निशी केशरी
डाॅ. राजेन्द्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा

पादप वृध्दि विभिन्न जटिल प्रकियाओं का परिणाम है जिसमें पौधे सौर ऊर्जा, कार्बनडाईऑक्साईड, जल एवं मृदा से पोषकों को ग्रहण कर संश्लेषण करते हैं। पादप वृध्दि के लिये समस्त 17 तत्व आवश्यक होते हैं। पादप वृध्दि के लिये प्राथमिक पोषक तत्व नत्रजन, स्फुर एवं पोटाश हैं। अपर्याप्त मात्रा में होने पर यह प्राथमिक पोषक तत्व सीमित पादप वृध्दि के लिये सदैव उत्तरदायी होते हैं।

फसलों की वृद्धिफसलों में पोषक तत्वों की मात्रा के कारण निर्धारित होती है। यह पोषक तत्व पौधे खुद तैयार करते हैं जिसे सौर उर्जा, कार्बन डाई ऑक्साइड, जल तथा मृदा से अवशोषित खनिज तत्वोंसे संश्लेषित करते हैं। खाद्य की पोषक मात्रा को निर्धारित करने में सूत्रकृमिओं की बहुत अहम सहभागिता है। सूत्रकृमि मिट्टी में बहुतायत से पाये जाने वाले जीव हैं जो देखने में बेलनाकार, लम्बे, पतले साँप की तरह होते हैं। पूरे पृथ्वी पर इनकी संख्या सारे जीवों में सबसे ज्यादा होती है जिसमें आधी से ज्यादा संख्या मुक्त परजीवी की होती है। तकरीबन 15 प्रतिशत मनुष्यों तथा पशुओं पर परजीवी होती है। पौधा परजीवी, सूत्रकृमि सूक्ष्मदर्शी होते हैं और इनकी संख्या 10 प्रतिशत के आसपास होती है। इनके द्वारा फसलों में 12 प्रतिशत से ज्यादा हानि होती है जो किसी-किसी फसलों में 50 से 80 प्रतिशत तक होती है।

पौधा परजीवी सूत्रकृमि के मुंह में भाले के आकार का अंग होता है जिसे स्टाइलेट कहते हैं जिसके बीच में एक बहुत पतली सी नली होती है। स्टाइलेट से ये सूत्रकृमिपौधों के जड़ों को भेदकर उसकी कोशिकाओं का सारा पोषण चूस लेते हैं और जरूरी खनिज तत्व जो फसलों के उत्पादों की गुणवत्ता के लिए जरूरी होता है, को पौधों में रिक्त कर देते हैं जिससे पौधों की बढ़वार कम हो जाती है। पौधे बौने हो जाते हैं और जरूरी पोषक तत्व की कमी के कारण तनों,टहनियों, पत्तियों, फूलों तथा फलों की गुणवत्ता खराब हो जाती है। इसकी वजह से फसलों के उत्पाद का सही मूल्य नहीं मिल पाता क्योंकि देखने में यह उत्पाद कुपोषित लगते हैं। बहुत फसलों में गुणवत्ता की पहचान करना मुश्किल होता है और उपभोक्ता जब इसका इस्तेमाल करते हैं तो उन्हें सही पोषण नहीं मिलता। विभिन्न फसलों में निम्नलिखित तरह से गुणवत्ता प्रभावित होती है।

1. धान में- इसमें जड़गाँठ सूत्रकृमि,जड़ विक्षत सूत्रकृमि, सफेद नोक वाले सूत्रकृमि इत्यादि अन्य सूत्रकृमिभी आक्रमण करते हैं। जड़ों की मात्रा कम हो जाती है तथा धान की बाली में खोखले बीज बनने लगते हैं। बीज बनते हैं तो उसमें कार्बोहाइड्रेट, वसा इत्यादि की मात्रा कम हो जाती है। सुगंधित धान की प्रजातियों में सुगंध की तथा पोषक तत्वों की कमी हो जाती है।

2. गेहूॅं में- गेहूॅं में सूत्रकृमि द्वारा सेहूॅं रोग हो जाता है जिसमें स्वस्थ बीजों की जगह रोग-ग्रसित छोटे-छोटे काले बीज बन जाते हैं। जिसमें सूत्रकृमि के तकरीबन 20 से 25 हजार बच्चे होते हैं जो मिट्टी में जाने पर स्वस्थ बीजों को फिर से संक्रमित करते हैं। रोगग्रसित बीज किसी काम नहीं आते। गेहूँका सिस्ट सूत्रकृमि उसकी जड़ों को 80 प्रतिशत भक्षण कर लेता है जिससे मोल्या बीमारी हो जाती है। इससे भी गेहूँके बीज कम मात्रा में बनते हैं तथा उससे पोषक तत्वों की कमी हो जाती है।

