काजल साहू, डॉ. घनश्याम साहू, आशा एवं अजय सिंह
फल विज्ञान विभाग, इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर (छ.ग.)

भारत मे अनार की खेती मुख्य रूप से महाराष्ट्र मे किया जाता हैै। अनार बहुत ही पोेैष्टिक एवं गुणकारी फल है। यह स्वास्थ्यवर्धक तथा विटामिन ए, सी, ई, फोलिक एसिड, एंटीआक्सीडेंट एंव कई औषधीय गुणो से भरपुर होता है।

व्यवसायिक रूप से अनार मे प्रवर्धन तनाकलम गुटी और हाल ही मे सूक्ष्म प्रवर्धन के माध्यम से किया जाता हैै। अनार मे प्रवर्धन के लिए दक्कन पठार मे सामान्यतः गुटी कलम का प्रयोग करते है और भारत के बाकी हिस्सो मे हार्डवुड कटिंग का प्रयोग किया जाता है। कुछ भारतीय कंपनिया सूक्ष्म प्रवर्धन के माध्यम से पौधे उगाने के क्रम मे आगे आ रही है।

अ. गुटी कलम- अनार का व्यवसायिक प्रवर्धन गुटी कलम द्वारा किया जाता है। इस विधि को जून-सितंबर के माह मे किया जाता है। इसके लिए एक वर्ष पुरानी पेंसिल सामान मोटाई वाली स्वस्थ एव परिपक्व 45-60 सेंटीमीटर की लंबाई की शाखा का चयन करे । चुनी मई शाखा मे कलिका के नीचे 2-3 सेंटीमीटर का चौडी गोलार्ड के छाल पुर्ण रूप से निकालने के बादए छाल निकाली हुई शाखा के उपरी भाग मे इन्डोल ब्यूटेरिक अम्ल आई बी ए का लेप लगाकर नमी युक्त स्फेगनम मास चारो ओर लगाकर पॉलीथीन शीट से बांध देना चाहिए । बांधने के लिए सुतली का उपयोग किया जाता है। 45-60 दिनो के बाद अच्छी तरह से जडे दिखाई देने लगे तब जडो वाली गुटी को नीचे के तरू से मात्रृ पौधो से 75-90 दिनो बाद अलग कर लेना चाहिए या पॉलीथीन बैग मे बागरोपण के लिए रखना चाहिए ।

ब. तना कलम- एक वर्ष पुरानी शाखाओ से 20-30 से.मी. लंबीए 0.5-1.2 से.मी. मोटाई का तना कलम काटकर पौधशाला मे लगाई जाती है । तना कलमो के नीचले हिस्सो की आधी लंबाई तक 30 सेकेंड या 1 मिनट कि लिए इन्डोल ब्यूटेरिक अम्ल आई बी से पहले उपचारित करने से जडे शीघ्र एवं अधिक संख्या मे निकलती है। पॉलीहाउस/शेडनेट मे कोकोपीट और रेत के मिश्रण 4ः1 मे या केवल कोकोपीट मे कलमो को लगाने से तेजी से जड निकलती है।

स. ग्राप्टिंग/कलम बांधना- मानक ग्राप्टिंग तकनीक और उपयुक्त मूलवृतो की आवश्यकता बागवानी मे जलवायु की चुनौतियो को कम करने विशेषकर बढी हुई मिटृटी की लवण्ताए सूखाए कीटो और रोगो एवं अनार की व्यवसायिक खेती के लिए आवश्यक है। ग्राप्टिंग मे जंगली किस्मो मुलवृंत के लिए और वांछनीय किस्म जैसे भगवाए गणेश आदि को शाखवृंत के रूप मे इस्तेमाल किया जा सकता है।

एक से डेढ वर्ष पुरानी मुलवृंत को जमीन से 25-30 से.मी. उपर से सिरा कर्तन कर देना चाहिए । तेज चाकू के मद्द से मूलवृन्त का सिरा विन्यास 5 से.मी. गहराई तक तने के मध्य मे कर देना चाहिए। छः से बारह महीने पुरानी 15-20 से.मी. लंबी और 0.7-1.0 से.मी. मोटी शाखवृन्त को उपर शाखा से लेने के पश्चात आधार भाग को कील के आकार का बना ले और मूलवृन्त के सिरविन्यास को लंबवत बाटते हुए अन्दर धसा दे। ग्राफ्ट को पॉलीथीन ट्यूब से ढक देनी चाहिए और उपरी सिरे को बांध दे। नमी बनाए रखने के लिए पानी देते रहना चाहिए। पालीथीन ट्यूब को फूटाव होने के बाद हटा दे।

द. उत्तक संवर्धन द्वारा प्रवर्धन- परंपरागत प्रवर्धन से अनार के रोपण सामाग्री की बढती मांग को पूरा नही किया जा सकता है अतः सूक्ष्म प्रवर्धन के माध्यम से अनार मे बडे पैमाने पर प्रवर्धन समय की मांग है। सूक्ष्म प्रवर्धन तकनीक से उगाये गए अनार के पौधे मातृ पौधे के सामान होता है। इनको गुणन चक्र द्वारा गुजारा जाता है और विकास नियामको के न्यूनतम स्तर के साथ मानकीकृत कर दिया जाता है।

लाभ-
  • रोग युक्त रोपण सामाग्री की अधिक मात्रा मे उपलब्धता हो जाती है।
  • सूक्ष्म प्रवर्धन तकनीक से उगाये गए पौधे एक साथ बढने और फलने मे सक्षम होते है।
  • उच्च मूल्य वाली अधिकांश फसलों मे अत्यधिक सफल रहा है और अनार मे इसकी अच्छी गुंजाइस है।

हानि-
  • उच्च कोेेेैशल प्रौेधोगिकी एव लागत की आवश्यकता होती है।
  • सूक्ष्म प्रवर्धन तकनीक से उगाये गए अनार के पौधे मे गहन देखभाल की आवश्यकता होती है।
  • सूक्ष्म प्रवर्धन का लाभ उठाने के लिए उत्तक संवर्धित बागो के लिए पेैकेज आफ प्रेक्टिसेस विकसित करने की आवश्यकता है।