऑखों में अलसी का तेल डालने से ऑखों का सूखापन दूर होता है।