3. सब्जियों में- सब्जियों में सूत्रकृमि बहुत ज्यादा नुकसान करता है। तकरीबन सारी सब्जियों विशेषकर भिंडी,लत्तीदार सब्जी, टमाटर, बैंगन, मिर्च, गाजर इत्यादि में जड़गाँठ तथा वृक्काकार सूत्रकृमि मुख्य रूप से लगते हैं। इसके कारण लत्तीदार सब्जियों में फलों की मात्रा, आकार तथा वजन इत्यादि बुरी तरह से प्रभावित होते हैं। गाजर की खाद्य जड़ें फट जाती हैं। स्वाद भी प्रभावित होता है। गाजर कड़ा हो जाता है।भिण्डी छोटी-छोटी, कड़ी और चमकहीन हो जाती है। टमाटर भी छोटा-छोटा,कड़े छिलके वाला तथा फट जाता है। पोषक तत्वों की कमी के कारण इनका स्वाद बिगड़ जाता है।

4. फलों में- फलों में मुख्यतः जड़गाँठसूत्रकृमि तथा जड़ विक्षतसूत्रकृमि आक्रमण करते हैं। यह सूत्रकृमि जड़ों में गाँठ बनाते हैं तथा जड़ों को विगलित करते हैं। नींबू प्रजाति वाले सारे पौधों में नींबू सूत्रकृमि का आक्रमण होता है। इसके कारण जड़ें काली हो जाती हैं। फलों का आकार छोटा तथा फल कम मात्रा में लगते हैं। फलों के छिलके कड़े हो जाते हैं। नींबू के रस की गुणवत्ता में कमी होती है। दूसरे फलों में भी तकरीबन यही परिवर्तन होता है।

5. दलहनी तथा तेलहनी फसलों में- दलहनी फसलों में जड़गाँठसूत्रकृमि तथा वृक्काकार सूत्रकृमि मुख्य रूप से लगते हैं। इनके कारण पोषक तत्वों की कमी हो जाती है। दलहनी फसलों में पोषक तत्वों की कमी के कारण जरूरी अमीनो एसिड नहीं बन पाते और प्रोटीन की गुणवत्ता ठीक नहीं होती। ऐसे दलहनी उत्पाद से बने हुए खाने को खाकर शारीरिक कमियाँ जो प्रोटीन की कमी से होती है, देखने को मिलती है। इसी तरह तेलहनी फसलों में पोषक तत्वों की कमी होने पर बीजों में तेल की मात्रा कम हो जाती है तथा उसके सुगंध में भी कमी आती है।

6. मकई मेंश्री अन्न तथा अन्य मोटे अनाजों में-इन फसलों में सूत्रकृमि का आक्रमण कम होता है परन्तु कम मात्रा में आवश्य होता है जिसके कारण इनके उत्पादों में कार्बोहाइड्रेट तथा अन्य खनिज तत्वों की कमी हो जाती है।

7. मसाले वाली फसलों में- इन फसलों जैसे, हल्दी, धनिया, अदरक इत्यादि में भी सूत्रकृमि का आक्रमण होता है जिससे इनकी पैदावार कम हो जाती है। इनके महक तथा सामान्य गुणों की कमी हो जाती है। ऐसे उत्पादों की बिक्री पर भी बुरा असर पड़ता है।

8. फूलों में- फूलों में भी सूत्रकृमि का आक्रमण होता है। रजनीगंधा में फूलों पर ही सूत्रकृमि लगते हैं जो उसे पूरी तरह खिलने नहीं देते। उसका रंग मटमैला हो जाता है, छोटी आकार का हो जाता है। सारी कलियाॅं एक साथ खिलने लगती हैं। गुलदाउदी की कलियाॅं खिल नहीं पाती और सुख जाती हैं। इन कलियों में सुगंध नहीं रहती। इसी तरह अन्य फूलों में यही होता है।

इस समस्या से निजात पाने के लिए निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं जो सूत्रकृमि के नियंत्रण के लिए किये जाते हैं। इन उपायों के अलावा मिट्टी में पोषक तत्वों की संतुलित मात्रा को हमेशा फसलों को लगाने से पहले तथा बाद में भी सुनिश्चित करना चाहिए जो मिट्टी जाँच द्वारा अनुमानित की जा सकती है। मिट्टी अच्छी तरह पोषित होगी तो सूत्रकृमि के आक्रमण को थोड़ा बहुत बर्दाश्त करने की क्षमता फसलों में आ जाएगी क्योंकि फसल ताकतवर होगा।

1. मृदा सौर्यीकरण- इस तकनीक में पतले, पारदर्शी पाॅलीथीन की चादर को जिसकी मोटाई 25-30 माइक्रोमीटर होती है, हल्के गीले मिट्टी के ऊपर डालकर अच्छे से किनारों को 6-12 सप्ताह के लिए बंद किया जाता है ताकि मिट्टी के अन्दर का तापमान इतना बढ़ जाये जो सूत्रकृमियों के लिए हानिकारक हो। पाॅलीथीन मिट्टी से ताप एवं वाष्पोत्सर्जन को वातावरण में जाने से रोकता है। यह ताप पाॅलीथीन के अन्दर की सतह पर छोटी-छोटी बूँदों के रूप में नजर आता है। यह विधि किसानों के लिए काफी फायदेमंद है क्योंकि यह विधि काफी सस्ती, आसानी से इस्तेमाल की जाने वाली, रसायनरोधी, कारगर तथा किसी भी बदबू तथा विष से रहित होती है। मृदा सौर्यीकरण के द्वारा मिट्टी के ऊपर की 30 सेमी मोटी सतह उपचारित हो जाती है, जो छोटे जड़ों वाली पौधों तथा कम समय वाले पौधों के लिए कारगर होती है।मृदा सौर्यीकरण को फसलों के अवशेषों, हरे अवशेषों, पशु अवशिष्ट तथा अजैविक खादों के साथ भी इस्तेमाल किया जा सकता है। ये सभी मृदा में कुछ यौगिकों का स्त्राव करते हैं जो फायदेमंद सूक्ष्मजीवों की संख्या को मृदा में बढ़ा देते हैं।

