सुरेखा, पी.एच. डी., फाइनलईयर, पादप आण्विक जीव विज्ञान एवं जैव प्रौद्योगि की विभाग, 
इंदिरागांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर
डॉ. हेमप्रकाश वर्मा, यंग प्रोफेशनल,भा.कृ.अनु.प.-राष्ट्रीय जैविक स्ट्रैस प्रबंधन संस्थान, बरोंडा, रायपुर
संजुलता, पी.एच.डी‐, फाइनलईयर, सूक्ष्म जीव विज्ञान, इंदिरागांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर

धान विश्व की तीन महत्वपूर्ण खाद्यान फसलों में से एक है जो कि2-7 बिलियन लोगों का मुख्य भोजन है। इसकी खेती विश्व में लगभग 150 मिलियन हेक्टेयर एवं एशिया में 135 मिलियन हेक्टेयर में की जाती है। भारतवर्ष में लगभग 44 मिलियन हेक्टेयर तथा उत्तरप्रदेश में करीब 5-9 मिलियन हेक्टेयर में धान की खेती विभिन्न परिस्थितियों सिंचित, असिंचित, जल प्लावित, असिंचित ऊसरीली एवं बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में की जाती है। विभिन्न् परिस्थितियों अर्थात् अनुकूल सिंचित एवं विषम परिस्थितियों हेतु धान की उच्च उत्पादकता वाली संकर प्रजातियों के विकास पर बल दिये जाने की आवश्यकता है। संकर प्रजातियों से कृषक कम क्षेत्रफल में सीमित संसाधनों से सफल विविधीकरण द्वारा अधिक उपज प्राप्त कर सकता है। कृषि के क्षेत्र में, संकर धान की खेती ने पैदावार बढ़ाने और फसल के लचीलेपन को बेहतर बनाने की अपनी क्षमता के कारण महत्वपूर्ण प्रगति की है। विभिन्न धान की किस्मों के वांछनीय गुणों को मिलाकर, हाइब्रिड खेती किसानों को उत्पादकता और लाभप्रदता बढ़ाने का अवसर प्रदान करती है। ज्ञातव्य है कि संकर किस्में दो विभिन्न आनुवांशिक गुणों वाली प्रजातियों के नर एवं मादा के संकरण से विकसित की जाती है इनमें पहली पीढ्री का ही बीज नई किस्म के रूप में प्रयोग किया जाता है क्योंकि पहली पीढ्री में एक विलक्षण ओज क्षमता पायी जाती है जो सर्वोत्तम सामान्य किस्मों की तुलना में अधिक उपज देने में सक्षम होती है ध्यान रहे कि अगली पीढ़ी में उनके संकलित गुण विघटित हो जाने के कारण ओज क्षमता में बहुत ह्त्रास होता है तथा पैदावार कम हो जाती है। परिणामतः संकर बीज किसानों को हर साल खरीदना पड़ता है।

हाइब्रिड चावल उत्पादन के लिए मुख्य रूप से तीन विधियां उपयोग की जाती हैं। ये विधियां विशेष रूप से माता-पिता की विभिन्न किस्मों को क्रॉस-ब्रीडिंग (संकरण) के माध्यम से हाइब्रिड बीज उत्पादन में मदद करती हैं। नीचे इन विधियों का विवरण दिया गया है-

1. थ्री-लाइनविधि- इस विधि में सीजीएमएस के उपयोग से संकर बीज का उत्पादन किया जाता है। यह हाइब्रिड चावल उत्पादन की पारंपरिक और सबसे व्यापक रूप से इस्तेमाल की जाने वाली विधि है। इसमें तीन प्रकार की लाइनें उपयोग की जाती है
  • (ए लाइन) मेलस्टेराइल लाइन- यह नर-प्रजनन क्षमता रहित (नर बांझ) होती है। इसे बीज उत्पादन के लिए मादा लाइन के रूप में उपयोग किया जाता है।
  • (बी लाइन) मेंटेनरलाइन- यह , लाइन को बनाएं रखने के लिए उपयोग की जाती है। इसमें नर और मादा दोनों प्रजनन क्षमता होती है।
  • (आर लाइन) रेस्टोरर लाइन- यह नर-प्रजनन क्षमता बहाल करती है। इसे , लाइन के साथ क्रॉस करके हाइब्रिड बीज उत्पन्न किया जाता है।
  • विशेषताएं- यह विधि अधिक समय लेती है लेकिन उच्च गुणवत्ता वाले हाइब्रिड बीज प्रदान करती है।


