डाॅ. गजेन्द्र सिंह तोमर, प्राध्यापक (सस्य विज्ञान)
कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केन्द्र, महासमुंद (छ.ग.)


  • धान की गभोट अवस्था आने पर किस्म के अनुसार यूरिया की मात्रा देवें।
  • मूंग और उड़द में पकने की अवस्था आ गई हो तो फलियों की तुड़ाई कर सुरक्षित स्थान पर रखें।
  • अरहर में दो बार निंदाई-गुड़ाई 25-30 दिन पर व 45-60 दिन की अवस्था पर करनी चाहिए।
  • यदि पानी ज्यादा गिरता है तो दलहनी व तिलहनी फसल में जल निकास की समुचित व्यवस्था करें।
  • औषधीय फसल अश्वगंधा को किसान भाई इस माह में लगा सकते हैं।
  • कंसे फटने की अवस्था पूर्ण होने से लेकर गभोट अवस्था या दाना निकलने की अवस्था तक उथाला जल स्तर बनाकर रखें।
  • रोपा तथा बोता (बियासी) पद्धति में प्रमुख रूप से तना छेदक, गंगई, पत्तीमोड़क, केस वर्म (अधिक पानी भराव वाले क्षेत्रों में ) तथा हरा माहो का प्रकोप रहता है। तना छेदक तथा गंगई का प्रकोप आर्थिक स्तर बिंदु से अधिक होने पर दानेदार दवा जैसे- कार्बाेफ्यूरान 3 जी (30 कि.ग्रा./हे.) फोरेट 10 जी (10 कि.ग्रा./हे.) का प्रयोग करें अथवा कार्टाप हाइड्रोक्लोराइड दानेदार का प्रयोग करें। दानेदार दवा के उपयोग से समय में पानी/नमी होना आवश्यक है, परंतु पानी बहता हुआ ना रहे।
  • भूरा माहू के नियमित प्रकोप वाले स्थानों पर फोरेट का इस्तेमाल ना करें।
  • धान में तना छेदक कीट की निगरानी हेतु फेरोमेन ट्रेप 2 नग प्रति एकड़ कि दर से उपयोग करें।
  • धान की फसल में झुलसा नाव अकार के धब्बे दिखते ही ट्राइसाइक्लोजोल (6 ग्रा./10 ली. पानी)/ आइसोप्रोथियोलेन (1 मि.ली./ली.पानी)/ टेबुकोनाजोले (1.5 मि.ली./ली.पानी) में से किसी एक फफूंदनाशक दवा का छिड़काव करना चाहिए। यदि संभव हो तो छिड़काव हेतु साफ पानी का उपयोग करें तथा छिड़काव दोपहर तीन बजे के बाद करें तो रोग का प्रभावी नियंत्रण होगा।
  • जीवाणु जनित झुलसा- बहरीपान रोग के लक्षण दिखने पर यदि पानी उपलब्ध हो तो खेत से पानी निकालकर 3 से 4 दिन तक खुला रखें तथा 25 किलो पोटाश प्रति हेक्टेयर कि दर से भुरकाव करें।
  • पर्णच्छद अंगमारी रोग के नियंत्रण हेतु हेक्साकोनाजोल (1 मि.ली./ली.पानी) दवा का छिड़काव पानी की सतह के पास वाले पौधों के भागो पर करना चाहिए। रोग की तीव्रता के अनुसार छिड़काव दोहराया जा सकता है।
  • धान फसल नहीं लगा पाने की स्थिति में कुलथी, रामतिल, मूंग, उड़द, तोरिया, मक्का, सूरजमुखी, सब्जी एवं चारे वाली फसलों की बुवाई करें।
  • धान फसल पर पीला तना छेदक कीट के व्यस्क दिखाई देने पर फसल का निरीक्षण कर तना छेदक के अंडा समूह को एकत्र कर नष्ट कर देवें साथ ही डेट हार्ट (सूखी पत्ती) को खींचकर निकाल देवें।
  • उच्चहन धान खेतों को निंदा मुक्त रखें एवं बारिश होने पर नत्रजन उर्वरक का उपयोग करें।
  • धान एवं सोयाबीन निंदा नियंत्रण हेतु अनुशंसित दवा का उपयोग करें।
  • धान में जीवाणु जनित झुलसा रोग के लक्षण दिखने पर यदि पानी उपलब्ध हो तो खेत से पानी निकालकर 3 से 4 दिन तक खुला रखें तथा 25 किलो पोटाश प्रति हेक्टेयर कि दर से छिड़काव करें।
  • सोयाबीन की फसल में सेमीलूपर एवं गर्डल बीटिल के नियंत्रण हेतु ट्राईजोफाॅस 2 मिली अथवा क्लोरोपायरीफाॅस 3 मिली दवा प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।
  • मूंगफली अथवा अन्य फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले सफेद ग्रब का प्रकोप होने पर मिट्टी पलटने के समय क्लोरपीरिफॉस 1.5 प्रतिशत चूर्ण का 25 कि./हेक्टेयर की दर से जमीन में भुरकाव करें।
  • दलहन एवं तिलहन फसलों में उचित जल निकास की व्यवस्था करें।
  • अदरक एवं हल्दी की फसलों में हल्की मिट्टी चढ़ाकर दूसरी बार पलवार करें।
  • आम फलन की समाप्ति के पश्चात रोग ग्रस्त शाखाओं हल्की छंटाई का कार्य करें।
  • शिमला मिर्च की रोपाई का कार्य करें।
  • खरीफ प्याज को खेत में रोपाई करें।
  • रबी फसल की बुवाई हेतु बीज की व्यवस्था करें।
  • पपीते के पौधे की रोपाई का कार्य पूरा करें।
  • बगीचे में सिंचाई नाली का निर्माण करें तथा खरपतवार नियंत्रण हेतु निंदाई-गुड़ाई करें।
  • मटर व मूली की अगेती किस्मों की बुवाई महीने के अंत तक पूरी करें।