2. खर पतवार तथा पुरानी फसल की जडों को नष्ट करना: खर पतवारों में सूत्रकृमि मुख्य फसल के अभाव में अपना जीवन चक्र चलाने लगते हैं। अतः खर पतवार तथा पुरानी फसल की जडोंको नष्ट कर देना चाहिए। इससे अगली फसल को सूत्रकृमि के संक्रमण से बचा सकते हैं।

3. स्वस्थ बीज तथा बिचडों का इस्तेमाल करना: स्वस्थ बीज तथा बिचडों का इस्तेमाल करना चाहिए। मुख्य खेत में रोपनी से पहले बिचडों को नीम बीज पाउडर के घोल में एक घंटे तक डूबो कर रोपनी करनी चाहिए।

4. फसल चक्र: फसल चक्रखुले खेतों के लिए काफी उपयोगी है क्योंकि यहां किसानों को दूसरे फसल जिनपर सूत्रकृमि आक्रमण नहीं करते, को लगाने का विकल्प मिलता है। फसल चक्र की विधि उन फसलों के लिए सबसे ज्यादा असरकारक होती है जिन फसलों पर सूत्रकृमि का आक्रमण न होता हो। जडगााँठ सूत्रकृमि बहुत सारे फसलों पर आक्रमण करते हैं जिससे किसानों को फसल चक्र के लिए दूसरे फसलों का विकल्प नहीं मिल पाता। लेकिन फिर भी जडगााँठ सूत्रकृमि के आतंक से फसलों को बचाने के लिए फसल चक्र के रुप में जूट, सरसों, शक्करकंद, सूर्यमुखी, सोयाबीन, प्याज, तिल, चुकंदर आदि का व्यवहार कर सकते हैं।

5. तिलहन खल्लियों का इस्तेमाल- अण्डी की खल्लियों के इस्तेमाल से नींबू की प्रजातियों में हानि पहुँचाने वाला सूत्रकृमि, टायलेन्कुलस सेमीपेनिट्रांस की संख्या में कमी देखी गयी है। करंज खल्ली के इस्तेमाल से जड़गाँठ सूत्रकृमि की संख्या में 50-100 प्रतिशत की कमी हुई है। इसी तरह नीम, मूँगफली, तिल, सरसों, महुआ, कपास इत्यादि की खल्लियों से सूत्रकृमि की संख्या में कमी लायी जा सकती है। इनका इस्तेमाल पौधे लगाने के तीन सप्ताह पहले मिट्टी में किया जाना चाहिए। गेहूँ एवं जौ में सरसों एवं अण्डी की खल्ली के इस्तेमाल से सिस्ट सूत्रकृमि का प्रबंधन होता है जो इन फसलों को काफी हानि पहुँचाते हैं। यदि इन खल्लियों को गेहूँ के अवशेषों और खाद के साथ मिलाकर व्यवहार किया जाये तो ज्यादा सफलता मिलती है। नीम, धतुरा, गेंदा, भांग, पुदीना, मदार के पत्ते, सर्पगन्धा के जड़, तुलसी के पत्ते, मेथी के पत्ते, अण्डी के पत्ते इत्यादि कई ऐसे पौधे हैं जिनके पत्तों के मिट्टी में इस्तेमाल से पौधा परजीवी सूत्रकृमि की संख्या में कमी लायी जा सकती है।

6. कम्पोस्ट एवं खेतों की खाद का इस्तेमाल- कृषि अपशिष्टों को खाद के साथ मिलाकर मिट्टी में उपयोग करने से पौधा परजीवी सूत्रकृमि का नियंत्रण होता है। इससे पहले गर्मियों में खेतों की गहरी जुताई करने से बेहतर लाभ मिलता है।

7. हरी खाद का इस्तेमाल- इसमें पौधों को उगाना और उनके मुलायम अवस्था में ही मिट्टी में मिलाने से अच्छी तरह विखण्डित होने के बाद मुख्य फसल को पोषक तत्व प्रदान करते हैं। जैसे- सनई औरढैंचा के पौधों को 45 दिनों पर मिट्टी में मिलाने से, अनानास के हरे पत्ते 50-200 टन प्रति एकड़ की दर से मिट्टी में मिलाने से सूत्रकृमि की संख्या में कमी आती है। नीम, करंज, सनई, ढैंचा, गेंदा इत्यादि के हरे पत्तों को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर मिट्टी में मिलाने से सूत्रकृमियों का नियंत्रण होता है।