2. टू-लाइन विधि- इस विधि में केवल दो प्रकार की लाइनें उपयोग की जाती हैं-
  • (टीजीएमएस/पीजीएमएस लाइन)- तापमान या प्रकाश संवेदनशील मे लस्टेराइल लाइन यह लाइन केवल विशेष पर्यावरणीय परिस्थितियों (जैसे तापमान या प्रकाश) में नर-बांझ होती है। उपयुक्त स्थिति में, यह सामान्य रूप से प्रजनन कर सकती है।
  • (आर लाइन) रेस्टोरर लाइन- इसे टीजीएमएस/पीजीएमएस लाइन के साथ क्रॉस करके हाइब्रिड बीज उत्पन्न किया जाता है।
  • विशेषताएं- पर्यावरणीय कारकों पर निर्भर करती है। थ्री-लाइन विधि की तुलना में यह सरल और कम समय लेने वाली है।

रासायनिक विपुंसी कारक तंत्र- ऐसे रसायन जो मादा युग्मक की सामान्य क्रियाशीलता को प्रभावित कि बिना नर युग्मक को नष्ट या निष्क्रिय कर देते हैं, रासायनिक विपुंसी कारक कहलाते हैं। इन्हें युग्मकनाशी भी कहा जाता है। उदाहरण इथेरल, मौलिक हाइड्राजाइड आदि। इन रसायनों का उपयोग संकर बीज उत्पादन में मादा जनक वंशक्रम को विपुंसित करने के लिए किया जा सकता है। चीन में रासायनिक विपुंसि कारकों का उपयोग सामान्य रूप से संकर बीज उत्पादन में किया जाता है। भारत में इस विधि का उपयोग वाणिज्यिक संकर बीज उत्पादन के लिए नहीं किया जाता है।

संकर धान उत्पादन के लाभ
  • सामान्य चावल की तुलना में 20-30 प्रतिशत अधिक उत्पादन।
  • रोग प्रतिरोधक क्षमता में सुधार।
  • कम समय में अधिक उपज।
  • इन विधियों का उपयोग करके हाइब्रिड चावल उत्पादन में श्रेष्ठ गुणवत्ता और अधिक उत्पादकता सुनिश्चित की जा सकती है।

यह लेख संकर धान की खेती के आवश्यक पहलुओं पर प्रकाश डालता है, जिसमें सही किस्मों का चयन करने से लेकर प्रभावी रोपण, सिंचाई, निषेचन और कीट प्रबंधन पद्धतियों को लागू करना शामिल है। संकर धान की खेती की बारीकियों को समझना उन किसानों के लिए महत्वपूर्ण है जो अपनी फसल को अनुकूलित करना चाहते हैं और टिकाऊ कृषि पद्धतियों में योगदान देना चाहते हैं।

संकर धान के लिए उपयुक्त जलवायु
संकर धान की खेती के लिए, गर्म और नम जलवायु की जरूरत होती है। 21 से 42 डिग्री सेल्सियस के बीच का तापमान इस फसल के लिए अच्छा माना जाता है। 42 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान फसल के लिए अच्छा नही होता है। लंबे समय तक धूप और पानी की पर्याप्त आपूर्ति और उच्च नमी होनी चाहिए।

संकर धान के लिए उपयुक्त भूमि
संकर धान की खेती मध्यम काली मिट्टी और दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है। हालाँकि 5 से 8 पीएच रेंज और 1 प्रतिशत से ज्यादा जैविक कार्बन युक्त सुनिकासी व्यवस्थावाली चिकनी दोमट या मटियार भूमि सबसे अच्छी होती है। हल्की मिट्टी, जैसे बलुई दोमट या रेतीली भूमि में संकर धान की सीधी बुआई नहीं करनी चाहिए।

संकर धान के लिए खेत की तैयारी
संकर धान की खेती के लिए मध्यम जमीन का चुनाव इस की खेती के लिए उपयुक्त होता है। खेत में पानी का जमाव 10-12 सें.मी. तक रहना चाहिए। खेत की अंतिम जुताई के समय 41 से 60 क्विंटल कम्पोस्ट या 6 से 10 क्विंटल वर्मी कम्पोस्ट प्रति एकड़ की दर से प्रयोग करना चाहिए।

इसके साथ जैव उर्वरक, यथा- एजोटोबैक्टर, एजोस्पाइरीलम, पीएसबी 1 किलोग्राम प्रत्येक को मिला देने से लाभ होता है। जिंकतत्व की कमी होने पर 8-10 किग्रा जिंक सल्फेट प्रति एकड़ की दर से मिट्टी में प्रयोग किया जाना चाहिए।

