रूपाली गुूप्ता एवं मयूरी साहू
पौध प्रजनन एवं अनुवांषिकी विभाग, इं.गां.कृ.वि., रायपुर, छत्तीसगढ
अरहर एक बहुपयोगी फसल है और इसका उपयोग विभिन्न उत्पादों में किया जाता है। प्रोटीन अधिक मात्रा में पाये जाने के कारण यह शाकाहारी आहार का एक प्रमुख घटक है। अरहर, दलहनी फसल होने के कारण वायुमंडल से लगभग 30-40 कि.ग्रा. नाइट्रोजन प्रति हैक्टर की दर से मृदा में स्थिरीकरण कर मृदा की उपजाऊ शक्ति को बढ़ाती है। इस प्रक्रिया को नाइट्रोजन स्थितिकरण कहते हैै उन्नत फसल जो इस प्रक्रिया का अनुसरण करते है उनका उदाहरण-उड़द, मूँग एवं मूँगफली है। इसके साथ ही मृदा पर गिरी सूखी पत्तियां भी सड़कर मृदा की उर्वरा शक्ति बढ़ाने में मदद करती हैं। मूसला जड़ होने के कारण पौधों में सूखा सहन करने की शक्ति अधिक होती है।
भूमि की तैयारीः-
पानी के संमुचित निकाय वाली जमीन में अरहर की खेती अच्छी होती है। अरहर की जड़ प्रणाली (गहरी मूसला) मजमूत होने के कारण इसे सूखा प्रतिरोधक फसल भी कहते है इसलिए वर्षा आरंभ होने के बाद दो-तीन बार हल चलाकर खेत तैयार करना चाहिए।
बीज का चुनाव एवं बीज की मात्राः-
स्वस्थ व रोगरहित बीज की 10-12 किलोग्राम मात्रा प्रति हेक्टयर पर्याप्त होगा। जिससे 4 से 4.5 लाख तक पौधा संख्या (प्रति हेक्टयर) मिल सकेगी।
बुवाई का समय एवं तरीकाः-
जून के अंतिम सप्ताह से लेकर जुलाई के द्वितीय सप्ताह तक बुआई करना चाहियें। बीज 6-7 से.मी की गहराई पर 20 से.मी. दूरी रखते हुये बुआई करना चाहिये। कतारो से कतारो की दूरी 90-100 से.मी. रखना चाहिये।
बीजोपचारः-
बुआई से पहले बीज को फफूंदनाशक दवा थिराम अथवा कैप्टान 3 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से एवं जैविक कारको जैसे-राईजोबियम कल्चर, द्राइाकेडर्मा तथा फाॅस्फोरस घोलक जीवाणु द्वारा 250 ग्राम प्रति 10 किलो बीज की दर से करना चाहिये।
रासायनिक खादः-
अरहर की खेती में 20 किलो नाइट्रोजन 50 किलो फाॅस्फोरस, 20 किलो पोटाश प्रति हेक्टयर प्रयोग करना चाहिये एवं 20 किलो जिप्सम बेसल (बुूआई के समय) खुराक बुआई के पूर्व खेत में डालना चाहिये।
निदाई-गुड़ई-
अरहर के बुआई के 20 दिन बाद नींदानाशक दवाओ का प्रयोग किया जा सकता है। एक हेक्टयर के लिए इमाजेथापायर की संस्तूत मात्रा को 600 लीटर पानी में घोलकर करें। खरपतवार नाशक दवाओं के छिड़काव के लिए हमेशा फ्लेट फेन नोजल का ही उपयोग करें। 45 दिनों के बाद हाथ में निदाई करे।
पौधा संरक्षणः-
प्रमुख रोग
(1) उकठा (फ्युजेरियम विल्ट)- फंफूदनाशक जैसे-थीरम व वाविस्टीन की 2 ग्राम प्रति कि.ग्रा. या ट्राइकोकर्मा पावडर 4 ग्राम प्रति कि.ग्रा. की दर से बीज उपचारित करें।
(2) बंहयता मोजेक - खेत में रोग के प्रथम लक्षण दिखाई देने पर कीटनाशक जैसे मकड़ीनाशी 0.1 प्रतिशत मात्रा का प्रति 10 लीटर पानी में घोल बनाकर 10-15 दिनों के अंतराल पर 2 से 3 बार छिड़काव करें।
प्रमुख कीट
(1) फलीछेदकः- इसके नियंत्रण के लिए डाइमेथोएट 30 ई सी 0.03 प्रतिशत् प्रति हेक्टयर की मात्रा को 650 से 700 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिये या साइपरमेथिलीन प्रति 2 मि.ली. की दर से 500 से 600 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिये।
(2) फफोला भृंगः- इसके नियंत्रण के लिए इंडोक्साकार्ब 14.5 एससी की 0.5 मि.ली मात्रा के प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिडकाव करना चाहिये।
बीज पैदावार
प्रजातियों के अनुसार बीज की औसतन पैदावार 12-20 क्विंटल प्रति हैक्टर प्राप्त की जा सकती है। अरहर बीजों को 8 से 9 प्रतिशत नमी रहने तक सुखाकर भण्डारित करना चाहिये। भण्डारण के पूर्व कमरों को साफ कर लें। भण्डारण में कीटों के नियंत्रण के लिए एल्युमिनियम फॉस्फाइड की गोली 3 ग्राम प्रति टन की दर से प्रयोग कर भण्डारगृह में धुआं करें।
0 Comments