संकर धान की प्रचलित किस्में
संकर धान की किस्में दो अलग-अलग आनुवंशिक विशेषताओं वाली किस्मों के परागण से विकसित होती हैं। संकर धान की पहली पीढ़ी के बीजों में विशेष प्रजनन क्षमता होती है, जिससे सामान्य उपज देने वाली किस्मों की तुलना में ज्यादा उपज मिलती है। संकर धान की प्रमुख किस्में इस प्रकार है, जैसे-

इंदिरा सोना, सीआर धान 201,सावा 300, एराई जस्विफ्ट, एराईज, स्विफ्ट गोल्ड, आरएच सुपर 444, सी आर धान 300, अराइज 6444, अराइज तेज गोल्ड, नरेन्द्र संकर धान 2, पंत संकर धान 1, पंत संकर धान 2, प्रोएग्रो 6201,प्रोएग्रो 6444, पीएचबी 71 तथा पूसा आरएच 10(सुगन्धित) गंगा, नरेन्द्र धान 3, सहयाद्री 4, एचआरआई 157, डीआरआरएच 3 और यूएस 312, केआरएच 2, पीआरएच 10, पीएचबी 71 इत्यादि प्रमुख है।

संकर धान के लिए बीज की मात्रा
संकर धान की खेती के लिए 15-20 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर का इस्तेमाल करना चाहिए। यह सामान्य किस्मों के मुकाबले आधा होता है। हालांकि, बुआई की पद्धति के हिसाब से बीज की मात्रा अलग-अलग हो सकती है। जैसे की श्री पद्धति से धान की खेती के लिए 6 से 7 किग्रा प्रति हेक्टेयर बीज की आवश्यकता होती है।

संकर धान के लिए बुवाई का समय
संकर धान की बुआई का सही समय मध्य जून से जुलाई के पहले सप्ताह के बीच होता है। वर्षा आरम्भ होते ही धान की बुवाई का कार्य आरम्भ कर देना चाहिये। इसलिए जून मध्य से जुलाई प्रथम सप्ताह तक बोनी का समय सबसे उपयुक्त होता है। सामान्य तौर पर 2-3 सप्ताह के पौधे रोपाई के लिये उपयुक्त होते हैं तथा एक जगह पर 2-3 पौध लगाना पर्याप्त होता है। रोपाई में विलम्ब होने पर एक जगह पर 4-50 पौधे लगाना उचित होगा। मैदानी इलाकों में 90-115 दिन में पकने वाली किस्मों का चयन करें।

संकर धान के लिए पौधशाला की तैयारी
एक एकड़ खेती के लिए 400 वर्ग मीटर क्षेत्र में नर्सरी तैयार की जाती है। उपलब्धता के अनुसार 2से 2.5 क्विंटल कम्पोस्ट या 50-100 किलोग्राम वर्मीकम्पोस्ट प्रयोग किया जाता है। नर्सरी तैयार करने के एक सप्ताह पूर्व एजोटो बैक्टर/ एजोस्पाइरीलम, पीएसबी तथा ट्राइकोडर्मा विरीडी (प्रत्येक 100 ग्राम की दर से) को कम्पोस्ट या वर्मी कम्पोस्ट में मिलाकर पौधशाला में भुरकाव करना चाहिए। संकर धान बीज बुआई के पूर्व 2 किलोग्राम डीएपी तथा 1 किलोग्राम म्यूरियेट ऑफ पोटाश प्रयोग किया जाता है। मिट्टी परीक्षण में जिंक की कमी पाये जाने पर 250-300 ग्राम जिंक सल्फेट हेप्टाहाइड्रेट (21 प्रतिशत) का प्रयोग बीजाई के एक सप्ताहपूर्व करना चाहिये। नर्सरी में बीज बोने से पहले 12 घंटा पानी में भिंगाने के बाद उसे पुनः 12घंटे छाया में रखने के बाद बोआई करें।

संकर धान के लिए बीज उपचार
संकर धान बुआई पूर्व बीज को कारबेन्डाजिम 50 डब्लूपी 2 ग्राम अथवा ट्राइकोडर्मा विरीडी 5 ग्राम पाउडर या 1 मिली तरल को प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करना आवश्यक है। बिचड़ा (पौधे) उखाड़ने से तीन-चार दिन पहले 250 ग्राम कार्बोफ्यूरॉन 3 जी या 120 ग्राम फोरेट 10 जी दानेदार दवा का प्रयोग कर सिंचाई कर देना चाहिए। बुआई के 10-12 दिन के बाद हेक्साकोनाजोल 5 ईसी 1.5 मिली की दर से प्रयोग करना चाहिए।

संकर धान के लिए रोपण की विधि
संकर धान की खेती के लिए 20-25 दिनों की आयु का बिचड़ा (पौधा) रोपाई के लिये प्रयुक्त किया जाना चाहिए। पंक्ति से पंक्ति की दूरी 20 सेंमी एवं पौधे से पौधे की दूरी 10 से 15 सेंमी रखनी चाहिए। एक जगह पर केवल 1 से 2 बिचड़ों की रोपाई करनी चाहिए। गले अथवा सूखे हुए पौधों के स्थानों पर एक सप्ताह के अंदर दूसरी बार रोपाई कर देनी चाहिए।

संकर धान के लिए पोषक तत्व प्रबंधन
संकर धान की उत्पादकता अधिक रहने के कारण नेत्रजन 50-60 किग्रा, फॉस्फेट 25 किग्रा और पोटाश 25-30 किग्रा प्रति एकड़ की आवश्यकता होती है। वांछित पोषक तत्वों को निम्नांकित विवरण के अनुरूप प्रयोग किया जाना चाहिए, जैसे-

प्रयोग का समय

नत्रजन

स्फूर

पोटाश

रोपणी के समय

25-30 किग्रा

25 किग्रा

12-15 किग्रा

रोपणी के 30-35 दिनों बाद

12-15 किग्रा

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-

रोपणी के 70-75 दिनों बाद

12-15 किग्रा

-

12-15 किग्रा



संकर धान में खरपतवार प्रबंधन
श्रमिक की उपलब्धता नहीं रहने की अवस्था में संकर धान की रोपनी के तीन से चार दिनों के अंदर ब्यूटा क्लोर 50 ईसी या प्रोटीला क्लोर 50 ईसीतरल एक लीटर को 400 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ की दर से अथवा 20-25 किलोग्राम बालू में मिलाकर भुरकाव कर खेत में 5 दिन तक 2-3 ईंच पानी रखना चाहिए।

संकर धान में जल प्रबंधन
संकर धान में कल्ले निकलने की अवस्था में 4-5 सेंमी पानी रहना आवश्यक होता है। इसके बाद 4-5 दिनों के लिए खेत से पानी निकाल दिया जाता है। खेत को गीला एवं सूखा करने से पौधों में सिंचाई जल की दक्षता बढ़ जाती है।

संकर धान में फसल सुरक्षा प्रबंधन
संकर धान प्रभेद की उत्पादकता अधिक रहने के कारण फसलों में कीट-व्याधियों का प्रकोप अधिक होता है।अतः आवश्यक है कि समेकित कीट प्रबंधन के मानक नियमों का पालन करते हुए समुचित कार्रवाई करनी चाहिए। इसके अंतर्गत निम्नांकित सुरक्षात्मक और आकस्मिक उपाय आवश्यकतानुसार किये जा सकते है, जैसे-रोपाई से 20-25 दिन बाद, नीम तेल 0.03 प्रतिशत एजैडी रैक्टीन 3 मिली प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें। रोपाई से 40-45 दिन बाद, नीम तेल 0.15 प्रतिशत 3 मिली प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें। रोपाई से 60-65 दिन बाद, इमिडाक्लोप्रीड 17.8 प्रतिशत ईसी का 0.3 मिली के साथ हेक्साकोनाजोल 5 प्रतिशत ईसी का 1 मिली प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें। गंधी बग की समस्या होने पर, मालाथियॉन या मिथाइल पाराथिन का धूल 8-10 किग्रा प्रति एकड़ की दर से प्रयोग करना चाहिए। तना छेदक कीड़ा, इन कीटों की सक्रियता वर्षा ऋतु के अन्त में बढ़ जाती है। एसीफेट 75 प्रतिशत एसपी 1 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। भूरा एवं हरा मधुआ कीट, इमिडाक्लोप्रीड 17.8 ईसी का प्रयोग 1 मिली प्रति 3 लीटर पानी की दर से करें।

संकर धानफसल की कटाई
संकर धान की कटाई 50 प्रतिशत बालियां निकलने के बीस दिन बाद या बाली के निचले दानों में दूध बन जाने पर खेत से पानी बाहर निकाल देना चाहिए। जब 80-85 प्रतिशत दाने सुनहरे रंग के हो जाये अथवा बाली के निकलने के 30-35 दिन बाद कटाई करनी चाहिए। इससे दाने को झड़ने से बचाया जा सकता है। कटाई से पहले, खेत से अवांछित पौधों को हटा देना चाहिए।